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महात्मा गांधी ने जलियांवाला से भी भयावह बताया नीमूचाणा कांड को, जानें किसने चलाई थी किसानों पर गोलियां - 100 YEARS OF NEEMUCHANA MASSACRE

अलवर के बानसूर क्षेत्र के नीमूचाणा में हुए गोलीकांड को आज 100 साल पूरे हो चुके हैं. जानिए क्यों हुआ था ये बर्बर हत्याकांड...

नीमूचाणा नरसंहार को 100 वर्ष पूरे
नीमूचाणा नरसंहार को 100 वर्ष पूरे (ETV Bharat Alwar)
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : May 14, 2025 at 2:53 PM IST

3 Min Read

अलवर : बानसूर क्षेत्र के नीमूचाणा में गोलियों के निशान आज भी बर्बर हत्याकांड की याद ताजा कर देते हैं. आज से ठीक 100 साल पहले 14 मई 1925 को नीमूचाणा में शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे किसानों पर गोलियां बरसाई गईं थी. इस वीभत्स कांड में 250 से ज्यादा किसानों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी. सैकड़ों की संख्या में जानवर मारे गए. साथ ही किसानों की फसल नष्ट हो गई थी. उस दौरान महात्मा गांधी ने इस बर्बर हत्याकांड की निंदा कर इसे जलियावाला बाग से भी भयावह बताया था.

विरोध कर रहे थे किसान : अलवर के इतिहास के जानकार एडवोकेट हरिशंकर गोयल ने बताया कि आज से 100 साल पहले बानसूर क्षेत्र के नीमूचाणा गांव में आंदोलन कर रहे निहत्थे किसानों पर तत्कालीन शासकों की ओर से अंधाधुंध गोलियां बरसाई गईं थी. उस समय किसानों के आंदोलन करने से अलवर के तत्कालीन शासक नाराज थे. किसान लगान दोगुना करने और कई अन्य कर लगाने का विरोध कर रहे थे. इस घटना की गूंज अलवर जिला ही नहीं, बल्कि पूरे देश में सुनाई पड़ी. उस समय स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व कर रहे महात्मा गांधी ने नीमूचाणा में आंदोलन कर रहे किसानों को बंदूक की गोलियों से भून देने की घटना की तुलना जलियावाला बाग कांड से की और इसे भयावह बताया था. आज भी नीमूचाणा गांव की हवेलियों पर मौजूद तोप और बंदूक की गोलियों के निशान इस बर्बर हत्याकांड की गवाही देते हैं.

नीमूचाणा नरसंहार को 100 वर्ष पूरे
नीमूचाणा नरसंहार को 100 वर्ष पूरे (ETV Bharat GFX)

पढ़ें. Neemuchana Massacre 1925 : मृत किसानों की याद में निकाला कैंडल मार्च, दी श्रद्धांजलि

पूरे गांव को घेरकर चलवाई गोली : गोयल बताते हैं कि देश के अन्य भागों की तरह अंग्रेजों ने अलवर क्षेत्र की सत्ता को अपने कब्जे में लेना शुरू कर दिया था. तभी अलवर के तत्कालीन शासक महाराजा जयसिंह ने किसानों पर लगाए जाने वाले कर को दोगुना कर दिया. किसानों ने इसका विरोध किया और अंग्रेजों की चाल को विफल करने के उद्देश्य से बानसूर के नीमूचाणा गांव में आस-पास के गांवों के किसान एकत्र हुए और 14 मई 1925 को वहां शांतिपूर्वक सभा का आयोजन किया. किसानों की सभा चल रही थी कि इसी दौरान अलवर नरेश ने अपनी सेना भेजकर पूरे गांव को चारों तरफ से घेरकर लिया और सभा कर रहे किसानों पर गोलियां चलवा दी. इतना ही नहीं गांव में आग भी लगवा दी.

दिवारों पर गोली-तोप के निशान
दिवारों पर गोली-तोप के निशान (ETV Bharat Alwar)

पढ़ें. चीख-पुकार और 71 मौतें, आज ही के दिन 'लाल' हुई थी गुलाबी नगरी, 17 साल बाद भी इंसाफ का इंतजार

नीमूचाणा गांव है सैकड़ों साल पुराना : गोयल बताते हैं कि नीमूचाणा गांव सैकड़ों साल पुराना है. यहां पूर्व में बड़ी संख्या में सेठ रहते थे. उन्होंने रहने के लिए बड़ी-बड़ी हवेलियां बनवाई थी. बाद में ज्यादातर सेठ साहूकार कारोबार करने बाहर चले गए, लेकिन उनकी बड़ी-बड़ी हवेलियां आज भी नीमूचाणा गांव की शोभा को बयां करती हैं. बाहर रहने के बाद भी यहां के सेठों का आज भी नीमूचाणा गांव से लगाव है और समय-समय पर यहां आकर बड़े आयोजन करते रहते हैं.

नीमूचाणा गांव के लोग
नीमूचाणा गांव के लोग (ETV Bharat Alwar)

अलवर : बानसूर क्षेत्र के नीमूचाणा में गोलियों के निशान आज भी बर्बर हत्याकांड की याद ताजा कर देते हैं. आज से ठीक 100 साल पहले 14 मई 1925 को नीमूचाणा में शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे किसानों पर गोलियां बरसाई गईं थी. इस वीभत्स कांड में 250 से ज्यादा किसानों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी. सैकड़ों की संख्या में जानवर मारे गए. साथ ही किसानों की फसल नष्ट हो गई थी. उस दौरान महात्मा गांधी ने इस बर्बर हत्याकांड की निंदा कर इसे जलियावाला बाग से भी भयावह बताया था.

विरोध कर रहे थे किसान : अलवर के इतिहास के जानकार एडवोकेट हरिशंकर गोयल ने बताया कि आज से 100 साल पहले बानसूर क्षेत्र के नीमूचाणा गांव में आंदोलन कर रहे निहत्थे किसानों पर तत्कालीन शासकों की ओर से अंधाधुंध गोलियां बरसाई गईं थी. उस समय किसानों के आंदोलन करने से अलवर के तत्कालीन शासक नाराज थे. किसान लगान दोगुना करने और कई अन्य कर लगाने का विरोध कर रहे थे. इस घटना की गूंज अलवर जिला ही नहीं, बल्कि पूरे देश में सुनाई पड़ी. उस समय स्वतंत्रता आंदोलन का नेतृत्व कर रहे महात्मा गांधी ने नीमूचाणा में आंदोलन कर रहे किसानों को बंदूक की गोलियों से भून देने की घटना की तुलना जलियावाला बाग कांड से की और इसे भयावह बताया था. आज भी नीमूचाणा गांव की हवेलियों पर मौजूद तोप और बंदूक की गोलियों के निशान इस बर्बर हत्याकांड की गवाही देते हैं.

नीमूचाणा नरसंहार को 100 वर्ष पूरे
नीमूचाणा नरसंहार को 100 वर्ष पूरे (ETV Bharat GFX)

पढ़ें. Neemuchana Massacre 1925 : मृत किसानों की याद में निकाला कैंडल मार्च, दी श्रद्धांजलि

पूरे गांव को घेरकर चलवाई गोली : गोयल बताते हैं कि देश के अन्य भागों की तरह अंग्रेजों ने अलवर क्षेत्र की सत्ता को अपने कब्जे में लेना शुरू कर दिया था. तभी अलवर के तत्कालीन शासक महाराजा जयसिंह ने किसानों पर लगाए जाने वाले कर को दोगुना कर दिया. किसानों ने इसका विरोध किया और अंग्रेजों की चाल को विफल करने के उद्देश्य से बानसूर के नीमूचाणा गांव में आस-पास के गांवों के किसान एकत्र हुए और 14 मई 1925 को वहां शांतिपूर्वक सभा का आयोजन किया. किसानों की सभा चल रही थी कि इसी दौरान अलवर नरेश ने अपनी सेना भेजकर पूरे गांव को चारों तरफ से घेरकर लिया और सभा कर रहे किसानों पर गोलियां चलवा दी. इतना ही नहीं गांव में आग भी लगवा दी.

दिवारों पर गोली-तोप के निशान
दिवारों पर गोली-तोप के निशान (ETV Bharat Alwar)

पढ़ें. चीख-पुकार और 71 मौतें, आज ही के दिन 'लाल' हुई थी गुलाबी नगरी, 17 साल बाद भी इंसाफ का इंतजार

नीमूचाणा गांव है सैकड़ों साल पुराना : गोयल बताते हैं कि नीमूचाणा गांव सैकड़ों साल पुराना है. यहां पूर्व में बड़ी संख्या में सेठ रहते थे. उन्होंने रहने के लिए बड़ी-बड़ी हवेलियां बनवाई थी. बाद में ज्यादातर सेठ साहूकार कारोबार करने बाहर चले गए, लेकिन उनकी बड़ी-बड़ी हवेलियां आज भी नीमूचाणा गांव की शोभा को बयां करती हैं. बाहर रहने के बाद भी यहां के सेठों का आज भी नीमूचाणा गांव से लगाव है और समय-समय पर यहां आकर बड़े आयोजन करते रहते हैं.

नीमूचाणा गांव के लोग
नीमूचाणा गांव के लोग (ETV Bharat Alwar)
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