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हाइड्रो पावर के क्षेत्र में भारत और भूटान की नई उड़ान, ऊर्जा सुरक्षा को लेकर हो रहा बड़ा काम - INDIA BHUTAN HYDROPOWER COOPERATION

भारत-भूटान जलविद्युत सहयोग में पुनात्सांगछू-II यूनिट-3 खास है. इस प्रोजेक्ट से ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक स्थिरता और स्वच्छ ऊर्जा महत्वाकांक्षाओं के लिए मदद मिलेगी.

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हाइड्रो पावर के क्षेत्र में भारत और भूटान की नई उड़ान (ETV Bharat)
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By Aroonim Bhuyan

Published : March 21, 2025 at 12:55 PM IST

9 Min Read

नई दिल्ली: हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट पुनात्सांगछू-II यूनिट-3, भारत-भूटान जलविद्युत सहयोग में एक और मील का पत्थर साबित हो रहा है. ये परियोजना ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक स्थिरता और दक्षिण एशिया की स्वच्छ ऊर्जा महत्वाकांक्षाओं सहित चीजों के लिए बहुत ही खास है.

भूटानी समाचार वेबसाइट कुएनसेल ने गुरुवार को हिमालयी राज्य में भारतीय राजदूत सुधाकर दलेला के हवाले से कहा कि 19 मार्च को 1020 मेगावाट क्षमता वाली पुनात्सांगछू-II, यूनिट-3 से काम शुरू हो गया है. अब इस यूनिट के चालू होने से राजस्व पैदा करने में मदद मिलेगी. रोजगार को बढ़ावा मिलेगा. साथ ही इससे ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाने में मदद मिलेगी. ऐसा होने पर भूटान के आर्थिक विकास में काफी मदद मिलेगी. साथ ही, इस पावर प्रोजेक्ट से स्वच्छ बिजली पैदा होगी. इन सब प्रगति के बीच भारतीय ऊर्जा ग्रिड को भी मजबूती मिलेगी.

थिम्पू के भारतीय दूतावास के अनुसार, इस अवसर को खास बनाने के लिए परियोजना स्थल पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. इस समारोह में भूटान के ऊर्जा और प्राकृतिक संसाधन मंत्री ल्योनपो जेम शेरिंग, मंत्रालय में सचिव दाशो कर्मा शेरिंग, पुनात्सांगछू-II परियोजना के प्रबंध निदेशक राजेश कुमार चंदेल, परियोजना प्रबंधन टीम और भूटान की शाही सरकार के कई अधिकारी शामिल थे.

गौर करें तो बीते दिसंबर में, जलविद्युत परियोजना की 6 इकाइयों में से यूनिट 1 और 2 चालू हुई थी. इसमें प्रत्येक प्रोजेक्ट से 170-170 मेगावाट बिजली बन रही है.

बता दें कि अब तक, दोनों सरकारों ने भूटान में 4 प्रमुख जलविद्युत परियोजनाओं के विकास में साझेदारी की है, जिसमें 336 मेगावाट चुखा एचईपी, 60 मेगावाट कुरिचू एचईपी, 1020 मेगावाट ताला एचईपी और 720 मेगावाट मंगदेछु एचईपी शामिल है. इसके साथ ही दोनों देश पारस्परिक सहयोग से 1020 मेगावाट पुनात्सांगछू-II एचईपी को पूरी तरह से चालू करने की दिशा में भी काम कर रहे हैं. इस तरह से इस परियोजना के पूरा होने पर भूटान की बिजली उत्पादन क्षमता में 40 फीसदी का इजाफा होगा. इससे भूटान के विकास में काफी मदद मिलेगी.

पुनात्संगछू II प्रोजेक्ट भूटान के वांगडू फोडरंग जिले की जलविद्युत ऊर्जा उत्पादन परियोजना है. ये परियोजना भूटान की शाही सरकार और भारत सरकार के सहयोग से चल रही है. इस प्रोजेक्ट को अंतर-सरकारी समझौते के तहत पुनात्संगछू II जलविद्युत परियोजना प्राधिकरण (PHPA II) द्वारा विकसित किया जा रहा है.

PHPA-II वेबसाइट की रिपोर्ट की मानें तो ये परियोजना ₹37,778 मिलियन रुपए में बन रही है. इसका निर्धारण मार्च 2009 के मूल्य स्तर पर हुआ है. इस निर्माण के दौरान मूलधन के साथ ब्याज को भी जोड़ा जाना है. इससे पहले शुरुआती दौर में इस परियोजना की क्षमता 990 मेगावाट थी. जिसे में बाद में बढ़ाकर 1,020 मेगावाट कर दिया गया. ये प्रोजेक्ट पूरी तरह से भारत सरकार द्वारा वित्तपोषित है. इसमें भारत ने 30 प्रतिशत अनुदान के रूप में दिया है. बाकी 70 प्रतिशत बजट को 10 फीसदी वार्षिक ब्याज के तौर पर दिया गया है.

इस प्रोजेक्ट के परियोजना अध्ययन चरण के लिए सेवाएं इंजीनियरिंग और डिज़ाइन परामर्श सेवाएँ भारत की जल और विद्युत परामर्श सेवाएँ यानी WAPCOS ने प्रदान की हैं. वहीं मॉडलिंग और भू-तकनीकी इंजीनियरिंग सेवाओं के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ रॉक मैकेनिक्स यानी NIRM को अपॉइंट किया गया है.

इस परियोजना का निर्माण कार्य दिसंबर 2010 में शुरू हुआ था. इसको पूरा करने के लिए 7 साल का समय था. हालाँकि ये प्रोजेक्ट समय पर पूरा नहीं हो पाया. इसके बाद इस परियोजना को साल 2022 के अंत तक पूरा करने का टार्गेट मिला. इस पर भी ये प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो पाया. जिसके बाद इस परियोजना की समय सीमा अक्टूबर 2024 निर्धारित की गई. अब फिर इस पर काम हो रहा है. इस तरह से प्रोजेक्ट की समय सीमा कई बार बढ़ाने के बाद भी काम पूरा न हो पाने के पीछे ये तर्क दिया गया कि इस परियोजना के सामने भौगोलिक चुनौतियाँ आईं. अचानक बाढ़ आ गई. COVID-19 महामारी का काफी असर पड़ा. इसके अलावा बाँध की नींव पर एक महत्वपूर्ण कतरनी क्षेत्र के पाए जाने से इस काम में डिले हुआ.

भारत-भूटान सहयोग की ये परियोजना वांगडु ब्रिज से 20 किमी से 35 किमी नीचे की ओर वांगडु-त्सिरंग राजमार्ग के किनारे पुनात्सांगछू नदी के दाहिने ओर स्थित है. ये बांध स्थल थिम्पू से राजमार्ग के किनारे 94 किमी दूर है. इस साइट से निकटतम हवाई अड्डा पारो वहां से 125 किमी दूर है. इसके साथ ही निकटतम रेलवे स्टेशन भारत के पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे की सिलीगुड़ी-अलीपुरद्वार ब्रॉड गेज लाइन पर हासीमारा स्टेशन है. वहीं परियोजना क्षेत्र तक पश्चिम बंगाल में सिलीगुड़ी के पास बागडोगरा हवाई अड्डे और थिम्पू के पास फुएंत्शोलिंग-सेमटोखा-डोचुला से भी पहुँचा जा सकता है. इसके अलावा भूटान की दक्षिण-मध्य सीमा के पास प्रस्तावित गेलेफू स्मार्ट शहर से भी परियोजना क्षेत्र तक पहुँचा जा सकता है.

इस प्रोजेक्ट को लेकर थिम्पू स्थित भारतीय दूतावास का कहना है कि मार्च 2024 के भारत-भूटान ऊर्जा साझेदारी पर जारी संयुक्त विजन दस्तावेज के अनुसार दोनों पक्ष नई ऊर्जा परियोजना के माध्यम से अपनी साझेदारी को बढ़ाने के लिए साथ-साथ काम करते रहेंगे.

कुएन्सेल रिपोर्ट के अनुसार, राजदूत दलेला ने कहा कि भारत और भूटान के बीच जलविद्युत क्षेत्र में सहयोग दक्षता, तकनीकी नवाचार और स्थिरता को ध्यान में रखकर हो रहा है. उन्होंने कहा कि इस परियोजना के आर्थिक और तकनीकी महत्व से परे हम लोग इंडिया और भूटान के बीच अच्छे संबंधों का समारोह मनाकर जश्न मना रहे हैं.

भारत और भूटान के बीच द्विपक्षीय आर्थिक सहयोग में जलविद्युत सहयोग बहुत ही खास है. ये जलविद्युत परियोजना भूटान के लिए सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए बड़ा उत्प्रेरक भी है. वहीं जलविद्युत से होने वाला राजस्व भूटान की शाही सरकार के कुल राजस्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.

भारत और भूटान के बीच जलविद्युत क्षेत्र में चल रहा ये सहयोग साल 2006 के द्विपक्षीय सहयोग समझौते और वर्ष 2009 में हस्ताक्षरित इसके प्रोटोकॉल के तहत आता है. दूतावास की रिलीज के अनुसार इसमें उल्लिखित कुल 2136 मेगावाट की 4 जलविद्युत परियोजनाएँ भूटान में पहले से ही चल रही हैं. इन परियोजनाओं से भूटान लगातार भारत को बिजली की आपूर्ति कर रहा है. गौर करें तो अगस्त 2019 में 720 मेगावाट की मंगदेछू प्रोजेक्ट को चालू किया गया. इस प्रोजक्ट को भारत ने दिसंबर 2022 में भूटान को सौंप दिया. पुनात्संगछू-II के अलावा, 1200 मेगावाट की पुनात्संगछू-I परियोजना पर चालू है.

इस तरह भारत-भूटान के सहयोग से PHPA-II की तीसरी इकाई के चालू होने के बाद, चौथी इकाई के मई तक और अंतिम दो इकाइयों के 2025 के अंत तक चालू होने की उम्मीद जताई जा रही है.

किंग्स कॉलेज लंदन में किंग्स इंडिया इंस्टीट्यूट के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन थिंक टैंक, अध्ययन और विदेश नीति के उपाध्यक्ष हर्ष वी पंत ने ईटीवी भारत को बताया कि कुछ लोगों ने भूटान के चीन की ओर झुकाव को लेकर चिंता जताई थी. बावजूद इसके भूटान और भारत के संबंध सहज बने हुए हैं. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण उसका दीर्घकालिक पहलू है.

नई दिल्ली स्थित विकासशील देशों के लिए अनुसंधान एवं सूचना प्रणाली, आरआईएस थिंक टैंक के प्रोफेसर प्रबीर डे के कहते हैं कि यह भारत-भूटान की ये परियोजना द्विपक्षीय प्रकृति की है. ये प्रोजेक्ट कहीं से एकतरफा नहीं है.

प्रोफेसर डे ने ईटीवी भारत से कहा कि भारत बाजार मूल्य से अधिक कीमत पर भूटान से बिजली खरीद रहा है. यही कारण है कि बांग्लादेश भूटान से बिजली नहीं खरीद रहा है. वहीं बांग्लादेश की बात करें तो भारतीय ट्रांसमिशन लाइनों के माध्यम से बांग्लादेश अब नेपाल से बिजली खरीद रहा है.

अपनी बात को बढ़ाते हुए डे कहते हैं कि भारत, बांग्लादेश, भूटान और नेपाल एक ही साझा पावर ग्रिड से जुड़े हुए हैं.

डे ने ये भी बताया कि ऊर्जा को लेकर दक्षिण एशिया के देशों में अच्छा सहयोग चल रहा है. इसी कड़ी में बिम्सटेक यानी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल भारत-भूटान जलविद्युत सहयोग और ऊर्जा सुरक्षा को और मजबूत करेगा.

गौर करें कि भारत क्षेत्रीय सहयोग के मामले में बिम्सटेक संगठन को अच्छा-खासा महत्व देता है. साल 1997 में अस्तित्व में आए बिम्सटेक में बंगाल की खाड़ी के तटीय और आसपास के 7 देश शामिल हैं. इन बिम्सटेक देशों में बांग्लादेश, भूटान, भारत, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका और थाईलैंड शामिल हैं. इस समूह के देशों में कुल 1.73 बिलियन लोग रहते हैं और साल 2023 तक इसका संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद 5.2 ट्रिलियन डॉलर था.

बिम्सटेक की सदस्यता से भारत को पूर्वोत्तर भारत के माध्यम से 'पड़ोसी फर्स्ट' नीति के पालन में मदद मिल रही है. इसके जरिए भारत को पूर्वी एशिया में विस्तारित पड़ोस के साथ और अधिक जुड़ने में मदद मिली है. बिम्सटेक में भारत की सदस्यता नई दिल्ली की 'एक्ट ईस्ट' नीति के तहत काम कर रही है. इससे दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन यानी आसियान गुट के क्षेत्रीय ब्लॉक के साथ भारत के बढ़ते जुड़ाव भी पूरे हो रहे हैं. पंत कहते हैं कि इन हाइड्रो पावर प्रोजक्ट के साथ भूटान एक बड़ी उपलब्धि हासिल कर रहा है. इसके साथ ही ऊर्जा सुरक्षा एक क्षेत्रीय सुरक्षा भी है. इसे दीर्घकालिक दृष्टिकोण से बड़ा आकार दिया जा रहा है.

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भूटानी समाचार वेबसाइट कुएनसेल ने गुरुवार को हिमालयी राज्य में भारतीय राजदूत सुधाकर दलेला के हवाले से कहा कि 19 मार्च को 1020 मेगावाट क्षमता वाली पुनात्सांगछू-II, यूनिट-3 से काम शुरू हो गया है. अब इस यूनिट के चालू होने से राजस्व पैदा करने में मदद मिलेगी. रोजगार को बढ़ावा मिलेगा. साथ ही इससे ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाने में मदद मिलेगी. ऐसा होने पर भूटान के आर्थिक विकास में काफी मदद मिलेगी. साथ ही, इस पावर प्रोजेक्ट से स्वच्छ बिजली पैदा होगी. इन सब प्रगति के बीच भारतीय ऊर्जा ग्रिड को भी मजबूती मिलेगी.

थिम्पू के भारतीय दूतावास के अनुसार, इस अवसर को खास बनाने के लिए परियोजना स्थल पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था. इस समारोह में भूटान के ऊर्जा और प्राकृतिक संसाधन मंत्री ल्योनपो जेम शेरिंग, मंत्रालय में सचिव दाशो कर्मा शेरिंग, पुनात्सांगछू-II परियोजना के प्रबंध निदेशक राजेश कुमार चंदेल, परियोजना प्रबंधन टीम और भूटान की शाही सरकार के कई अधिकारी शामिल थे.

गौर करें तो बीते दिसंबर में, जलविद्युत परियोजना की 6 इकाइयों में से यूनिट 1 और 2 चालू हुई थी. इसमें प्रत्येक प्रोजेक्ट से 170-170 मेगावाट बिजली बन रही है.

बता दें कि अब तक, दोनों सरकारों ने भूटान में 4 प्रमुख जलविद्युत परियोजनाओं के विकास में साझेदारी की है, जिसमें 336 मेगावाट चुखा एचईपी, 60 मेगावाट कुरिचू एचईपी, 1020 मेगावाट ताला एचईपी और 720 मेगावाट मंगदेछु एचईपी शामिल है. इसके साथ ही दोनों देश पारस्परिक सहयोग से 1020 मेगावाट पुनात्सांगछू-II एचईपी को पूरी तरह से चालू करने की दिशा में भी काम कर रहे हैं. इस तरह से इस परियोजना के पूरा होने पर भूटान की बिजली उत्पादन क्षमता में 40 फीसदी का इजाफा होगा. इससे भूटान के विकास में काफी मदद मिलेगी.

पुनात्संगछू II प्रोजेक्ट भूटान के वांगडू फोडरंग जिले की जलविद्युत ऊर्जा उत्पादन परियोजना है. ये परियोजना भूटान की शाही सरकार और भारत सरकार के सहयोग से चल रही है. इस प्रोजेक्ट को अंतर-सरकारी समझौते के तहत पुनात्संगछू II जलविद्युत परियोजना प्राधिकरण (PHPA II) द्वारा विकसित किया जा रहा है.

PHPA-II वेबसाइट की रिपोर्ट की मानें तो ये परियोजना ₹37,778 मिलियन रुपए में बन रही है. इसका निर्धारण मार्च 2009 के मूल्य स्तर पर हुआ है. इस निर्माण के दौरान मूलधन के साथ ब्याज को भी जोड़ा जाना है. इससे पहले शुरुआती दौर में इस परियोजना की क्षमता 990 मेगावाट थी. जिसे में बाद में बढ़ाकर 1,020 मेगावाट कर दिया गया. ये प्रोजेक्ट पूरी तरह से भारत सरकार द्वारा वित्तपोषित है. इसमें भारत ने 30 प्रतिशत अनुदान के रूप में दिया है. बाकी 70 प्रतिशत बजट को 10 फीसदी वार्षिक ब्याज के तौर पर दिया गया है.

इस प्रोजेक्ट के परियोजना अध्ययन चरण के लिए सेवाएं इंजीनियरिंग और डिज़ाइन परामर्श सेवाएँ भारत की जल और विद्युत परामर्श सेवाएँ यानी WAPCOS ने प्रदान की हैं. वहीं मॉडलिंग और भू-तकनीकी इंजीनियरिंग सेवाओं के लिए नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ रॉक मैकेनिक्स यानी NIRM को अपॉइंट किया गया है.

इस परियोजना का निर्माण कार्य दिसंबर 2010 में शुरू हुआ था. इसको पूरा करने के लिए 7 साल का समय था. हालाँकि ये प्रोजेक्ट समय पर पूरा नहीं हो पाया. इसके बाद इस परियोजना को साल 2022 के अंत तक पूरा करने का टार्गेट मिला. इस पर भी ये प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो पाया. जिसके बाद इस परियोजना की समय सीमा अक्टूबर 2024 निर्धारित की गई. अब फिर इस पर काम हो रहा है. इस तरह से प्रोजेक्ट की समय सीमा कई बार बढ़ाने के बाद भी काम पूरा न हो पाने के पीछे ये तर्क दिया गया कि इस परियोजना के सामने भौगोलिक चुनौतियाँ आईं. अचानक बाढ़ आ गई. COVID-19 महामारी का काफी असर पड़ा. इसके अलावा बाँध की नींव पर एक महत्वपूर्ण कतरनी क्षेत्र के पाए जाने से इस काम में डिले हुआ.

भारत-भूटान सहयोग की ये परियोजना वांगडु ब्रिज से 20 किमी से 35 किमी नीचे की ओर वांगडु-त्सिरंग राजमार्ग के किनारे पुनात्सांगछू नदी के दाहिने ओर स्थित है. ये बांध स्थल थिम्पू से राजमार्ग के किनारे 94 किमी दूर है. इस साइट से निकटतम हवाई अड्डा पारो वहां से 125 किमी दूर है. इसके साथ ही निकटतम रेलवे स्टेशन भारत के पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे की सिलीगुड़ी-अलीपुरद्वार ब्रॉड गेज लाइन पर हासीमारा स्टेशन है. वहीं परियोजना क्षेत्र तक पश्चिम बंगाल में सिलीगुड़ी के पास बागडोगरा हवाई अड्डे और थिम्पू के पास फुएंत्शोलिंग-सेमटोखा-डोचुला से भी पहुँचा जा सकता है. इसके अलावा भूटान की दक्षिण-मध्य सीमा के पास प्रस्तावित गेलेफू स्मार्ट शहर से भी परियोजना क्षेत्र तक पहुँचा जा सकता है.

इस प्रोजेक्ट को लेकर थिम्पू स्थित भारतीय दूतावास का कहना है कि मार्च 2024 के भारत-भूटान ऊर्जा साझेदारी पर जारी संयुक्त विजन दस्तावेज के अनुसार दोनों पक्ष नई ऊर्जा परियोजना के माध्यम से अपनी साझेदारी को बढ़ाने के लिए साथ-साथ काम करते रहेंगे.

कुएन्सेल रिपोर्ट के अनुसार, राजदूत दलेला ने कहा कि भारत और भूटान के बीच जलविद्युत क्षेत्र में सहयोग दक्षता, तकनीकी नवाचार और स्थिरता को ध्यान में रखकर हो रहा है. उन्होंने कहा कि इस परियोजना के आर्थिक और तकनीकी महत्व से परे हम लोग इंडिया और भूटान के बीच अच्छे संबंधों का समारोह मनाकर जश्न मना रहे हैं.

भारत और भूटान के बीच द्विपक्षीय आर्थिक सहयोग में जलविद्युत सहयोग बहुत ही खास है. ये जलविद्युत परियोजना भूटान के लिए सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए बड़ा उत्प्रेरक भी है. वहीं जलविद्युत से होने वाला राजस्व भूटान की शाही सरकार के कुल राजस्व का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.

भारत और भूटान के बीच जलविद्युत क्षेत्र में चल रहा ये सहयोग साल 2006 के द्विपक्षीय सहयोग समझौते और वर्ष 2009 में हस्ताक्षरित इसके प्रोटोकॉल के तहत आता है. दूतावास की रिलीज के अनुसार इसमें उल्लिखित कुल 2136 मेगावाट की 4 जलविद्युत परियोजनाएँ भूटान में पहले से ही चल रही हैं. इन परियोजनाओं से भूटान लगातार भारत को बिजली की आपूर्ति कर रहा है. गौर करें तो अगस्त 2019 में 720 मेगावाट की मंगदेछू प्रोजेक्ट को चालू किया गया. इस प्रोजक्ट को भारत ने दिसंबर 2022 में भूटान को सौंप दिया. पुनात्संगछू-II के अलावा, 1200 मेगावाट की पुनात्संगछू-I परियोजना पर चालू है.

इस तरह भारत-भूटान के सहयोग से PHPA-II की तीसरी इकाई के चालू होने के बाद, चौथी इकाई के मई तक और अंतिम दो इकाइयों के 2025 के अंत तक चालू होने की उम्मीद जताई जा रही है.

किंग्स कॉलेज लंदन में किंग्स इंडिया इंस्टीट्यूट के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर और ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन थिंक टैंक, अध्ययन और विदेश नीति के उपाध्यक्ष हर्ष वी पंत ने ईटीवी भारत को बताया कि कुछ लोगों ने भूटान के चीन की ओर झुकाव को लेकर चिंता जताई थी. बावजूद इसके भूटान और भारत के संबंध सहज बने हुए हैं. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण उसका दीर्घकालिक पहलू है.

नई दिल्ली स्थित विकासशील देशों के लिए अनुसंधान एवं सूचना प्रणाली, आरआईएस थिंक टैंक के प्रोफेसर प्रबीर डे के कहते हैं कि यह भारत-भूटान की ये परियोजना द्विपक्षीय प्रकृति की है. ये प्रोजेक्ट कहीं से एकतरफा नहीं है.

प्रोफेसर डे ने ईटीवी भारत से कहा कि भारत बाजार मूल्य से अधिक कीमत पर भूटान से बिजली खरीद रहा है. यही कारण है कि बांग्लादेश भूटान से बिजली नहीं खरीद रहा है. वहीं बांग्लादेश की बात करें तो भारतीय ट्रांसमिशन लाइनों के माध्यम से बांग्लादेश अब नेपाल से बिजली खरीद रहा है.

अपनी बात को बढ़ाते हुए डे कहते हैं कि भारत, बांग्लादेश, भूटान और नेपाल एक ही साझा पावर ग्रिड से जुड़े हुए हैं.

डे ने ये भी बताया कि ऊर्जा को लेकर दक्षिण एशिया के देशों में अच्छा सहयोग चल रहा है. इसी कड़ी में बिम्सटेक यानी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल भारत-भूटान जलविद्युत सहयोग और ऊर्जा सुरक्षा को और मजबूत करेगा.

गौर करें कि भारत क्षेत्रीय सहयोग के मामले में बिम्सटेक संगठन को अच्छा-खासा महत्व देता है. साल 1997 में अस्तित्व में आए बिम्सटेक में बंगाल की खाड़ी के तटीय और आसपास के 7 देश शामिल हैं. इन बिम्सटेक देशों में बांग्लादेश, भूटान, भारत, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका और थाईलैंड शामिल हैं. इस समूह के देशों में कुल 1.73 बिलियन लोग रहते हैं और साल 2023 तक इसका संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद 5.2 ट्रिलियन डॉलर था.

बिम्सटेक की सदस्यता से भारत को पूर्वोत्तर भारत के माध्यम से 'पड़ोसी फर्स्ट' नीति के पालन में मदद मिल रही है. इसके जरिए भारत को पूर्वी एशिया में विस्तारित पड़ोस के साथ और अधिक जुड़ने में मदद मिली है. बिम्सटेक में भारत की सदस्यता नई दिल्ली की 'एक्ट ईस्ट' नीति के तहत काम कर रही है. इससे दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन यानी आसियान गुट के क्षेत्रीय ब्लॉक के साथ भारत के बढ़ते जुड़ाव भी पूरे हो रहे हैं. पंत कहते हैं कि इन हाइड्रो पावर प्रोजक्ट के साथ भूटान एक बड़ी उपलब्धि हासिल कर रहा है. इसके साथ ही ऊर्जा सुरक्षा एक क्षेत्रीय सुरक्षा भी है. इसे दीर्घकालिक दृष्टिकोण से बड़ा आकार दिया जा रहा है.

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