हरियाणा में बिलकुल फ्री में सीखिए बॉक्सिंग, 11 सालों से बच्चों को ट्रेनिंग दे रहा कैथल का बॉक्सिंग कोच, 100 से ज्यादा खिलाड़ियों को मिली सरकारी नौकरी
कैथल के कोच राजेंद्र सिंह 69 की उम्र में भी बच्चों को फ्री बॉक्सिंग सिखा रहे हैं. उनके सैकड़ों शिष्य सरकारी नौकरियों में कार्यरत हैं.

Published : September 30, 2025 at 5:47 PM IST
कैथल: जब भी खेल और खिलाड़ियों की बात होती है, तो हरियाणा का नाम सबसे ऊपर आता है. इसकी एक नहीं, अनेकों वजह हैं. इनमें से एक वजह है कैथल के बॉक्सिंग कोच राजेंद्र सिंह. राजेंद्र आज 69 साल के हैं. इस उम्र में भी वो फ्री में बच्चों को बॉक्सिंग की प्रैक्टिस कराते हैं. राजेंद्र सिंह 2014 में खेल विभाग से रिटायर हो गए थे. इसके बाद उन्होंने आराम करने की जगह बच्चों को फ्री में बॉक्सिंग की ट्रेनिंग देने की सोची.
100 से ज्यादा खिलाड़ियों को सरकारी नौकरी : कैथल के अंबाला रोड स्थित आरकेएसडी कॉलेज स्टेडियम में राजेंद्र सिंह पिछले 11 वर्षों से सैकड़ों खिलाड़ियों को सुबह-शाम निशुल्क ट्रेनिंग दे रहे हैं. उनके सिखाए करीब 100 खिलाड़ी आज सेना, रेलवे, पुलिस, शिक्षा व खेल विभाग में नौकरी कर रहे हैं. उनकी इस पहल ने कैथल को बॉक्सिंग का हब बना दिया है.
पैसों की कमी थी, फिर भी शुरू किया प्रशिक्षण केंद्र: राजेंद्र सिंह की कहानी संघर्ष से भरी हुई है. कैथल के मॉडल टाउन निवासी राजेंद्र सिंह ने 1993 में केवल 5 खिलाड़ियों के साथ एक छोटा सा बॉक्सिंग प्रशिक्षण केंद्र शुरू किया था. आज ये संख्या 200 से ज्यादा हो चुकी है, जिसमें 60 से अधिक महिला खिलाड़ी भी शामिल हैं. उन्होंने 1972 में संगरूर के शहीद उधम सिंह कॉलेज से बॉक्सिंग शुरू की थी. आर्थिक तंगी के बावजूद उन्होंने बॉक्सिंग का जरूरी सामान जुटाया और 1975 में हिसार में ऑल इंडिया इंटर यूनिवर्सिटी में गोल्ड, और 1976 में सीनियर नेशनल में सिल्वर मेडल जीता.

राज्यपाल से मिला बेस्ट कोच का सम्मान: राजेंद्र सिंह ने 1977 में एनआईएस कोर्स किया और 1983 में गुरुग्राम में बतौर कोच अपना करियर शुरू किया. उनकी मेहनत और लगन को देखते हुए उन्हें 1989 और 1996 में हरियाणा के राज्यपाल की ओर से बेस्ट बॉक्सिंग कोच का अवॉर्ड भी मिल चुका है. उनके शिष्य विक्रम ढुल, कुलदीप, मनोज कुमार और मनीषा मौण जैसे खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का नाम रोशन कर चुके हैं. अब तक उनके 20 से अधिक खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय पदक जीत चुके हैं, जबकि 80 से ज्यादा खिलाड़ी राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुके हैं.

रिटायरमेंट के बाद भी जुनून बरकरार: राजेंद्र सिंह का जुनून अभी भी उतना ही ताजा है. उनका कहना है कि "जब मैं खेल विभाग से रिटायर हुआ, तब शरीर पूरी तरह फिट था और बच्चों में बॉक्सिंग का क्रेज देखकर मैंने दोबारा ट्रेनिंग शुरू की. बच्चे भी कोचिंग के लिए जिद करते रहे." उन्होंने बताया कि अब तक वह खुद जरूरतमंद खिलाड़ियों के लिए बॉक्सिंग का सामान जुटाते हैं. उनके शिष्य गुरमीत सिंह भी अब कोच बनकर खिलाड़ियों की नई फौज तैयार कर रहे हैं. राजेंद्र सिंह की मेहनत और सेवा भाव ने कैथल को बॉक्सिंग में विशेष पहचान दिलाई है.

Etv Bharat से खास बातचीत: ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान राजेंद्र सिंह ने कहा "मैं 1993 में कैथल आया था. तभी से यहां बच्चों को बॉक्सिंग की कोचिंग दे रहा हूं. मैंने अपने आप को बॉक्सिंग में व्यस्त कर दिया. मैं 2014 में रिटायर हुआ था. तब से अभी तक 11 साल हो गए हैं. मैं बच्चों को फ्री सेवाएं दे रहा हूं. सरकारी कोच के तौर पर मैंने साढ़े 31 साल सेवाएं दी हैं. अब तक मैंने 80 लड़के नेशनल लेवल के तैयार किए हैं, जो मेडल जीत चुके हैं. 15 से 20 अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी मेडल जीत कर हरियाणा का नाम रोशन कर चुके हैं."

बच्चों को देते हैं फ्री ट्रेनिंग: बॉक्सिंग कोच राजेंद्र ने कहा "मैं बच्चों को फ्री कोचिंग देता हूं. किसी बच्चे से कोई पैसा नहीं लेता. 1993 में जब मैंने शुरुआत की तो सीखने के लिए पांच बच्चे आते थे. धीरे-धीरे बच्चों की संख्या बढ़ने लगी. 2014 में मैं जब रिटायर हुआ, तो मन में आया कि घर क्यों बैठूं? क्यों ना बच्चों को बॉक्सिंग के लिए तैयार किया जाए. तब से मैं फ्री सेवा कर रहा हूं. यहां बच्चे दो घंटे सुबह और दो घंटे शाम को प्रैक्टिस करते हैं."
अपने स्ट्रगल के दिनों को किया याद: अपने स्ट्रगल के दिनों के याद करते हुए बॉक्सिंग कोच राजेंद्र ने कहा "जब मैंने बॉक्सिंग की शुरुआत की, तब ना लोग फिजिकली स्ट्रांग थे. ना आर्थिक रूप से मजबूत थे. घरवालों और दोस्तों के सहयोग से मैंने बॉक्सिंग शुरू की. मैंने नेशनल लेवल पर कई मेडल जीते. 1983 में मैं बॉक्सिंग कोच बन गया. मुझे दो बार हरियाणा सरकार ने बेस्ट बॉक्सिंग कोच के रूप में सम्मानित किया है. इसके अलावा मुझे द्रोणाचार्य अवार्ड मिला हुआ है."
बॉक्सर मनीषा ने बताया अपना अनुभव: अंतरराष्ट्रीय बॉक्सर मनीषा मौन ने ईटीवी भारत से खास बातचीत में बताया कि "कोई भी बड़ी प्रतियोगिता हो, मैं अपनी ट्रेनिंग यहीं करती हूं. कैंप में जो ट्रेनिंग होती है. उसमें उनता विश्वास नहीं आता. जितना यहां प्रैक्टिस करने के बाद आता है. मैं यहां करीब 13 साल से प्रैक्टिस कर रही हूं. यहां पर कोई फीस नहीं लगती. जब मैं यहां शुरू में आई तो डाइट के पैसे भी नहीं थे. तब सारा खर्च गुरु राजेंद्र ने उठाया. मैं 2020 में स्पेन में वर्ल्ड चैंपियन बनी थी. इसके अलावा एशियन गेम्स और वर्ल्ड चैंपियनशिप में मेरा मेडल रहा है. करीब 20 बार मैं नेशनल चैंपियन रह चुकी हूं."
बॉक्सर दीपक ने बताया "मेरे नेशनल में दो गोल्ड मेडल आ चुके हैं. मेरी रेलवे में जॉब लग चुकी है. यहां कोच काफी अच्छे से सिखाते हैं. कई बार मैंने बॉक्सिंग छोड़ने का मन बनाया, लेकिन पापा ने विश्वास दिलाया कि कोच बहुत अच्छे से सिखाएंगे और हुआ भी ऐसा ही. कोच यहां बहुत अच्छे से सिखाते हैं."

