ETV Bharat / opinion

ट्रंप वैश्विक सोच को बदल रहे या कर रहे प्रभावित, कहीं पलटवार की आशंका तो नहीं ? - TRUMP IS CHANGING GLOBAL THINKING

अमेरिकी नीतियों से दुनियाभर के देशों के कान खड़े हो गए हैं. अब ये देश पलटवार कर रहे हैं.

Trump is changing global thinking
दुनिया की सोच बदल रहे हैं अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (AP)
author img

By Major General Harsha Kakar

Published : March 17, 2025 at 7:50 PM IST

10 Min Read

नई दिल्ली: हमारा मानना ​​था कि हम ग्लोबलीकरण के दौर में जी रहे हैं, जहाँ अर्थव्यवस्थाओं की परस्पर निर्भरता और संस्कृतियों का मेल है. वक्त के साथ जैसे-जैसे तकनीक विकसित हुई, इसने विश्व को पहले से कहीं अधिक जोड़ दिया. वहीं आर्थिक रूप से मजबूत देशों ने मानवता का समर्थन करने और सद्भावना दिखाने के लिए कमजोर देशों में कार्यक्रमों की फंडिंग की. विभिन्न संस्कृतियों और राष्ट्रों के बीच संबंधों को बढ़ाने और विश्वास बनाने में सॉफ्ट पावर ने महती भूमिका निभाई. इस दौरान राष्ट्रों के बीच तनाव और युद्ध जारी रहे. इस दौरान कुछ लोग आतंकवाद का समर्थन करते थे।

ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में व्यापारिक घरानों ने ऐसे देशों में अपना सेटअप लगाया, जहां मजदूरी सस्ती थी. ऐसा वो इसलिए चाहते थे, ताकि बिजनेस से अधिकाधिक लाभ कमा सकें. इसके साथ ही वहां की अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकें और ज्यादा से ज्यादा रोजगार पैदा कर सकें. बिजनेस फैमिली का ये प्रयोग लाभदायक साबित हुआ. ट्रांसपोर्ट सस्ता होने से माल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाना और ले जाना आसान हुआ. इसी दौर में चीन एक बड़ा लॉजिस्टिक्स सेंटर बन गया. इसी कड़ी में विश्व व्यवस्था को दिशा देने वाले और अमेरिका के समर्थन से बनने वाले ग्लोबल इंस्टीटूयूशन थे. मगर बदलते दौर के साथ इन संस्थाओं में अमेरिका की शक्ति कम होती गई।

"दुनिया को शांति", रूसी कलाकार एलेक्सी सर्जेन्को द्वारा बनाई गई एक पेंटिंग जिसमें रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के चेहरों का संयोजन दिखाया गया है, शुक्रवार, 14 मार्च, 2025 को रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में सर्जेन्को की गैलरी में प्रदर्शित की गई है। (एपी) (AP)

इस फेज में अमेरिका दुनिया का अनौपचारिक दारोगा बन गया. यूएसए का रक्षा खर्च, आर्थिक, सैन्य और तकनीकी शक्ति बेजोड़ थी. साथ ही वही दुनिया में सही या गलत का निर्धारण करता था. जब उसे लगता था कि उसे दखल देनी चाहिए तो वो दुनिया के किसी भी मामले में दखल देता था. मौका मिलते ही दूसरों को अधीनता में लाने की धमकी भी देता था. इन हालातों में अमेरिका ने कई गठबंधन बनाए और अपने सहयोगियों का समर्थन किया. ऐसे मामलों में उसने अपने से पहले अपने सहयोगियों की चिंताओं का भरपूर सम्मान किया. इसने कुछ देशों का अपने विश्वासों के आधार पर संघर्षों में शामिल होकर समर्थन किया. साथ ही ऐसे उन देशों पर प्रतिबंध लगाए, जिन्हें वो किसी भी तरह से जिम्मेदार मानता था. यूएस को चुनौती देने वालों को भी निशाने पर रखा. अमेरिका यहीं नहीं रुका, उसने कई देशों में खुलकर हस्तक्षेप किया. इस दौरान जरूरी समझने पर अपने अनुरूप वहां की सस्ता में बदलाव कराया.

गौर करें तो पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका के नेतृत्व में वैश्विक व्यापार में वृद्धि हुई. अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा आयातक और दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक रहा. साल 2022 में यूएस ने 3.2 ट्रिलियन डॉलर का आयात किया. वहीं इस दौरान 2.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का निर्यात किया. आयात-निर्यात का ये घाटा ही वो वजह थी कि जिसके कारण ट्रम्प ने लोकल प्रोडक्शन को बढ़ावा देने के इरादे से टैरिफ का एलान किया. इसके साथ ही हाई टैरिफ लगाने वाले देशों को रास्ते पर लाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए. डोनाल्ड ट्रम्प ने अपना ध्यान संरक्षणवाद और राष्ट्रवाद पर केंद्रित किया. अक्टूबर 2024 में चुनाव प्रचार करते समय ट्रम्प ने कहा था, 'हम कंपनियों को वापस लाने जा रहे हैं. हम उन कंपनियों के लिए टैक्स कम करने जा रहे हैं जो अपने उत्पाद यूएसए में बनाने जा रही हैं।'

In this image made from video released by the Russian Presidential Press Service, on Wednesday, March 12, 2025, Russian President Vladimir Putin speaks during a visit to military headquarters in the Kursk region of Russia. (Russian Presidential Press Service via AP)
रूसी राष्ट्रपति प्रेस सेवा द्वारा जारी वीडियो से ली गई इस छवि में, बुधवार, 12 मार्च, 2025 को, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन रूस के कुर्स्क क्षेत्र में सैन्य मुख्यालय की यात्रा के दौरान बोलते हुए दिखाई दे रहे हैं। (रूसी राष्ट्रपति प्रेस सेवा एपी के माध्यम से) (AP)

जनवरी महीने में डोनाल्ड ट्रंप के व्हाइट हाउस में आते ही अमेरिका फर्स्ट की नीति को जोरशोर से आगे बढ़ाना शुरू हआ. ट्रंप ने चुनावी वायदों को जोरदार तरीके से उठाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. इसी को लेकर वैश्विक गतिशीलता में बदलाव चल रहा है. इसके लिए अवैध अप्रवासियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए कड़े कदम उठाए गए. टैरिफ से टैरिफ का मुकाबला करने के लिए अमेरिका ने नए-नए नियम बनाए. अमेरिका ने दवाओं की सप्लाई में बाधा बनने वाले देशों के खिलाफ वित्तीय दंड लगाए. यूएस सरकार ने कई देशों को दी जा रही सहायता को लेकर अपने फायदे के हिसाब से नियम बनाए. जिन देशों से उन्हें फायदा कम दिखा या वो अमेरिकी नीति में बाधक बन रहे थे, ऐसे देशों के खिलाफ या तो सहायता रोक दी. या उन्हें अपने अंदाज में धमकी दी. अमेरिकी की इस सधी चाल क वजह से दुनिया भर के गठबंधन हिल गए. ट्रंप शासन की इसी नीति ने लोगों और देशों को नए सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया.

President Donald Trump meets NATO Secretary General Mark Rutte in the Oval Office at the White House in Washington, Thursday, March 13, 2025. (Pool via AP)
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने गुरुवार, 13 मार्च, 2025 को वाशिंगटन में व्हाइट हाउस के ओवल ऑफिस में नाटो महासचिव मार्क रूटे से मुलाकात की। (पूल एपी के माध्यम से) (AAP)

अब दुनियाभर के देशों ने ट्रंप के कदमों पर रिएक्ट करना देना शुरू कर दिया है. राष्ट्रों को अपने मौजूदा टैरिफ व्यवस्थाओं का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. कुछ मामलों में टैरिफ का जवाब टैरिफ से दिया जा रहा है. साथ ही उन्हें अपने अवैध अप्रवासियों को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया जा रहा है, जिनमें से कई सैन्य विमानों में जंजीरों में जकड़े हुए आ रहे हैं. साथ ही, यूएसएआईडी (USAID) को रोकने को भी कई देशों ने चैलेंज के रूप में लिया है. इतना ही नहीं अमेरिका द्वारा कई देशों की परियोजनाओं के बारे में डिटेल जानकारी जारी करने पर उन राष्ट्रों के कान खड़े हो गए हैं.

In a march through downtown Brattleboro, Vt., people created a wedding scene between President Donald Trump and Russian President Vladimir Putin during a protest on Friday, March 14, 2025. (Kristopher Radder/The Brattleboro Reformer via AP)
शुक्रवार, 14 मार्च, 2025 को ब्रैटलबोरो, वर्जीनिया शहर में आयोजित एक विरोध मार्च में लोगों ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच शादी का दृश्य बनाया। (क्रिस्टोफर रैडर/ब्रैटलबोरो रिफॉर्मर एपी के माध्यम से) (AAP)

अमेरिका द्वारा कई देशों की की तथाकथित परियोजनाओं के बारे में विवरण जारी करने से राष्ट्रों के आंतरिक मामलों में दखल से विश्व भर के देशों की आंखें खुल गईं. इस बजट सत्र से ठीक पहले प्रधानमंत्री मोदी को व्यंग्यात्मक टिप्पणी करने के लिए प्रेरित किया. इसी को लेकर पीएम मोदी ने संसद के महत्वपूर्ण सत्र से पहले कहा था कि "आग भड़काने के लिए विदेश से कोई प्रयास नहीं किया गया था।"

इस दौर में दुनिया ने यह भी देखा कि अमेरिका ग्लोबल वॉर के कॉन्फिलिक्ट में अपने ही विचारों को आगे बढ़ा रहा है. जबकि ट्रम्प, रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करना चाहते हैं. वह इजराइल को गाजा सहित अपने पड़ोसियों के किसी भी विरोध को कुचलने के लिए हथियार देना जारी रख रहे हैं. वहीं सेकंड वर्ल्ड वॉर के अंत में स्थापित पश्चिमी गठबंधन नाटो अब हाशिए पर है. परंपरागत रूप से अमेरिका का सबसे करीबी सहयोगी यूरोप है. आज वो भी यूएस की नाराजगी का खामियाजा भुगत रहा है. अब उसे अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि अमेरिका ने चेतावनी दी है कि जरूरत पड़ने पर वह यूरोप में नहीं खड़ा रहेगा. इसका मतलब ये है कि यूरोप के कई देशों पर और यूरोपीय संघ पर खतरा मंडरा रहा है.

दुनिया भर के राष्ट्र इस बात का मूल्यांकन कर रहे हैं कि वे डोनाल्ड ट्रम्प और उनके ग्लोबल आइडिया से कैसे निपटें। वॉशिंगटन आने वाले नेता ट्रम्प की नीतियों का जवाब दे रहे हैं. ट्रम्प ने ग्रीनलैंड पर नियंत्रण पाने के इरादे की घोषणा करके और कनाडा को इसका हिस्सा बनाने का संकेत देकर अमेरिकी विस्तारवाद को भी प्रदर्शित किया है. ये बात भी दुनिया को खटकने लगी है. अमेरिका की ओर से इस तरह के विचार इससे पहले कभी नहीं सुने गए थे।

अमेरिका में ट्रम्प 1.0 और मौजूदा 2.0 के बीच नीतियों में बदलाव के संकेत भी मिल रहे हैं. अपने पहले कार्यकाल में ट्रम्प ने ईरान के साथ परमाणु समझौते जेसीपीओए (संयुक्त व्यापक कार्य योजना) से किनारा कर लिया था, जिसे तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने आगे बढ़ाया था. अपने वर्तमान कार्यकाल में ट्रंप ने ईरान को एक पत्र लिखकर परमाणु समझौते पर फिर से बातचीत करने या सैन्य कार्रवाई की धमकी देने की बात कही है. दुनिया के देश स्वाभाविक रूप से इसे अस्वीकार कर चुके हैं. ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि कोई भी देश धमकी भरे एहसास को बर्दाश्त नहीं करेगा.

इतना ही नहीं कई देश अमेरिका को उन वैश्विक निकायों से बाहर निकालते दिख रहे हैं. जिन संस्थाओं का उपयोग अमेरिका उन्हीं देशों के हितों के खिलाफ कर रहा था. ऐसी संस्थाओं में डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) और पेरिस समझौता शामिल है. इसके अलावा आईसीसी (अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय) पर प्रतिबंध लगाए गए हैं, जिसने इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किए थे. हालात ये हैं कि वे वैश्विक संस्थाएं, जो अपने अस्तित्व के लिए अमेरिकी वित्तीय सहायता पर निर्भर थी, और मौजूदा दौर में उसकी जीवन रक्षक प्रणाली पर हैं. वहीं संयुक्त राष्ट्र असहाय रूप से किनारे पर बैठा है।

आज के हालात में ट्रम्प यह साबित कर रहे हैं कि वैश्वीकरण अतीत की बात हो गई है. पुराने गठबंधनों और समझौतों को तोड़कर ट्रम्प मौजूदा बहुपक्षीय व्यवस्था के खिलाफ़ द्विपक्षीय समझौतों पर जोर दे रहे हैं. ट्रंप के टैरिफ युद्ध शुरू करने की उनकी घोषणाओं का नतीजा है कि अमेरिकी स्टॉक एक्सचेंज में भारी गिरावट आई, जो उनकी नीतियों से असहमति का ही संकेत है. गौर करें तो एक ही दिन में बाज़ार सितंबर 2022 के बाद से अपने सबसे निचले स्तर पर आ गए थे।

आज देखा जा रहा है कि जिन देशों को ट्रंप ने जिन देशों को टैरिफ़ की धमकी दी थी, उन्होंने जवाबी कार्रवाई शुरू कर दी है. थोड़े समय में, वैश्विक व्यापार अब बहुपक्षीय समझौतों के बजाय द्विपक्षीय व्यापार समझौतों द्वारा शासित होगा।

उधर दुनिया भर में सैन्य गठबंधनों में बदलाव हो रहे हैं. नाटो के मौजूदा तरीके से इस संगठन के जारी रहने की संभावना कम हो रही है. सैन्य खर्च को बढ़ाने के लिए यूरोप को मजबूर किया जा रहा है. जिन देशों के पास अमेरिका के साथ सुरक्षा समझौते हैं, उन्हें अपनी धरती पर तैनात अमेरिकी सैनिकों के लिए भुगतान बढ़ाने का दबाव है. या उन्हें अपनी सैन्य क्षमता फिर विकसित करनी पड़ेगी. आज के हालात में दुनिया को बताया जा रहा है कि अमेरिका, जो कभी वैश्विक दारोगा था, अब वो वैसा नहीं है.

ट्रम्प ने कुछ महीनों की अवधि में दुनिया के नज़रिए को पहले से कहीं ज़्यादा ही बदल दिया. राष्ट्रों ने बाहर की बजाय अंदर की ओर देखना शुरू कर दिया है. अभी डोनाल्ड ट्रंप का कार्यकाल शुरू हुआ है. आगामी कुछ साल दुनिया को लंबे समय तक बदल सकते हैं.

ये भी पढ़ें-

नई दिल्ली: हमारा मानना ​​था कि हम ग्लोबलीकरण के दौर में जी रहे हैं, जहाँ अर्थव्यवस्थाओं की परस्पर निर्भरता और संस्कृतियों का मेल है. वक्त के साथ जैसे-जैसे तकनीक विकसित हुई, इसने विश्व को पहले से कहीं अधिक जोड़ दिया. वहीं आर्थिक रूप से मजबूत देशों ने मानवता का समर्थन करने और सद्भावना दिखाने के लिए कमजोर देशों में कार्यक्रमों की फंडिंग की. विभिन्न संस्कृतियों और राष्ट्रों के बीच संबंधों को बढ़ाने और विश्वास बनाने में सॉफ्ट पावर ने महती भूमिका निभाई. इस दौरान राष्ट्रों के बीच तनाव और युद्ध जारी रहे. इस दौरान कुछ लोग आतंकवाद का समर्थन करते थे।

ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में व्यापारिक घरानों ने ऐसे देशों में अपना सेटअप लगाया, जहां मजदूरी सस्ती थी. ऐसा वो इसलिए चाहते थे, ताकि बिजनेस से अधिकाधिक लाभ कमा सकें. इसके साथ ही वहां की अर्थव्यवस्था को मजबूत कर सकें और ज्यादा से ज्यादा रोजगार पैदा कर सकें. बिजनेस फैमिली का ये प्रयोग लाभदायक साबित हुआ. ट्रांसपोर्ट सस्ता होने से माल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक लाना और ले जाना आसान हुआ. इसी दौर में चीन एक बड़ा लॉजिस्टिक्स सेंटर बन गया. इसी कड़ी में विश्व व्यवस्था को दिशा देने वाले और अमेरिका के समर्थन से बनने वाले ग्लोबल इंस्टीटूयूशन थे. मगर बदलते दौर के साथ इन संस्थाओं में अमेरिका की शक्ति कम होती गई।

"दुनिया को शांति", रूसी कलाकार एलेक्सी सर्जेन्को द्वारा बनाई गई एक पेंटिंग जिसमें रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के चेहरों का संयोजन दिखाया गया है, शुक्रवार, 14 मार्च, 2025 को रूस के सेंट पीटर्सबर्ग में सर्जेन्को की गैलरी में प्रदर्शित की गई है। (एपी) (AP)

इस फेज में अमेरिका दुनिया का अनौपचारिक दारोगा बन गया. यूएसए का रक्षा खर्च, आर्थिक, सैन्य और तकनीकी शक्ति बेजोड़ थी. साथ ही वही दुनिया में सही या गलत का निर्धारण करता था. जब उसे लगता था कि उसे दखल देनी चाहिए तो वो दुनिया के किसी भी मामले में दखल देता था. मौका मिलते ही दूसरों को अधीनता में लाने की धमकी भी देता था. इन हालातों में अमेरिका ने कई गठबंधन बनाए और अपने सहयोगियों का समर्थन किया. ऐसे मामलों में उसने अपने से पहले अपने सहयोगियों की चिंताओं का भरपूर सम्मान किया. इसने कुछ देशों का अपने विश्वासों के आधार पर संघर्षों में शामिल होकर समर्थन किया. साथ ही ऐसे उन देशों पर प्रतिबंध लगाए, जिन्हें वो किसी भी तरह से जिम्मेदार मानता था. यूएस को चुनौती देने वालों को भी निशाने पर रखा. अमेरिका यहीं नहीं रुका, उसने कई देशों में खुलकर हस्तक्षेप किया. इस दौरान जरूरी समझने पर अपने अनुरूप वहां की सस्ता में बदलाव कराया.

गौर करें तो पिछले कुछ वर्षों में अमेरिका के नेतृत्व में वैश्विक व्यापार में वृद्धि हुई. अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा आयातक और दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक रहा. साल 2022 में यूएस ने 3.2 ट्रिलियन डॉलर का आयात किया. वहीं इस दौरान 2.1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का निर्यात किया. आयात-निर्यात का ये घाटा ही वो वजह थी कि जिसके कारण ट्रम्प ने लोकल प्रोडक्शन को बढ़ावा देने के इरादे से टैरिफ का एलान किया. इसके साथ ही हाई टैरिफ लगाने वाले देशों को रास्ते पर लाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए. डोनाल्ड ट्रम्प ने अपना ध्यान संरक्षणवाद और राष्ट्रवाद पर केंद्रित किया. अक्टूबर 2024 में चुनाव प्रचार करते समय ट्रम्प ने कहा था, 'हम कंपनियों को वापस लाने जा रहे हैं. हम उन कंपनियों के लिए टैक्स कम करने जा रहे हैं जो अपने उत्पाद यूएसए में बनाने जा रही हैं।'

In this image made from video released by the Russian Presidential Press Service, on Wednesday, March 12, 2025, Russian President Vladimir Putin speaks during a visit to military headquarters in the Kursk region of Russia. (Russian Presidential Press Service via AP)
रूसी राष्ट्रपति प्रेस सेवा द्वारा जारी वीडियो से ली गई इस छवि में, बुधवार, 12 मार्च, 2025 को, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन रूस के कुर्स्क क्षेत्र में सैन्य मुख्यालय की यात्रा के दौरान बोलते हुए दिखाई दे रहे हैं। (रूसी राष्ट्रपति प्रेस सेवा एपी के माध्यम से) (AP)

जनवरी महीने में डोनाल्ड ट्रंप के व्हाइट हाउस में आते ही अमेरिका फर्स्ट की नीति को जोरशोर से आगे बढ़ाना शुरू हआ. ट्रंप ने चुनावी वायदों को जोरदार तरीके से उठाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. इसी को लेकर वैश्विक गतिशीलता में बदलाव चल रहा है. इसके लिए अवैध अप्रवासियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए कड़े कदम उठाए गए. टैरिफ से टैरिफ का मुकाबला करने के लिए अमेरिका ने नए-नए नियम बनाए. अमेरिका ने दवाओं की सप्लाई में बाधा बनने वाले देशों के खिलाफ वित्तीय दंड लगाए. यूएस सरकार ने कई देशों को दी जा रही सहायता को लेकर अपने फायदे के हिसाब से नियम बनाए. जिन देशों से उन्हें फायदा कम दिखा या वो अमेरिकी नीति में बाधक बन रहे थे, ऐसे देशों के खिलाफ या तो सहायता रोक दी. या उन्हें अपने अंदाज में धमकी दी. अमेरिकी की इस सधी चाल क वजह से दुनिया भर के गठबंधन हिल गए. ट्रंप शासन की इसी नीति ने लोगों और देशों को नए सिरे से सोचने पर मजबूर कर दिया.

President Donald Trump meets NATO Secretary General Mark Rutte in the Oval Office at the White House in Washington, Thursday, March 13, 2025. (Pool via AP)
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने गुरुवार, 13 मार्च, 2025 को वाशिंगटन में व्हाइट हाउस के ओवल ऑफिस में नाटो महासचिव मार्क रूटे से मुलाकात की। (पूल एपी के माध्यम से) (AAP)

अब दुनियाभर के देशों ने ट्रंप के कदमों पर रिएक्ट करना देना शुरू कर दिया है. राष्ट्रों को अपने मौजूदा टैरिफ व्यवस्थाओं का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. कुछ मामलों में टैरिफ का जवाब टैरिफ से दिया जा रहा है. साथ ही उन्हें अपने अवैध अप्रवासियों को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया जा रहा है, जिनमें से कई सैन्य विमानों में जंजीरों में जकड़े हुए आ रहे हैं. साथ ही, यूएसएआईडी (USAID) को रोकने को भी कई देशों ने चैलेंज के रूप में लिया है. इतना ही नहीं अमेरिका द्वारा कई देशों की परियोजनाओं के बारे में डिटेल जानकारी जारी करने पर उन राष्ट्रों के कान खड़े हो गए हैं.

In a march through downtown Brattleboro, Vt., people created a wedding scene between President Donald Trump and Russian President Vladimir Putin during a protest on Friday, March 14, 2025. (Kristopher Radder/The Brattleboro Reformer via AP)
शुक्रवार, 14 मार्च, 2025 को ब्रैटलबोरो, वर्जीनिया शहर में आयोजित एक विरोध मार्च में लोगों ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच शादी का दृश्य बनाया। (क्रिस्टोफर रैडर/ब्रैटलबोरो रिफॉर्मर एपी के माध्यम से) (AAP)

अमेरिका द्वारा कई देशों की की तथाकथित परियोजनाओं के बारे में विवरण जारी करने से राष्ट्रों के आंतरिक मामलों में दखल से विश्व भर के देशों की आंखें खुल गईं. इस बजट सत्र से ठीक पहले प्रधानमंत्री मोदी को व्यंग्यात्मक टिप्पणी करने के लिए प्रेरित किया. इसी को लेकर पीएम मोदी ने संसद के महत्वपूर्ण सत्र से पहले कहा था कि "आग भड़काने के लिए विदेश से कोई प्रयास नहीं किया गया था।"

इस दौर में दुनिया ने यह भी देखा कि अमेरिका ग्लोबल वॉर के कॉन्फिलिक्ट में अपने ही विचारों को आगे बढ़ा रहा है. जबकि ट्रम्प, रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त करना चाहते हैं. वह इजराइल को गाजा सहित अपने पड़ोसियों के किसी भी विरोध को कुचलने के लिए हथियार देना जारी रख रहे हैं. वहीं सेकंड वर्ल्ड वॉर के अंत में स्थापित पश्चिमी गठबंधन नाटो अब हाशिए पर है. परंपरागत रूप से अमेरिका का सबसे करीबी सहयोगी यूरोप है. आज वो भी यूएस की नाराजगी का खामियाजा भुगत रहा है. अब उसे अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि अमेरिका ने चेतावनी दी है कि जरूरत पड़ने पर वह यूरोप में नहीं खड़ा रहेगा. इसका मतलब ये है कि यूरोप के कई देशों पर और यूरोपीय संघ पर खतरा मंडरा रहा है.

दुनिया भर के राष्ट्र इस बात का मूल्यांकन कर रहे हैं कि वे डोनाल्ड ट्रम्प और उनके ग्लोबल आइडिया से कैसे निपटें। वॉशिंगटन आने वाले नेता ट्रम्प की नीतियों का जवाब दे रहे हैं. ट्रम्प ने ग्रीनलैंड पर नियंत्रण पाने के इरादे की घोषणा करके और कनाडा को इसका हिस्सा बनाने का संकेत देकर अमेरिकी विस्तारवाद को भी प्रदर्शित किया है. ये बात भी दुनिया को खटकने लगी है. अमेरिका की ओर से इस तरह के विचार इससे पहले कभी नहीं सुने गए थे।

अमेरिका में ट्रम्प 1.0 और मौजूदा 2.0 के बीच नीतियों में बदलाव के संकेत भी मिल रहे हैं. अपने पहले कार्यकाल में ट्रम्प ने ईरान के साथ परमाणु समझौते जेसीपीओए (संयुक्त व्यापक कार्य योजना) से किनारा कर लिया था, जिसे तत्कालीन राष्ट्रपति बराक ओबामा ने आगे बढ़ाया था. अपने वर्तमान कार्यकाल में ट्रंप ने ईरान को एक पत्र लिखकर परमाणु समझौते पर फिर से बातचीत करने या सैन्य कार्रवाई की धमकी देने की बात कही है. दुनिया के देश स्वाभाविक रूप से इसे अस्वीकार कर चुके हैं. ऐसा इसलिए हो रहा है, क्योंकि कोई भी देश धमकी भरे एहसास को बर्दाश्त नहीं करेगा.

इतना ही नहीं कई देश अमेरिका को उन वैश्विक निकायों से बाहर निकालते दिख रहे हैं. जिन संस्थाओं का उपयोग अमेरिका उन्हीं देशों के हितों के खिलाफ कर रहा था. ऐसी संस्थाओं में डब्ल्यूएचओ (विश्व स्वास्थ्य संगठन) और पेरिस समझौता शामिल है. इसके अलावा आईसीसी (अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय) पर प्रतिबंध लगाए गए हैं, जिसने इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किए थे. हालात ये हैं कि वे वैश्विक संस्थाएं, जो अपने अस्तित्व के लिए अमेरिकी वित्तीय सहायता पर निर्भर थी, और मौजूदा दौर में उसकी जीवन रक्षक प्रणाली पर हैं. वहीं संयुक्त राष्ट्र असहाय रूप से किनारे पर बैठा है।

आज के हालात में ट्रम्प यह साबित कर रहे हैं कि वैश्वीकरण अतीत की बात हो गई है. पुराने गठबंधनों और समझौतों को तोड़कर ट्रम्प मौजूदा बहुपक्षीय व्यवस्था के खिलाफ़ द्विपक्षीय समझौतों पर जोर दे रहे हैं. ट्रंप के टैरिफ युद्ध शुरू करने की उनकी घोषणाओं का नतीजा है कि अमेरिकी स्टॉक एक्सचेंज में भारी गिरावट आई, जो उनकी नीतियों से असहमति का ही संकेत है. गौर करें तो एक ही दिन में बाज़ार सितंबर 2022 के बाद से अपने सबसे निचले स्तर पर आ गए थे।

आज देखा जा रहा है कि जिन देशों को ट्रंप ने जिन देशों को टैरिफ़ की धमकी दी थी, उन्होंने जवाबी कार्रवाई शुरू कर दी है. थोड़े समय में, वैश्विक व्यापार अब बहुपक्षीय समझौतों के बजाय द्विपक्षीय व्यापार समझौतों द्वारा शासित होगा।

उधर दुनिया भर में सैन्य गठबंधनों में बदलाव हो रहे हैं. नाटो के मौजूदा तरीके से इस संगठन के जारी रहने की संभावना कम हो रही है. सैन्य खर्च को बढ़ाने के लिए यूरोप को मजबूर किया जा रहा है. जिन देशों के पास अमेरिका के साथ सुरक्षा समझौते हैं, उन्हें अपनी धरती पर तैनात अमेरिकी सैनिकों के लिए भुगतान बढ़ाने का दबाव है. या उन्हें अपनी सैन्य क्षमता फिर विकसित करनी पड़ेगी. आज के हालात में दुनिया को बताया जा रहा है कि अमेरिका, जो कभी वैश्विक दारोगा था, अब वो वैसा नहीं है.

ट्रम्प ने कुछ महीनों की अवधि में दुनिया के नज़रिए को पहले से कहीं ज़्यादा ही बदल दिया. राष्ट्रों ने बाहर की बजाय अंदर की ओर देखना शुरू कर दिया है. अभी डोनाल्ड ट्रंप का कार्यकाल शुरू हुआ है. आगामी कुछ साल दुनिया को लंबे समय तक बदल सकते हैं.

ये भी पढ़ें-

For All Latest Updates

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.