ETV Bharat / opinion

जम्मू में आतंकी गतिविधियों में उछाल! घाटी से कैसे खत्म होगा पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद? - Surge in terrorism

Surge in terrorism: जम्मू संभाग में पिछले कुछ महीनों से आतंकी घटनाओं में वृद्धि हुई है. इलाके में हुए आतंकी वारदातों में सुरक्षा बल के कई जवान शहीद हो चुके हैं जो कि बेहद चिंता का विषय है. वहीं राजनीतिक बयानबाजियां भी हो रही है. यह समय सेना की आलोचना करने या उन पर दबाव बनाने का नहीं है. सीमा पार से प्रायोजित आतंकवाद को खत्म करने के लिए जरूरी कदम उठाने होंगे.

author img

By Major General Harsha Kakar

Published : Jul 25, 2024, 5:58 PM IST

ANI
फाइल फोटो (ANI)

नई दिल्ली: जम्मू बेल्ट में पिछले कुछ महीनों से आतंकवादी गतिविधियों में वृद्धि हुई है. आतंकियों के साथ हुए एनकाउंटर में देश के कई वीर जवान अब तक शहीद हुए है, जो कि देश के लिए चिंता का विषय है. इसको लेकर राजनीति हलकों और सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों की प्रतिक्रिया भी सामने आई हैं. वहीं आतंक पर लगाम लगाने के लिए सुरक्षा बलों पर एक तरह से दबाव बना हुआ है. वहीं, कश्मीर की बात करें तो घाटी में आतंकी गतिविधियों में कमी तो आई है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि, आतंकवाद खत्म हो गया है. इसे हम ऐसे कह सकते हैं कि, कम से कम फिलहाल इस पर काबू पा लिया गया है.

जम्मू में आतंकी घटनाओं में हुई वृद्धि
जम्मू कश्मीर सीमा पार से पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से जूझ रहा है. इस पर लगाम तब तक लगाया नहीं जा सकता है, जब तक कि उसके मूल तंत्र को तबाह नहीं कर दिया जाता. पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का समाधान कभी भी बातचीत से संभव नहीं है. वह इसलिए क्योंकि भारत और पाकिस्तान के बीच इसका कोई साझा आधार नहीं है. आतंकवादी उन क्षेत्रों में अधिक सक्रिय होंगे जहां सुरक्षा बलों की संख्या कम है. यह आतंकी घटनाओं में वृद्धि होने का प्रमुख कारण हो सकता है. टेररिस्ट ऐसे इलाकों का चयन करेंगे जहां उन्हें अधिक से अधिक फायदा होगा. जम्मू में आतंकवादी घने जंगल को अपने लिए सुरक्षित मान रहे हैं, इसलिए ऐसे इलाके उनके लिए पनाहगाह बनते जा रहे हैं. वे घने जंगल में स्थित गुफाओं में छिप जाते हैं. साथ ही एलओसी से सटे इलाकों में छिपकर सुरक्षा बलों पर हमला करना उनके पक्ष में होता है.

सुरक्षा बलों के लिए यह है बड़ी समस्या
वहीं, जम्मू कश्मीर में सुरक्षा बलों के लिए समस्या यह भी है कि, यहां आतंकियों के कई समर्थक ऐसे भी हैं जो बड़े पैमाने पर उन्हें वित्तीय लाभ प्रदान करते हैं. इसके साथ ही आतंकवाद के समर्थक ये लोग टेररिस्ट को सुरक्षा बलों की हर एक मूवमेंट की खबर देते हैं, उन्हें आगे का मार्गदर्शन भी करते हैं. इन परिस्थितियों में आतंकियों पर काबू पाना भारतीय सेना के लिए चुनौतीपूर्ण हो जाता है.

आतंकी वारदातों पर राजनीतिक बयानबाजी
जम्मू में हुए आतंकी वारदातों को लेकर हाल ही में संपन्न चुनावों के दौरान बड़े पैमाने पर राजनीतिक बयान भी आएं. जिसमें कहां गया था कि, वैसे इलाके जहां सरकार ने एएफएसपीए (सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम) हटाने पर विचार कर रही है. ऐसी अफवाह भी थी कि, सुरक्षा बलों का एक हिस्सा राष्ट्रीय राइफल बटालियनों में कुछ कंपनियों को कम किया जा सकता है. ये सब कुछ जल्दीबाजी में किए गए आकलन थे. लद्दाख में घुसपैठ के बाद, जम्मू क्षेत्र से आतंकवाद कम होने और फिर से समायोजन संभव होने की बात सामने आई. हालांकि, यह मूल्यांकन पर आधारित जल्दीबाजी में लिया गया कदम था. एक बार फिर से जम्मू में एक के बाद एक कई आतंकी हमले हुए. इन परिस्थितियों में अब अतिरिक्त बल तैनात किए जा रहे हैं.

हालात कैसे सुधरेंगे?
जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को व्यापक नजरिए से देखने की भी जरूरत है. आतंकियों के मूवमेंट की वजह से वहां के हालात फिर से बदतर हो गए हैं. हालांकि, यहां धैर्य रखने की जरूरत है. वह इसलिए क्योंकि आतंकियों के खिलाफ संचालन में कोई भी जल्दीबाजी नहीं की जा सकती और न ही की जानी चाहिए. आतंकवाद के खिलाफ अभियान में सुरक्षा बलों के शहीद होने का मतलब यह है कि, पेंडुलम धीरे-धीरे उनके पक्ष में झुक रहा है. आतंकवाद विरोधी अभियानों का समाधान केवल बल स्तर बढ़ाकर नहीं किया जा सकता है.

प्लान के साथ आतंकियों का होगा सफाया
जम्मू-कश्मीर से आतंकियों का सफाया करने के लिए एक खुफिया ग्रिड की स्थापना करने के साथ-साथ इलाके पर प्रभुत्व और निरंतर खोज अंत में खेल को बदल देगी. इलाके में आतंकियों से निपटने, सैनिकों की क्षति कम से कम हो उसके लिए एक एक सैनिकों को प्रशिक्षित होना होगा और साथ ही जहां इस तरह की घटनाएं हो रही है, उन इलाकों के बारे में जानकारी भी होनी चाहिए. जम्मू में इटेलिजेंस ग्रिड को फिर से सक्रिय करने की जरूरत है. रिपोर्ट में विशेष बलों की तैनाती का भी उल्लेख है, जो इलाके और संचालन की अपेक्षित प्रकृति से काफी परिचित और आतंकियों के खिलाफ हर तरह से लैस होंगे.

इलाके को समझना जरूरी
जम्मू कश्मीर से आतंकियों का सफाया करने के लिए संभावित ठिकानों सहित इलाके से अच्छी तरह से वाकिफ स्थानीय ग्राम रक्षा गार्डों को शामिल किया जा रहा है. आतंकियों के खिलाफ इलेक्ट्रॉनिक निगरानी में सबसे बड़ी बाधा आतंकवादियों द्वारा किए जा रहे नए टैक्नॉलाजी उपकरण हैं, जिसे तोड़ने में वक्त लगेगा. संभावित घुसपैठ के प्रयासों को कम करने के लिए आतंकवाद विरोधी ग्रिड को मजबूत किया जाएगा. वहीं, ओवरग्राउंड कार्यकर्ताओं को किनारे कर दिया जाएगा और आतंकवादियों को उनके समर्थकों से अलग कर दिया जाएगा. इसका तात्पर्य यह है कि संचालन एक योजना के आधार पर जानबूझकर और कार्यान्वित किया जाएगा, जिसमें राज्य के सभी तत्व शामिल होंगे.

अमरनाथ यात्रा को लेकर सुरक्षा
आतंकवादियों के खिलाफ अभियान में हमारे नागरिकों किसी तरह की भी कोई क्षति नहीं होनी चाहिए, उसे सुनिश्चित किया जाना जरूरी है. 2003-04 में इस क्षेत्र में पहले के ऑपरेशन के दौरान, स्थानीय चरवाहों को पहाड़ियों पर जाने से रोका गया था. इससे आतंकवादियों को और अलग-थलग करने में मदद मिली. आश्चर्य है कि क्या वर्तमान में भी इसका सहारा लिया जा सकता है. सरकार चाहती है कि स्थानीय लोगों को कम से कम असुविधा हो. वहीं अमरनाथ यात्रा भी आगे बढ़ रही है. इसकी सुरक्षा पर जोर एक अतिरिक्त चिंता का विषय बना हुआ है. हालांकि यात्रा मार्ग को साफ-सुथरा करने के लिए तैनात सैनिक उतने नहीं हैं, लेकिन इरादा यही है कि इसके संचालन के दौरान कोई अप्रिय घटना न हो.

सेना की आलोचना न करें
अमरनाथ यात्रा केंद्र शासित प्रदेश के लोगों के लिए एक जीवन रेखा भी है, जो केंद्र शासित प्रदेश के सभी हिस्सों से आने वाले तीर्थयात्रियों की सहायता करते हैं. उनकी वार्षिक आजीविका इसके सुरक्षित समापन पर निर्भर करती है. आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन के दौरान सैनिकों का शहीद होना राष्ट्र को आहत करता है. यह अपेक्षित है. हालांकि, यह समय सेना की आलोचना करने या उन पर दबाव बनाने का नहीं है. न ही देश को चमत्कार की उम्मीद करनी चाहिए. इन कार्यों में धैर्य और विस्तृत योजना शामिल है. यह याद रखना चाहिए कि शामिल किए गए आतंकवादियों के पास पाकिस्तान लौटने का कोई रास्ता नहीं है. जब तक उनका सफाया नहीं हो जाता, वे निशाना साधते रहने और यहां अशांति फैलाने के लिए यहां हैं. सीमा पार से भारत में घुसपैठ करने वाले आतंकियों का यह एक तरफा टिकट है. राष्ट्रीय स्तर पर, हमें अपनी रेड लाइन को स्पष्ट रूप से व्यक्त करने की आवश्यकता है.

पाकिस्तान की मंशा को समझना होगा
सीमा पार और बालाकोट हमले ने देश के दृढ़ संकल्प को व्यक्त किया लेकिन समय के साथ उनका प्रभाव खत्म हो गया. हमें एक बार फिर से आतंकियों के खिलाफ स्पष्ट संदेश देने की जरूरत है. पिछली कार्रवाइयों से राजनीतिक लाभ लेना और चुनाव प्रचार के दौरान पलटवार करने की धमकी देना भी समाधान नहीं है. जब तक बार-बार प्रदर्शित नहीं किया जाता, ये केवल राजनीतिक नारे ही बने रहते हैं. हमें पाकिस्तान की मंशा को समझना होगा और उसका मुकाबला करना होगा. वर्तमान में, पाकिस्तान सीपीईसी पर आतंकवादी खतरों को खत्म करने की चीनी मांगों को पूरा करने के लिए अपने पश्चिमी प्रांतों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए मजबूर है. इस प्रकार, उपलब्ध बलों को खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में आतंकवादी विरोधी अभियानों में तैनात किया गया है.

चीन के चक्कर में मारे जा रहे पाकिस्तान के सैनिक
वहां ऑपरेशन योजना के मुताबिक नहीं चल रहे हैं, जिससे पाक बलों के मारे जाने की संख्या बढ़ रही है. अफगानिस्तान के साथ तनाव बढ़ रहा है और युद्ध आसन्न है. जम्मू-कश्मीर में बढ़ते आतंकवाद का उद्देश्य भारत को आंतरिक रूप से उलझाए रखना है, जिससे पाकिस्तान बिना किसी हस्तक्षेप के अपने अभियान चला सके. पाकिस्तान LAC पर चीन के साथ भारत के तनाव पर भी निर्भर है. उसका मानना है कि इससे उसे जवाबी कार्रवाई करने से रोका जा सकेगा. इसमें कोई संदेह नहीं है कि चीन और पाक एकजुट होकर काम कर रहे हैं. भारत को इसका प्रतिकार करना ही होगा.

फैसला सरकार को करना है...
सरकार के सामने विकल्प हैं. एलओसी पर संघर्ष विराम की अवहेलना करना और पाकिस्तान की चौकियों, आतंकवादी शिविरों को निशाना बनाना, भले ही वे गांवों में हों, एक विकल्प है. लेकिन क्या इससे सावधानी बरती जाएगी, यह सवाल है. क्या चीन एलएसी को सक्रिय कर पाक को समर्थन देने का प्रयास करेगा, ऐसी संभावना है. यह एक आकलन है जो सरकार को करना होगा. अगला विकल्प सीमा पार हमला है. यहां भी सरकार को तनाव बढ़ने के लिए तैयार रहना चाहिए. सच तो यह है कि संदेश तो जाना ही है...मगर इसे कैसे बताया जाएगा यह सरकार का फैसला है.

ये भी पढ़ें: अग्निपथ योजना पर फिर से विचार स्वागत योग्य कदम!

नई दिल्ली: जम्मू बेल्ट में पिछले कुछ महीनों से आतंकवादी गतिविधियों में वृद्धि हुई है. आतंकियों के साथ हुए एनकाउंटर में देश के कई वीर जवान अब तक शहीद हुए है, जो कि देश के लिए चिंता का विषय है. इसको लेकर राजनीति हलकों और सोशल मीडिया के माध्यम से लोगों की प्रतिक्रिया भी सामने आई हैं. वहीं आतंक पर लगाम लगाने के लिए सुरक्षा बलों पर एक तरह से दबाव बना हुआ है. वहीं, कश्मीर की बात करें तो घाटी में आतंकी गतिविधियों में कमी तो आई है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि, आतंकवाद खत्म हो गया है. इसे हम ऐसे कह सकते हैं कि, कम से कम फिलहाल इस पर काबू पा लिया गया है.

जम्मू में आतंकी घटनाओं में हुई वृद्धि
जम्मू कश्मीर सीमा पार से पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से जूझ रहा है. इस पर लगाम तब तक लगाया नहीं जा सकता है, जब तक कि उसके मूल तंत्र को तबाह नहीं कर दिया जाता. पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का समाधान कभी भी बातचीत से संभव नहीं है. वह इसलिए क्योंकि भारत और पाकिस्तान के बीच इसका कोई साझा आधार नहीं है. आतंकवादी उन क्षेत्रों में अधिक सक्रिय होंगे जहां सुरक्षा बलों की संख्या कम है. यह आतंकी घटनाओं में वृद्धि होने का प्रमुख कारण हो सकता है. टेररिस्ट ऐसे इलाकों का चयन करेंगे जहां उन्हें अधिक से अधिक फायदा होगा. जम्मू में आतंकवादी घने जंगल को अपने लिए सुरक्षित मान रहे हैं, इसलिए ऐसे इलाके उनके लिए पनाहगाह बनते जा रहे हैं. वे घने जंगल में स्थित गुफाओं में छिप जाते हैं. साथ ही एलओसी से सटे इलाकों में छिपकर सुरक्षा बलों पर हमला करना उनके पक्ष में होता है.

सुरक्षा बलों के लिए यह है बड़ी समस्या
वहीं, जम्मू कश्मीर में सुरक्षा बलों के लिए समस्या यह भी है कि, यहां आतंकियों के कई समर्थक ऐसे भी हैं जो बड़े पैमाने पर उन्हें वित्तीय लाभ प्रदान करते हैं. इसके साथ ही आतंकवाद के समर्थक ये लोग टेररिस्ट को सुरक्षा बलों की हर एक मूवमेंट की खबर देते हैं, उन्हें आगे का मार्गदर्शन भी करते हैं. इन परिस्थितियों में आतंकियों पर काबू पाना भारतीय सेना के लिए चुनौतीपूर्ण हो जाता है.

आतंकी वारदातों पर राजनीतिक बयानबाजी
जम्मू में हुए आतंकी वारदातों को लेकर हाल ही में संपन्न चुनावों के दौरान बड़े पैमाने पर राजनीतिक बयान भी आएं. जिसमें कहां गया था कि, वैसे इलाके जहां सरकार ने एएफएसपीए (सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम) हटाने पर विचार कर रही है. ऐसी अफवाह भी थी कि, सुरक्षा बलों का एक हिस्सा राष्ट्रीय राइफल बटालियनों में कुछ कंपनियों को कम किया जा सकता है. ये सब कुछ जल्दीबाजी में किए गए आकलन थे. लद्दाख में घुसपैठ के बाद, जम्मू क्षेत्र से आतंकवाद कम होने और फिर से समायोजन संभव होने की बात सामने आई. हालांकि, यह मूल्यांकन पर आधारित जल्दीबाजी में लिया गया कदम था. एक बार फिर से जम्मू में एक के बाद एक कई आतंकी हमले हुए. इन परिस्थितियों में अब अतिरिक्त बल तैनात किए जा रहे हैं.

हालात कैसे सुधरेंगे?
जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को व्यापक नजरिए से देखने की भी जरूरत है. आतंकियों के मूवमेंट की वजह से वहां के हालात फिर से बदतर हो गए हैं. हालांकि, यहां धैर्य रखने की जरूरत है. वह इसलिए क्योंकि आतंकियों के खिलाफ संचालन में कोई भी जल्दीबाजी नहीं की जा सकती और न ही की जानी चाहिए. आतंकवाद के खिलाफ अभियान में सुरक्षा बलों के शहीद होने का मतलब यह है कि, पेंडुलम धीरे-धीरे उनके पक्ष में झुक रहा है. आतंकवाद विरोधी अभियानों का समाधान केवल बल स्तर बढ़ाकर नहीं किया जा सकता है.

प्लान के साथ आतंकियों का होगा सफाया
जम्मू-कश्मीर से आतंकियों का सफाया करने के लिए एक खुफिया ग्रिड की स्थापना करने के साथ-साथ इलाके पर प्रभुत्व और निरंतर खोज अंत में खेल को बदल देगी. इलाके में आतंकियों से निपटने, सैनिकों की क्षति कम से कम हो उसके लिए एक एक सैनिकों को प्रशिक्षित होना होगा और साथ ही जहां इस तरह की घटनाएं हो रही है, उन इलाकों के बारे में जानकारी भी होनी चाहिए. जम्मू में इटेलिजेंस ग्रिड को फिर से सक्रिय करने की जरूरत है. रिपोर्ट में विशेष बलों की तैनाती का भी उल्लेख है, जो इलाके और संचालन की अपेक्षित प्रकृति से काफी परिचित और आतंकियों के खिलाफ हर तरह से लैस होंगे.

इलाके को समझना जरूरी
जम्मू कश्मीर से आतंकियों का सफाया करने के लिए संभावित ठिकानों सहित इलाके से अच्छी तरह से वाकिफ स्थानीय ग्राम रक्षा गार्डों को शामिल किया जा रहा है. आतंकियों के खिलाफ इलेक्ट्रॉनिक निगरानी में सबसे बड़ी बाधा आतंकवादियों द्वारा किए जा रहे नए टैक्नॉलाजी उपकरण हैं, जिसे तोड़ने में वक्त लगेगा. संभावित घुसपैठ के प्रयासों को कम करने के लिए आतंकवाद विरोधी ग्रिड को मजबूत किया जाएगा. वहीं, ओवरग्राउंड कार्यकर्ताओं को किनारे कर दिया जाएगा और आतंकवादियों को उनके समर्थकों से अलग कर दिया जाएगा. इसका तात्पर्य यह है कि संचालन एक योजना के आधार पर जानबूझकर और कार्यान्वित किया जाएगा, जिसमें राज्य के सभी तत्व शामिल होंगे.

अमरनाथ यात्रा को लेकर सुरक्षा
आतंकवादियों के खिलाफ अभियान में हमारे नागरिकों किसी तरह की भी कोई क्षति नहीं होनी चाहिए, उसे सुनिश्चित किया जाना जरूरी है. 2003-04 में इस क्षेत्र में पहले के ऑपरेशन के दौरान, स्थानीय चरवाहों को पहाड़ियों पर जाने से रोका गया था. इससे आतंकवादियों को और अलग-थलग करने में मदद मिली. आश्चर्य है कि क्या वर्तमान में भी इसका सहारा लिया जा सकता है. सरकार चाहती है कि स्थानीय लोगों को कम से कम असुविधा हो. वहीं अमरनाथ यात्रा भी आगे बढ़ रही है. इसकी सुरक्षा पर जोर एक अतिरिक्त चिंता का विषय बना हुआ है. हालांकि यात्रा मार्ग को साफ-सुथरा करने के लिए तैनात सैनिक उतने नहीं हैं, लेकिन इरादा यही है कि इसके संचालन के दौरान कोई अप्रिय घटना न हो.

सेना की आलोचना न करें
अमरनाथ यात्रा केंद्र शासित प्रदेश के लोगों के लिए एक जीवन रेखा भी है, जो केंद्र शासित प्रदेश के सभी हिस्सों से आने वाले तीर्थयात्रियों की सहायता करते हैं. उनकी वार्षिक आजीविका इसके सुरक्षित समापन पर निर्भर करती है. आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन के दौरान सैनिकों का शहीद होना राष्ट्र को आहत करता है. यह अपेक्षित है. हालांकि, यह समय सेना की आलोचना करने या उन पर दबाव बनाने का नहीं है. न ही देश को चमत्कार की उम्मीद करनी चाहिए. इन कार्यों में धैर्य और विस्तृत योजना शामिल है. यह याद रखना चाहिए कि शामिल किए गए आतंकवादियों के पास पाकिस्तान लौटने का कोई रास्ता नहीं है. जब तक उनका सफाया नहीं हो जाता, वे निशाना साधते रहने और यहां अशांति फैलाने के लिए यहां हैं. सीमा पार से भारत में घुसपैठ करने वाले आतंकियों का यह एक तरफा टिकट है. राष्ट्रीय स्तर पर, हमें अपनी रेड लाइन को स्पष्ट रूप से व्यक्त करने की आवश्यकता है.

पाकिस्तान की मंशा को समझना होगा
सीमा पार और बालाकोट हमले ने देश के दृढ़ संकल्प को व्यक्त किया लेकिन समय के साथ उनका प्रभाव खत्म हो गया. हमें एक बार फिर से आतंकियों के खिलाफ स्पष्ट संदेश देने की जरूरत है. पिछली कार्रवाइयों से राजनीतिक लाभ लेना और चुनाव प्रचार के दौरान पलटवार करने की धमकी देना भी समाधान नहीं है. जब तक बार-बार प्रदर्शित नहीं किया जाता, ये केवल राजनीतिक नारे ही बने रहते हैं. हमें पाकिस्तान की मंशा को समझना होगा और उसका मुकाबला करना होगा. वर्तमान में, पाकिस्तान सीपीईसी पर आतंकवादी खतरों को खत्म करने की चीनी मांगों को पूरा करने के लिए अपने पश्चिमी प्रांतों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए मजबूर है. इस प्रकार, उपलब्ध बलों को खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान में आतंकवादी विरोधी अभियानों में तैनात किया गया है.

चीन के चक्कर में मारे जा रहे पाकिस्तान के सैनिक
वहां ऑपरेशन योजना के मुताबिक नहीं चल रहे हैं, जिससे पाक बलों के मारे जाने की संख्या बढ़ रही है. अफगानिस्तान के साथ तनाव बढ़ रहा है और युद्ध आसन्न है. जम्मू-कश्मीर में बढ़ते आतंकवाद का उद्देश्य भारत को आंतरिक रूप से उलझाए रखना है, जिससे पाकिस्तान बिना किसी हस्तक्षेप के अपने अभियान चला सके. पाकिस्तान LAC पर चीन के साथ भारत के तनाव पर भी निर्भर है. उसका मानना है कि इससे उसे जवाबी कार्रवाई करने से रोका जा सकेगा. इसमें कोई संदेह नहीं है कि चीन और पाक एकजुट होकर काम कर रहे हैं. भारत को इसका प्रतिकार करना ही होगा.

फैसला सरकार को करना है...
सरकार के सामने विकल्प हैं. एलओसी पर संघर्ष विराम की अवहेलना करना और पाकिस्तान की चौकियों, आतंकवादी शिविरों को निशाना बनाना, भले ही वे गांवों में हों, एक विकल्प है. लेकिन क्या इससे सावधानी बरती जाएगी, यह सवाल है. क्या चीन एलएसी को सक्रिय कर पाक को समर्थन देने का प्रयास करेगा, ऐसी संभावना है. यह एक आकलन है जो सरकार को करना होगा. अगला विकल्प सीमा पार हमला है. यहां भी सरकार को तनाव बढ़ने के लिए तैयार रहना चाहिए. सच तो यह है कि संदेश तो जाना ही है...मगर इसे कैसे बताया जाएगा यह सरकार का फैसला है.

ये भी पढ़ें: अग्निपथ योजना पर फिर से विचार स्वागत योग्य कदम!

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.