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हिमाचल में 15 से 25 साल के युवा भी बन रहे इसके आदी, इलाज के लिए आ रहे IGMC - DRUG DE DEADDICTION OPD IGMC

तीन सालों में हिमाचल में चिट्टा तस्करी के 4780 मामले दर्ज किए हुए. इसके साथ ही चिट्टे से 38 लोगों की मौत हुई है.

चिट्टे की लत के शिकार हो रहे युवा
चिट्टे की लत के शिकार हो रहे युवा (कॉन्सेप्ट इमेज)
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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : March 20, 2025 at 3:09 PM IST

Updated : March 20, 2025 at 4:34 PM IST

4 Min Read

शिमला: हिमाचल प्रदेश में चिट्टे की समस्या तेजी से बढ़ रही है. कई युवा चिट्टे की लत का शिकार बन गए हैं. मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू खुद कह चुके हैं कि तीन सालों में हिमाचल प्रदेश में चिट्टा तस्करी के 4780 मामले दर्ज किए गए हैं और चिट्टे के सेवन से 38 लोगों की मौत हुई है.

नशे की लत से जूझ रहे लोगों की मदद के लिए शिमला के आईजीएमसी में ड्रग डी-एडिक्शन ओपीडी चल रही है. यहां नशे की लत से जूझ रहे मरीजों की मदद की जा रही है. ये ओपीडी सप्ताह में दो बार बुधवार और शनिवार को चलती है. यहां नशे की लत से जूझ रहे मरीजों का उपचार किया जाता है. हर बुधवार और शनिवार को 10 नए और 20 पुराने मरीजों की काउंसलिंग और इलाज किया जाता है. यहां ग्रुप सेशन के माध्यम से मरीजों की मदद की जाती है, जिसमें उनके परिवार के लोग भी शामिल होते हैं. अभी अस्पताल में नशे के मरीजों के लिए 10 बेड की व्यवस्था है. जरूरत पड़ने पर इसे बढ़ाया जा सकता है.

चिट्टे की लत के शिकार हो रहे युवा (ETV BHARAT)

नशे की लत एक लंबी चलने वाली बीमारी

मनोचिकित्सक विभाग के एचओडी डॉ. दिनेश दत्त शर्मा ने बताया कि, 'नशे की लत एक लंबी चलने वाली बीमारी है, जिसमें मरीज को बार-बार नशे की तलब लगती है. सबसे पहले मरीज की पूरी हिस्ट्री ली जाती है. नशे की ऊपर उसकी निर्भरता और उसके नशा लेने के पैटर्न को जाना जाता है. इसके बाद मरीज के परिवार की हिस्ट्री का पता लगाया जाता है, नशे की आदत और अन्य बीमारियों के बारे में जानकारी जुटाई जाती है. कुछ प्रोसीजर को फॉलो किया जाता है. चिट्टे की लत के शिकार युवा कई बार एक दूसरे की सिरिंज का भी इस्तेमाल कर लेते हैं ,इसलिए उनके लिवर फंक्शनिंग, हेपेटाइटिस और अन्य टेस्ट करवाए जाते हैं. इसी के आधार पर मरीज का इलाज किया जाता है, लेकिन सबसे पहले मरीज की नशे की तलब का इलाज किया जाता है, जिससे वो नशे की तलब से मुक्त हो सकें.'

ये हैं इलाज के चरण

  • टेस्ट रिपोर्ट के आधार पर मरीज के आउटडोर और इनडोर इलाज पर फैसला लिया जाता है.
  • इनडोर इलाज में मरीज को भर्ती किया जाता है.
  • सबसे पहले मरीज को तलब रोकने की दवाई दी जाती है. इसके बाद काउंसलिंग और दवाइयां मरीज की चलती हैं.
  • डिटॉक्सीफिकेशन के दौरान मरीज को सिर्फ दवाई दी जाती है.
  • इसके बाद के चरण में दवाई और फैमिली थैरेपी चलती है.

फैमिली की कांउसलिंग जरूरी

डॉ. दिनेश दत्त शर्मा ने बताया कि, 'फैमिली की काउंसलिंग करना जरूरी है. मरीज के लिए फैमिल सपोर्ट जरूरी है. आमतौर पर नशे के आदी व्यक्ति के बारे में परिवार ये धारणा बना लेता है कि नशा का शिकार मरीज बिगड़ गया है. नशे की लत को परिवार बीमारी न समझकर इसे बुराई समझ लेता है, इसलिए नशे के आदी व्यक्ति के प्रति उनका व्यवहार बदल जाता है. ऐसे में परिवार की काउंसलिंग कर उसे ये समझाया जाता है कि नशे की लत को बुराई के तौर पर न देखकर इसे बीमारी के तौर पर देखा जाए.'

चिट्टे की चपेट में 15 से 25 साल के युवा

डॉ. दिनेश ने बताया कि, 'आज कल की युवा पीढ़ी चिट्टे की लत में फंसती जा रही है. हमारे पास 15 से 25 साल के ऐसे युवा आते हैं, जो चिट्टे की लत के आदी हैं. इससे अधिक उम्र के ऐसे मरीज हैं जो शराब की लत के शिकार हैं. चिट्टा या अन्य नशे के आदी मरीजों का इलाज अस्पताल में किया जाता है. नशे की लत से जूझ रहे मरीजों के लिए परिवार का सहयोग और समर्थन बहुत जरूरी है. नशे की लत एक ऐसी बीमारी है, जिसमें मरीज को बार-बार नशे की तलब लगती है. ऐसे में परिवार की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है. परिवार के सदस्यों को मरीज के साथ सहानुभूति रखनी चाहिए और उन्हें सही मार्गदर्शन देना चाहिए. परिवार के समर्थन से मरीज को नशे की लत से मुक्ति पाने में मदद मिलती है. परिवार के सदस्यों को मरीज की देखभाल करनी चाहिए और उन्हें सही समय पर इलाज के लिए ले जाना चाहिए.'

ये भी पढ़ें: हिमाचल में चिट्टा तस्करी के खिलाफ विधानसभा में एंटी ड्रग एक्ट लाएगी सुक्खू सरकार, अब तक चिट्टे से 38 युवाओं की मौत

शिमला: हिमाचल प्रदेश में चिट्टे की समस्या तेजी से बढ़ रही है. कई युवा चिट्टे की लत का शिकार बन गए हैं. मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू खुद कह चुके हैं कि तीन सालों में हिमाचल प्रदेश में चिट्टा तस्करी के 4780 मामले दर्ज किए गए हैं और चिट्टे के सेवन से 38 लोगों की मौत हुई है.

नशे की लत से जूझ रहे लोगों की मदद के लिए शिमला के आईजीएमसी में ड्रग डी-एडिक्शन ओपीडी चल रही है. यहां नशे की लत से जूझ रहे मरीजों की मदद की जा रही है. ये ओपीडी सप्ताह में दो बार बुधवार और शनिवार को चलती है. यहां नशे की लत से जूझ रहे मरीजों का उपचार किया जाता है. हर बुधवार और शनिवार को 10 नए और 20 पुराने मरीजों की काउंसलिंग और इलाज किया जाता है. यहां ग्रुप सेशन के माध्यम से मरीजों की मदद की जाती है, जिसमें उनके परिवार के लोग भी शामिल होते हैं. अभी अस्पताल में नशे के मरीजों के लिए 10 बेड की व्यवस्था है. जरूरत पड़ने पर इसे बढ़ाया जा सकता है.

चिट्टे की लत के शिकार हो रहे युवा (ETV BHARAT)

नशे की लत एक लंबी चलने वाली बीमारी

मनोचिकित्सक विभाग के एचओडी डॉ. दिनेश दत्त शर्मा ने बताया कि, 'नशे की लत एक लंबी चलने वाली बीमारी है, जिसमें मरीज को बार-बार नशे की तलब लगती है. सबसे पहले मरीज की पूरी हिस्ट्री ली जाती है. नशे की ऊपर उसकी निर्भरता और उसके नशा लेने के पैटर्न को जाना जाता है. इसके बाद मरीज के परिवार की हिस्ट्री का पता लगाया जाता है, नशे की आदत और अन्य बीमारियों के बारे में जानकारी जुटाई जाती है. कुछ प्रोसीजर को फॉलो किया जाता है. चिट्टे की लत के शिकार युवा कई बार एक दूसरे की सिरिंज का भी इस्तेमाल कर लेते हैं ,इसलिए उनके लिवर फंक्शनिंग, हेपेटाइटिस और अन्य टेस्ट करवाए जाते हैं. इसी के आधार पर मरीज का इलाज किया जाता है, लेकिन सबसे पहले मरीज की नशे की तलब का इलाज किया जाता है, जिससे वो नशे की तलब से मुक्त हो सकें.'

ये हैं इलाज के चरण

  • टेस्ट रिपोर्ट के आधार पर मरीज के आउटडोर और इनडोर इलाज पर फैसला लिया जाता है.
  • इनडोर इलाज में मरीज को भर्ती किया जाता है.
  • सबसे पहले मरीज को तलब रोकने की दवाई दी जाती है. इसके बाद काउंसलिंग और दवाइयां मरीज की चलती हैं.
  • डिटॉक्सीफिकेशन के दौरान मरीज को सिर्फ दवाई दी जाती है.
  • इसके बाद के चरण में दवाई और फैमिली थैरेपी चलती है.

फैमिली की कांउसलिंग जरूरी

डॉ. दिनेश दत्त शर्मा ने बताया कि, 'फैमिली की काउंसलिंग करना जरूरी है. मरीज के लिए फैमिल सपोर्ट जरूरी है. आमतौर पर नशे के आदी व्यक्ति के बारे में परिवार ये धारणा बना लेता है कि नशा का शिकार मरीज बिगड़ गया है. नशे की लत को परिवार बीमारी न समझकर इसे बुराई समझ लेता है, इसलिए नशे के आदी व्यक्ति के प्रति उनका व्यवहार बदल जाता है. ऐसे में परिवार की काउंसलिंग कर उसे ये समझाया जाता है कि नशे की लत को बुराई के तौर पर न देखकर इसे बीमारी के तौर पर देखा जाए.'

चिट्टे की चपेट में 15 से 25 साल के युवा

डॉ. दिनेश ने बताया कि, 'आज कल की युवा पीढ़ी चिट्टे की लत में फंसती जा रही है. हमारे पास 15 से 25 साल के ऐसे युवा आते हैं, जो चिट्टे की लत के आदी हैं. इससे अधिक उम्र के ऐसे मरीज हैं जो शराब की लत के शिकार हैं. चिट्टा या अन्य नशे के आदी मरीजों का इलाज अस्पताल में किया जाता है. नशे की लत से जूझ रहे मरीजों के लिए परिवार का सहयोग और समर्थन बहुत जरूरी है. नशे की लत एक ऐसी बीमारी है, जिसमें मरीज को बार-बार नशे की तलब लगती है. ऐसे में परिवार की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है. परिवार के सदस्यों को मरीज के साथ सहानुभूति रखनी चाहिए और उन्हें सही मार्गदर्शन देना चाहिए. परिवार के समर्थन से मरीज को नशे की लत से मुक्ति पाने में मदद मिलती है. परिवार के सदस्यों को मरीज की देखभाल करनी चाहिए और उन्हें सही समय पर इलाज के लिए ले जाना चाहिए.'

ये भी पढ़ें: हिमाचल में चिट्टा तस्करी के खिलाफ विधानसभा में एंटी ड्रग एक्ट लाएगी सुक्खू सरकार, अब तक चिट्टे से 38 युवाओं की मौत

Last Updated : March 20, 2025 at 4:34 PM IST
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