आगरा: देश-दुनिया में आगरा का नाम ताजमहल, पेठा और जूतों के साथ ही मानसिक स्वास्थ्य संस्थान या 'पागलखाना' के लिए मशहूर है. यूपी का यह सबसे पहला और पुराना मानसिक अस्पताल है. अब इसे मानसिक स्वास्थ्य संस्थान व चिकित्सालय के नाम से जाना जाता है, जो 1857 की क्रांति की यादें ताजा करता है. आइए जानते हैं कि इस अस्पताल के बनने की कहानी क्या है?
इतिहासकारों के मुताबिक, आगरा और अवध संयुक्त प्रांत के लेफ्टिनेंट गवर्नर जेआर केल्विन की मानसिक संतुलन बिगड़ने से आगरा किले में इलाज के अभाव में मौत हो गई थी. 1857 के गदर से घबराए अंग्रेज अफसरों ने आगरा किले में दीवान-ए-आम के सामने ही केल्विन को दफना दिया था. आज भी यहां पर केल्विन की कब्र है. गदर से सैकड़ो ब्रिटिश सैनिक तनाव में आ गए थे. भारत के पहले गदर की क्वीन विक्टोरिया ने समीक्षा की. अंग्रेज अफसर जेआर केल्विन की अवसाद से मौत पर उन्होंने आगरा में मानसिक अस्पताल स्थापित करने के आदेश दिए. तब यह देश का चौथा मानसिक अस्पताल बना था.
कौन था जॉन रसेल केल्विन: जॉन रसेल केल्विन का जन्म 29 मई 1807 को कलकत्ता में हुआ था. उस समय कलकत्ता बंगाल प्रेसीडेंसी का हिस्सा था. केल्विन का परिवार प्रमुख एंग्लो इंडियन स्कॉटिश मूल का था. जॉन रसेल केल्विन की शिक्षा ईस्ट इंडिया कंपनी कॉलेज में हर्टफोर्ड शायर इंग्लैंड में हुई और साल 1826 को उसने अपनी सेवा ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी में शुरू की. वह 1836 से 1837 तक प्रथम आंग्ल अफगान युद्ध के समय लॉर्ड ऑकलैंड के निजी सचिव बना और साल 1846 से 1849 से केल्विन को आयुक्त बनाया गया.

झांसी और मेरठ में विद्रोह से घबराए अंग्रेज अफसर: वरिष्ठ इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि लॉर्ड डलहौजी ने साल 1853 में जॉन रसेल केल्विन को भारत के उत्तर पश्चिम प्रांतों का लेफ्टिनेंट गवर्नर नियुक्त किया. उत्तर पश्चिम प्रांतों का मुख्यालय आगरा था. यहां पर लेफ्टिनेंट गवर्नर जॉन रसेल केल्विन ब्रिटिश हुकूमत को कंट्रोल करता था. लेकिन जॉन रसेल केल्विन के समय ही सन् 1857 का गदर शुरू हुआ. इसका केंद्र बिंदु आगरा से एक ओर झांसी और दूसरी ओर मेरठ में था. इससे जॉन रसेल केल्विन मानसिक दबाव में आ गया.
झांसी और मेरठ में क्रांति के साथ ही आगरा में भी असंतोष फैल गया. इससे लेफ्टिनेंट गवर्नर ने अंग्रेज अफसरों के परिवार को आगरा किले में बुला लिया. क्रांतिकारियों के बढ़ते दबाव से लेफ्टिनेंट गवर्नर जॉन रसेल केल्विन अपना मानसिक संतुलन खो बैठा. क्योंकि झांसी में रानी लक्ष्मीबाई तो मेरठ में सैनिक ही विद्रोह कर चुके थे. इससे क्रांतिकारियों की अंग्रेजी हुकूमत से सीधी भिड़त हो रही थी.

मनोरोग से हुई केल्विन की मौत: इतिहासकार राजकिशोर 'राजे' बताते हैं कि सन् 1857 के गदर में अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिल गई थी. आगरा में पर्याप्त सुरक्षा बल न होने से अंग्रेजी हुकूमत के अफसर और परिवार आगरा किले से बाहर नहीं आए. हर दिन विद्रोह तेज हो रहा था. इससे आगरा किला का प्रभारी व लेफ्टिनेंट गवर्नर जॉन रसेल केल्विन का मानसिक संतुलन बिगड़ गया. उसे डर था कि किले में मुस्तैद 1,200 हिंदुस्तानी सैनिक विद्रोह न कर दें. यही सोचकर जॉन रसेल केल्विन अवसाद में चला गया. वह मनोरोगी हो गया था. इसका असर अन्य अंग्रेजी अफसर और सैनिकों पर होने लगा. विद्रोह की वजह से जॉन रसेल का सही उपचार नहीं हो पाया. उसे हैजा भी हो गया और 9 सितंबर 1857 को मौत हो गई.
महारानी विक्टोरिया ने आगरा में बनवाया पागलखाना: राजकिशोर बताते हैं कि क्रांतिकारियों के डर से घबराए अंग्रेज अफसरों ने जॉन रसेल केल्विन का शव आगरा किले में दीवान-ए-आम के सामने दफना दिया. इसी कब्र के पास एक ब्रिटिश तोप भी रखी है. मगर, जब विद्रोह थमा तो क्वीन विक्टोरिया ने ईस्ट इंडिया कंपनी से पूरे भारत की सत्ता अपने हाथ में ली. गदर क्रांति की समीक्षा के बाद अंग्रेज सैनिक, अन्य अधिकारी और लेफ्टिनेंट गवर्नर जॉन रसेल केल्विन के तनाव में आने की रिपोर्ट पर साल 1859 में आगरा में मानिसक चिकित्सालय खोला गया. तब देश में कलकत्ता (कोलकाता), बाम्बे (मुंबई) व मद्रास (चेन्नई) में मानसिक अस्पताल थे. इसके बाद आगरा में देश का चौथा मानसिक अस्पताल बनाया गया था.
1955 में एमडी मनोचिकित्सा शुरू हुआ: मानसिक स्वास्थ्य संस्थान एवं चिकित्सालय के निदेशक डॉ. दिनेश सिंह राठौर ने बताया कि आगरा में मानसिक अस्पताल की स्थापना के बाद सन 1905 तक आईजी जेल ही मानसिक अस्पताल के प्रभारी रहे. सन 1934 में मानसिक अस्पताल के अधीक्षक पहले भारतीय डॉ. बनारसी दास बने. डॉ. बनारसी दास ने रायल मेडिको साइकोलॉजिकल एसोसिएशन का गठन किया. आजादी के बाद 1947 के बाद ‘इंडियन साइकियाट्री सोसायटी’ बनी. 1955 में चिकित्सा अधीक्षक डॉ. आरएस लाल ने यहां पर एमडी मनोचिकित्सा पाठ्यक्रम शुरू किया.
सिजोफ्रेनिया पर हुआ रिसर्च: मानसिक स्वास्थ्य संस्थान एवं चिकित्सालय के निदेशक डॉ. दिनेश सिंह राठौर ने बताया कि सन् 1957 से 1975 तक डॉ. केसी दुबे मानसिक अस्पातल के चिकित्सा अधीक्षक रहे. ये समय संस्थान का स्वर्णिम समय था. तब विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ मिलकर सिजोफ्रेनिया पर स्टडी की गई. इसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अमेरिका, इंग्लैंड, भारत समेत सात देशों को शामिल किया. इसमें एशिया का एकमात्र मानसिक स्वास्थ्य संस्थान आगरा इस शोध में शामिल किया गया था. सिजोफ्रेनिया की बीमारी में शक होता है. आवाज सुनाई देती है या ऐसा महसूस होने की समस्या होती है. मरीजों पर हुए शोध में सामने आया कि सिजोफ्रेनिया के मरीज का इलाज परिवार के सदस्य को साथ में रखकर किया जाए तो उसके परिणाम अच्छे आते हैं. इसके बाद दुनिया भर में मानसिक अस्पतालों में परिवार वार्ड बनाए गए. वार्ड के गेट खोल दिए गए. इससे पहले वार्ड के गेट पर ताला लगाकर रखा जाता था. मनोचिकित्सक को इलाज करने में मदद मिली. मनोरोगियों के इलाज के लिए इलेक्ट्रोकन्वसिव थैरेपी (ईसीटी) की सुविधा शुरू की गई.
2001 में बदला गया नाम: मानसिक स्वास्थ्य संस्थान एवं चिकित्सालय के निदेशक डॉ. दिनेश सिंह राठौर ने बताया कि सन 1986 में एमडी पाठ्यक्रम एसएन मेडिकल कॉलेज में स्थानांतरित हो गया. 31 जनवरी 1995 को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर राज्य सरकार ने इस सोसाइटी बनाकर स्वायत्तशासी संस्था घोषित कर दिया. 1987 मेंटल एक्ट के तहत मरीजों का इलाज और पुर्नवास शुरू किया गया. आठ फरवरी 2001 में मानसिक अस्पताल से नाम बदल कर मानसिक स्वास्थ्य संस्थान एवं चिकित्सालय कर दिया गया. 2012 में दोबारा से एमडी मनोचिकित्सा पाठ्यक्रम शुरू किया गया. इसके साथ ही एमफिल क्लिनिकल साइकोलाजी, एमफिल साइकियाट्रिक, सोशल वर्क व नर्सिंग के पाठ्यक्रम शुरू किए गए.
टेली मानस से परामर्श की सुविधा: निदेशक डॉ. दिनेश सिंह राठौर ने बताया कि मानसिक स्वास्थ्य संस्थान एवं चिकित्सालय में मानसिक रोगियों के उपचार, शोध के साथ ही वृद्धजन मनोरोग क्लीनिक, साइको-सेक्सुअल क्लीनिक, बाल व किशोरावस्था क्लीनिक की विशेष ओपीडी संचालित हो रही है. सन 2023 में 24 घंटे टेलिमेडिसिन ओपीडी शुरू की गई. इसके लिए हेल्पलाइन नंबर 14416 जारी किया गया. इस पर हर दिन 80 से 100 मरीज ऑनलाइन परामर्श लेते हैं.
मानसिक स्वास्थ्य संस्थान एवं चिकित्सालय के निदेशक डॉ. दिनेश राठौर ने बताया कि मानसिक स्वास्थ्य संस्थान एवं चिकित्सालय को निम्हंस की तर्ज पर विकसित करने के लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव बनाकर भेजा गया है. इससे संस्थान में इलाज के साथ ही शोध कार्य का विस्तार किया जाएगा. उत्तर प्रदेश की बात करें तो यह दूसरा संस्थान हैं. जहां एमडी मनोचिकित्सा की 10 सीटें हैं.
50 रुपये में ओपीडी, आधार कार्ड से मरीज भर्ती: मानसिक स्वास्थ्य संस्थान एवं चिकित्सालय में ओपीडी का पर्चा 50 रुपये में बनता है. इसके साथ ही मरीज के तीमारदार का आधार कार्ड, पता सहित अन्य ब्यौरा लिया जाता है. इससे मरीज ठीक होने पर उनके परिजन को सूचना दी जाती है. जिन मरीजों के परिजन नहीं आते हैं. उन्हें संस्थान के स्कार्ट के साथ उनके घर पहुंचाने काम करता है. उपचार के दौरान दवाओं के साथ काउंसलिंग की जरूरत होती है. इसके लिए संस्थान में मनोवैज्ञानिक हैं, जो मरीजों की काउंसिलिंग करते हैं. गंभीर मनोरोग से लेकर सामान्य तनाव के मरीजों का इलाज किया जा रहा है.