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बिहार में है दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा 'कुरान ए पाक', करीब डेढ़ सौ साल पहले हुई थी छपाई - 150 YEAR OLD PRINTED QURAN IN GAYA

बिहार के गया में दुनिया की सबसे बड़ी कुरान आज भी रखी हुई है. जानिए गया के पाक कुरान की क्या है खासियत.

150 YEAR OLD PRINTED QURAN IN GAYA
दुनिया की सबसे बड़ी कुरान (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : May 28, 2025 at 2:41 PM IST

5 Min Read

गया: इस्लाम के अनुसार कुरान मुस्लिम धर्मावलंबियों के लिए अल्लाह की भेजी गई सबसे पाक ग्रंथ है. इसी बीच हम आपको विश्व की सबसे बड़ी कुरान के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका संबध मोक्ष धरती गया से है. जी हां विश्व की सबसे बड़ी कुरान की तीसरी प्रति आज भी गया के चिश्तिया मोनामिया खानकाह में सुरक्षित है.

गया में है विश्व की सबसे बड़ी कुरान: गयाजी के नवागढ़ी के समीप चिश्तिया मोनामिया खानकाह में हजारों किताबें सुरक्षित हैं. इसमें 600 से 700 पांडुलिपियां भी हैं. खासबात ये है कि दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी 'कुरान ए पाक' उस समय की है, जब प्रिंटिंग का दौर शुरू हुआ था. यहां रखी कुरान करीब डेढ़ सौ साल पुरानी है.

देखें वीडियो (ETV Bharat)

1882 में छपी थी विश्व की सबसे बड़ी कुरान: विश्व में सबसे बड़ी कुरान 1882 ईसवी में प्रिंट हुई थी. इस प्रिंट हुई कुरान को विश्व में सिर्फ तीन स्थानों पर सुरक्षित रखा गया है, जिसमें पहला ब्रिटिश लाइब्रेरी लंदन, दूसरा मौलाना आजाद लाइब्रेरी अलीगढ़ और तीसरा गया के खानकाह चिश्तिया मोनामिया स्थान शामिल है. सबसे बड़ी कुरान की 3 प्रतियां छापी गई थी.

1793 में लिखी थी गई कुरान: यह कुरान 'तफसीर ए हुसैनी और तफसीर ए अजीजी' के नाम से विख्यात है. इसे हिंदुस्तान के विख्यात इस्लामिक स्कॉलर शाह अब्दुल अजीज मोहदिस देहलवी और शाह रफीउद्दीन मोहदिज देहलवी ने 1793 के आसपास में लिखा था. उनकी हिंदुस्तान और अरब में काफी प्रसिद्धि थी.

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विश्व की सबसे बड़ी कुरान की खासियत (ETV Bharat)

भारत में 1870- 80 के आसपास शुरू हुई थी प्रिंटिंग: भारत में सबसे पहले 1870- 80 के आसपास के दौर में ही प्रिंटिंग शुरू हुई थी और इसी दौर में 1882 में मयूर प्लेस दिल्ली में सबसे बड़े फाउंट और साइज वाले कुरान की प्रिंटिंग हुई थी. वहीं, जब अंग्रेज हिंदुस्तान में शासन चला रहे थे, तभी दुनिया की सबसे बड़ी कुरान की एक प्रति इंग्लैंड चली गई थी, जो आज भी ब्रिटिश लाइब्रेरी लंदन में रखी हुई है.

तीन भाषाओं में है विश्व की सबसे बड़ी कुरान: प्रिंटिंग हुई कुरान अरबी, फारसी और उर्दू तीनों ही भाषाओं में है. फारसी और उर्दू में इसकी प्रिंटिंग होने से इसे पढ़कर समझना काफी आसान हुआ है. 1882 में पहली बार बड़े फॉन्ट में यह कुरान छपी. रमजान के पाक माह में इस कुरान शरीफ का दीदार करने के लिए दूर-दूर से लोग गया आते हैं.

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चिश्तिया मोनामिया खानकाह में रखी है दुनिया की सबसे बड़ी कुरान (ETV Bharat)

कुरान में हैं 1158 पेज: दुनिया की सबसे बड़ी कुरान की लंबाई 35 सेंटीमीटर और चौड़ाई 54 सेंटीमीटर है. इसकी प्रिंटिंग हुए तकरीबन 150 साल हो गए हैं. विश्व की सबसे बड़ी कुरान 1152 पन्ने की है.

कुरान को छू नहीं सकते लोग: इस पवित्र कुरान को लोग देख सकते हैं. इसका दर्शन कर सकते हैं, लेकिन इसे छूने की मनाही है. अगर कोई बार-बार इसे छूता है, तो इससे इसकी जिल्द को नुकसान पहुंचता है. वहीं, अगर किसी शब्द का कोई शब्दार्थ ढूंढना हो या नई बातें जाननी हो तो इस कुरान का सहारा लिया जाता है. विभिन्न पर्व और त्योहारों के दौरान पवित्र कुरान को लोगों के बीच दर्शन के लिए रखा जाता है.

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लोग कुरान का दूर से कर सकते हैं दीदार (ETV Bharat)

कुरान की छपी थी तीन प्रतियां: गयाजी के चिश्तिया मोनामिया खानकाह सैय्यद नाजिम अता ने बताया कि साल 1793 में हिंदुस्तान के प्रसिद्ध इस्लामिक स्कॉलर शाह अब्दुल अजीज मोहदिस देहलवी और शाह रफीउद्दीन मोहदिन देहलवी ने विश्व की सबसे बड़ी कुरान लिखी थी. साल 1882 के आसपास दिल्ली मयूर प्रेस में इस कुरान की तीन प्रतियां छपी थी. तब से हमारे बुजुर्गों द्वारा इस खानकाह में दुनिया की सबसे बड़ी ''कुरान ए पाक'' को सुरक्षित रखा गया है.

''कुरान इस्लाम के पाक ग्रंथ के साथ-साथ उसकी नींव है. सन 1793 के आसपास हाथों से लिखी गई पांडुलिपियों की प्रतिलिपि की प्रिंटिंग 1882 के आसपास में दिल्ली के मयूर प्रिंटिंग प्रेस में हुई थी. पूरे विश्व में यह तीन स्थानों पर पर है. यह कुरान तफसीर ए हुसैनी और तफसीर ए अजीजी के नाम से जानी जाती है''. सैय्यद नाजिम अता, गया खानकाह

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गया में दुनिया की सबसे बड़ी कुरान आज भी है. (ETV Bharat)

मदीना से है चिश्तिया मोनामिया खानकाह का जुड़ाव: गयाजी के चिश्तिया मोनामिया खानकाह सैय्यद नाजिम अता ने बताया कि इस चिश्तिया मोनामिया खानकाह का इतिहास सदियों पुराना है. इसका जुड़ाव मदीना से है. सबसे पहले हजरत सैयद शाह आत फानी गयाजी आए थे.

खूबसूरत लिखावट में लिखी गई है कुरान: हिंदुस्तान के विख्यात इस्लामिक स्कॉलर शाह अब्दुल अजीज मोहदिस देहलवी और शाह रफीउद्दीन मोहदिज देहलवी की लिखावट की खूबसूरती देखकर लगता है कि यह वर्षों पुरानी किताब है.

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गया: इस्लाम के अनुसार कुरान मुस्लिम धर्मावलंबियों के लिए अल्लाह की भेजी गई सबसे पाक ग्रंथ है. इसी बीच हम आपको विश्व की सबसे बड़ी कुरान के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका संबध मोक्ष धरती गया से है. जी हां विश्व की सबसे बड़ी कुरान की तीसरी प्रति आज भी गया के चिश्तिया मोनामिया खानकाह में सुरक्षित है.

गया में है विश्व की सबसे बड़ी कुरान: गयाजी के नवागढ़ी के समीप चिश्तिया मोनामिया खानकाह में हजारों किताबें सुरक्षित हैं. इसमें 600 से 700 पांडुलिपियां भी हैं. खासबात ये है कि दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी 'कुरान ए पाक' उस समय की है, जब प्रिंटिंग का दौर शुरू हुआ था. यहां रखी कुरान करीब डेढ़ सौ साल पुरानी है.

देखें वीडियो (ETV Bharat)

1882 में छपी थी विश्व की सबसे बड़ी कुरान: विश्व में सबसे बड़ी कुरान 1882 ईसवी में प्रिंट हुई थी. इस प्रिंट हुई कुरान को विश्व में सिर्फ तीन स्थानों पर सुरक्षित रखा गया है, जिसमें पहला ब्रिटिश लाइब्रेरी लंदन, दूसरा मौलाना आजाद लाइब्रेरी अलीगढ़ और तीसरा गया के खानकाह चिश्तिया मोनामिया स्थान शामिल है. सबसे बड़ी कुरान की 3 प्रतियां छापी गई थी.

1793 में लिखी थी गई कुरान: यह कुरान 'तफसीर ए हुसैनी और तफसीर ए अजीजी' के नाम से विख्यात है. इसे हिंदुस्तान के विख्यात इस्लामिक स्कॉलर शाह अब्दुल अजीज मोहदिस देहलवी और शाह रफीउद्दीन मोहदिज देहलवी ने 1793 के आसपास में लिखा था. उनकी हिंदुस्तान और अरब में काफी प्रसिद्धि थी.

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विश्व की सबसे बड़ी कुरान की खासियत (ETV Bharat)

भारत में 1870- 80 के आसपास शुरू हुई थी प्रिंटिंग: भारत में सबसे पहले 1870- 80 के आसपास के दौर में ही प्रिंटिंग शुरू हुई थी और इसी दौर में 1882 में मयूर प्लेस दिल्ली में सबसे बड़े फाउंट और साइज वाले कुरान की प्रिंटिंग हुई थी. वहीं, जब अंग्रेज हिंदुस्तान में शासन चला रहे थे, तभी दुनिया की सबसे बड़ी कुरान की एक प्रति इंग्लैंड चली गई थी, जो आज भी ब्रिटिश लाइब्रेरी लंदन में रखी हुई है.

तीन भाषाओं में है विश्व की सबसे बड़ी कुरान: प्रिंटिंग हुई कुरान अरबी, फारसी और उर्दू तीनों ही भाषाओं में है. फारसी और उर्दू में इसकी प्रिंटिंग होने से इसे पढ़कर समझना काफी आसान हुआ है. 1882 में पहली बार बड़े फॉन्ट में यह कुरान छपी. रमजान के पाक माह में इस कुरान शरीफ का दीदार करने के लिए दूर-दूर से लोग गया आते हैं.

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चिश्तिया मोनामिया खानकाह में रखी है दुनिया की सबसे बड़ी कुरान (ETV Bharat)

कुरान में हैं 1158 पेज: दुनिया की सबसे बड़ी कुरान की लंबाई 35 सेंटीमीटर और चौड़ाई 54 सेंटीमीटर है. इसकी प्रिंटिंग हुए तकरीबन 150 साल हो गए हैं. विश्व की सबसे बड़ी कुरान 1152 पन्ने की है.

कुरान को छू नहीं सकते लोग: इस पवित्र कुरान को लोग देख सकते हैं. इसका दर्शन कर सकते हैं, लेकिन इसे छूने की मनाही है. अगर कोई बार-बार इसे छूता है, तो इससे इसकी जिल्द को नुकसान पहुंचता है. वहीं, अगर किसी शब्द का कोई शब्दार्थ ढूंढना हो या नई बातें जाननी हो तो इस कुरान का सहारा लिया जाता है. विभिन्न पर्व और त्योहारों के दौरान पवित्र कुरान को लोगों के बीच दर्शन के लिए रखा जाता है.

150 YEAR OLD PRINTED QURAN IN GAYA
लोग कुरान का दूर से कर सकते हैं दीदार (ETV Bharat)

कुरान की छपी थी तीन प्रतियां: गयाजी के चिश्तिया मोनामिया खानकाह सैय्यद नाजिम अता ने बताया कि साल 1793 में हिंदुस्तान के प्रसिद्ध इस्लामिक स्कॉलर शाह अब्दुल अजीज मोहदिस देहलवी और शाह रफीउद्दीन मोहदिन देहलवी ने विश्व की सबसे बड़ी कुरान लिखी थी. साल 1882 के आसपास दिल्ली मयूर प्रेस में इस कुरान की तीन प्रतियां छपी थी. तब से हमारे बुजुर्गों द्वारा इस खानकाह में दुनिया की सबसे बड़ी ''कुरान ए पाक'' को सुरक्षित रखा गया है.

''कुरान इस्लाम के पाक ग्रंथ के साथ-साथ उसकी नींव है. सन 1793 के आसपास हाथों से लिखी गई पांडुलिपियों की प्रतिलिपि की प्रिंटिंग 1882 के आसपास में दिल्ली के मयूर प्रिंटिंग प्रेस में हुई थी. पूरे विश्व में यह तीन स्थानों पर पर है. यह कुरान तफसीर ए हुसैनी और तफसीर ए अजीजी के नाम से जानी जाती है''. सैय्यद नाजिम अता, गया खानकाह

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गया में दुनिया की सबसे बड़ी कुरान आज भी है. (ETV Bharat)

मदीना से है चिश्तिया मोनामिया खानकाह का जुड़ाव: गयाजी के चिश्तिया मोनामिया खानकाह सैय्यद नाजिम अता ने बताया कि इस चिश्तिया मोनामिया खानकाह का इतिहास सदियों पुराना है. इसका जुड़ाव मदीना से है. सबसे पहले हजरत सैयद शाह आत फानी गयाजी आए थे.

खूबसूरत लिखावट में लिखी गई है कुरान: हिंदुस्तान के विख्यात इस्लामिक स्कॉलर शाह अब्दुल अजीज मोहदिस देहलवी और शाह रफीउद्दीन मोहदिज देहलवी की लिखावट की खूबसूरती देखकर लगता है कि यह वर्षों पुरानी किताब है.

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