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44 साल पहले बिहार की बागमती नदी में समा गई थी ट्रेन, 800 यात्रियों की हुई थी मौत - 1981 BIHAR TRAIN ACCIDENT

6 जून 1981, 45 साल पहले का वो खौफनाक मंजर, जब बिहार की बागमती नदी में समा गई थी ट्रेन, पढ़ें पूरी खबर

1981 Bihar Train Accident
बागमती नदी ट्रेन हादसा (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : June 6, 2025 at 7:15 PM IST

7 Min Read

खगड़िया : 6 जून 1981, यानी आज ही के दिन बिहार में एक बड़ा रेल हादसा हुआ था. 45 साल पहले हुए इस रेल हादसे को याद कर बिहार के लोग आज भी सिहर उठते हैं. कहा जाता है कि देश के सबसे बड़े रेल हादसे में 800 लोगों की जान चली गई थी. आइये जानते हैं कि आखिर क्या हुआ था उस दिन?

​6 जून 1981 का वो काला दिन : 6 जून 1981, बारिश का मौसम था. दोपहर 3 बजे 416 डाउन 9 डिब्बों वाली पैसेंजर ट्रेन बिहार के मानसी स्टेशन से खुली थी. ट्रेन को सहरसा जाना था. यह एकलौती पैसेंजर ट्रेन थी, जो मानसी से चलकर सहरसा जाती है. ऐसे में यह ट्रेन यात्रियों से खचाखच भरी हुई थी.

1981 Bihar Train Accident
बिहार की बागमती नदी में समा गई थी ट्रेन (ETV Bharat)

ट्रेन ने बदला स्टेशन पार किया था : अंदाजा लगाना मुश्किल था कि ट्रेन में कितने यात्री सवार थे, क्योंकि पैसेंजर ट्रेन होने के कारण ट्रेन के इंजन तक में लोग बैठे हुए थे. ट्रेन में पैर रखने तक की जगह नहीं थी. कहा जाता है कि ट्रेन की छतों पर बैठकर लोग सफर कर रहे थे. ट्रेन बदला स्टेशन पहुंच चुकी थी, इधर आंधी बारिश का दौर शुरू हो चुका था.

आगे बढ़ते ही आंधी-बारिश शुरू : ट्रेन ने बदला स्टेशन पार किया. आगे ट्रेन को बागमदी नदी पर बने पुल से होकर गुजरना था. बता दें कि बागमती नदी पर बना यह पुल सहरसा-मानसी रेल खंड पर बदला घाट और धमारा घाट रेलवे स्टेशन के बीच में पड़ता है. तेज बारिश के बीच बदला स्टेशन से आगे बढ़ रही थी. पैसेंजर ट्रेन को बागमती नदी पर बने पुल संख्या 51 से होकर आगे बढ़ना था.

ड्राइवर ने अचानक इमरजेंसी ब्रेक लगा दी : बारिश की वजह से ट्रैक पर फिसलन थी. ट्रेन अपनी रफ्तार से आगे बढ़ रही थी. ड्राइवर ने ट्रेन को बागमती नदी पर बने पुल पर आगे बढ़ाया, तभी ड्राइवर ने अचानक इमरजेंसी ब्रेक लगा दिया. जिसके बाद पैसेंजर ट्रेन की 9 में से 7 बोगी रेलिंग तोड़ते हुए भरभराकर नदी में समा गई.

1981 Bihar Train Accident
800 यात्रियों की हुई थी मौत (ETV Bharat)

चीख पुकार से दहल उठा था पूरा इलाका : ट्रेन के 7 डिब्बे बागमती नदी में गिरने के बाद चारों तरफ चीख-पुकार मच गई. बागमती नदी लबालब भरी हुई थी. लोग मदद की गुहार लगे थे, लेकिन यात्रियों को बचाने वाला कोई नहीं था. दूसरी तरफ भारी बारिश हो रही थी, इससे राहत और बचाव कार्य में देरी हुई, जब तक रेलवे के अधिकारी मौके पर पहुंचे तक तक कई जिंदगी मौत की नींद सो चुके थे.

800 से ज्यादा मौत, सिर्फ 286 शव बरामद : सरकारी आंकड़े के अनुसार देश के सबसे बड़े इस रेल हादसे में मरने वालों की संख्या 300 थी. लेकिन स्थानीय लोगों के अनुसार 800 से 1000 लोगों की मौत हुई थी. वहीं रेलवे के रिकॉर्ड की मानें तो ट्रेन के अंदर 500 लोग थे. हालांकि हादसे के बाद रेलवे के अफसरों ने माना कि ट्रेन में यात्रियों की संख्या 500 से कहीं अधिक थी.

मैंने देखा था वो मंजर : इस हादसे के प्रत्यक्षदर्शी खगड़िया निवासी दबिन्दर चौधरी (65 साल) बताते हैं कि ''उस दिन भयंकर तूफान आया था. हम रेल पटरी के पास छिप हुए थे. लेकिन कुछ देर बाद जैसे ही तूफान शांत हुआ, उसके बाद हमारी आंखों ने जो कुछ देखा उसपर विश्वास नहीं हो पा रहा था. चारों तरफ चीख पुकार मची थी, बागमती नदी खून से लाल हो गया था. लाशें नदी में बह रही थी.''

1981 Bihar Train Accident
धमारा घाट स्टेशन (ETV Bharat)

''थोड़ी देर के लिए हम लोगों को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर क्या हुआ है? लोगों की संख्या इतनी थी कि तैरकर बाहर निकलना मुश्किल हो रहा है, नदी में जैसे एक दूसरे के ऊपर लोग चढ़ रहे थे, सांसे टूट रही थी. कई तो नदी के तेज बहाव में बह गए.'' - दबिन्दर चौधरी, प्रत्यक्षदर्शी

'मैं डिब्बे में गेट पर था, इसलिए बच गया' : इस ट्रेन में सवार एक और प्रत्यक्षदर्शी प्रभु नारायण ने बताया कि, ''उन दिनों मेरी उम्र 20-21 साल रही होगी. मानसी स्टेशन पर मैं ट्रेन में चढ़ा था. ट्रेन में काफी भीड़ थी. मैं पिछले डिब्बे में था. बारिश का मौसम था कि लेकिन गर्मी भी बहुत थी, इसलिए मैं ट्रेन के दरवाजे पर खड़ा था. अचानक ट्रेन देखते ही देखते बागमदी नदी में समा गई. मैं तैरकर बाहर निकल गया था.''

गोताखोर सिर्फ 286 लाशें ही निकाल पाए : स्थानीय लोग बताते हैं कि रेल हादसे के बाद बागमती नदी से लाशों निकालने का काम महीनों चलता रहा. इस काम में गोताखोरों को लगाया गया था. लेकिन बारिश का मौसम होने के कारण दिक्कत हो रही थी. गोताखोर सिर्फ 286 शव ही निकाल पाए. कई परिवार तो हफ्तों अपने लोगों को ढूंढते नजर आए कि इस उम्मीद में कि जान तो चली गई लाश ही मिल जाय.

1981 Bihar Train Accident
बागमती नदी (ETV Bharat)

ड्राइवर ने इमरजेंसी ब्रेक क्यों लगाई? : आखिर ड्राइवर ने इमरजेंसी ब्रेक क्यों लगाई थीय़, दरअसल, 45 साल बाद भी इस सवाल का जवाब नहीं मिल पाया है. हादसे को लेकर कई कहानी बताई जाती है. किसी ने इसे फिसलन का नाम दिया तो किसी ने कहा ट्रैक पर गाय-भैंस के झुंड को बचाने ने ड्राइवर ने ब्रेक लगाई.

इसलिए बोगियां पुल तोड़कर नदी में समा गई : एक और थ्योरी सामने आई कि बारिश के कारण यात्रियों ने ट्रेन के दरवाजे और खिड़की बंद रखी थी. आंधी-तूफान के कारण दबाव ट्रेन पर पड़ा और ट्रेन पुल तोड़ते हुए बागमती नदी में समा गई. हालांकि हादसे की वजह का आज तक खुलासा नहीं हो पाया.

''उस दिन पैसेंजर ट्रेन के इंजन से लगे दो बोगी पुल के पार चली गई थी, लेकिन 7 बोगी बागमती नदी में समा गई, उस दिन ट्रेन में तीन हजार से 4 हजार लोग सवार थे.'' - विरंची पासवान, स्थानीय

देश का पहला, दुनिया का दूसरा बड़ा रेल हादसा : उस दौरान इस रेल दुर्घटना को देश का सबसे बड़ा रेल हादसा कहा गया था, जिसमें 800 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी. बता दें कि साल 2004 में पड़ोसी देश श्रीलंका में दुनिया का सबसे बड़ा रेल हादसा हुआ था. ओसियन क्वीन एक्सप्रेस ट्रेन हादसे में करीब 1700 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी.

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खगड़िया : 6 जून 1981, यानी आज ही के दिन बिहार में एक बड़ा रेल हादसा हुआ था. 45 साल पहले हुए इस रेल हादसे को याद कर बिहार के लोग आज भी सिहर उठते हैं. कहा जाता है कि देश के सबसे बड़े रेल हादसे में 800 लोगों की जान चली गई थी. आइये जानते हैं कि आखिर क्या हुआ था उस दिन?

​6 जून 1981 का वो काला दिन : 6 जून 1981, बारिश का मौसम था. दोपहर 3 बजे 416 डाउन 9 डिब्बों वाली पैसेंजर ट्रेन बिहार के मानसी स्टेशन से खुली थी. ट्रेन को सहरसा जाना था. यह एकलौती पैसेंजर ट्रेन थी, जो मानसी से चलकर सहरसा जाती है. ऐसे में यह ट्रेन यात्रियों से खचाखच भरी हुई थी.

1981 Bihar Train Accident
बिहार की बागमती नदी में समा गई थी ट्रेन (ETV Bharat)

ट्रेन ने बदला स्टेशन पार किया था : अंदाजा लगाना मुश्किल था कि ट्रेन में कितने यात्री सवार थे, क्योंकि पैसेंजर ट्रेन होने के कारण ट्रेन के इंजन तक में लोग बैठे हुए थे. ट्रेन में पैर रखने तक की जगह नहीं थी. कहा जाता है कि ट्रेन की छतों पर बैठकर लोग सफर कर रहे थे. ट्रेन बदला स्टेशन पहुंच चुकी थी, इधर आंधी बारिश का दौर शुरू हो चुका था.

आगे बढ़ते ही आंधी-बारिश शुरू : ट्रेन ने बदला स्टेशन पार किया. आगे ट्रेन को बागमदी नदी पर बने पुल से होकर गुजरना था. बता दें कि बागमती नदी पर बना यह पुल सहरसा-मानसी रेल खंड पर बदला घाट और धमारा घाट रेलवे स्टेशन के बीच में पड़ता है. तेज बारिश के बीच बदला स्टेशन से आगे बढ़ रही थी. पैसेंजर ट्रेन को बागमती नदी पर बने पुल संख्या 51 से होकर आगे बढ़ना था.

ड्राइवर ने अचानक इमरजेंसी ब्रेक लगा दी : बारिश की वजह से ट्रैक पर फिसलन थी. ट्रेन अपनी रफ्तार से आगे बढ़ रही थी. ड्राइवर ने ट्रेन को बागमती नदी पर बने पुल पर आगे बढ़ाया, तभी ड्राइवर ने अचानक इमरजेंसी ब्रेक लगा दिया. जिसके बाद पैसेंजर ट्रेन की 9 में से 7 बोगी रेलिंग तोड़ते हुए भरभराकर नदी में समा गई.

1981 Bihar Train Accident
800 यात्रियों की हुई थी मौत (ETV Bharat)

चीख पुकार से दहल उठा था पूरा इलाका : ट्रेन के 7 डिब्बे बागमती नदी में गिरने के बाद चारों तरफ चीख-पुकार मच गई. बागमती नदी लबालब भरी हुई थी. लोग मदद की गुहार लगे थे, लेकिन यात्रियों को बचाने वाला कोई नहीं था. दूसरी तरफ भारी बारिश हो रही थी, इससे राहत और बचाव कार्य में देरी हुई, जब तक रेलवे के अधिकारी मौके पर पहुंचे तक तक कई जिंदगी मौत की नींद सो चुके थे.

800 से ज्यादा मौत, सिर्फ 286 शव बरामद : सरकारी आंकड़े के अनुसार देश के सबसे बड़े इस रेल हादसे में मरने वालों की संख्या 300 थी. लेकिन स्थानीय लोगों के अनुसार 800 से 1000 लोगों की मौत हुई थी. वहीं रेलवे के रिकॉर्ड की मानें तो ट्रेन के अंदर 500 लोग थे. हालांकि हादसे के बाद रेलवे के अफसरों ने माना कि ट्रेन में यात्रियों की संख्या 500 से कहीं अधिक थी.

मैंने देखा था वो मंजर : इस हादसे के प्रत्यक्षदर्शी खगड़िया निवासी दबिन्दर चौधरी (65 साल) बताते हैं कि ''उस दिन भयंकर तूफान आया था. हम रेल पटरी के पास छिप हुए थे. लेकिन कुछ देर बाद जैसे ही तूफान शांत हुआ, उसके बाद हमारी आंखों ने जो कुछ देखा उसपर विश्वास नहीं हो पा रहा था. चारों तरफ चीख पुकार मची थी, बागमती नदी खून से लाल हो गया था. लाशें नदी में बह रही थी.''

1981 Bihar Train Accident
धमारा घाट स्टेशन (ETV Bharat)

''थोड़ी देर के लिए हम लोगों को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर क्या हुआ है? लोगों की संख्या इतनी थी कि तैरकर बाहर निकलना मुश्किल हो रहा है, नदी में जैसे एक दूसरे के ऊपर लोग चढ़ रहे थे, सांसे टूट रही थी. कई तो नदी के तेज बहाव में बह गए.'' - दबिन्दर चौधरी, प्रत्यक्षदर्शी

'मैं डिब्बे में गेट पर था, इसलिए बच गया' : इस ट्रेन में सवार एक और प्रत्यक्षदर्शी प्रभु नारायण ने बताया कि, ''उन दिनों मेरी उम्र 20-21 साल रही होगी. मानसी स्टेशन पर मैं ट्रेन में चढ़ा था. ट्रेन में काफी भीड़ थी. मैं पिछले डिब्बे में था. बारिश का मौसम था कि लेकिन गर्मी भी बहुत थी, इसलिए मैं ट्रेन के दरवाजे पर खड़ा था. अचानक ट्रेन देखते ही देखते बागमदी नदी में समा गई. मैं तैरकर बाहर निकल गया था.''

गोताखोर सिर्फ 286 लाशें ही निकाल पाए : स्थानीय लोग बताते हैं कि रेल हादसे के बाद बागमती नदी से लाशों निकालने का काम महीनों चलता रहा. इस काम में गोताखोरों को लगाया गया था. लेकिन बारिश का मौसम होने के कारण दिक्कत हो रही थी. गोताखोर सिर्फ 286 शव ही निकाल पाए. कई परिवार तो हफ्तों अपने लोगों को ढूंढते नजर आए कि इस उम्मीद में कि जान तो चली गई लाश ही मिल जाय.

1981 Bihar Train Accident
बागमती नदी (ETV Bharat)

ड्राइवर ने इमरजेंसी ब्रेक क्यों लगाई? : आखिर ड्राइवर ने इमरजेंसी ब्रेक क्यों लगाई थीय़, दरअसल, 45 साल बाद भी इस सवाल का जवाब नहीं मिल पाया है. हादसे को लेकर कई कहानी बताई जाती है. किसी ने इसे फिसलन का नाम दिया तो किसी ने कहा ट्रैक पर गाय-भैंस के झुंड को बचाने ने ड्राइवर ने ब्रेक लगाई.

इसलिए बोगियां पुल तोड़कर नदी में समा गई : एक और थ्योरी सामने आई कि बारिश के कारण यात्रियों ने ट्रेन के दरवाजे और खिड़की बंद रखी थी. आंधी-तूफान के कारण दबाव ट्रेन पर पड़ा और ट्रेन पुल तोड़ते हुए बागमती नदी में समा गई. हालांकि हादसे की वजह का आज तक खुलासा नहीं हो पाया.

''उस दिन पैसेंजर ट्रेन के इंजन से लगे दो बोगी पुल के पार चली गई थी, लेकिन 7 बोगी बागमती नदी में समा गई, उस दिन ट्रेन में तीन हजार से 4 हजार लोग सवार थे.'' - विरंची पासवान, स्थानीय

देश का पहला, दुनिया का दूसरा बड़ा रेल हादसा : उस दौरान इस रेल दुर्घटना को देश का सबसे बड़ा रेल हादसा कहा गया था, जिसमें 800 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी. बता दें कि साल 2004 में पड़ोसी देश श्रीलंका में दुनिया का सबसे बड़ा रेल हादसा हुआ था. ओसियन क्वीन एक्सप्रेस ट्रेन हादसे में करीब 1700 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी.

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