हैदराबाद: हिंदू धर्म में शीतला अष्टमी का विशेष महत्व है. यह पर्व माता शीतला को समर्पित है, जिन्हें रोगों से मुक्ति दिलाने वाली देवी माना जाता है. इस दिन माता शीतला की विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है और उनसे स्वास्थ्य एवं समृद्धि का आशीर्वाद मांगा जाता है. वर्ष 2025 में, शीतला अष्टमी का पर्व 22 मार्च, शनिवार को मनाया जाएगा. यह कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को पड़ता है. उत्तर भारत में इसे बसियउरा या बासोड़ा के नाम से भी जाना जाता है.
तिथि और मुहूर्त
ज्योतिषाचार्य डॉ. उमाशंकर मिश्रा के अनुसार, अष्टमी तिथि 21 मार्च को रात्रि 11:41 बजे प्रारंभ होगी और 22 मार्च की रात्रि 12:25 बजे तक रहेगी. उदयातिथि के अनुसार, अष्टमी 22 मार्च को मिलेगी. इसलिए शीतला अष्टमी का व्रत 22 मार्च को रखा जाएगा. इस दिन सूर्योदय से लेकर रात्रि तक मूल नक्षत्र रहेगा.
महत्व और प्रथाएं: शीतला अष्टमी के दिन कई विशेष प्रथाएं निभाई जाती हैं
- द्वार पर नीम का वंदनवार: कर्मकांड के साधक इस दिन घर के द्वार पर नीम के पत्तों का वंदनवार लगाते हैं. नीम को औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है और यह नकारात्मक ऊर्जा को दूर करने में सहायक होता है.
- बासी भोजन का भोग: मां शीतला को बासी भोजन का भोग लगाने का विधान है. इसलिए, शीतला अष्टमी से एक दिन पहले भोजन बनाया जाता है और उसे ठंडा करके माता को अर्पित किया जाता है.
- आरोग्य का वरदान: माना जाता है कि इस व्रत को करने से आरोग्य का वरदान मिलता है. माता शीतला बच्चों को गंभीर बीमारियों एवं बुरी नजर से रक्षा करती हैं.
शीतला माता पूजा विधि
- सप्तमी तिथि की तैयारी: शीतला अष्टमी से एक दिन पहले, सप्तमी तिथि पर भोजन बनाने की जगह को साफ कर गंगा जल से पवित्र करें.
- भोग सामग्री: माता शीतला के भोग की सामग्री बनाएं. माता को शीतल भोग ही पसंद है. आप चावल-गुड़ या फिर चावल और गन्ने के रस को मिलाकर खीर तथा मीठी रोटी बना सकते हैं.
- पूजा: घी का दीपक और धूप जलाकर शीतला स्त्रोत का पाठ करें.
- रात में दीपमाला: रात में दीपमालाएं सजाएं और जगराता करके माता की महिमा में लोकगीतों का गायन करें.
शीतला माता की सवारी: स्कंदपुराण के अनुसार, शीतला माता गधे की सवारी करती हैं. उनके हाथों में कलश, झाड़ू, सूप तथा नीम की पत्तियां होती हैं.
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