नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम आतंकी हमले के बाद नई दिल्ली के सिंधु जल समझौता निलंबित करने से पाकिस्तान की नहर योजनाओं को तगड़ा झटका लगा है. इससे उसी क्षेत्रीय जल सुरक्षा को खतरा पैदा हो गया है.
पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले के बाद सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) को निलंबित करने के भारत के एक्शन से इस्लामाबाद की अरबों रुपए की चोलिस्तान नहर परियोजना के डिरेल होने का संकट है. ये प्रोजेक्ट बहुत हद तक सिंधु जल के निरंतर प्रवाह पर काफी निर्भर है. गौर करें तो पहलगाम हमले में 26 लोगों की जान चली गई थी.
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत-पाकिस्तान में तनाव बढ़ने के साथ ही पाकिस्तान को अपनी जल सुरक्षा का खतरा पैदा हो गया है. साथ ही क्षेत्रीय विश्वसनीयता पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं. दरअसल, सिंधु जल संधि को भारत द्वारा स्थगित रखने की घोषणा के फौरन बाद पाकिस्तान सरकार ने गुरुवार को विवादास्पद चोलिस्तान नहर परियोजना को स्थगित करने का फैसला लिया. इस फैसले में कहा गया कि इस परियोजना पर तब तक रोक लगी रहेगी, जब तक देश में कई हलकों में विरोध शांत नहीं हो जाता. इसके साथ ही भारत द्वारा सिंधु जल संधि को स्थगित करने से पैदा हुई अनिश्चितता खत्म नहीं हो जाती. इसके साथ ही काउंसिल ऑफ कॉमन इंटरेस्ट्स (CCI) में इस मुद्दे पर जब तक आम सहमति नहीं बन जाती, तब तक इस पर रोक लगी रहेगी.
इस परियोजना को लेकर पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ ने इस्लामाबाद में पीपीपी अध्यक्ष बिलावल भुट्टो-जरदारी की मौजूदगी में संवाददाताओं से कहा, 'आज हमने पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज के बीच आपसी सहमति से यह निर्णय लिया है कि जब तक सीसीआई में आपसी सहमति से कोई निर्णय नहीं हो जाता, तब तक कोई और नहर का निर्माण नहीं किया जाएगा. वहीं संघीय सरकार ने निर्णय लिया है कि प्रांतों के बीच आम सहमति के बिना नहरों पर कोई और प्रगति नहीं होगी.'
गौर करें तो पहलगाम में हुए नृशंस आतंकवादी हमले के एक दिन बाद भारत ने पाकिस्तान समर्थित तत्वों को दोषी ठहराया था. इसके बाद बुधवार को इंडिया ने ये ऐलान किया था कि वह दशकों पुराने सिंधु जल संधि को स्थगित रखेगा.
इसको लेकर भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीएस) की बैठक के बाद कहा, '1960 की सिंधु जल संधि तत्काल प्रभाव से स्थगित रहेगी, जब तक कि पाकिस्तान विश्वसनीय और अपरिवर्तनीय रूप से सीमा पार आतंकवाद के लिए अपना समर्थन त्याग नहीं देता.'
बता दें कि सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच एक जल-बंटवारा समझौता है. इस अंतरराष्ट्रीय समझौते की मध्यस्थता विश्व बैंक ने की थी. इस संधि से सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के पानी के उपयोग को नियंत्रित किया जाता है. सितंबर 1960 में तत्कालीन भारतीय पीएम जवाहरलाल नेहरू और तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान द्वारा कराची में इस संधि पर सिग्नेचर हुए थे. इस संधि के जरिए नदी प्रणाली के संबंध में दोनों देशों के अधिकारों और जिम्मेदारियों को रेखांकित किया जाता है.
सिंधु जल संधि की शर्तों के मुताबिक, भारत को पूर्वी नदियों ब्यास, रावी और सतलुज के जल पर विशेष नियंत्रण मिला हुआ है. वहीं पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों सिंधु, चिनाब और झेलम पर अधिक अधिकार दिया हुआ है. इस संधि के माध्यम से दोनों देश इन जल संसाधनों का निष्पक्ष और प्रभावी उपयोग करते हैं. इसके लिए दोनों देशों के बीच सहयोग और सूचना का आदान-प्रदान होता है.
संधि की प्रस्तावना में सिंधु नदी प्रणाली के जल का अधिकतम उपयोग करने के लिए दोनों देशों के आपसी अधिकारों और दायित्वों पर जोर दिया गया है. साथ ही भारत को सिंचाई के लिए पश्चिमी नदियों के सीमित उपयोग की अनुमति है. वहीं उसे गैर-उपभोग्य उपयोगों जैसे कि जलविद्युत उत्पादन, नौवहन, संपत्ति को तैराना और मत्स्य पालन गतिविधियों के लिए ज्यादा अधिकार दिए गए हैं.
स्थायी सिंधु आयोग (PIC) का गठन सिंधु जल संधि को लागू करने और उसकी निगरानी करने के लिए किया गया है. इसमें प्रत्येक देश से एक आयुक्त शामिल है. आयोग को संधि के कार्यान्वयन की समीक्षा करने और अन्य चिंताओं के समाधान करने के लिए साल में कम से कम एक बार बैठक करने का अधिकार है. साथ ही PIC जल विवादों का हल निकालने के लिए द्विपक्षीय वार्ता करता है. यदि समाधान नहीं होता है, तो मामले को किसी तटस्थ विशेषज्ञ या मध्यस्थता कोर्ट में भेजा जा सकता है.
गौर करने वाली बात ये है कि भारत द्वारा सिंधु जल संधि को सस्पेंड करने के फैसले से पाकिस्तान की महत्वाकांक्षी चोलिस्तान नहर परियोजना पर असर दिखने लगा है. अब भारत ने पानी को एक कूटिनीतिक हथियार बना लिया है. इससे इस्लामाबाद पर गहरा दबाव बढ़ गहा है. जिसकी वजह से उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा और विकास महत्वाकांक्षाएं दोनों ही खतरे में हैं.
चोलिस्तान नहर परियोजना क्या है?
पाकिस्तान पहल (जीपीआई) के तहत चोलिस्तान नहर परियोजना पाकिस्तान की व्यापक हरित योजना की एक प्रमुख पहल है. इसे दक्षिणी पंजाब में चोलिस्तान रेगिस्तान को उत्पादक कृषि भूमि में बदलने के लिए किया गया है. संघीय सरकार द्वारा संचालित और पाकिस्तान सेना के सहयोग से इस परियोजना में सिंधु नदी प्रणाली से रेगिस्तान तक पानी ले जाने के लिए कई सिंचाई नहरों का निर्माण शामिल है.
चोलिस्तान नहर परियोजना पाकिस्तान के सबसे महत्वाकांक्षी कृषि परियोजनाओं में से एक है. इसके जरिए बहावलपुर और बहावलनगर जिलों में 1.2 मिलियन एकड़ से अधिक बंजर भूमि पर पानी पहुंचा कर खेती करना है.
चोलिस्तान नहर परियोजना से पाकिस्तान कई लक्ष्य साधने की तैयारी कर रहा है. इसमें शामिल हैं.
1. शुष्क दक्षिणी पंजाब में कृषि योग्य भूमि का विस्तार करना,
2. फसल उत्पादन में वृद्धि करके राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देना,
3. स्मार्ट फार्म, कृषि-मॉल और अनुसंधान केंद्रों के माध्यम से आधुनिक कृषि केंद्र विकसित करना,
4. अविकसित क्षेत्रों में रोजगार पैदा करना, और...
5. पाकिस्तान की कृषि-निर्यात क्षमता को मजबूत करना शामिल है.
यह परियोजना जीपीआई की व्यापक महत्वाकांक्षा के हिसाब से तैयार की गई है. इसके तहत पाकिस्तान में 9 मिलियन एकड़ अप्रयुक्त भूमि को खेती के दायरे में लाया जाना है. इसमें जलवायु-स्मार्ट और मशीनीकृत खेती पर ध्यान केंद्रित किया जाना है.
यह परियोजना विवादों में क्यों घिरी हुई है?
इस नहर परियोजना की वजह से सिंध प्रांत में विवाद खड़ा हो गया है. इसकी वजह से अंतर-प्रांतीय राजनीतिक तनाव पैदा हो गया है. सिंध की नाराजगी इस बात को लेकर है कि पंजाब साल 1991 के जल समझौते का उल्लंघन कर सिंधु नदी प्रणाली से एकतरफा तरीके से पानी का बहाव मोड़ रहा है. गौर करें तो पाकिस्तान जल आबंटन समझौते के तहत प्रत्येक प्रांत को उसके हिस्से का जल आवंटित किया जाता है. सिंध प्रांत का कहना है कि सिंधु नदी प्रणाली प्राधिकरण (आईआरएसए) को अंतर-प्रांतीय आवंटन का प्रबंधन करना चाहिए. उसने आईआरएसए पर पक्षपात और अतिक्रमण का आरोप लगाया है.
उधर पर्यावरणविदों ने चेताया है कि इस नहर परियोजना से सिंधु डेल्टा में मीठे पानी की धारा कम हो सकती है. पानी की कमी होने से सिंध में लवणता और रेगिस्तानीकरण बढ़ सकता है. साथ ही लुप्तप्राय सिंधु नदी डॉल्फिन सहित जैव विविधता के लिए खतरा पैदा हो सकता है.
सिंध विधानसभा ने मार्च 2025 में नहर निर्माण के खिलाफ सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया. वहीं नागरिक समाज समूहों, जल अधिकार कार्यकर्ताओं और किसान संगठनों ने सिंध और कराची में कई विरोध प्रदर्शन किए.
विरोध प्रदर्शनों की इस कड़ी में गुरुवार को नागरिक समाज समूह, कार्यकर्ता और समुदाय के सदस्य ने कराची के किताब घर में औरत मार्च निकाला था. साथ ही महिला डेमोक्रेटिक द्वारा आयोजित बैठक में बहुत से लोग शामिल हुए थे. इस बैठक में चोलिस्तान नहर परियोजना के सिंध में महिलाओं पर पड़ने वाले प्रभाव पर चर्चा की गई. बैठक में वक्ताओं ने इसे “अस्तित्व का संकट” बताया.
पाकिस्तानी अखबार डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक, जल, भूमि और लिंग की राजनीति के चौराहे पर हुई चर्चा का मुख्य उद्देश्य सिंध के मौजूदा जल संकट और संघर्ष में महिलाओं की भूमिका की ओर लोगों का ध्यान खींचना था. कई लोगों ने सिंधु नदी को सिंध के लोगों की 'जीवन रेखा और पहचान' बताया.
चोलिस्तान नहर परियोजना को लेकर पैनल का नेतृत्व महिला डेमोक्रेटिक फ्रंट की वित्त सचिव मुनीबा हफीज और सिंधयानी तहरीक (एसटी), अवामी तहरीक (एटी) की महिला शाखा से जुड़ी मरियम गोपांग ने किया. डॉन की रिपोर्ट में हफीज के हवाले से कहा गया है, 'सिंधु जो पैत फरयो वेयो (सिंधु नदी का पेट चीर दिया गया है) सिंधु तय टॉप चारयो वेयो (सिंधु नदी पर तोप घुमा दी गई है)'.
भारत के एक्शन के बाद चोलिस्तान नहर परियोजना के लिए निहितार्थ क्या?
मनोहर पर्रिकर रक्षा अध्ययन एवं विश्लेषण संस्थान के वरिष्ठ फेलो और सीमा पार जल मुद्दों पर अग्रणी टिप्पणीकार उत्तम कुमार सिन्हा के मुताबिक, चोलिस्तान नहर परियोजना पर निर्माण रोकने का पाकिस्तान का निर्णय भारत के लिए एक बड़ी मनोवैज्ञानिक जीत है.
सिन्हा ने ईटीवी भारत को बताया, 'देखिए, पूर्वी नदियों ब्यास, रावी और सतलुज में, हमारे पास 90 प्रतिशत पानी का उपयोग है. वहीं पश्चिमी नदियों सिंधु, चिनाब और झेलम में, हम IWT के तहत आवंटित प्रावधानों का लाभ नहीं उठा पाए हैं. इसमें शामिल 3.6 मिलियन एकड़ फीट पानी की भंडारण क्षमता का निर्माण करना शामिल है.'
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान द्वारा तटस्थ मध्यस्थ के समक्ष आपत्ति जताए जाने की वजह से पश्चिमी नदियों में भंडारण अवसंरचना का अभी तक भारत निर्माण नहीं कर पाया है. सिन्हा ने कहा, 'इसलिए, बहुत सारा पानी पाकिस्तान जा रहा है।' 'हाल ही में, हमने पश्चिमी नदियों में भंडारण क्षमता का निर्माण शुरू किया है. अब IWT को निलंबित करने के बाद, भारत जितना अधिक अपनी भंडारण क्षमता को भरना शुरू करेगा, पाकिस्तान को उतना ही कम पानी मिलेगा.'
उन्होंने कहा कि पाकिस्तान की आपत्तियों का उद्देश्य अभी तक जम्मू- कश्मीर के लोगों को सिंधु और उसकी सहायक नदियों के पानी के लाभ से वंचित करने का रहा है.
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