अजमेर: चैत्र सुदी दशमी पर 526 वर्षों से राठौड़ बाबा और गणगौर की सवारी निकालने की परंपरा रही है. शुक्रवार को बहुमूल्य रत्न और स्वर्ण जड़ित श्रृंगार के बाद राठौड़ बाबा और गणगौर को भक्तों को दर्शन देने के लिए मोदियानी गली में रखा गया. आज से 5 दिन तक यहां मेले सा माहौल रहेगा. इस बार 7 अप्रैल को राठौड़ बाबा की सवारी निकाली जाएगी. लखम्बा फरिकन पंचायत की ओर से 526 वर्षों से पीढ़ी दर पीढ़ी अजमेर में राठौड़ बाबा की सवारी निकालने की परंपरा रही है.
हर वर्ष कुम्हार के घर जाता है जोड़ा: समिति के पदाधिकारी डॉ एमएल अग्रवाल ने बताया कि 526 वर्षो से पीढ़ी दर पीढ़ी राठौड़ बाबा की सवारी धूमधाम से निकाली जाती रही है. सवारी से दो दिन पहले मोदियानी गली में मोहल्लेदार लक्ष्मण स्वरूप के घर पर जोड़े को उतारा जाता है. उसके बाद जोड़े के रंग के लिए उन्हें देहली गेट कुम्हार के भेजा जाता है. कुम्हार का परिवार आस्था के साथ जोड़े का स्वागत कर उन्हें पानी पिलाता है और रंग लगाता है. यहां से मोदियाना गली में जोड़े को वापस अमरचंद अग्रवाल के घर लाया जाता है. जहां परंपरा के अनुसार राठौड़ बाबा और गणगौर माता का नयनाभिराम श्रृंगार किया जाता है. अग्रवाल ने बताया कि राठौड़ बाबा और गणगौर माता का सवा फिट का जोड़ा मिट्टी से बना हुआ है.
वर्ष में 4 दिन होते हैं दर्शन: श्रृंगार के बाद अगले दो दिन तक दर्शनों के लिए रखा जाता है. इस बार 7 अप्रैल शाम 7 बजे से राठौड़ बाबा की सवारी मोदियानी गली से होलीदड़ा, खटोला पोल होते हुए चौपड़ से नया बाजार, आगरा गेट गणेश मंदिर के सामने पहुंचती है. उसके बाद यहीं से वापसी होती है. ढाई किलोमीटर का मार्ग 9 घण्टे में तय होता है. यानी 7 अप्रैल को शाम 7 बजे से सवारी का आगाज होगा, जो अगले दिन सुबह 5 बजे वापस मोदियाना गली पहुंचेगी. उन्होंने बताया कि जोड़े को दर्शनों के लिए रखा जाएगा. 8 अप्रैल की रात को रात्रि को जागरण होगा. अगले दिन श्रद्धालु राठौड़ बाबा और गणगौर के आशीर्वाद स्वरुप लच्छा और मेहंदी लेने के लिए मोदियानी गली आएंगे. अग्रवाल ने बताया कि वर्ष में केवल चार दिन ही राठौड़ बाबा और गणगौर माता के दर्शन होते हैं.
राठौड़ बाबा और गणगौर माता के गाए जाते हैं गीत: मोदियाना गली के वरिष्ठजन श्याम लाल तिवाड़ी बताते हैं कि कई क्विंटल लच्छा और मेहंदी श्रद्धालुओं में वितरित की जाती है. मेहंदी और लच्छा सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है. मान्यता है कि राठौड़ बाबा और गणगौर से सच्चे मन से जो भी श्रद्धालु मांगता है, उसे मिलता है. सुहागन महिलाएं अखंड सौभाग्य के लिए कामना करती हैं. वहीं अविवाहित युवक-युवती योग्य वर-वधु के लिए प्रार्थना करते हैं. निसंतान दंपती भी संतान के लिए जोड़े से प्रार्थना करते हैं. उन्होंने बताया कि स्थानीय लोकगीतों में राठौड़ बाबा और गणगौर के गीत गाए जाते हैं.
नहीं रखा जाता रत्न-आभूषणों का हिसाब: समिति के पदाधिकारी राजेंद्र प्रसाद मित्तल बताते हैं कि राठौड़ बाबा और गणगौर का के श्रृंगार में काम आने वाले बहुमूल्य रत्न, स्वर्ण आभूषण और दुल्हन का बेस श्रद्धालु स्वयं लेकर आते हैं. इन रत्न-आभूषणों की कीमत का हिसाब नहीं रखा जाता. उन्होंने बताया कि इस बार 25 से अधिक लोगों ने राठौड़ बाबा के लिए कपड़ा और गणगौर माता के लिए दुल्हन का बेस भेजा है. मान्यता है कि वस्त्र, रत्न और आभूषण कौनसे पहनने हैं, यह जोड़ा खुद तय करता है. उन्होंने बताया कि राठौड़ बाबा और गणगौर माता को सभी लोग चमत्कारी मानते हैं.
मानते हैं शिव-पार्वती का रूप: मित्तल ने बताया कि सवारी के दौरान लोग कई घंटों तक राठौड़ बाबा और गणगौर माता के दर्शनों के लिए खड़े रहते हैं. शहर में अन्य स्थानों से भी सवारी निकलती है, लेकिन राठौड़ बाबा के पीछे यह सभी सवारियां रहती हैं. उन्होंने बताया कि राठौड़ बाबा को भगवान शिव और गणगौर माता को पार्वती का रूप माना जाता है. स्थानीय भाषा में ईसर और गणगौर भी कहा जाता है. भगवान शिव का रोबीले अंदाज में श्रंगार होता है. इसलिए उन्हें राठौड़ बाबा कहते है. सवारी के दौरान राठौड़ बाबा को कई मण प्रसाद चढ़ता है. जिसको श्रद्धालुओं में वितरित कर दिया जाता है.