नई दिल्ली: लैटिन अमेरिका और कैरिबियन देशों के साथ भारत के बढ़ते संबंध वैश्विक साझेदारी में रणनीतिक बदलाव के संकेत दे रहे हैं. भारत इन देशों के साथ बॉयोफ्यूल से लेकर लीथियम तक का लेनदेन बढ़ा रहा है. व्यापार और टेक्नोलॉजी की दिशा में ये गठबंधन अब रणनीतिक बदलाव की ओर इशारा कर रहा है.
लैटिन अमेरिका और कैरिबियन (एलएसी) क्षेत्र के साथ भारत अपने संबंधों को तेजी से बढ़ा रहा है. साथ ही इस क्षेत्र के सहयोग से आर्थिक साझेदारी को भी मजबूत कर रहा है. ऊर्जा सुरक्षा और डिजिटल परिवर्तन पर जोर दे रहा है.
नई दिल्ली में बुधवार को 10वें रायसीना डायलॉग में विदेश राज्य मंत्री पबित्रा मार्गेरिटा ने वैश्विक दक्षिण से संबंधों को और मजबूत करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता दोहराई है.
मार्गेरिटा ने कहा, भारत की वैश्विक रणनीति में एलएसी क्षेत्र का एक खास मुकाम है. इसके लिए हम सब की आकांक्षाएं और प्रतिबद्धताएं एक जैसी हैं. और ये सब विकासशील देशों की जरूरतों का प्रतिनिधित्व करती हैं.
पबित्रा मार्गेरिटा की टिप्पणियों ने इस बात को पुख्ता कर दिया कि भारत और एलएसी के बीच प्रौद्योगिकी, व्यापार और सतत विकास ने मजबूत गठजोड़ बना लिया है.
उन्होंने कहा कि भारत और मर्कोसुर (MERCOSUR) के बीच तरजीही व्यापार समझौते के दायरे को बढ़ाने में दिलचस्पी है. वहीं भारत, ब्राज़ील और अर्जेंटीना का 5वाँ सबसे बड़ा बिजनेस पार्टनर है. साथ ही लीथियम संसाधनों को लेकर भारत ने अर्जेंटीना के साथ एक समझौते पर करार किए हैं. इसके तहत भारत ने अर्जेंटीना के 5 लीथियम ब्लॉकों से लीथियम निकालने को लेकर काम लीज पर ले लिया है.
गौर करें तो दक्षिणी साझा बाज़ार जिसे आमतौर पर स्पेनिश में MERCOSUR और पुर्तगाली में MERCOSUL के नाम से जाना जाता है. यह एक दक्षिण अमेरिकी व्यापार ब्लॉक है. इसकी स्थापना साल 1991 में असुनसियन की संधि और 1994 में ओरो प्रेटो के प्रोटोकॉल के जरिए की गई थी. इस संगठन के अर्जेंटीना, बोलीविया, ब्राज़ील, पैराग्वे और उरुग्वे पूर्णकालिक सदस्य हैं. इस ऑर्गेनाइजेशन का वेनेजुएला एक पूर्णकालिक सदस्य है, मगर दिसंबर 2016 से इसे सस्पेंड कर दिया गया है. वहीं चिली, कोलंबिया, इक्वॉडोर, गुयाना, पनामा, पेरू और सूरीनाम इस संगठन के सहयोगी देश हैं.
इसके साथ ही पबित्रा ने ऊर्जा क्षेत्र में भारत और लैटिन अमेरिकी देशों को आपसी सहयोग बढ़ाने पर पर भी जोर दिया. उन्होंने कहा कि भारत लैटिन अमेरिका के साथ तेल, प्राकृतिक गैस और खनिजों के समृद्ध भंडारों के साथ ऊर्जा सुरक्षा और विविधीकरण के लक्ष्य को आगे बढ़ा सकता है. साथ ही इन देशों के साथ भारत का जैव ईंधन और इथेनॉल उत्पादन में सहयोग टिकाऊ होगा और नए रास्ते खुलेंगे.
मंत्री पबित्रा ने इस बात पर भी जोर दिया कि किस तरह से एलएसी देश भारत के नेतृत्व वाले ग्लोबल संगठनों में शामिल हुए हैं. इन सहयोगी संगठनों में अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए), आपदा रोधी अवसंरचना गठबंधन (सीडीआरआई) और वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (जीबीए) शामिल है.
मार्गेरिटा ने बताया कि भारत की डिजिटल नीति भी इन देशों के साथ भारत के एकीकरण प्रयासों को अवसर प्रदान करती है. इस क्षेत्र के लोगों ने भारतीय फिनटेक नवाचारों को अपनाना शुरू कर दिया है. इसी कड़ी में त्रिनिदाद और टोबैगो एकीकृत भुगतान इंटरफ़ेस यानी UPI को अपनाने वाला पहला कैरिबियन समुदाय (CARICOM) का देश बन गया है. इसी तरह की कोशिश गुयाना, पेरू, उरुग्वे और जमैका में भी चल रही है. इस पहल से वित्तीय समावेशन और सीमा पार लेनदेन को काफी मजबूती मिलेगी.
मार्गेरिटा ने बताया कि व्यापार और निवेश के अलावा भारत के विकास सहायता कार्यक्रमों ने रफ्तार पकड़ ली है. इसके तहत गुयाना को दो विमानों की आपूर्ति के लिए 23.37 मिलियन डॉलर की ऋण सहायता दी गई. इसके साथ ही भारत निकारागुआ में 2026 तक पूरा होने वाले बिजली पारेषण बुनियादी ढांचा, सूरीनाम, डोमिनिकन रिपब्लिक, त्रिनिदाद और टोबैगो, सेंट किट्स और नेविस में छोटे और मध्यम उद्यमों यानी एसएमई के लिए फंडिंग कर रहा है. ये पहल इंडिया और एलएसी के देशों के आर्थिक विविधीकरण को गहरी मजबूती दे रहा है.
रायसीना डायलॉग में ‘डेस्टिनी या डेस्टिनेशन: कल्चर, कनेक्टिविटी एंड टूरिज्म’ विषय पर पैनल चर्चा से पहले मार्गेरिटा ने कहा कि भारत मानता है कि न्यायपूर्ण और समावेशी व्यवस्था बनाने के लिए विकासशील देशों के साथ मजबूत साझेदारी बनाना जरूरी है. इसके लिए लैटिन अमेरिकी और कैरिबियन (LAC) देश हमारे वैश्विक प्रयासों में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं. इसके जरिए इनके साथ हम समान आकांक्षाओं को साझा करते हैं. साथ ही एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था का समर्थन करते है. इन प्रयासों से वैश्विक दक्षिण देशों की जरूरतें पूरी होती हैं.
इससे पहले मार्गेरिटा ने सीआईआई यानी भारतीय उद्योग परिसंघ द्वारा आयोजित 10वें भारत-एलएसी सम्मेलन को भी संबोधित किया. इसमें उन्होंने इन देशों के साथ पारस्परिक रूप से लाभकारी आर्थिक गठबंधन के लिए एक रोडमैप की रूपरेखा प्रस्तुत की. साथ ही वैश्विक दक्षिण में एक प्रमुख भागीदार के रूप में इस क्षेत्र के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को भी जोरशोर से दोहराया.
मार्गेरिटा ने हाल ही में उरुग्वे, बहामास, बारबाडोस और निकारागुआ की अपनी यात्रा का जिक्र करते हुए कहा कि भौतिक दूरी के बावजूद एलएसी के ये देश भारत के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध हैं. मंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि हाल के दिनों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एलएसी के साथ भारत का जुड़ाव काफी बढ़ा है. साथ ही उन्होंने इस बात पर बल दिया कि भारत इन देशों के साथ व्यापार, प्रौद्योगिकी और कूटनीतिक पहुंच को अभूतपूर्व स्तर तक पहुंचने के लिए तैयार है.
बीते साल गुयाना में आयोजित द्वितीय भारत-कैरिकॉम शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी ने इन देशों के साथ सहयोग के लिए 7 प्रमुख क्षेत्रों की रूपरेखा प्रस्तुत की थी. इन सहयोग के सात क्षेत्रों में क्षमता निर्माण, कृषि और खाद्य सुरक्षा, नवीकरणीय ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन और नवाचार का उल्लेख किया था. साथ ही प्रौद्योगिकी और व्यापार, क्रिकेट और सांस्कृतिक आदान-प्रदान, समुद्री अर्थव्यवस्था और समुद्री सुरक्षा के साथ ही स्वास्थ्य सेवा और फॉर्मास्यूटिकल्स क्षेत्र को शामिल किया था.
केंद्रीय राज्य मंत्री मार्गेरिटा ने जोर देकर कहा कि ये प्राथमिकताएं भारत और एलएसी देशों को कैरिकॉम से आगे ले जाएंगी. इसके साथ ही व्यापक भारत-एलएसी जुड़ाव के लिए रणनीतिक खाका भी पेश कर रही हैं. इसके तहत भारत और एलएसी ने 2027-28 तक 100 बिलियन डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार का लक्ष्य तय कर रखा है. हालांकि ये टार्गेट मौजूदा 50 बिलियन डॉलर से काफी अधिक है. ये समझौते ऐसे ऐसे दौर में हो रहा है जब वैश्विक आर्थिक अस्थिरता और बढ़ती संरक्षणवादी नीतियों से लगातार चुनौतियां मिल रही हैं.
मार्गेरिटा ने कहा कि कोविड-19 की विभीषिका के बाद आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने पर जोर देते हुए दोहराया कि हमें आपसी विकास के लिए व्यापार और निवेश बढ़ाने के लिए समझौते करने की आवश्यकता है. उन्होंने कहाकि सोमवार का दिन एलएसी क्षेत्र के साथ भारत के मजबूत संबंधों पर केंद्रित रहा. पबित्रा ने कहा कि एलएसी क्षेत्र के साथ भारत का जुड़ाव बढ़ने के एक नहीं कई कारण हैं.
भारत और एलएसी देशों के संबंधों को लेकर आईएसएस के निदेशक ऐश नारायण रॉय ने ईटीवी भारत को बताया कि कैरेबियाई देशों में पहले से ही काफी संख्या में भारतीय प्रवासी होने से उनके साथ हमारे मजबूत संबंध हैं. लेकिन लैटिन अमेरिकी देशों के साथ भारत के संबंध उस मुकाम पर नहीं हैं, जितनी होनी चाहिए.
इसी कड़ी में रॉय ने बताया कि हमारे पड़ोसी मुल्क चीन ने बीआरआई यानी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव निवेशों और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के इन क्षेत्रों के देशों के दौरों के बाद लैटिन अमेरिका में काफी प्रगति की है.
रॉय ने कहा कि इसलिए, आज चीन, लैटिन अमेरिकी देशों में एक अलग रोल में है. मगर अब भारत को एहसास हो गया है कि उसे इस क्षेत्र में एक उदार शक्ति के रूप में देखा जा रहा है. उन्होंने कहा कि इसको लेकर नई दिल्ली ने बहुत सारे जमीनी काम किए हैं. जिनका फायदा मिलेगा. इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए अब द्विपक्षीय यात्राओं का दौर बढ़ गया है. रॉय ने ये भी माना कि इसको लेकर भारत की ओर से उस क्षेत्र के देशों में प्रधानमंत्री स्तर पर द्विपक्षीय यात्राएं होनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक ही दौरे में उस क्षेत्र के कई देशों के द्विपक्षीय दौरे पर जा सकते हैं. गौर करें तो एलएसी के देश सहयोग और मजबूत संबंधों को लेकर भारत को काफी पसंद करते हैं. वो कहते हैं कि इन संबंधों को और मजबूती देने के लिए नई दिल्ली को बड़े प्रयास करने होंगे.
रॉय ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बताया कि दक्षिण अमेरिका के लिए भारत को एक समग्र साझा विदेश नीति नहीं अपनानी चाहिए, बल्कि क्षेत्रीय नीतियों का संयोजन अपनाना चाहिए.
मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनॉलिसिस के रिसर्च फेलो सौरभ मिश्रा ने ईटीवी भारत को बताया कि आज भारत एलएसी क्षेत्र में अन्य देशों की बराबरी करने में लगा है. यहां के सप्लाई चेन को सुरक्षित करने में भारत का भी अपना बड़ा हित है.
सौरभ मिश्रा ने यह भी बताया कि भारत एलएसी क्षेत्र में अपने विनिर्माण सेक्टर को बढ़ाना चाहता है. इस मकसद के लिए भारत एलएसी क्षेत्र में उपलब्ध संसाधनों को लेकर काम करना चाहता है.
उन्होंने कहा कि भारत और एलएसी देशों का ये संबंध मात्र तात्कालिक लाभ के लिए नहीं है, बल्कि इन संबंधों को भविष्य को ध्यान में रखकर विकसित किया जा रहा है. उन्होंने उम्मीद जताई कि है कि भारत अब से इस संबंध को निरंतर गति देगा.
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