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45 साल में खूब आगे बढ़ी BJP, लेकिन बिहार में अपना CM बनाने का सपना आज भी अधूरा - BJP FOUNDATION DAY

45 साल के सफर में बीजेपी फर्श से अर्श पर आ चुकी है लेकिन अभी तक अपना मुख्यमंत्री बनाने का सपना पूरा नहीं हो पाया.

BJP Foundation Day
बीजेपी का स्थापना दिवस (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : April 5, 2025 at 8:44 PM IST

Updated : April 6, 2025 at 9:03 AM IST

9 Min Read

पटना: केंद्र की सत्ता पर पिछले 11 साल से काबिज भारतीय जनता पार्टी 45 साल की हो चुकी है. बीजेपी स्थापना दिवस मना रही है. बिहार में भी पार्टी खूब आगे बढ़ी और दो दशक से सत्ता की साझेदार है. बिहार बीजेपी को शिखर तक पहुंचाने में कई सूरमाओं का योगदान रहा. पर्दे के पीछे ऐसे खिलाड़ी भी थे, जिनकी बदौलत भाजपा यहां तक पहुंची है. शिवकुमार द्विवेदी बिहार में जनसंघ के पहले अध्यक्ष थे, जिनके नेतृत्व में पार्टी मजबूत हुई.

जनसंघ से बीजेपी बनने का सफर: 21 अक्टूबर 1951 को दिल्ली में गठन के बाद भारतीय जनसंघ ने पहली बार 1962 में बिहार में चुनाव लड़ा था. हिलसा, नवादा और सिवान सीट पर जीत हासिल हुई थी. 1967 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जन संघ ने 271 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए और 26 सीटों पर जीत हासिल हुई. 1969 के विधानसभा चुनाव में जनसंघ ने 303 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए और 34 सीटों पर जीत हासिल हुई. 1970 आते-आते राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव आया और जनसंघ के अलावा कई दलों ने साथ मिलकर जनता पार्टी का गठन किया.

बिहार में बीजेपी के 45 वर्षों का सफर (ETV Bharat)

1980 में रास्ता अलग: बिहार में 1967 में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी, महामाया प्रसाद मुख्यमंत्री बने. महामाया प्रसाद की सरकार में जनसंघ भी शामिल था. 1970 में कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री बने. 1977 में भी बिहार में गैर कांग्रेसी सरकार बनी लेकिन 1980 आते-आते जनसंघ का दोहरी सदस्यता के सवाल पर जनता पार्टी के साथ विवाद हुआ और विवाद के चलते जनसंघ ने खुद को अलग कर लिया और यही भाजपा के गठन की वजह बनी.

इन नेताओं की अगुवाई में आगे बढ़ी यात्रा: 1952 से 1957 तक भारतीय जनसंघ के पहले अध्यक्ष के रूप में शिवकुमार द्विवेदी रहे थे. 1957 से 1962 तक श्रीनारायण द्विवेदी अध्यक्ष रहे और 1962 से 1965 तक श्रीकांत मिश्रा अध्यक्ष रहे. 1965 से 1972 तक ठाकुर प्रसाद भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष रहे. 1980 में जब भाजपा अस्तित्व में आई तो कैलाशपति मिश्र पहले अध्यक्ष बने. 1967 के चुनाव में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी, जिसमें जनसंघ के लोग भी सरकार में शामिल हुए.

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6 अप्रैल 1980 को बीजेपी की स्थापना: भारतीय जनता पार्टी की स्थापना 6 अप्रैल 1980 को हुई थी. मुंबई के जुहू चौपाटी पर भाजपा के फाउंडर नेताओं का जमावड़ा लगा था और लाखों की भीड़ इकट्ठी हुई थी. बिहार से पूर्व राज्यपाल गंगा प्रसाद चौरसिया पूरे परिवार के साथ मुंबई पहुंचे थे. ट्रेन की एक बोगी गंगा बाबू ने अपने समर्थकों के लिए रिजर्व कराया था. मुंबई के जुहू में जो नींव नेताओं ने रखी थी, उसकी परिणति आज दिखाई दे रही है. गंगा बाबू 1967 और 1969 में विधानसभा चुनाव लड़े लेकिन जीत हासिल नहीं हुई. बाद के दिनों में गंगा बाबू को विधान पार्षद बनाया गया और सिक्किम के राज्यपाल भी बने.

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बीजेपी नेताओं के साथ प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल (ETV Bharat)

पशुओं को ले जाने पर द्रवित हुए थे गंगा बाबू: बिहार बीजेपी के कद्दावर नेता रहे पूर्व राज्यपाल गंगा प्रसाद चौरसिया ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कहा कि हम लोग जनसंघ काल से ही पार्टी के लिए काम कर रहे हैं. महंगाई के विरोध में जब हम लोगों ने राष्ट्रव्यापी आंदोलन किया तो आपातकाल के दौरान हमारे घर की कुर्की हुई. जब पुलिस पशुओं को ले जाने लगी, तब हमने सरेंडर करने का फैसला लिया. हमारा घर आर्य निवास उस दौरान पार्टी का दफ्तर हुआ करता था. कैलाशपति मिश्र से लेकर तमाम नेता हमारे घर पर रहते थे और वहीं से आंदोलन चलता था.

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पूर्व राज्यपाल गंगा प्रसाद चौरसिया (ETV Bharat)

रमाकांत पांडे ने निभाई अहम भूमिका: रमाकांत पांडे भी जनसंघ के ऐसे योद्धा थे, जिन्होंने जेपी को जनसंघ से नजदीक लाने में भूमिका निभाई. जेपी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और जनसंघ से नजदीक आना नहीं चाहते थे. रमाकांत पांडे एक चिकित्सक के आउट हाउस में रहते थे और रोज जेपी से मुलाकात करते थे. धीरे-धीरे वह जेपी के करीब हो गए और जेपी आंदोलन के दौरान जनसंघ की सक्रियता देखने को मिली.

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पूर्व विधायक रमाकांत पांडे (ETV Bharat)

राज्यपाल बनने का ऑफर ठुकराया: रमाकांत पांडे भारतीय जनसंघ के टिकट पर 1977 में बनियापुर विधानसभा सीट से विधायक बने. हालांकि 1969 में भी बनियापुर विधानसभा सीट पर चुनाव लड़े लेकिन जीत हासिल नहीं हुई. रमाकांत पांडे कहते हैं, 'मैं गोविंदाचार्य जी के चलते राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा और राजनीति में आया. हम लोगों ने कड़ी मेहनत की बदौलत पार्टी को आगे ले जाने का काम किया. 2017 में नरेंद्र मोदी ने हमें फोन कर राज्यपाल बनने का ऑफर दिया था लेकिन मैंने अस्वीकार कर दिया.'

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बीजेपी नेता सुरेश रुंगटा (ETV Bharat)

कैलाशपति मिश्र अपने लिए खुद करते थे प्रचार: भाजपा के वरिष्ठ नेता सुरेश रुंगटा भी जनसंघ काल से जुड़े हैं. कैलाशपति मिश्र के सानिध्य में इन्हें भी काम करने का मौका मिला है. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान सुरेश रूंगटा ने कहा कि कैलाशपति मिश्र ने भाजपा को मजबूत करने का काम किया. जब वह 1977 में विधानसभा चुनाव लड़ रहे थे, तब वह दिन में खुद ही ऑटो रिक्शा में बैठकर या प्रचार करते थे कि शाम में कैलाशपति मिश्र जनसभा को संबोधित करेंगे, आप लोग भारी संख्या में पहुंचें. शाम में कैलाशपति मिश्र तैयार होकर खुद भाषण देने के लिए मंच पर जाते थे. कैलाशपति मिश्र ने कड़ी मेहनत से संगठन को खड़ा किया और कार्यकर्ताओं की पौध तैयार की.

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ETV Bharat GFX (ETV Bharat GFX)

आसान नहीं था बिहार में बीजेपी का सफर: वहीं, पूर्व मंत्री अमरेंद्र प्रताप सिंह ने शाहाबाद क्षेत्र में पार्टी को मजबूत करने का काम किया. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान अमरेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं कि हम लोग गांव-गांव जाते थे. एक दिन में 10 से 15 किलोमीटर पैदल चलते थे. एक जिले में हमारी 10 टोलियां निकलती थी. हम लोग 2000 पोस्टकार्ड लिखते थे और पोस्टकार्ड की बदौलत लोगों की भारी भीड़ जमा होती थी.

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बीजेपी नेताओं के साथ अमित शाह की बैठक (ETV Bharat)

बासी भात खाकर नेता करते थे प्रचार: अमरेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं कि जब हम लोग प्रचार या प्रवास में जाते थे तो हम लोगों के पास खाने के लिए भी पैसा नहीं हुआ करता था. हमारे नेताओं के पैकेट में भी पैसे नहीं होते थे. कार्यकर्ताओं के घर पर जो कुछ मिल जाता था, खा लेते थे. सामान्य तौर परात का बचा हुआ भात-नमक के साथ हम लोगों को मिलता था, हम लोग वही खा लेते थे. घर से हम लोग चना-चबेना लेकर निकलते थे. कहीं भी नदी में नहा लिया करते थे. मौका मिला तो मिट्टी के बर्तन में खाना भी बनाकर खा लेते थे.

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पूर्व मंत्री अमरेंद्र प्रताप सिंह (ETV Bharat)

"शुरुआती दौर में हम लोगों के पास पैसा नहीं हुआ करता था. पैदल ही हम लोग प्रचार करते थे. अगर कोई बड़े नेता आ जाते थे तो मेरे पास एक मोटरसाइकिल हुआ करती थी, उसी से नेता सवारी करते थे. नाना जी देशमुख और लालकृष्ण आडवाणी के अलावे कैलाशपति मिश्र तरीके नेता मेरे मोटरसाइकिल पर सवार होकर प्रचार करते थे."- अमरेंद्र प्रताप सिंह, पूर्व मंत्री, बीजेपी

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बिहार बीजेपी के नेताओं के साथ पीएम नरेंद्र मोदी (ETV Bharat)

बिहार में बीजेपी का सफर: 6 अप्रैल 1980 को बीजेपी की स्थापना के बाद पार्टी ने उसी साल पहली बार बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ा और 21 विधायक जीतकर आए. 1985 में 16 सीटों पर जीत मिली. 1990 में 39 और 1995 में 41 पर विजय मिली. पहली बार बीजेपी की तरफ से यशवंत सिन्हा नेता प्रतिपक्ष बने. 2000 के चुनाव में समता पार्टी से गठबंधन के बाद 67 सीटों पर जीत मिली. फरवरी 2005 के चुनाव में 37 और नवंबर 2005 में 55 सीटों पर सफलता मिली. 2010 के विधानसभा चुनाव में 91, 2015 में 53 और 2020 में 74 सीटों पर सफलता मिली.

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बीजेपी नेताओं के साथ अमित शाह की बैठक (ETV Bharat)

बिहार में बीजेपी बेहद मजबूत: बिहार में बीजेपी फिलहाल बेहद मजबूत स्थिति में है. 2020 के चुनाव में 74 विधायक जीते थे लेकिन बाद में विकासशील इंसान पार्टी के 4 विधायक बीजेपी में शामिल हो गए. वहीं हालिया विधानसभा उपचुनाव में तरारी और रामगढ़ में जीत के साथ विधायकों की संख्या बढ़कर 80 हो गई है. नीतीश सरकार में बीजेपी से सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा डिप्टी सीएम हैं. इससे पहले रेणु देवी और तारकिशोर प्रसाद भी इस पद रहे थे, जबकि सुशील कुमार मोदी लंबे समय पर उपमुख्यमंत्री रहे थे. हालांकि 45 साल के सफर के बावजूद अबतक बीजेपी का अपना मुख्यमंत्री नहीं बन पाया है.

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बिहार बीजेपी नेताओं के साथ अमित शाह (ETV Bharat)

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पटना: केंद्र की सत्ता पर पिछले 11 साल से काबिज भारतीय जनता पार्टी 45 साल की हो चुकी है. बीजेपी स्थापना दिवस मना रही है. बिहार में भी पार्टी खूब आगे बढ़ी और दो दशक से सत्ता की साझेदार है. बिहार बीजेपी को शिखर तक पहुंचाने में कई सूरमाओं का योगदान रहा. पर्दे के पीछे ऐसे खिलाड़ी भी थे, जिनकी बदौलत भाजपा यहां तक पहुंची है. शिवकुमार द्विवेदी बिहार में जनसंघ के पहले अध्यक्ष थे, जिनके नेतृत्व में पार्टी मजबूत हुई.

जनसंघ से बीजेपी बनने का सफर: 21 अक्टूबर 1951 को दिल्ली में गठन के बाद भारतीय जनसंघ ने पहली बार 1962 में बिहार में चुनाव लड़ा था. हिलसा, नवादा और सिवान सीट पर जीत हासिल हुई थी. 1967 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जन संघ ने 271 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए और 26 सीटों पर जीत हासिल हुई. 1969 के विधानसभा चुनाव में जनसंघ ने 303 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए और 34 सीटों पर जीत हासिल हुई. 1970 आते-आते राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव आया और जनसंघ के अलावा कई दलों ने साथ मिलकर जनता पार्टी का गठन किया.

बिहार में बीजेपी के 45 वर्षों का सफर (ETV Bharat)

1980 में रास्ता अलग: बिहार में 1967 में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी, महामाया प्रसाद मुख्यमंत्री बने. महामाया प्रसाद की सरकार में जनसंघ भी शामिल था. 1970 में कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री बने. 1977 में भी बिहार में गैर कांग्रेसी सरकार बनी लेकिन 1980 आते-आते जनसंघ का दोहरी सदस्यता के सवाल पर जनता पार्टी के साथ विवाद हुआ और विवाद के चलते जनसंघ ने खुद को अलग कर लिया और यही भाजपा के गठन की वजह बनी.

इन नेताओं की अगुवाई में आगे बढ़ी यात्रा: 1952 से 1957 तक भारतीय जनसंघ के पहले अध्यक्ष के रूप में शिवकुमार द्विवेदी रहे थे. 1957 से 1962 तक श्रीनारायण द्विवेदी अध्यक्ष रहे और 1962 से 1965 तक श्रीकांत मिश्रा अध्यक्ष रहे. 1965 से 1972 तक ठाकुर प्रसाद भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष रहे. 1980 में जब भाजपा अस्तित्व में आई तो कैलाशपति मिश्र पहले अध्यक्ष बने. 1967 के चुनाव में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार बनी, जिसमें जनसंघ के लोग भी सरकार में शामिल हुए.

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ETV Bharat GFX (ETV Bharat GFX)

6 अप्रैल 1980 को बीजेपी की स्थापना: भारतीय जनता पार्टी की स्थापना 6 अप्रैल 1980 को हुई थी. मुंबई के जुहू चौपाटी पर भाजपा के फाउंडर नेताओं का जमावड़ा लगा था और लाखों की भीड़ इकट्ठी हुई थी. बिहार से पूर्व राज्यपाल गंगा प्रसाद चौरसिया पूरे परिवार के साथ मुंबई पहुंचे थे. ट्रेन की एक बोगी गंगा बाबू ने अपने समर्थकों के लिए रिजर्व कराया था. मुंबई के जुहू में जो नींव नेताओं ने रखी थी, उसकी परिणति आज दिखाई दे रही है. गंगा बाबू 1967 और 1969 में विधानसभा चुनाव लड़े लेकिन जीत हासिल नहीं हुई. बाद के दिनों में गंगा बाबू को विधान पार्षद बनाया गया और सिक्किम के राज्यपाल भी बने.

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बीजेपी नेताओं के साथ प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल (ETV Bharat)

पशुओं को ले जाने पर द्रवित हुए थे गंगा बाबू: बिहार बीजेपी के कद्दावर नेता रहे पूर्व राज्यपाल गंगा प्रसाद चौरसिया ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कहा कि हम लोग जनसंघ काल से ही पार्टी के लिए काम कर रहे हैं. महंगाई के विरोध में जब हम लोगों ने राष्ट्रव्यापी आंदोलन किया तो आपातकाल के दौरान हमारे घर की कुर्की हुई. जब पुलिस पशुओं को ले जाने लगी, तब हमने सरेंडर करने का फैसला लिया. हमारा घर आर्य निवास उस दौरान पार्टी का दफ्तर हुआ करता था. कैलाशपति मिश्र से लेकर तमाम नेता हमारे घर पर रहते थे और वहीं से आंदोलन चलता था.

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पूर्व राज्यपाल गंगा प्रसाद चौरसिया (ETV Bharat)

रमाकांत पांडे ने निभाई अहम भूमिका: रमाकांत पांडे भी जनसंघ के ऐसे योद्धा थे, जिन्होंने जेपी को जनसंघ से नजदीक लाने में भूमिका निभाई. जेपी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और जनसंघ से नजदीक आना नहीं चाहते थे. रमाकांत पांडे एक चिकित्सक के आउट हाउस में रहते थे और रोज जेपी से मुलाकात करते थे. धीरे-धीरे वह जेपी के करीब हो गए और जेपी आंदोलन के दौरान जनसंघ की सक्रियता देखने को मिली.

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पूर्व विधायक रमाकांत पांडे (ETV Bharat)

राज्यपाल बनने का ऑफर ठुकराया: रमाकांत पांडे भारतीय जनसंघ के टिकट पर 1977 में बनियापुर विधानसभा सीट से विधायक बने. हालांकि 1969 में भी बनियापुर विधानसभा सीट पर चुनाव लड़े लेकिन जीत हासिल नहीं हुई. रमाकांत पांडे कहते हैं, 'मैं गोविंदाचार्य जी के चलते राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा और राजनीति में आया. हम लोगों ने कड़ी मेहनत की बदौलत पार्टी को आगे ले जाने का काम किया. 2017 में नरेंद्र मोदी ने हमें फोन कर राज्यपाल बनने का ऑफर दिया था लेकिन मैंने अस्वीकार कर दिया.'

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बीजेपी नेता सुरेश रुंगटा (ETV Bharat)

कैलाशपति मिश्र अपने लिए खुद करते थे प्रचार: भाजपा के वरिष्ठ नेता सुरेश रुंगटा भी जनसंघ काल से जुड़े हैं. कैलाशपति मिश्र के सानिध्य में इन्हें भी काम करने का मौका मिला है. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान सुरेश रूंगटा ने कहा कि कैलाशपति मिश्र ने भाजपा को मजबूत करने का काम किया. जब वह 1977 में विधानसभा चुनाव लड़ रहे थे, तब वह दिन में खुद ही ऑटो रिक्शा में बैठकर या प्रचार करते थे कि शाम में कैलाशपति मिश्र जनसभा को संबोधित करेंगे, आप लोग भारी संख्या में पहुंचें. शाम में कैलाशपति मिश्र तैयार होकर खुद भाषण देने के लिए मंच पर जाते थे. कैलाशपति मिश्र ने कड़ी मेहनत से संगठन को खड़ा किया और कार्यकर्ताओं की पौध तैयार की.

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आसान नहीं था बिहार में बीजेपी का सफर: वहीं, पूर्व मंत्री अमरेंद्र प्रताप सिंह ने शाहाबाद क्षेत्र में पार्टी को मजबूत करने का काम किया. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान अमरेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं कि हम लोग गांव-गांव जाते थे. एक दिन में 10 से 15 किलोमीटर पैदल चलते थे. एक जिले में हमारी 10 टोलियां निकलती थी. हम लोग 2000 पोस्टकार्ड लिखते थे और पोस्टकार्ड की बदौलत लोगों की भारी भीड़ जमा होती थी.

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बीजेपी नेताओं के साथ अमित शाह की बैठक (ETV Bharat)

बासी भात खाकर नेता करते थे प्रचार: अमरेंद्र प्रताप सिंह कहते हैं कि जब हम लोग प्रचार या प्रवास में जाते थे तो हम लोगों के पास खाने के लिए भी पैसा नहीं हुआ करता था. हमारे नेताओं के पैकेट में भी पैसे नहीं होते थे. कार्यकर्ताओं के घर पर जो कुछ मिल जाता था, खा लेते थे. सामान्य तौर परात का बचा हुआ भात-नमक के साथ हम लोगों को मिलता था, हम लोग वही खा लेते थे. घर से हम लोग चना-चबेना लेकर निकलते थे. कहीं भी नदी में नहा लिया करते थे. मौका मिला तो मिट्टी के बर्तन में खाना भी बनाकर खा लेते थे.

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पूर्व मंत्री अमरेंद्र प्रताप सिंह (ETV Bharat)

"शुरुआती दौर में हम लोगों के पास पैसा नहीं हुआ करता था. पैदल ही हम लोग प्रचार करते थे. अगर कोई बड़े नेता आ जाते थे तो मेरे पास एक मोटरसाइकिल हुआ करती थी, उसी से नेता सवारी करते थे. नाना जी देशमुख और लालकृष्ण आडवाणी के अलावे कैलाशपति मिश्र तरीके नेता मेरे मोटरसाइकिल पर सवार होकर प्रचार करते थे."- अमरेंद्र प्रताप सिंह, पूर्व मंत्री, बीजेपी

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बिहार में बीजेपी का सफर: 6 अप्रैल 1980 को बीजेपी की स्थापना के बाद पार्टी ने उसी साल पहली बार बिहार विधानसभा का चुनाव लड़ा और 21 विधायक जीतकर आए. 1985 में 16 सीटों पर जीत मिली. 1990 में 39 और 1995 में 41 पर विजय मिली. पहली बार बीजेपी की तरफ से यशवंत सिन्हा नेता प्रतिपक्ष बने. 2000 के चुनाव में समता पार्टी से गठबंधन के बाद 67 सीटों पर जीत मिली. फरवरी 2005 के चुनाव में 37 और नवंबर 2005 में 55 सीटों पर सफलता मिली. 2010 के विधानसभा चुनाव में 91, 2015 में 53 और 2020 में 74 सीटों पर सफलता मिली.

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बीजेपी नेताओं के साथ अमित शाह की बैठक (ETV Bharat)

बिहार में बीजेपी बेहद मजबूत: बिहार में बीजेपी फिलहाल बेहद मजबूत स्थिति में है. 2020 के चुनाव में 74 विधायक जीते थे लेकिन बाद में विकासशील इंसान पार्टी के 4 विधायक बीजेपी में शामिल हो गए. वहीं हालिया विधानसभा उपचुनाव में तरारी और रामगढ़ में जीत के साथ विधायकों की संख्या बढ़कर 80 हो गई है. नीतीश सरकार में बीजेपी से सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा डिप्टी सीएम हैं. इससे पहले रेणु देवी और तारकिशोर प्रसाद भी इस पद रहे थे, जबकि सुशील कुमार मोदी लंबे समय पर उपमुख्यमंत्री रहे थे. हालांकि 45 साल के सफर के बावजूद अबतक बीजेपी का अपना मुख्यमंत्री नहीं बन पाया है.

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Last Updated : April 6, 2025 at 9:03 AM IST
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