नई दिल्ली: मालदीव ने कथित तौर पर चीन के दक्षिण चीन सागर समुद्र विज्ञान संस्थान (SCSIO) के साथ 19 फरवरी, 2025 को हस्ताक्षरित एक नए समझौते के तहत चीनी समुद्री रिसर्च जहाजों को अपने क्षेत्रीय जल में प्रवेश की अनुमति दे दी है. मालदीव के इस कदम से नई दिल्ली में रणनीतिक चिंताएं बढ़ने की संभावना जताई जा रही है.
दोनों देशों के बीच वैज्ञानिक सहयोग का विस्तार करने वाला यह सौदा ऐसे समय में हुआ है, जब भारत हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में चीन के बढ़ते प्रभाव को लेकर लगातार चिंतित है. आधिकारिक तौर पर पर्यावरण अनुसंधान और समुद्री संरक्षण के लिए साझेदारी के रूप में तैयार किए गए इस समझौते से मालदीव के जल में चीनी जहाजों की मौजूदगी संभावित दोहरे उपयोग के अनुप्रयोगों, विशेष रूप से समुद्री सुरक्षा और खुफिया जानकारी जुटाने के क्षेत्र में आशंकाओं को जन्म देगी.
मालदीव के समाचार पोर्टल Raajje.mv की एक रिपोर्ट को माने तो, मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू ने हिंद महासागर द्वीपसमूह राष्ट्र के लोगों को समुद्री संसाधनों तक पहुंच के उनके अधिकार का आश्वासन दिया है. हालांकि, माले और बीजिंग के बीच हस्ताक्षरित समझौतों में पारदर्शिता की कमी को देखते हुए इस मामले पर दोबारा विचार करने की आवश्यकता है.
रिपोर्ट में कहा गया है, "पारदर्शिता का वादा करके सत्ता में आई सरकार ने अभी तक चीन की शोध गतिविधियों के दायरे के बारे में पूरी जानकारी नहीं दी है." यहां यह उल्लेखनीय है कि भारत ने दक्षिण हिंद महासागर के जलक्षेत्र में चीनी जहाजों के आने का कड़ा विरोध किया है. नई दिल्ली दक्षिण हिंद महासागर जलक्षेत्र को अपने प्रभाव क्षेत्र के अंतर्गत मानता है.
पिछले सप्ताह, यह बताया गया था कि मुइज्जू सरकार हिंद महासागर में मालदीव के मछुआरों के जहाजों पर मछली एकत्रीकरण उपकरणों (FAD) की नियुक्ति के संबंध में चीन के साथ चर्चा कर रही है. रिपोर्टों ने सुझाव दिया कि ये उपकरण समुद्र से रासायनिक और भौतिक डेटा एकत्र करेंगे, साथ ही मछलियों की गतिविधियों पर नजर रखेंगे. Raajje.mv की रिपोर्ट में कहा गया है, मुइज्जू प्रशासन ने चीन के साथ ये चर्चाएं ऐसे समय में की हैं जब मालदीव का मछली पकड़ने का उद्योग नीचे की ओर जा रहा है.
हालांकि, मछली पालन और महासागर संसाधन मंत्रालय ने बैठक के बारे में विशिष्ट विवरण का खुलासा नहीं किया है. उन्होंने कहा है कि चर्चा मुख्य रूप से सहयोग को मजबूत करने पर केंद्रित थी. भारत लगातार हिंद महासागर क्षेत्र में चीनी अनुसंधान जहाजों की मौजूदगी को लेकर अपनी आशंकाएं व्यक्त करता रहा है.
बता दें कि, जियांग यांग होंग 03 जैसे एडवांस चीनी अनुसंधान जहाजों की तैनाती इन चिंताओं का केंद्र बिंदु रही है. चीन के बेड़े में सबसे उन्नत में से एक बताए जाने वाले इस जहाज ने 2024 की शुरुआत में मालदीव के जलक्षेत्र में एक महीना बिताया, जिससे भारतीय अधिकारियों में बेचैनी पैदा हो गई.
भारत की चिंता का मुख्य कारण ऐसी शोध गतिविधियों की दोहरी-उपयोग प्रकृति है। जबकि ये जहाज जाहिर तौर पर नागरिक समुद्री अनुसंधान करते हैं, एकत्र किए गए डेटा, जैसे कि समुद्र तल मानचित्रण और समुद्र विज्ञान संबंधी जानकारी, के महत्वपूर्ण सैन्य अनुप्रयोग हैं.
यह जानकारी पनडुब्बी नेविगेशन को बढ़ा सकती है, पनडुब्बी रोधी युद्ध क्षमताओं में सुधार कर सकती है और रणनीतिक नौसैनिक तैनाती की जानकारी दे सकती है। चीन के अपने जल क्षेत्र से परे व्यापक समुद्री तल मानचित्रण प्रयासों को नौसैनिक युद्ध में रणनीतिक बढ़त हासिल करने के प्रयासों के रूप में देखा गया है, जिससे भारत सहित पड़ोसी देशों में चिंता बढ़ गई है. इसके अलावा, FAD पर अनुसंधान उपकरणों की स्थापना संभावित रूप से दोहरे उद्देश्यों की पूर्ति कर सकती है.
नवंबर 2023 में मुइज्जू के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद भारत और मालदीव के बीच राजनयिक संबंधों में महत्वपूर्ण उतार-चढ़ाव आया. मुइज्जू के 'इंडिया आउट' अभियान और कथित चीन समर्थक रुख के कारण शुरू में तनाव पैदा हो गया था, लेकिन उसके बाद से रणनीतिक जुड़ाव और आपसी रियायतों के माध्यम से संबंधों में तेजी से सुधार हुआ है.
पदभार ग्रहण करने के बाद, राष्ट्रपति मुइज्जू ने मालदीव में तैनात भारतीय सैन्य कर्मियों को वापस बुलाने का अनुरोध किया, जिससे द्विपक्षीय संबंधों में तनाव पैदा हो गया. मालदीव के इस कदम को चीन की ओर झुकाव के रूप में देखा गया. खासकर भारत को दरकिनार करते हुए मुइज्जू की तुर्की और चीन की शुरुआती आधिकारिक यात्रा मालदीव के राष्ट्रपतियों द्वारा भारत को अपनी पहली राजकीय यात्रा बनाने की परंपरा से अलग था.
मालदीव के अधिकारियों द्वारा भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में अपमानजनक टिप्पणियों से स्थिति और बिगड़ गई, जिससे दोनों देशों के नागरिकों के बीच सोशल मीडिया पर टकराव हुआ.
शुरुआती तनावों के बावजूद, दोनों देशों ने संबंधों को सुधारने के महत्व को पहचाना. भारत ने मालदीव को वित्तीय सहायता दी, जिसमें 100 मिलियन डॉलर का ट्रेजरी बिल रोलओवर और 400 मिलियन डॉलर का मुद्रा विनिमय समझौता शामिल है. जिसका उद्देश्य मालदीव को स्थिर करना है. इसके अलावा, मालदीव ने भारतीय नेतृत्व का अपमान करने वाले अधिकारियों के इस्तीफे स्वीकार करके आंतरिक मुद्दों को संबोधित किया, जिससे राजनयिक संबंधों को सुधारने की इच्छा का संकेत मिला.
सुलह की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, राष्ट्रपति मुइज्जू ने पिछले साल अक्टूबर में भारत का दौरा किया. इस दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के साथ बातचीत की. चर्चाओं का समापन भारत द्वारा मालदीव के लिए 760 मिलियन डॉलर के बेलआउट की घोषणा के साथ हुआ, जिसमें 400 मिलियन डॉलर मुद्रा स्वैप और भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा प्रस्तावित 30 बिलियन रुपये (357 मिलियन डॉलर) शामिल हैं.
मालदीव का विदेशी मुद्रा भंडार सितंबर में लगभग 36 मिलियन डॉलर तक गिर गया था. ऐसे में यह यह वित्तीय सहायता मालदीव के लिए सॉवरेन डिफॉल्ट को रोकने के दिशा में महत्वपूर्ण थी. राष्ट्रपति मुइज्जू ने मालदीव के विकास में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार किया. उनका यह कदम द्विपक्षीय संबंधों में सकारात्मक बदलाव को दर्शाता है.
इन सबके मद्देनजर मालदीव द्वारा चीनी समुद्री शोध जहाजों को अपने जलक्षेत्र में प्रवेश की अनुमति देने की खबरें माले की कूटनीतिक प्राथमिकताओं पर सवाल उठाती हैं. मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान के एसोसिएट फेलो और मल्टी-पार्टी डेमोक्रेसी इन द मालदीव्स एंड द इमर्जिंग सिक्यूरिटी एनवायरनमेंट इन द इंडियन ओशन रीजन नामक पुस्तक के लेखक आनंद कुमार ने ईटीवी भारत से बातचीत की. उन्होंने कहा, मुइज्जू शुरू से ही चीन के समर्थक रहे हैं लेकिन उनके कार्यभार संभालने के बाद उनके देश पर पड़ने वाले आर्थिक दबाव के कारण वे नरम पड़ गए.
कुमार ने कहा कि मुइज्जू के लिए, आर्थिक संकट से कुछ हद तक बाहर निकलने के लिए भारत के साथ संबंधों को सुधारना एक रणनीतिक कदम था. लेकिन मुइज्जू की विदेश नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ है. हालांकि, मालदीव को चीन से भी सहायता मिलती है, इसलिए बीजिंग माले पर दबाव बनाने में सक्षम है.
उन्होंने कहा कि, यह संभव है कि मुइज्जू को चीन के सामने झुकना पड़े. यह पूछे जाने पर कि क्या मालदीव के जलक्षेत्र में चीनी जहाजों के प्रवेश की कथित अनुमति नई दिल्ली के लिए चिंता का विषय होगी, कुमार ने कहा, "हमें नहीं पता कि चीन किस तरह की जानकारी इकट्ठा करने की कोशिश कर रहा है. जाहिर है, यह भारत के लिए चिंता का विषय होगा. समुद्र विज्ञान संबंधी अध्ययनों से चीनी पनडुब्बियों की नौवहन गतिविधियों के लिए समुद्र तल के बारे में डेटा एकत्र किया जाएगा."
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