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रणबीर नहर लंबे समय तक चलेगी? भारत ने IWT को स्थगित रखा, अब सिंचाई के बुनियादी ढांचे पर लगाया दांव - RANBIR CANAL TO RUN LONGER

भारत ने अपनी ओर से पत्र में पाकिस्तान के इस दावे को खारिज कर दिया कि, सिंधु जल संधि को स्थगित रखना अवैध है.

रणबीर नहर में गर्मी के समय नहाते लोग, फाइल फोटो
रणबीर नहर में गर्मी के समय नहाते लोग, फाइल फोटो (ANI)
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By Aroonim Bhuyan

Published : May 17, 2025 at 12:34 AM IST

11 Min Read

नई दिल्ली: 22 अप्रैल को पहलगाम आतंकवादी हमले और भारत द्वारा सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) को निलंबित करने के बाद बढ़ते तनाव के बीच, एक प्रमुख सिंचाई परियोजना जम्मू और कश्मीर में सरकार की नई विकास रणनीति का एक प्रमुख स्तंभ बनकर उभरी है.

योजना यह है कि ऐतिहासिक रणबीर नहर की लम्बाई 60 किलोमीटर से बढ़ाकर 120 किलोमीटर की जाए, जिसका उद्देश्य न केवल जम्मू के कृषि क्षेत्र में सिंचाई को बढ़ावा देना है, बल्कि चिनाब नदी के जल पर संप्रभु नियंत्रण को फिर से स्थापित करना भी है, जो लंबे समय से भारत-पाकिस्तान जल-बंटवारा समझौते के तहत विनियमित है.

सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने ईटीवी भारत को बताया कि, नहर में 1400 क्यूसेक की पूरी क्षमता से पानी बह रहा है, लेकिन सरकार की सहमति से इसकी क्षमता बढ़ाई जा सकती है.

अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि, नहर के आसपास ज़मीन उपलब्ध है, जिसका इस्तेमाल करके इसकी क्षमता बढ़ाई जा सकती है, लेकिन इससे बड़े पैमाने पर किसान समुदाय परेशान होंगे. उन्होंने कहा कि, सरकार को या तो मौजूदा नहर के साथ-साथ नई नहर बनाकर या पानी को मोड़ने के लिए बड़ी पाइपों का इस्तेमाल करके रणनीति बनानी होगी, ताकि रणबीर नहर का कामकाज बाधित न हो.

पिछले महीने पहलगाम आतंकी हमले के मद्देनजर सिंधु जल संधि को स्थगित रखने के भारत के फैसले से पाकिस्तान को कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए.

वास्तव में देखा जाए तो, पिछले साल ही भारत ने पाकिस्तान को यह कहते हुए चेतावनी दी थी कि 1960 में संधि पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद से भू-राजनीतिक और पर्यावरणीय परिवर्तनों में हुए मूलभूत परिवर्तनों को देखते हुए सिंधु जल संधि की शर्तों पर फिर से बातचीत होने तक दोनों पक्षों के बीच कोई और बातचीत नहीं होगी.

इस अल्टीमेटम के कुछ सप्ताह बाद, पाकिस्तान ने सितंबर 2024 में जवाब दिया कि वह सिंधु जल संधि पर फिर से बातचीत करने को तैयार है. पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की तत्कालीन प्रवक्ता मुमताज जहरा बलूच ने इस्लामाबाद में मीडिया ब्रीफिंग के दौरान कहा था, "सिंधु जल संधि एक महत्वपूर्ण संधि है जिसने पिछले कई दशकों में पाकिस्तान और भारत दोनों की अच्छी सेवा की है."

उन्होंने कहा "हमारा मानना ​​है कि यह जल बंटवारे पर द्विपक्षीय संधियों का स्वर्णिम मानक है और पाकिस्तान इसके कार्यान्वयन के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है. हम उम्मीद करते हैं कि भारत भी संधि के प्रति प्रतिबद्ध रहेगा."

हालांकि, 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पाकिस्तान समर्थित आतंकी हमले के बाद हालात नाटकीय रूप से बदल गए. पहलगाम आतंकी हमले में 25 पर्यटकों समेत 26 निर्दोष लोगों की जान चली गई.

हमले के एक दिन बाद 23 अप्रैल को, सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (CCS) ने पाकिस्तान के खिलाफ पांच कूटनीतिक कदम उठाने का फैसला किया, जिनमें से एक IWT को स्थगित रखना भी शामिल था.

विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने सीसीएस की बैठक के बाद मीडिया ब्रीफिंग के दौरान कहा कि, 1960 की सिंधु जल संधि तत्काल प्रभाव से स्थगित रहेगी, जब तक कि पाकिस्तान विश्वसनीय और अपरिवर्तनीय रूप से सीमा पार आतंकवाद के लिए अपने समर्थन को त्याग नहीं देता.

पाकिस्तान ने जवाब में कहा था कि सिंधु जल संधि को स्थगित रखना भारत द्वारा 'युद्ध की कार्रवाई' के रूप में माना जाएगा. उसके बाद 6 और 7 मई की मध्यरात्रि को भारत ने पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में पाकिस्तान और पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में आतंकी ठिकानों को निशाना बनाते हुए ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया.

10 मई को पाकिस्तान के सैन्य संचालन महानिदेशक (DGMO) द्वारा हॉटलाइन पर अपने भारतीय समकक्ष को शांति की अपील करने के बाद संघर्ष विराम हुआ.

हालांकि, भारत आईडब्ल्यूटी को स्थगित रखने के अपने संकल्प पर अडिग रहा. 12 मई को नेशनल लेवल पर प्रसारित अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि, "भारत का रुख बिल्कुल स्पष्ट है... आतंक और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते... आतंक और व्यापार एक साथ नहीं चल सकते... पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते.

अगले दिन, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने नियमित मीडिया ब्रीफिंग के दौरान भारत के रुख को दोहराते हुए कहा कि आईडब्ल्यूटी को तब तक स्थगित रखा जाएगा, जब तक कि, पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद के लिए अपने समर्थन को विश्वसनीय और अपरिवर्तनीय रूप से त्याग नहीं देता.

साथ ही, उन्होंने कहा कि, कृपया यह भी ध्यान दें कि जलवायु परिवर्तन और जनसांख्यिकीय बदलावों और तकनीकी परिवर्तनों ने ज़मीन पर भी नई वास्तविकताएँ पैदा की हैं.

वहीं अब, रिपोर्ट्स बताती हैं कि पाकिस्तान के जल संसाधन मंत्रालय के सचिव सैयद अली मुर्तजा ने भारत के जल शक्ति मंत्रालय की सचिव देबाश्री मुखर्जी को पत्र लिखकर इस निर्णय पर पुनर्विचार करने को कहा है, जिसमें इस तथ्य को ध्यान में रखा गया है कि पाकिस्तान में लोग सिंधु जल संधि द्वारा विनियमित जल पर निर्भर हैं.

भारत ने अपनी ओर से पत्र में पाकिस्तान के इस दावे को खारिज कर दिया कि, सिंधु जल संधि को स्थगित रखना अवैध है. क्या भारत कानूनी रूप से सिंधु जल संधि को स्थगित रख सकता है? इसे समझने के लिए सिंधु जल संधि के डिटेल में जाना होगा.

सिंधु नदी सिस्टम, दुनिया की सबसे बड़ी नदी प्रणालियों में से एक है, जो चीन, भारत और पाकिस्तान से होकर बहती है. इसमें छह नदियां शामिल हैं, सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज.

1947 में ब्रिटिश भारत के विभाजन के बाद, दो नए राष्ट्रों, भारत और पाकिस्तान ने इन नदियों के नियंत्रण और उपयोग को लेकर खुद को असमंजस में पाया. वह इसलिए क्योंकि अधिकांश नदियां भारत में उत्पन्न हुईं, लेकिन नीचे की ओर पाकिस्तान में बहती थीं. 1948 में, भारत ने पूर्वी नदियों से पाकिस्तान में पानी के प्रवाह को कुछ समय के लिए रोक दिया, जिससे औपचारिक समझौते की जरूरत बढ़ गई.

संघर्ष से बचने और समान वितरण सुनिश्चित करने के लिए, विश्व बैंक ने मध्यस्थता करने के लिए कदम बढ़ाया. लगभग एक दशक की बातचीत के बाद, 19 सितंबर, 1960 को तत्कालीन भारतीय प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू, पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान और विश्व बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष यूजीन आर ब्लैक ने मध्यस्थ के रूप में सिंधु जल समझौते (IWT) पर हस्ताक्षर किए.

संधि के तहत तीन पूर्वी नदियों, ब्यास, रावी और सतलुज के जल पर नियंत्रण भारत को दिया गया है, जबकि तीन पश्चिमी नदियों सिंधु, चिनाब और झेलम के जल पर नियंत्रण पाकिस्तान के पास है. यह संधि पाकिस्तान को आवंटित पश्चिमी नदियों और भारत को आवंटित पूर्वी नदियों के उपयोग के बारे में दोनों देशों के बीच सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए एक सहकारी तंत्र स्थापित करती है.

संधि की प्रस्तावना में सद्भावना, मित्रता और सहयोग की भावना से सिंधु नदी प्रणाली से पानी के इष्टतम उपयोग में प्रत्येक देश के अधिकारों और दायित्वों को मान्यता दी गई है. संधि भारत को पश्चिमी नदी के पानी का सीमित सिंचाई उपयोग और असीमित गैर-उपभोग्य उपयोग जैसे कि बिजली उत्पादन, नौवहन, संपत्ति की आवाजाही और मछली पालन के लिए उपयोग करने की अनुमति देती है.

संधि के तहत, एक स्थायी सिंधु आयोग की स्थापना की गई थी. आयोग, जिसमें प्रत्येक देश से एक आयुक्त होता है, सहकारी तंत्र की देखरेख करता है और यह सुनिश्चित करता है कि दोनों देश संधि से उभरने वाले असंख्य मुद्दों पर चर्चा करने के लिए सालाना (वैकल्पिक रूप से भारत और पाकिस्तान में) मिलते हैं.

इस संधि को छह दशकों से भी अधिक समय तक बरकरार रखा गया है. कई युद्धों और भारत और पाकिस्तान के बीच भारी तनाव के दौर से भी यह संधि बची रही है. हालांकि, हाल के सालों में, पानी के उपयोग, बांध निर्माण और संधि के क्रियान्वयन को लेकर कई विवादों ने इसे एक बार फिर सुर्खियों में ला दिया है.

अब, जम्मू में रणबीर नहर की लंबाई बढ़ाने के भारत के फैसले को IWT के उल्लंघन के रूप में नहीं देखा जा सकता है क्योंकि नई दिल्ली ने संधि को स्थगित रखने का फैसला किया है.

रणबीर नहर जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश के जम्मू क्षेत्र में सबसे पुरानी और सबसे महत्वपूर्ण सिंचाई परियोजनाओं में से एक है. चिनाब नदी से प्राप्त यह नहर जम्मू के उपजाऊ मैदानों की सिंचाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जो इस क्षेत्र की कृषि अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देती है.

रणबीर नहर का निर्माण महाराजा रणबीर सिंह (1856-1885) के शासनकाल के दौरान किया गया था, जो जम्मू और कश्मीर की तत्कालीन रियासत के शासक थे. इसका नाम उनके सम्मान में रखा गया था और यह क्षेत्र में संगठित सिंचाई बुनियादी ढांचे के शुरुआती प्रयासों को दर्शाता है.

इस नहर का निर्माण ब्रिटिश सिंचाई विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में किया गया था, जिसमें उत्तर भारत, विशेष रूप से पंजाब में नहर प्रणालियों के पारंपरिक मॉडल का पालन किया गया था. मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस के वरिष्ठ फेलो और ट्रांसबाउंड्री जल मुद्दों पर एक प्रमुख टिप्पणीकार उत्तम कुमार सिन्हा के अनुसार, भारत को IWT के प्रावधानों के आधार पर रणबीर नहर का विस्तार करने का पूरा अधिकार है.

भारत को पश्चिमी नदियों के पानी का उपयोग करके जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेशों में लगभग 13.4 लाख एकड़ तक सिंचाई करने की अनुमति है. हालांकि, भारत ने केवल लगभग 6.42 लाख एकड़ के लिए सिंचाई बुनियादी ढांचा विकसित किया है, जो महत्वपूर्ण अप्रयुक्त क्षमता को दर्शाता है.

सिन्हा ने कहा कि, आईडब्ल्यूटी के तहत भारत पश्चिमी नदियों से 3.6 मिलियन एकड़ पानी का संग्रह कर सकता है. इन नदियों के पानी का सिंचाई के लिए उपयोग करने के अलावा, भारत इन नदियों पर जितनी चाहे उतनी जलविद्युत परियोजनाएं भी बना सकता है.

उन्होंने कहा कि भारत द्वारा आईडब्ल्यूटी को स्थगित रखने के साथ, नई दिल्ली पाकिस्तान को सूचित किए बिना सिंधु नदी प्रणाली पर अपनी परियोजनाओं को आगे बढ़ा सकता है. संधि के निलंबन से भारत को पाकिस्तान को पूर्व सूचना दिए बिना बुनियादी ढांचागत परियोजनाएं और रखरखाव गतिविधियां, जैसे जलाशय फ्लशिंग, शुरू करने की क्षमता मिलती है, जैसा कि पहले जरूरी था. यह परिचालन लचीलापन भारत की जलविद्युत पहलों और बाढ़ नियंत्रण उपायों के साथ-साथ सिंचाई प्रणालियों के विकास को गति दे सकता है.

सिन्हा ने कहा कि, अगर रणबीर नहर का विस्तार किया जाता है, तो चेनाब नदी से पानी का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के कृषि क्षेत्र को प्रभावित करेगा. त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (AIBP) और PMKSY (प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना) जैसी केंद्रीय योजनाओं के तहत रणबीर नहर का नवीनीकरण और आधुनिकीकरण के कई चरणों से गुजरना पड़ा है.

इन प्रयासों में नहर के तल से गाद निकालने और लाइनिंग, हेड रेगुलेटर का आधुनिकीकरण, जल द्वारों का स्वचालन और पानी के नुकसान को कम करने और समान वितरण में सुधार पर ध्यान केंद्रित किया गया है.

इसे कम शब्दों में समझे तो, रणबीर नहर हिमालय की तलहटी में प्रारंभिक हाइड्रोलिक इंजीनियरिंग का एक प्रमाण है और जम्मू की कृषि अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनी हुई है. इसकी ऐतिहासिक विरासत, तकनीकी डिजाइन और सामाजिक-आर्थिक महत्व इसे जम्मू और कश्मीर में सबसे महत्वपूर्ण सिंचाई परिसंपत्तियों में से एक बनाते हैं. निरंतर आधुनिकीकरण और पर्यावरण प्रबंधन के साथ, यह आने वाले दशकों तक क्षेत्र की सेवा कर सकता है.

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नई दिल्ली: 22 अप्रैल को पहलगाम आतंकवादी हमले और भारत द्वारा सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) को निलंबित करने के बाद बढ़ते तनाव के बीच, एक प्रमुख सिंचाई परियोजना जम्मू और कश्मीर में सरकार की नई विकास रणनीति का एक प्रमुख स्तंभ बनकर उभरी है.

योजना यह है कि ऐतिहासिक रणबीर नहर की लम्बाई 60 किलोमीटर से बढ़ाकर 120 किलोमीटर की जाए, जिसका उद्देश्य न केवल जम्मू के कृषि क्षेत्र में सिंचाई को बढ़ावा देना है, बल्कि चिनाब नदी के जल पर संप्रभु नियंत्रण को फिर से स्थापित करना भी है, जो लंबे समय से भारत-पाकिस्तान जल-बंटवारा समझौते के तहत विनियमित है.

सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने ईटीवी भारत को बताया कि, नहर में 1400 क्यूसेक की पूरी क्षमता से पानी बह रहा है, लेकिन सरकार की सहमति से इसकी क्षमता बढ़ाई जा सकती है.

अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि, नहर के आसपास ज़मीन उपलब्ध है, जिसका इस्तेमाल करके इसकी क्षमता बढ़ाई जा सकती है, लेकिन इससे बड़े पैमाने पर किसान समुदाय परेशान होंगे. उन्होंने कहा कि, सरकार को या तो मौजूदा नहर के साथ-साथ नई नहर बनाकर या पानी को मोड़ने के लिए बड़ी पाइपों का इस्तेमाल करके रणनीति बनानी होगी, ताकि रणबीर नहर का कामकाज बाधित न हो.

पिछले महीने पहलगाम आतंकी हमले के मद्देनजर सिंधु जल संधि को स्थगित रखने के भारत के फैसले से पाकिस्तान को कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए.

वास्तव में देखा जाए तो, पिछले साल ही भारत ने पाकिस्तान को यह कहते हुए चेतावनी दी थी कि 1960 में संधि पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद से भू-राजनीतिक और पर्यावरणीय परिवर्तनों में हुए मूलभूत परिवर्तनों को देखते हुए सिंधु जल संधि की शर्तों पर फिर से बातचीत होने तक दोनों पक्षों के बीच कोई और बातचीत नहीं होगी.

इस अल्टीमेटम के कुछ सप्ताह बाद, पाकिस्तान ने सितंबर 2024 में जवाब दिया कि वह सिंधु जल संधि पर फिर से बातचीत करने को तैयार है. पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की तत्कालीन प्रवक्ता मुमताज जहरा बलूच ने इस्लामाबाद में मीडिया ब्रीफिंग के दौरान कहा था, "सिंधु जल संधि एक महत्वपूर्ण संधि है जिसने पिछले कई दशकों में पाकिस्तान और भारत दोनों की अच्छी सेवा की है."

उन्होंने कहा "हमारा मानना ​​है कि यह जल बंटवारे पर द्विपक्षीय संधियों का स्वर्णिम मानक है और पाकिस्तान इसके कार्यान्वयन के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है. हम उम्मीद करते हैं कि भारत भी संधि के प्रति प्रतिबद्ध रहेगा."

हालांकि, 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पाकिस्तान समर्थित आतंकी हमले के बाद हालात नाटकीय रूप से बदल गए. पहलगाम आतंकी हमले में 25 पर्यटकों समेत 26 निर्दोष लोगों की जान चली गई.

हमले के एक दिन बाद 23 अप्रैल को, सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (CCS) ने पाकिस्तान के खिलाफ पांच कूटनीतिक कदम उठाने का फैसला किया, जिनमें से एक IWT को स्थगित रखना भी शामिल था.

विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने सीसीएस की बैठक के बाद मीडिया ब्रीफिंग के दौरान कहा कि, 1960 की सिंधु जल संधि तत्काल प्रभाव से स्थगित रहेगी, जब तक कि पाकिस्तान विश्वसनीय और अपरिवर्तनीय रूप से सीमा पार आतंकवाद के लिए अपने समर्थन को त्याग नहीं देता.

पाकिस्तान ने जवाब में कहा था कि सिंधु जल संधि को स्थगित रखना भारत द्वारा 'युद्ध की कार्रवाई' के रूप में माना जाएगा. उसके बाद 6 और 7 मई की मध्यरात्रि को भारत ने पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में पाकिस्तान और पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में आतंकी ठिकानों को निशाना बनाते हुए ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया.

10 मई को पाकिस्तान के सैन्य संचालन महानिदेशक (DGMO) द्वारा हॉटलाइन पर अपने भारतीय समकक्ष को शांति की अपील करने के बाद संघर्ष विराम हुआ.

हालांकि, भारत आईडब्ल्यूटी को स्थगित रखने के अपने संकल्प पर अडिग रहा. 12 मई को नेशनल लेवल पर प्रसारित अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि, "भारत का रुख बिल्कुल स्पष्ट है... आतंक और बातचीत एक साथ नहीं चल सकते... आतंक और व्यापार एक साथ नहीं चल सकते... पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते.

अगले दिन, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने नियमित मीडिया ब्रीफिंग के दौरान भारत के रुख को दोहराते हुए कहा कि आईडब्ल्यूटी को तब तक स्थगित रखा जाएगा, जब तक कि, पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद के लिए अपने समर्थन को विश्वसनीय और अपरिवर्तनीय रूप से त्याग नहीं देता.

साथ ही, उन्होंने कहा कि, कृपया यह भी ध्यान दें कि जलवायु परिवर्तन और जनसांख्यिकीय बदलावों और तकनीकी परिवर्तनों ने ज़मीन पर भी नई वास्तविकताएँ पैदा की हैं.

वहीं अब, रिपोर्ट्स बताती हैं कि पाकिस्तान के जल संसाधन मंत्रालय के सचिव सैयद अली मुर्तजा ने भारत के जल शक्ति मंत्रालय की सचिव देबाश्री मुखर्जी को पत्र लिखकर इस निर्णय पर पुनर्विचार करने को कहा है, जिसमें इस तथ्य को ध्यान में रखा गया है कि पाकिस्तान में लोग सिंधु जल संधि द्वारा विनियमित जल पर निर्भर हैं.

भारत ने अपनी ओर से पत्र में पाकिस्तान के इस दावे को खारिज कर दिया कि, सिंधु जल संधि को स्थगित रखना अवैध है. क्या भारत कानूनी रूप से सिंधु जल संधि को स्थगित रख सकता है? इसे समझने के लिए सिंधु जल संधि के डिटेल में जाना होगा.

सिंधु नदी सिस्टम, दुनिया की सबसे बड़ी नदी प्रणालियों में से एक है, जो चीन, भारत और पाकिस्तान से होकर बहती है. इसमें छह नदियां शामिल हैं, सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज.

1947 में ब्रिटिश भारत के विभाजन के बाद, दो नए राष्ट्रों, भारत और पाकिस्तान ने इन नदियों के नियंत्रण और उपयोग को लेकर खुद को असमंजस में पाया. वह इसलिए क्योंकि अधिकांश नदियां भारत में उत्पन्न हुईं, लेकिन नीचे की ओर पाकिस्तान में बहती थीं. 1948 में, भारत ने पूर्वी नदियों से पाकिस्तान में पानी के प्रवाह को कुछ समय के लिए रोक दिया, जिससे औपचारिक समझौते की जरूरत बढ़ गई.

संघर्ष से बचने और समान वितरण सुनिश्चित करने के लिए, विश्व बैंक ने मध्यस्थता करने के लिए कदम बढ़ाया. लगभग एक दशक की बातचीत के बाद, 19 सितंबर, 1960 को तत्कालीन भारतीय प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू, पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान और विश्व बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष यूजीन आर ब्लैक ने मध्यस्थ के रूप में सिंधु जल समझौते (IWT) पर हस्ताक्षर किए.

संधि के तहत तीन पूर्वी नदियों, ब्यास, रावी और सतलुज के जल पर नियंत्रण भारत को दिया गया है, जबकि तीन पश्चिमी नदियों सिंधु, चिनाब और झेलम के जल पर नियंत्रण पाकिस्तान के पास है. यह संधि पाकिस्तान को आवंटित पश्चिमी नदियों और भारत को आवंटित पूर्वी नदियों के उपयोग के बारे में दोनों देशों के बीच सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए एक सहकारी तंत्र स्थापित करती है.

संधि की प्रस्तावना में सद्भावना, मित्रता और सहयोग की भावना से सिंधु नदी प्रणाली से पानी के इष्टतम उपयोग में प्रत्येक देश के अधिकारों और दायित्वों को मान्यता दी गई है. संधि भारत को पश्चिमी नदी के पानी का सीमित सिंचाई उपयोग और असीमित गैर-उपभोग्य उपयोग जैसे कि बिजली उत्पादन, नौवहन, संपत्ति की आवाजाही और मछली पालन के लिए उपयोग करने की अनुमति देती है.

संधि के तहत, एक स्थायी सिंधु आयोग की स्थापना की गई थी. आयोग, जिसमें प्रत्येक देश से एक आयुक्त होता है, सहकारी तंत्र की देखरेख करता है और यह सुनिश्चित करता है कि दोनों देश संधि से उभरने वाले असंख्य मुद्दों पर चर्चा करने के लिए सालाना (वैकल्पिक रूप से भारत और पाकिस्तान में) मिलते हैं.

इस संधि को छह दशकों से भी अधिक समय तक बरकरार रखा गया है. कई युद्धों और भारत और पाकिस्तान के बीच भारी तनाव के दौर से भी यह संधि बची रही है. हालांकि, हाल के सालों में, पानी के उपयोग, बांध निर्माण और संधि के क्रियान्वयन को लेकर कई विवादों ने इसे एक बार फिर सुर्खियों में ला दिया है.

अब, जम्मू में रणबीर नहर की लंबाई बढ़ाने के भारत के फैसले को IWT के उल्लंघन के रूप में नहीं देखा जा सकता है क्योंकि नई दिल्ली ने संधि को स्थगित रखने का फैसला किया है.

रणबीर नहर जम्मू और कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश के जम्मू क्षेत्र में सबसे पुरानी और सबसे महत्वपूर्ण सिंचाई परियोजनाओं में से एक है. चिनाब नदी से प्राप्त यह नहर जम्मू के उपजाऊ मैदानों की सिंचाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जो इस क्षेत्र की कृषि अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देती है.

रणबीर नहर का निर्माण महाराजा रणबीर सिंह (1856-1885) के शासनकाल के दौरान किया गया था, जो जम्मू और कश्मीर की तत्कालीन रियासत के शासक थे. इसका नाम उनके सम्मान में रखा गया था और यह क्षेत्र में संगठित सिंचाई बुनियादी ढांचे के शुरुआती प्रयासों को दर्शाता है.

इस नहर का निर्माण ब्रिटिश सिंचाई विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में किया गया था, जिसमें उत्तर भारत, विशेष रूप से पंजाब में नहर प्रणालियों के पारंपरिक मॉडल का पालन किया गया था. मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस के वरिष्ठ फेलो और ट्रांसबाउंड्री जल मुद्दों पर एक प्रमुख टिप्पणीकार उत्तम कुमार सिन्हा के अनुसार, भारत को IWT के प्रावधानों के आधार पर रणबीर नहर का विस्तार करने का पूरा अधिकार है.

भारत को पश्चिमी नदियों के पानी का उपयोग करके जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के केंद्र शासित प्रदेशों में लगभग 13.4 लाख एकड़ तक सिंचाई करने की अनुमति है. हालांकि, भारत ने केवल लगभग 6.42 लाख एकड़ के लिए सिंचाई बुनियादी ढांचा विकसित किया है, जो महत्वपूर्ण अप्रयुक्त क्षमता को दर्शाता है.

सिन्हा ने कहा कि, आईडब्ल्यूटी के तहत भारत पश्चिमी नदियों से 3.6 मिलियन एकड़ पानी का संग्रह कर सकता है. इन नदियों के पानी का सिंचाई के लिए उपयोग करने के अलावा, भारत इन नदियों पर जितनी चाहे उतनी जलविद्युत परियोजनाएं भी बना सकता है.

उन्होंने कहा कि भारत द्वारा आईडब्ल्यूटी को स्थगित रखने के साथ, नई दिल्ली पाकिस्तान को सूचित किए बिना सिंधु नदी प्रणाली पर अपनी परियोजनाओं को आगे बढ़ा सकता है. संधि के निलंबन से भारत को पाकिस्तान को पूर्व सूचना दिए बिना बुनियादी ढांचागत परियोजनाएं और रखरखाव गतिविधियां, जैसे जलाशय फ्लशिंग, शुरू करने की क्षमता मिलती है, जैसा कि पहले जरूरी था. यह परिचालन लचीलापन भारत की जलविद्युत पहलों और बाढ़ नियंत्रण उपायों के साथ-साथ सिंचाई प्रणालियों के विकास को गति दे सकता है.

सिन्हा ने कहा कि, अगर रणबीर नहर का विस्तार किया जाता है, तो चेनाब नदी से पानी का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के कृषि क्षेत्र को प्रभावित करेगा. त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (AIBP) और PMKSY (प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना) जैसी केंद्रीय योजनाओं के तहत रणबीर नहर का नवीनीकरण और आधुनिकीकरण के कई चरणों से गुजरना पड़ा है.

इन प्रयासों में नहर के तल से गाद निकालने और लाइनिंग, हेड रेगुलेटर का आधुनिकीकरण, जल द्वारों का स्वचालन और पानी के नुकसान को कम करने और समान वितरण में सुधार पर ध्यान केंद्रित किया गया है.

इसे कम शब्दों में समझे तो, रणबीर नहर हिमालय की तलहटी में प्रारंभिक हाइड्रोलिक इंजीनियरिंग का एक प्रमाण है और जम्मू की कृषि अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनी हुई है. इसकी ऐतिहासिक विरासत, तकनीकी डिजाइन और सामाजिक-आर्थिक महत्व इसे जम्मू और कश्मीर में सबसे महत्वपूर्ण सिंचाई परिसंपत्तियों में से एक बनाते हैं. निरंतर आधुनिकीकरण और पर्यावरण प्रबंधन के साथ, यह आने वाले दशकों तक क्षेत्र की सेवा कर सकता है.

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