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दक्षिण एशिया में खून-खराबा नहीं चाहता ढाका, शांति की राह चल पड़ा बांग्लादेश! - INDIA BANGLADESH RELATION

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के विदेश सलाहकार तौहीद हुसैन ने कहा कि उनका देश दक्षिण एशिया में शांति चाहता है, कोई बड़ा संघर्ष नहीं.

Foreign Affairs Adviser Touhid Hossain.
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के विदेश सलाहकार तौहीद हुसैन. (Photo: X@BDMOFA)
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By Aroonim Bhuyan

Published : April 28, 2025 at 11:08 AM IST

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नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़े तनाव के बीच, बांग्लादेश ने दक्षिण एशिया में शांति के लिए आह्वान कर क्षेत्रीय कूटनीतिक पटल पर नई पहल की है. ऐसे में इस पर नजर रखना लाजिमी है कि शेख हसीना के बाद के दौर में भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच बांग्लादेश क्षेत्रीय शांति क्यों चाहता है.

इस तरह से देखा जाए तो हसीना के बाद भारत के साथ तनावपूर्ण संबंधों के बाद अब बांग्लादेश का शांति संदेश दक्षिण एशियाई भू-राजनीति में उसकी बदली हुई नीति को दर्शा रहा है.

गौर करें तो अगस्त 2024 में शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद से हटाए जाने के बाद नई दिल्ली और ढाका के बीच संबंध बेहद खराब हो गए हैं. इन हालातों में ढाका की अपील जितनी क्षेत्रीय स्थिरता के बारे में दिका रही है, उतनी ही दक्षिण एशियाई व्यवस्था में बदलती राजनीति में खुद को दोबारा स्थापित करने में दिखा रही है.

दक्षिण एशिया में शांति चाहता है ढाका
ढाका में रविवार को मीडिया ब्रीफिंग को संबोधित करते हुए बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के विदेश सलाहकार तौहीद हुसैन ने कहा कि उनका देश दक्षिण एशिया में शांति चाहता है, कोई बड़ा संघर्ष नहीं चाहता है.

डेली स्टार ने हुसैन के हवाले से कहा, 'बांग्लादेश के भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ अच्छे संबंध हैं। हम क्षेत्र में शांति चाहते हैं.'

मीडिया द्वारा यह पूछे जाने पर कि क्या बांग्लादेश भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता पर विचार करेगा, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के विदेश सलाहकार तौहीद हुसैन ने कहा 'इस समय, बांग्लादेश मध्यस्थता नहीं करना चाहता है. हालांकि, अगर वे चाहें, तो बांग्लादेश इस पर विचार कर सकता है.' हुसैन की ये टिप्पणी बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस के पहलगाम आतंकी हमले की कड़ी निंदा करने के बाद आई है.

यूनुस ने पीएम नरेंद्र मोदी को भेजे संदेश में कहा, 'महोदय! कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले में हुई मौतों पर मेरी गहरी संवेदनाए स्वीकार करें.' 'हम इस जघन्य कृत्य की कड़ी निंदा करते हैं. मैं आतंकवाद के खिलाफ बांग्लादेश के दृढ़ रुख की पुष्टि करता हूं.' अगस्त 2024 में पीएम शेख हसीना के अपदस्थ होने के बाद बांग्लादेश राजनीतिक अस्थिरता में डूब गया. छात्रों की क्रांति के बाद हसीना को सत्ता से हटाया गया. ये आंदोलन शासन की अधिनायकवादी शैली के खिलाफ़ बड़े पैमाने पर विद्रोह में बदलने के बाद हुई. इसी के बाद 15 साल का उनका लंबा शासन अचानक समाप्त हो गया. इसकी वजह से वहां पर एक राजनीतिक शून्य पैदा हो गया. इसके बाद बांग्लादेश में अंतरिम सककार काम कर रही है.

हसीना के बाद मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन हुआ. हसीना के भारत में शरण लेने के बाद से ही दोनों पड़ोसियों के बीच संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं, जबकि पिछले साल दिसंबर में विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने संरचित विदेश कार्यालय परामर्श के लिए ढाका का दौरा किया था. वहीं बैंकॉक में पीएम मोदी के साथ बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के चीफ एडवाइजर मोहम्मद यूनुस से मुलाकात हुई थी.

हसीना और उनके भागे सहयोगियों के खिलाफ प्रत्यर्पण का आदेश
इस बीच, बांग्लादेश के आईसीटी यानी अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने हसीना और उनके कई सहयोगियों के प्रत्यर्पण का आदेश जारी किया था. ये प्रत्यर्पण आदेश अगस्त में हुए उथल-पुथल के बाद देश छोड़कर भाग गए लोगों के खिलाफ था. वहीं हसीना के निष्कासन के बाद बांग्लादेश में कट्टरपंथी इस्लामी तत्वों का उदय हुआ. इसके कारण धार्मिक अल्पसंख्यकों खासकर हिंदुओं पर बेइंतहा जुल् ढाए गए. इसको लेकर भारत लगातार इन घटनाक्रमों पर चिंता व्यक्त करता रहा है.

फिर, इस महीने बैंकॉक में बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग पहल (बिम्सटेक) शिखर सम्मेलन के दौरान मोदी ने यूनुस के साथ बैठक की. बैठक में मोदी ने बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार पर भारत की बेचैनी को व्यक्त किया. इसके साथ ही वहां पर संसदीय लोकतंत्र की शीघ्र वापसी का भी आग्रह किया. इस बातचीत ने हसीना के बाद ढाका के रुख से भारत की बेचैनी को जाहिर किया. साथ ही दक्षिण एशिया के सबसे महत्वपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों में से एक के भविष्य के बारे में नए सवाल उठाए. इसके बाद भारत ने तीसरे देशों को बांग्लादेशी माल के लिए ट्रांसशिपमेंट सुविधाओं को भी सस्पेंड कर दिया.

इस मामले में ये साफ दिख रहा है कि ढाका में नए प्रशासन ने भारत के प्रति अधिक तटस्थ रुख अपना रखा है. इसकी वजह से नई दिल्ली के साथ संबंधों में ठंडक आई है. 15 साल के अंतराल के बाद यह बदलाव बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच राजनयिक वार्ता की बहाली में साफ दिख रहा है. इससे साफ जाहिर होता है कि बांग्लादेश भारत के साथ अपने पारंपरिक संबंधों से दूर अपने विदेशी संबंधों में विविधता लाने के लिए ढाका के इरादे को साफ-साफ दिखा रहा है.

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार की पाकिस्तान तक पहुंच अब आगे बढ़ रही है. बांग्लादेश ने इस्लामाबाद से 50,000 टन चावल आयात किया है. सीधी उड़ानें फिर से शुरू कर दी है. इसके साथ ही संयुक्त समुद्री अभ्यासों में भागीदारी सहित सैन्य संपर्क बढ़ा दिए हैं. इस तरह से पाकिस्तान के साथ जुड़े ऐतिहासिक तनाव और सुरक्षा हितों को देखते हुए भारत में चिंताएं बढ़ा दी हैं.

बता दें कि 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 पर्यटक मारे गए. भारत ने इस हमले के लिए पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों को जिम्मेदार ठहराया. इसके बाद से भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव में भारी बढ़ोतरी हुई है. इस घटना ने बांग्लादेश के पाकिस्तान के साथ नए सिरे से जुड़ाव को जांच के दायरे में लाकर खड़ा कर दिया है. फिलहाल नई दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर ढाका के कूटनीतिक खेल पर नजर रख रही है.

इस बीच पहलगाम में टेरर अटैक के बाद पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार ने रविवार से शुरू होने वाली अपनी दो दिवसीय ढाका यात्रा स्थगित कर दी है.

ढाका स्थित पाकिस्तान उच्चायोग ने देश के विदेश मंत्रालय के हवाले से कहा है कि, 'अप्रत्याशित परिस्थितियों के कारण, पाकिस्तान के उप प्रधान मंत्री और विदेश मंत्री 27-28 अप्रैल, 2025 को बांग्लादेश की यात्रा करने में असमर्थ हैं.'

बांग्लादेशी शिक्षाविद और राजनीतिक पर्यवेक्षक शरीन शाहजहां नाओमी के मुताबिक, बांग्लादेशी जनता ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर पहलगाम घटना की घोर निंदा कर रही है.

नाओमी ने ईटीवी भारत से कहा, 'कई लोग पूछ रहे हैं कि बांग्लादेश को पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंध क्यों रखने चाहिए. बांग्लादेश भर में नागरिक समाज के मेरे दोस्तों ने पहलगाम की घटना की कड़ी निंदा की है.'

नाओमी के अनुसार, पाकिस्तान के विदेश मंत्री डार ने बांग्लादेश की अपनी यात्रा इसलिए रद की, क्योंकि बांग्लादेश ऐसा नहीं चाहता था.

उन्होंने कहा, 'ढाका इस समय पाकिस्तान के साथ किसी महत्वपूर्ण घटना में शामिल होते हुए नहीं दिखना चाहता." "बांग्लादेश की सेना भी क्षेत्र में युद्ध जैसी स्थिति नहीं चाहती. हमारा देश छोटा है और हमारी अपनी समस्याएं हैं.'

नाओमी के अनुसार, हसीना के खिलाफ़ खड़े लोगों ने भी पहलगाम की घटना की भरपूर निंदा की है. उन्होंने कहा, 'इस घटना ने 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के आघात को फिर से जगा दिया है.' 'इसने लोगों को उस समय हिंदुओं और मुसलमानों के बीच किए गए विभाजन की याद दिला दी है.'

नाओमी ने कहा कि बांग्लादेश इस समय पाकिस्तान के सहयोगी के रूप में नहीं देखा जाना चाहेगा. 'लेकिन मुझे लगता है कि हम और भी कुछ कर सकते हैं. बांग्लादेश हिंसक उग्रवाद से लड़ने में भारत की मदद कर सकता है, जो क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों को प्रभावित कर रहा है.' नई दिल्ली स्थित रिसर्च एंड इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर डेवलपिंग नेशंस (आरआईएस) थिंक टैंक के प्रोफेसर प्रबीर डे ने नाओमी से सहमति जताई.

डे ने ईटीवी भारत से कहा, 'बांग्लादेश पाकिस्तान के करीब नहीं दिखना चाहता है. वे दक्षिण-पूर्व और पूर्वी एशियाई देशों के करीब दिखना चाहते हैं.' उन्होंने आगे बताया कि ये अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा दूसरी बार पदभार संभालने के बाद लगाए गए टैरिफ शासन के बाद नए घटनाक्रम की वजह से ये हो रहा है. डे ने कहा, 'ट्रम्प के टैरिफ ने बांग्लादेश के निर्यात के लिए बड़ी समस्याएं पैदा कर दी हैं.'

इस तरह से देखा जाए तो बांग्लादेश की अंतरिम सरकार अपने विदेशी संबंधों को फिर से परिभाषित करना जारी रख रही है. साथ ही क्षेत्रीय भूराजनीति में बांग्लादेश अपने को फोकस किए हुए है. इन घटनाक्रमों पर भारत की प्रतिक्रिया दक्षिण एशियाई कूटनीति और सुरक्षा को देखते हुए काफी महत्वपूर्ण है.

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इस तरह से देखा जाए तो हसीना के बाद भारत के साथ तनावपूर्ण संबंधों के बाद अब बांग्लादेश का शांति संदेश दक्षिण एशियाई भू-राजनीति में उसकी बदली हुई नीति को दर्शा रहा है.

गौर करें तो अगस्त 2024 में शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद से हटाए जाने के बाद नई दिल्ली और ढाका के बीच संबंध बेहद खराब हो गए हैं. इन हालातों में ढाका की अपील जितनी क्षेत्रीय स्थिरता के बारे में दिका रही है, उतनी ही दक्षिण एशियाई व्यवस्था में बदलती राजनीति में खुद को दोबारा स्थापित करने में दिखा रही है.

दक्षिण एशिया में शांति चाहता है ढाका
ढाका में रविवार को मीडिया ब्रीफिंग को संबोधित करते हुए बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के विदेश सलाहकार तौहीद हुसैन ने कहा कि उनका देश दक्षिण एशिया में शांति चाहता है, कोई बड़ा संघर्ष नहीं चाहता है.

डेली स्टार ने हुसैन के हवाले से कहा, 'बांग्लादेश के भारत और पाकिस्तान दोनों के साथ अच्छे संबंध हैं। हम क्षेत्र में शांति चाहते हैं.'

मीडिया द्वारा यह पूछे जाने पर कि क्या बांग्लादेश भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता पर विचार करेगा, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के विदेश सलाहकार तौहीद हुसैन ने कहा 'इस समय, बांग्लादेश मध्यस्थता नहीं करना चाहता है. हालांकि, अगर वे चाहें, तो बांग्लादेश इस पर विचार कर सकता है.' हुसैन की ये टिप्पणी बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस के पहलगाम आतंकी हमले की कड़ी निंदा करने के बाद आई है.

यूनुस ने पीएम नरेंद्र मोदी को भेजे संदेश में कहा, 'महोदय! कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले में हुई मौतों पर मेरी गहरी संवेदनाए स्वीकार करें.' 'हम इस जघन्य कृत्य की कड़ी निंदा करते हैं. मैं आतंकवाद के खिलाफ बांग्लादेश के दृढ़ रुख की पुष्टि करता हूं.' अगस्त 2024 में पीएम शेख हसीना के अपदस्थ होने के बाद बांग्लादेश राजनीतिक अस्थिरता में डूब गया. छात्रों की क्रांति के बाद हसीना को सत्ता से हटाया गया. ये आंदोलन शासन की अधिनायकवादी शैली के खिलाफ़ बड़े पैमाने पर विद्रोह में बदलने के बाद हुई. इसी के बाद 15 साल का उनका लंबा शासन अचानक समाप्त हो गया. इसकी वजह से वहां पर एक राजनीतिक शून्य पैदा हो गया. इसके बाद बांग्लादेश में अंतरिम सककार काम कर रही है.

हसीना के बाद मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन हुआ. हसीना के भारत में शरण लेने के बाद से ही दोनों पड़ोसियों के बीच संबंध तनावपूर्ण बने हुए हैं, जबकि पिछले साल दिसंबर में विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने संरचित विदेश कार्यालय परामर्श के लिए ढाका का दौरा किया था. वहीं बैंकॉक में पीएम मोदी के साथ बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के चीफ एडवाइजर मोहम्मद यूनुस से मुलाकात हुई थी.

हसीना और उनके भागे सहयोगियों के खिलाफ प्रत्यर्पण का आदेश
इस बीच, बांग्लादेश के आईसीटी यानी अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने हसीना और उनके कई सहयोगियों के प्रत्यर्पण का आदेश जारी किया था. ये प्रत्यर्पण आदेश अगस्त में हुए उथल-पुथल के बाद देश छोड़कर भाग गए लोगों के खिलाफ था. वहीं हसीना के निष्कासन के बाद बांग्लादेश में कट्टरपंथी इस्लामी तत्वों का उदय हुआ. इसके कारण धार्मिक अल्पसंख्यकों खासकर हिंदुओं पर बेइंतहा जुल् ढाए गए. इसको लेकर भारत लगातार इन घटनाक्रमों पर चिंता व्यक्त करता रहा है.

फिर, इस महीने बैंकॉक में बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग पहल (बिम्सटेक) शिखर सम्मेलन के दौरान मोदी ने यूनुस के साथ बैठक की. बैठक में मोदी ने बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार पर भारत की बेचैनी को व्यक्त किया. इसके साथ ही वहां पर संसदीय लोकतंत्र की शीघ्र वापसी का भी आग्रह किया. इस बातचीत ने हसीना के बाद ढाका के रुख से भारत की बेचैनी को जाहिर किया. साथ ही दक्षिण एशिया के सबसे महत्वपूर्ण द्विपक्षीय संबंधों में से एक के भविष्य के बारे में नए सवाल उठाए. इसके बाद भारत ने तीसरे देशों को बांग्लादेशी माल के लिए ट्रांसशिपमेंट सुविधाओं को भी सस्पेंड कर दिया.

इस मामले में ये साफ दिख रहा है कि ढाका में नए प्रशासन ने भारत के प्रति अधिक तटस्थ रुख अपना रखा है. इसकी वजह से नई दिल्ली के साथ संबंधों में ठंडक आई है. 15 साल के अंतराल के बाद यह बदलाव बांग्लादेश और पाकिस्तान के बीच राजनयिक वार्ता की बहाली में साफ दिख रहा है. इससे साफ जाहिर होता है कि बांग्लादेश भारत के साथ अपने पारंपरिक संबंधों से दूर अपने विदेशी संबंधों में विविधता लाने के लिए ढाका के इरादे को साफ-साफ दिखा रहा है.

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार की पाकिस्तान तक पहुंच अब आगे बढ़ रही है. बांग्लादेश ने इस्लामाबाद से 50,000 टन चावल आयात किया है. सीधी उड़ानें फिर से शुरू कर दी है. इसके साथ ही संयुक्त समुद्री अभ्यासों में भागीदारी सहित सैन्य संपर्क बढ़ा दिए हैं. इस तरह से पाकिस्तान के साथ जुड़े ऐतिहासिक तनाव और सुरक्षा हितों को देखते हुए भारत में चिंताएं बढ़ा दी हैं.

बता दें कि 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 पर्यटक मारे गए. भारत ने इस हमले के लिए पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों को जिम्मेदार ठहराया. इसके बाद से भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव में भारी बढ़ोतरी हुई है. इस घटना ने बांग्लादेश के पाकिस्तान के साथ नए सिरे से जुड़ाव को जांच के दायरे में लाकर खड़ा कर दिया है. फिलहाल नई दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर ढाका के कूटनीतिक खेल पर नजर रख रही है.

इस बीच पहलगाम में टेरर अटैक के बाद पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार ने रविवार से शुरू होने वाली अपनी दो दिवसीय ढाका यात्रा स्थगित कर दी है.

ढाका स्थित पाकिस्तान उच्चायोग ने देश के विदेश मंत्रालय के हवाले से कहा है कि, 'अप्रत्याशित परिस्थितियों के कारण, पाकिस्तान के उप प्रधान मंत्री और विदेश मंत्री 27-28 अप्रैल, 2025 को बांग्लादेश की यात्रा करने में असमर्थ हैं.'

बांग्लादेशी शिक्षाविद और राजनीतिक पर्यवेक्षक शरीन शाहजहां नाओमी के मुताबिक, बांग्लादेशी जनता ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर पहलगाम घटना की घोर निंदा कर रही है.

नाओमी ने ईटीवी भारत से कहा, 'कई लोग पूछ रहे हैं कि बांग्लादेश को पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंध क्यों रखने चाहिए. बांग्लादेश भर में नागरिक समाज के मेरे दोस्तों ने पहलगाम की घटना की कड़ी निंदा की है.'

नाओमी के अनुसार, पाकिस्तान के विदेश मंत्री डार ने बांग्लादेश की अपनी यात्रा इसलिए रद की, क्योंकि बांग्लादेश ऐसा नहीं चाहता था.

उन्होंने कहा, 'ढाका इस समय पाकिस्तान के साथ किसी महत्वपूर्ण घटना में शामिल होते हुए नहीं दिखना चाहता." "बांग्लादेश की सेना भी क्षेत्र में युद्ध जैसी स्थिति नहीं चाहती. हमारा देश छोटा है और हमारी अपनी समस्याएं हैं.'

नाओमी के अनुसार, हसीना के खिलाफ़ खड़े लोगों ने भी पहलगाम की घटना की भरपूर निंदा की है. उन्होंने कहा, 'इस घटना ने 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के आघात को फिर से जगा दिया है.' 'इसने लोगों को उस समय हिंदुओं और मुसलमानों के बीच किए गए विभाजन की याद दिला दी है.'

नाओमी ने कहा कि बांग्लादेश इस समय पाकिस्तान के सहयोगी के रूप में नहीं देखा जाना चाहेगा. 'लेकिन मुझे लगता है कि हम और भी कुछ कर सकते हैं. बांग्लादेश हिंसक उग्रवाद से लड़ने में भारत की मदद कर सकता है, जो क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों को प्रभावित कर रहा है.' नई दिल्ली स्थित रिसर्च एंड इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर डेवलपिंग नेशंस (आरआईएस) थिंक टैंक के प्रोफेसर प्रबीर डे ने नाओमी से सहमति जताई.

डे ने ईटीवी भारत से कहा, 'बांग्लादेश पाकिस्तान के करीब नहीं दिखना चाहता है. वे दक्षिण-पूर्व और पूर्वी एशियाई देशों के करीब दिखना चाहते हैं.' उन्होंने आगे बताया कि ये अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा दूसरी बार पदभार संभालने के बाद लगाए गए टैरिफ शासन के बाद नए घटनाक्रम की वजह से ये हो रहा है. डे ने कहा, 'ट्रम्प के टैरिफ ने बांग्लादेश के निर्यात के लिए बड़ी समस्याएं पैदा कर दी हैं.'

इस तरह से देखा जाए तो बांग्लादेश की अंतरिम सरकार अपने विदेशी संबंधों को फिर से परिभाषित करना जारी रख रही है. साथ ही क्षेत्रीय भूराजनीति में बांग्लादेश अपने को फोकस किए हुए है. इन घटनाक्रमों पर भारत की प्रतिक्रिया दक्षिण एशियाई कूटनीति और सुरक्षा को देखते हुए काफी महत्वपूर्ण है.

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