ETV Bharat / opinion

NITI Aayog की नई नीति: सबके लिए बेहतर उच्च शिक्षा की राह तैयार - REFORMING STATE PUBLIC UNIVERSITIES

NITI Aayog की नई नीति से छात्रों को बहुत फायदा होने वाला है. मिजोरम केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एनवीआर ज्योति कुमार की रिपोर्ट.

Reforming state public universities
झारखंड के रांची विश्वविद्यालय में अपने दीक्षांत समारोह में भाग लेने के बाद छात्राएं. (File Photo) (ANI)
author img

By ETV Bharat Hindi Team

Published : March 24, 2025 at 6:04 AM IST

6 Min Read

हैदराबादः भारत का उच्च शिक्षा तंत्र दुनिया में चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा है. देश भर में 1100 से अधिक विश्वविद्यालयों और 45 हजार कॉलेजों के साथ, भारत उच्च शिक्षा में 4.33 करोड़ छात्रों को शिक्षा दे रहा है. लेकिन ग्रॉस एनरोलमेंट रेशियो (GER) अब भी वैश्विक औसत से पीछे है. 2021-22 में भारत का GER 28.4% था, जबकि वैश्विक औसत 36.7% है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत भारत ने 2035 तक इसे 50% तक ले जाने का लक्ष्य रखा है.

नीति आयोग की रिपोर्टः इसी दिशा में NITI Aayog ने हाल ही में "राज्यों और राज्य के सार्वजनिक विश्वविद्यालयों के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा का विस्तार" के नाम से एक रिपोर्ट जारी की है. यह पहली ऐसी रिपोर्ट है, जो विशेष रूप से राज्यों और राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालयों (SPUs) पर केंद्रित है. रिपोर्ट में 20 से अधिक राज्यों, केंद्रीय शैक्षिक संस्थानों, 50 से अधिक राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों और शिक्षाविदों से मिले सुझावों को शामिल किया गया है.

Reforming state public universities
कोलकाता में एक नवाचार मेले के दौरान अपनी परियोजनाओं के साथ तस्वीर खिंचवाते हुए पश्चिम बंगाल के छात्र. (File Photo) (ANI)

छात्रों को होगा बड़ा फायदाः अगले 10 वर्षों में उच्च शिक्षा को व्यापक और सुलभ बनाना चुनौतीपूर्ण होगा, लेकिन अगर यह नीति प्रभावी रूप से लागू होती है, तो करोड़ों छात्रों को इसका सीधा लाभ मिलेगा. भारत ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ सकेगा. राज्य विश्वविद्यालयों की मजबूती से छात्रों को अपने ही राज्य में बेहतर उच्च शिक्षा के अवसर मिलेंगे. विश्वविद्यालयों में संसाधन बढ़ने से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलेगी. NITI Aayog की रिपोर्ट के सुझावों से स्कॉलरशिप, इन्फ्रास्ट्रक्चर और डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा मिलेगा.

संकाय की कमी और पुराना बुनियादी ढांचाः

एसपीयू (State Public Universities) भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली की रीढ़ हैं. भारत की 81% उच्च शिक्षा एसपीयू में हो रही है, इसलिए उनमें सुधार की बहुत जरूरती है. विकसित भारत 2047 के दृष्टिकोण के संदर्भ में भारत को ज्ञान केंद्र के रूप में स्थापित करने के लिए महत्वपूर्ण है. नीति आयोग की रिपोर्ट ने स्वीकार किया है कि 40% से अधिक संकाय पद खाली हैं, जिससे छात्र-शिक्षक अनुपात खराब है. छात्र-शिक्षक अनुपात 30:1 है, जो अनुशंसित 15:1 मानक से बहुत दूर है.

60% से ज़्यादा SPUs में पर्याप्त छात्रावास और आवास सुविधाएं नहीं हैं, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है. 25% एसपीयू में से भी कम के पास शोध और रोज़गार प्रशिक्षण के लिए उद्योग के साथ सक्रिय भागीदारी है. केवल 10% एसपीयू में अच्छी तरह से सुसज्जित शोध सुविधाएं हैं. रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि डिजिटल संसाधनों तक पहुंच एक चुनौती बनी हुई है, जहाँ केवल 32% एसपीयू के पास ही डिजिटल संसाधन हैं.

पूरी तरह कार्यात्मक डिजिटल लाइब्रेरी होने के कारण छात्रों और शिक्षकों के लिए वैश्विक शोध डेटाबेस तक पहुंचना मुश्किल हो गया है. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों में, कई एसपीयू की स्थिति और भी दयनीय प्रतीत होती है, जैसा कि हाल के दिनों में एनआईआरएफ रैंकिंग में गिरावट से पता चलता है. नियमित शिक्षकों की भारी कमी, कई शैक्षणिक कार्यक्रमों में प्रवेश में गिरावट और उत्तीर्ण छात्रों की कम रोजगार क्षमता ने छात्रों को निराश किया है.

Reforming state public universities
मध्य प्रदेश के जबलपुर में नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय के स्नातक अपने दीक्षांत समारोह का जश्न मनाते हुए. (File Photo) (ANI)

एसपीयू की आम विशेषता बन गई है! एसपीयू में रिक्त संकाय पदों को भरने के संबंध में, दोनों राज्य सरकारें केवल अधिसूचना जारी करने तक ही सीमित रहने के अलावा कोई प्रगति हासिल नहीं कर सकीं. आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद से, दोनों राज्यों में कोई भर्ती नहीं की गई है. इसने शिक्षण-सीखने की प्रक्रिया, अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र और शिक्षकों के मनोबल को गंभीर रूप से प्रभावित किया है. भर्ती की कमी के कारण मौजूदा शिक्षकों का कार्यभार कई गुना बढ़ गया है.

एसपीयू को कैसे पुनर्जीवित किया जाए?

हालांकि नीति आयोग की रिपोर्ट ने गुणवत्ता, वित्त पोषण, शासन और रोजगार के चार क्षेत्रों में लगभग 80 नीतिगत सिफारिशें प्रदान की हैं, लेकिन राज्य सरकारों की ओर से राजनीतिक इच्छाशक्ति एसपीयू को शीर्ष-गुणवत्ता प्रतिभा, अनुसंधान और नवाचार के केंद्रों में बदलने के लिए एक शर्त या गेम चेंजर होगी. इन चार क्षेत्रों में से, वित्त पोषण और शासन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे.

शिक्षा पर भारत का खर्च वास्तव में सकल घरेलू उत्पाद के 6% का केवल आधा है, जैसा कि एनईपी में बताया गया है. कई शिक्षाविदों ने दोहराया कि स्वायत्तता की कमी, अधिक विनियमन और एसपीयू के दिन-प्रतिदिन के कामकाज में राजनीतिक हस्तक्षेप ने उनके प्रदर्शन को बाधित किया. इसलिए, गुणवत्ता और उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालयों को स्व-शासित और स्व-विनियमित होना चाहिए.

एसपीयू के पास कई पीढ़ियों से समाज के निम्न और मध्यम आय वर्ग के लिए सस्ती शिक्षा प्रदान करने का एक सिद्ध ट्रैक रिकॉर्ड है. उदाहरण के लिए, 2021-22 में एसपीयू में महिलाओं के नामांकन का 48.2% हिस्सा है, जो समग्र रूप से विश्वविद्यालय प्रणाली में महिलाओं के नामांकन से 5.5 प्रतिशत अधिक है. साथ ही, एसपीयू ने एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदायों जैसे सामाजिक रूप से वंचित समूहों के छात्रों के नामांकन में काफी वृद्धि की है.

Reforming state public universities
पश्चिम बंगाल के कोलकाता में नवाचार मेले के दौरान परियोजना पर काम करते हुए छात्र. (File Photo) (ANI)

एसपीयू में इन छात्रों की संख्या 2011-12 में 99.5 लाख से बढ़कर 2021-22 में 229.7 लाख हो गई है. दूसरे शब्दों में, इस अवधि के दौरान कुल एसपीयू नामांकन में इन वंचित समूहों की हिस्सेदारी 42.5% से बढ़कर 70.7% हो गई. इस बात पर जोर देना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि अगले दो दशकों में भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने का सपना एसपीयू की उपेक्षा करके महज एक बयानबाजी बनकर रह जाएगा, जो समावेशी उच्च शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए जाने जाते हैं.

इसे भी पढ़ेंः क्या इस साल के बजट 2025 में सरकार का ध्यान उच्च शिक्षा पर रहेगा?

इसे भी पढ़ेंः राष्ट्रीय शिक्षा दिवस : क्या भारत में गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा तक पहुंच महज एक सपना?

हैदराबादः भारत का उच्च शिक्षा तंत्र दुनिया में चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा है. देश भर में 1100 से अधिक विश्वविद्यालयों और 45 हजार कॉलेजों के साथ, भारत उच्च शिक्षा में 4.33 करोड़ छात्रों को शिक्षा दे रहा है. लेकिन ग्रॉस एनरोलमेंट रेशियो (GER) अब भी वैश्विक औसत से पीछे है. 2021-22 में भारत का GER 28.4% था, जबकि वैश्विक औसत 36.7% है. राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत भारत ने 2035 तक इसे 50% तक ले जाने का लक्ष्य रखा है.

नीति आयोग की रिपोर्टः इसी दिशा में NITI Aayog ने हाल ही में "राज्यों और राज्य के सार्वजनिक विश्वविद्यालयों के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा का विस्तार" के नाम से एक रिपोर्ट जारी की है. यह पहली ऐसी रिपोर्ट है, जो विशेष रूप से राज्यों और राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालयों (SPUs) पर केंद्रित है. रिपोर्ट में 20 से अधिक राज्यों, केंद्रीय शैक्षिक संस्थानों, 50 से अधिक राज्य विश्वविद्यालयों के कुलपतियों और शिक्षाविदों से मिले सुझावों को शामिल किया गया है.

Reforming state public universities
कोलकाता में एक नवाचार मेले के दौरान अपनी परियोजनाओं के साथ तस्वीर खिंचवाते हुए पश्चिम बंगाल के छात्र. (File Photo) (ANI)

छात्रों को होगा बड़ा फायदाः अगले 10 वर्षों में उच्च शिक्षा को व्यापक और सुलभ बनाना चुनौतीपूर्ण होगा, लेकिन अगर यह नीति प्रभावी रूप से लागू होती है, तो करोड़ों छात्रों को इसका सीधा लाभ मिलेगा. भारत ज्ञान-आधारित अर्थव्यवस्था की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ सकेगा. राज्य विश्वविद्यालयों की मजबूती से छात्रों को अपने ही राज्य में बेहतर उच्च शिक्षा के अवसर मिलेंगे. विश्वविद्यालयों में संसाधन बढ़ने से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिलेगी. NITI Aayog की रिपोर्ट के सुझावों से स्कॉलरशिप, इन्फ्रास्ट्रक्चर और डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा मिलेगा.

संकाय की कमी और पुराना बुनियादी ढांचाः

एसपीयू (State Public Universities) भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली की रीढ़ हैं. भारत की 81% उच्च शिक्षा एसपीयू में हो रही है, इसलिए उनमें सुधार की बहुत जरूरती है. विकसित भारत 2047 के दृष्टिकोण के संदर्भ में भारत को ज्ञान केंद्र के रूप में स्थापित करने के लिए महत्वपूर्ण है. नीति आयोग की रिपोर्ट ने स्वीकार किया है कि 40% से अधिक संकाय पद खाली हैं, जिससे छात्र-शिक्षक अनुपात खराब है. छात्र-शिक्षक अनुपात 30:1 है, जो अनुशंसित 15:1 मानक से बहुत दूर है.

60% से ज़्यादा SPUs में पर्याप्त छात्रावास और आवास सुविधाएं नहीं हैं, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है. 25% एसपीयू में से भी कम के पास शोध और रोज़गार प्रशिक्षण के लिए उद्योग के साथ सक्रिय भागीदारी है. केवल 10% एसपीयू में अच्छी तरह से सुसज्जित शोध सुविधाएं हैं. रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि डिजिटल संसाधनों तक पहुंच एक चुनौती बनी हुई है, जहाँ केवल 32% एसपीयू के पास ही डिजिटल संसाधन हैं.

पूरी तरह कार्यात्मक डिजिटल लाइब्रेरी होने के कारण छात्रों और शिक्षकों के लिए वैश्विक शोध डेटाबेस तक पहुंचना मुश्किल हो गया है. आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्यों में, कई एसपीयू की स्थिति और भी दयनीय प्रतीत होती है, जैसा कि हाल के दिनों में एनआईआरएफ रैंकिंग में गिरावट से पता चलता है. नियमित शिक्षकों की भारी कमी, कई शैक्षणिक कार्यक्रमों में प्रवेश में गिरावट और उत्तीर्ण छात्रों की कम रोजगार क्षमता ने छात्रों को निराश किया है.

Reforming state public universities
मध्य प्रदेश के जबलपुर में नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय के स्नातक अपने दीक्षांत समारोह का जश्न मनाते हुए. (File Photo) (ANI)

एसपीयू की आम विशेषता बन गई है! एसपीयू में रिक्त संकाय पदों को भरने के संबंध में, दोनों राज्य सरकारें केवल अधिसूचना जारी करने तक ही सीमित रहने के अलावा कोई प्रगति हासिल नहीं कर सकीं. आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद से, दोनों राज्यों में कोई भर्ती नहीं की गई है. इसने शिक्षण-सीखने की प्रक्रिया, अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र और शिक्षकों के मनोबल को गंभीर रूप से प्रभावित किया है. भर्ती की कमी के कारण मौजूदा शिक्षकों का कार्यभार कई गुना बढ़ गया है.

एसपीयू को कैसे पुनर्जीवित किया जाए?

हालांकि नीति आयोग की रिपोर्ट ने गुणवत्ता, वित्त पोषण, शासन और रोजगार के चार क्षेत्रों में लगभग 80 नीतिगत सिफारिशें प्रदान की हैं, लेकिन राज्य सरकारों की ओर से राजनीतिक इच्छाशक्ति एसपीयू को शीर्ष-गुणवत्ता प्रतिभा, अनुसंधान और नवाचार के केंद्रों में बदलने के लिए एक शर्त या गेम चेंजर होगी. इन चार क्षेत्रों में से, वित्त पोषण और शासन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे.

शिक्षा पर भारत का खर्च वास्तव में सकल घरेलू उत्पाद के 6% का केवल आधा है, जैसा कि एनईपी में बताया गया है. कई शिक्षाविदों ने दोहराया कि स्वायत्तता की कमी, अधिक विनियमन और एसपीयू के दिन-प्रतिदिन के कामकाज में राजनीतिक हस्तक्षेप ने उनके प्रदर्शन को बाधित किया. इसलिए, गुणवत्ता और उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालयों को स्व-शासित और स्व-विनियमित होना चाहिए.

एसपीयू के पास कई पीढ़ियों से समाज के निम्न और मध्यम आय वर्ग के लिए सस्ती शिक्षा प्रदान करने का एक सिद्ध ट्रैक रिकॉर्ड है. उदाहरण के लिए, 2021-22 में एसपीयू में महिलाओं के नामांकन का 48.2% हिस्सा है, जो समग्र रूप से विश्वविद्यालय प्रणाली में महिलाओं के नामांकन से 5.5 प्रतिशत अधिक है. साथ ही, एसपीयू ने एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदायों जैसे सामाजिक रूप से वंचित समूहों के छात्रों के नामांकन में काफी वृद्धि की है.

Reforming state public universities
पश्चिम बंगाल के कोलकाता में नवाचार मेले के दौरान परियोजना पर काम करते हुए छात्र. (File Photo) (ANI)

एसपीयू में इन छात्रों की संख्या 2011-12 में 99.5 लाख से बढ़कर 2021-22 में 229.7 लाख हो गई है. दूसरे शब्दों में, इस अवधि के दौरान कुल एसपीयू नामांकन में इन वंचित समूहों की हिस्सेदारी 42.5% से बढ़कर 70.7% हो गई. इस बात पर जोर देना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि अगले दो दशकों में भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने का सपना एसपीयू की उपेक्षा करके महज एक बयानबाजी बनकर रह जाएगा, जो समावेशी उच्च शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए जाने जाते हैं.

इसे भी पढ़ेंः क्या इस साल के बजट 2025 में सरकार का ध्यान उच्च शिक्षा पर रहेगा?

इसे भी पढ़ेंः राष्ट्रीय शिक्षा दिवस : क्या भारत में गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा तक पहुंच महज एक सपना?

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.