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EPFO की उच्च पेंशन स्कीमः SC के आदेश के बाद भी वरिष्ठ नागरिकों की उम्मीदें हो रहीं धुंधली ! - EPFO HIGHER PENSION SCHEME

वरिष्ठ नागरिकों के लिए एक सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित करना तथा उन्हें उचित पेंशन प्रदान करना लोकतांत्रिक सरकारों का कर्तव्य है. Dr P S M Rao की रिपोर्ट.

EPFO higher pension scheme
सांकेतिक तस्वीर. (Getty Image)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : March 21, 2025 at 5:38 PM IST

8 Min Read

हैदराबाद: सुप्रीम कोर्ट के नवंबर 2022 के आदेश के बाद भी कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) से उच्च पेंशन पाने की लाखों वरिष्ठ नागरिकों की उम्मीदें अधर में लटकी हुई हैं. हाल ही में दिल्ली में हुई 237वीं बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज की बैठक हुई. EPFO के अनुसार, यदि आधे आवेदकों को भी उच्च पेंशन दी जाए तो इसके लिए 1.86 लाख करोड़ रुपये की जरूरत होगी. संगठन की प्राथमिकता अपने दायित्व को निभाने से ज्यादा वित्तीय भार से बचने की दिख रही है.

कहां अटके हैं आवेदन?: उच्च पेंशन के लिए कुल 17.49 लाख आवेदन प्राप्त हुए थे, जिनमें से 5.05 लाख को खारिज कर दिया गया. 2.24 लाख आवेदन अभी तक नियोक्ताओं ने ही नहीं भेजे हैं, जबकि 3.92 लाख आवेदन EPFO ने उन्हें वापस भेज दिए हैं. संगठन ने 2.19 लाख आवेदकों को डिमांड नोटिस भेजा है, जबकि 1.92 लाख आवेदन अभी जांच की प्रक्रिया में हैं. अब तक सिर्फ 74,811 आवेदकों ने अतिरिक्त राशि जमा कराई है.

कब मिलेगा हक?: मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, दो साल में महज 21,885 लोगों को ही पेंशन भुगतान आदेश जारी हुए हैं. इस रफ्तार से अगर आगे बढ़ा गया तो सभी पात्र पेंशनर्स को उच्च पेंशन मिलने में कितने साल लगेंगे, यह सिर्फ EPFO और केंद्र सरकार ही जानती है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद वरिष्ठ नागरिकों की उम्मीदें और धुंधली होती जा रही हैं. हालांकि उच्च पेंशन की अनुमति देना ईपीएफओ का दायित्व है.

उच्च पेंशन की पृष्ठभूमि का संक्षिप्त विवरणः

कर्मचारी भविष्य निधि, कारखानों और अन्य प्रतिष्ठानों में काम करने वाले श्रमिकों को भविष्य निधि प्रदान करने के लिए वृद्धावस्था सामाजिक सुरक्षा योजना, 1951 में एक राष्ट्रपति अध्यादेश के माध्यम से शुरू की गई थी. जिसे बाद में 1952 में एक केंद्रीय अधिनियम में परिवर्तित कर दिया गया था. कर्मचारियों की पेंशन योजना को 1995 में पेंशन योग्य वेतन की सीमा के माध्यम से मामूली पेंशन लाभ के साथ जोड़ा गया था. जब पेंशन योजना लागू हुई थी तब यह 5,000 रुपये थी. 2001 तक बनी रही.

फिर इसे बढ़ाकर 6,500 रुपये और सितंबर 2014 से 15,000 रुपये कर दिया गया. ये वो रकम थी जिस पर पीएफ अंशदान किया जाता था और पेंशन की गणना की जाती थी. उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति ने पेंशन योग्य पूर्ण सेवा पूरी कर ली है. मान लीजिए 35 वर्ष है और सेवा काल के दौरान उसने अपने नियोक्ता के साथ 5,000 रुपये के वैधानिक वेतन पर अपेक्षित अंशदान का भुगतान किया है, तो उसे पेंशन फार्मूले ( पेंशन= पेंशन योग्य सेवा × पेंशन योग्य वेतन÷70) के अनुसार 2,500 रुपये पेंशन मिलेगी.

epfo-higher-pension
EPFO के आंकड़े. (EPFO Report)

पेंशन योग्य वेतन का मतलब वह वेतन है जिस पर अंशदान का भुगतान किया जाता है, न कि वास्तविक वेतन. यह वैधानिक सीमा (5,000 रुपये बाद में बढ़ाकर 6,500 रुपये और फिर 15,000 रुपये) तक है. यही सीमा, ठीक यही कारण है कि उच्च वेतन वाले लोग, यहां तक ​​कि एक लाख रुपये से अधिक के वेतन वाले भी, लगभग 1,500 रुपये प्रति माह की मामूली पेंशन राशि प्राप्त करते हैं.

चूंकि पेंशन राशि बहुत नगण्य थी, तथा अंतिम प्राप्त वेतन से अनुपातहीन रूप से कम थी, इसलिए सरकार ने 16 मार्च 1996 से एक परिवर्तन किया. जिसके तहत कर्मचारियों और नियोक्ताओं के विकल्प पर, अधिकतम सीमा से अधिक वास्तविक वेतन पर ईपीएफ अंशदान की अनुमति दी गई. जिससे अधिकतम राशि के बजाय वास्तविक वेतन के अनुपात में उच्च पेंशन प्राप्त करना संभव हो गया.

जवाब में, बड़ी संख्या में कर्मचारियों और नियोक्ताओं ने उच्च पेंशन प्राप्त करने के लिए अधिक योगदान दिया. लेकिन जब यह देय था, तो इसे इस आधार पर अस्वीकार कर दिया गया कि उन्होंने उच्च पेंशन के लिए अपने विकल्प दाखिल नहीं किए थे. हालांकि उन्होंने अतिरिक्त पैसे का भुगतान किया था. इसके कारण कर्मचारियों को वेतन का भुगतान करना पड़ा. दिल्ली, राजस्थान, केरल आदि विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अंत में सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा. सर्वोच्च न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 4 नवंबर 2022 को अपना फैसला सुनाया.

अव्यवहारिक शर्तों के कारण वरिष्ठ नागरिकों को परेशानीः

दुर्भाग्य से, सरकार की अव्यवहारिक पात्रता शर्तों के कारण वरिष्ठ नागरिकों की परेशानी जारी है. ईपीएफ संगठन के लिए केवल उच्च अंशदान का भुगतान करना पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसे समय-सीमा के भीतर और जिस तरह से वह चाहता है, उच्च पेंशन के विकल्प का प्रयोग करके इसका समर्थन करना चाहिए. उच्च राशि का भुगतान ही कर्मचारी के उच्च पेंशन के इरादे के लिए पर्याप्त सबूत के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता है. उच्च पेंशन लाभ का दावा करने के लिए कई अन्य जटिल शर्तें हैं.

जबकि सुप्रीम कोर्ट ने 4 नवंबर 2022 को अपना फैसला सुनाया था, इसका कार्यान्वयन अभी भी जारी है और धीमा रहा है. अभी तक केवल 1.25% आवेदकों को ही लाभ मिला है. चूंकि लाखों लोगों को छोटी-छोटी पेंशन मिल रही थी, इसलिए पेंशनभोगियों के काफी विरोध के बाद सरकार ने 2014 से न्यूनतम पेंशन 1,000 रुपये प्रति माह निर्धारित की. कई बारीकियों के कारण, कई लोगों को 1,000 रुपये की न्यूनतम राशि भी नहीं मिल रही है.

EPFO higher pension scheme
ईपीएफओ की बैठक में डॉ. मनसुख मांडविया. (फाइल फोटो) (/pib.gov.in/)

ईपीएफओ की वार्षिक रिपोर्ट (2022-23) के अनुसार, देश में 75.59 लाख ईपीएफ पेंशनभोगी हैं. इनमें से 48% यानी 36.48 लाख को 1,000 रुपए कम और 75% को 2,000 रुपए से भी कम मिलते हैं. यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि अधिकांश ईपीएफ पेंशनभोगी, यानी वे कर्मचारी जिन्होंने अपने श्रम से देश के आर्थिक विकास में योगदान दिया और अंशदायी पेंशन योजना में भाग लिया -अपने पीएफ खाते से पैसे छोड़कर, अपने सेवानिवृत्त जीवन के दौरान देश की कई राज्य सरकारों द्वारा दी जाने वाली निराश्रित पेंशन से भी कम राशि पाते हैं.

दोनों तेलुगु राज्य (आंध्र प्रदेश और तेलंगाना) वृद्धावस्था पेंशन आदि दे रहे हैं, जो न केवल कई अन्य राज्यों से अधिक है, बल्कि ईपीएफ पेंशन से कई गुना अधिक है. उदाहरण के लिए, वृद्धों को 4,000 रुपये और शारीरिक रूप से विकलांगों को 6,000 रुपये दिए जाते हैं. यह स्पष्ट रूप से पेंशनभोगियों या ईपीएफ जैसे किसी भी फंड से किसी भी योगदान के बिना है.

ईपीएफ पेंशन न बढ़ाने के सरकार के असमर्थता के दावेः

पेंशन फंड का कोष 7.80 लाख करोड़ रुपये (2022-23) का है. एक साल में ब्याज की कमाई 51.98 हजार करोड़ रुपये और सालाना पेंशन अंशदान 64.88 हजार करोड़ रुपये है. जबकि पेंशन भुगतान सिर्फ 14.44 हजार करोड़ रुपये है, जो ब्याज का 27.78% या एक साल के अंशदान का 22% या कोष का सिर्फ 1.85% है. तो फिर फंड की कमी कहां है? अगर कभी ऐसा होता भी है, तो काल्पनिक या वास्तविक गणना के हिसाब से क्या कल्याणकारी राज्य में सरकार की यह जिम्मेदारी नहीं होगी कि वह कर्मचारियों को पेंशन और भविष्य निधि का निर्बाध भुगतान सुनिश्चित करने के लिए भविष्य निधि संगठन की मदद करे?

ईपीएफओ की हाल ही में हुई सीबीटी बैठक में, न्यूनतम पेंशन बढ़ाने पर चर्चा हुई. लेकिन सरकार द्वारा इसे बढ़ाने और पर्याप्त रूप से बढ़ाने के लिए कोई ठोस और निर्णायक निर्णय नहीं लिया गया है. इससे पहले, कई समितियों ने न्यूनतम पेंशन बढ़ाने की सिफारिश की है. यहां तक ​​कि श्रम मंत्रालय ने भी वित्त मंत्रालय को न्यूनतम पेंशन को कम से कम 2,000 रुपये तक बढ़ाने के लिए मनाने का निरर्थक प्रयास किया, जो कि मौजूदा मुद्रास्फीति और सेवानिवृत्त लोगों की दुर्दशा को देखते हुए एक दिखावा होगा.

EPFO higher pension scheme
दिल्ली में 237वीं बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज की बैठक. (/pib.gov.in/)

न्यूनतम पेंशन में पर्याप्त वृद्धि की जानी चाहिएः उच्चतम न्यायालय के निर्देशानुसार पात्र लोगों को उच्च पेंशन की अनुमति दी जानी चाहिए तथा कर्मचारियों की पेंशन योजना को इस तरह से सुधारित किया जाना चाहिए कि भविष्य में सभी कर्मचारियों को अंतिम प्राप्त वेतन का आधा हिस्सा पेंशन के रूप में दिया जाए. वरिष्ठ नागरिकों के लिए एक सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित करना तथा उन्हें उचित पेंशन प्रदान करना लोकतांत्रिक सरकारों का कर्तव्य है. ये सब संभव है और इससे सरकार पर कोई खास बोझ नहीं पड़ेगा. कमी पैसे की नहीं बल्कि सरकार की इच्छाशक्ति की है.

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हैदराबाद: सुप्रीम कोर्ट के नवंबर 2022 के आदेश के बाद भी कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) से उच्च पेंशन पाने की लाखों वरिष्ठ नागरिकों की उम्मीदें अधर में लटकी हुई हैं. हाल ही में दिल्ली में हुई 237वीं बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज की बैठक हुई. EPFO के अनुसार, यदि आधे आवेदकों को भी उच्च पेंशन दी जाए तो इसके लिए 1.86 लाख करोड़ रुपये की जरूरत होगी. संगठन की प्राथमिकता अपने दायित्व को निभाने से ज्यादा वित्तीय भार से बचने की दिख रही है.

कहां अटके हैं आवेदन?: उच्च पेंशन के लिए कुल 17.49 लाख आवेदन प्राप्त हुए थे, जिनमें से 5.05 लाख को खारिज कर दिया गया. 2.24 लाख आवेदन अभी तक नियोक्ताओं ने ही नहीं भेजे हैं, जबकि 3.92 लाख आवेदन EPFO ने उन्हें वापस भेज दिए हैं. संगठन ने 2.19 लाख आवेदकों को डिमांड नोटिस भेजा है, जबकि 1.92 लाख आवेदन अभी जांच की प्रक्रिया में हैं. अब तक सिर्फ 74,811 आवेदकों ने अतिरिक्त राशि जमा कराई है.

कब मिलेगा हक?: मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, दो साल में महज 21,885 लोगों को ही पेंशन भुगतान आदेश जारी हुए हैं. इस रफ्तार से अगर आगे बढ़ा गया तो सभी पात्र पेंशनर्स को उच्च पेंशन मिलने में कितने साल लगेंगे, यह सिर्फ EPFO और केंद्र सरकार ही जानती है. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद वरिष्ठ नागरिकों की उम्मीदें और धुंधली होती जा रही हैं. हालांकि उच्च पेंशन की अनुमति देना ईपीएफओ का दायित्व है.

उच्च पेंशन की पृष्ठभूमि का संक्षिप्त विवरणः

कर्मचारी भविष्य निधि, कारखानों और अन्य प्रतिष्ठानों में काम करने वाले श्रमिकों को भविष्य निधि प्रदान करने के लिए वृद्धावस्था सामाजिक सुरक्षा योजना, 1951 में एक राष्ट्रपति अध्यादेश के माध्यम से शुरू की गई थी. जिसे बाद में 1952 में एक केंद्रीय अधिनियम में परिवर्तित कर दिया गया था. कर्मचारियों की पेंशन योजना को 1995 में पेंशन योग्य वेतन की सीमा के माध्यम से मामूली पेंशन लाभ के साथ जोड़ा गया था. जब पेंशन योजना लागू हुई थी तब यह 5,000 रुपये थी. 2001 तक बनी रही.

फिर इसे बढ़ाकर 6,500 रुपये और सितंबर 2014 से 15,000 रुपये कर दिया गया. ये वो रकम थी जिस पर पीएफ अंशदान किया जाता था और पेंशन की गणना की जाती थी. उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति ने पेंशन योग्य पूर्ण सेवा पूरी कर ली है. मान लीजिए 35 वर्ष है और सेवा काल के दौरान उसने अपने नियोक्ता के साथ 5,000 रुपये के वैधानिक वेतन पर अपेक्षित अंशदान का भुगतान किया है, तो उसे पेंशन फार्मूले ( पेंशन= पेंशन योग्य सेवा × पेंशन योग्य वेतन÷70) के अनुसार 2,500 रुपये पेंशन मिलेगी.

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EPFO के आंकड़े. (EPFO Report)

पेंशन योग्य वेतन का मतलब वह वेतन है जिस पर अंशदान का भुगतान किया जाता है, न कि वास्तविक वेतन. यह वैधानिक सीमा (5,000 रुपये बाद में बढ़ाकर 6,500 रुपये और फिर 15,000 रुपये) तक है. यही सीमा, ठीक यही कारण है कि उच्च वेतन वाले लोग, यहां तक ​​कि एक लाख रुपये से अधिक के वेतन वाले भी, लगभग 1,500 रुपये प्रति माह की मामूली पेंशन राशि प्राप्त करते हैं.

चूंकि पेंशन राशि बहुत नगण्य थी, तथा अंतिम प्राप्त वेतन से अनुपातहीन रूप से कम थी, इसलिए सरकार ने 16 मार्च 1996 से एक परिवर्तन किया. जिसके तहत कर्मचारियों और नियोक्ताओं के विकल्प पर, अधिकतम सीमा से अधिक वास्तविक वेतन पर ईपीएफ अंशदान की अनुमति दी गई. जिससे अधिकतम राशि के बजाय वास्तविक वेतन के अनुपात में उच्च पेंशन प्राप्त करना संभव हो गया.

जवाब में, बड़ी संख्या में कर्मचारियों और नियोक्ताओं ने उच्च पेंशन प्राप्त करने के लिए अधिक योगदान दिया. लेकिन जब यह देय था, तो इसे इस आधार पर अस्वीकार कर दिया गया कि उन्होंने उच्च पेंशन के लिए अपने विकल्प दाखिल नहीं किए थे. हालांकि उन्होंने अतिरिक्त पैसे का भुगतान किया था. इसके कारण कर्मचारियों को वेतन का भुगतान करना पड़ा. दिल्ली, राजस्थान, केरल आदि विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अंत में सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा. सर्वोच्च न्यायालय की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 4 नवंबर 2022 को अपना फैसला सुनाया.

अव्यवहारिक शर्तों के कारण वरिष्ठ नागरिकों को परेशानीः

दुर्भाग्य से, सरकार की अव्यवहारिक पात्रता शर्तों के कारण वरिष्ठ नागरिकों की परेशानी जारी है. ईपीएफ संगठन के लिए केवल उच्च अंशदान का भुगतान करना पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसे समय-सीमा के भीतर और जिस तरह से वह चाहता है, उच्च पेंशन के विकल्प का प्रयोग करके इसका समर्थन करना चाहिए. उच्च राशि का भुगतान ही कर्मचारी के उच्च पेंशन के इरादे के लिए पर्याप्त सबूत के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता है. उच्च पेंशन लाभ का दावा करने के लिए कई अन्य जटिल शर्तें हैं.

जबकि सुप्रीम कोर्ट ने 4 नवंबर 2022 को अपना फैसला सुनाया था, इसका कार्यान्वयन अभी भी जारी है और धीमा रहा है. अभी तक केवल 1.25% आवेदकों को ही लाभ मिला है. चूंकि लाखों लोगों को छोटी-छोटी पेंशन मिल रही थी, इसलिए पेंशनभोगियों के काफी विरोध के बाद सरकार ने 2014 से न्यूनतम पेंशन 1,000 रुपये प्रति माह निर्धारित की. कई बारीकियों के कारण, कई लोगों को 1,000 रुपये की न्यूनतम राशि भी नहीं मिल रही है.

EPFO higher pension scheme
ईपीएफओ की बैठक में डॉ. मनसुख मांडविया. (फाइल फोटो) (/pib.gov.in/)

ईपीएफओ की वार्षिक रिपोर्ट (2022-23) के अनुसार, देश में 75.59 लाख ईपीएफ पेंशनभोगी हैं. इनमें से 48% यानी 36.48 लाख को 1,000 रुपए कम और 75% को 2,000 रुपए से भी कम मिलते हैं. यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि अधिकांश ईपीएफ पेंशनभोगी, यानी वे कर्मचारी जिन्होंने अपने श्रम से देश के आर्थिक विकास में योगदान दिया और अंशदायी पेंशन योजना में भाग लिया -अपने पीएफ खाते से पैसे छोड़कर, अपने सेवानिवृत्त जीवन के दौरान देश की कई राज्य सरकारों द्वारा दी जाने वाली निराश्रित पेंशन से भी कम राशि पाते हैं.

दोनों तेलुगु राज्य (आंध्र प्रदेश और तेलंगाना) वृद्धावस्था पेंशन आदि दे रहे हैं, जो न केवल कई अन्य राज्यों से अधिक है, बल्कि ईपीएफ पेंशन से कई गुना अधिक है. उदाहरण के लिए, वृद्धों को 4,000 रुपये और शारीरिक रूप से विकलांगों को 6,000 रुपये दिए जाते हैं. यह स्पष्ट रूप से पेंशनभोगियों या ईपीएफ जैसे किसी भी फंड से किसी भी योगदान के बिना है.

ईपीएफ पेंशन न बढ़ाने के सरकार के असमर्थता के दावेः

पेंशन फंड का कोष 7.80 लाख करोड़ रुपये (2022-23) का है. एक साल में ब्याज की कमाई 51.98 हजार करोड़ रुपये और सालाना पेंशन अंशदान 64.88 हजार करोड़ रुपये है. जबकि पेंशन भुगतान सिर्फ 14.44 हजार करोड़ रुपये है, जो ब्याज का 27.78% या एक साल के अंशदान का 22% या कोष का सिर्फ 1.85% है. तो फिर फंड की कमी कहां है? अगर कभी ऐसा होता भी है, तो काल्पनिक या वास्तविक गणना के हिसाब से क्या कल्याणकारी राज्य में सरकार की यह जिम्मेदारी नहीं होगी कि वह कर्मचारियों को पेंशन और भविष्य निधि का निर्बाध भुगतान सुनिश्चित करने के लिए भविष्य निधि संगठन की मदद करे?

ईपीएफओ की हाल ही में हुई सीबीटी बैठक में, न्यूनतम पेंशन बढ़ाने पर चर्चा हुई. लेकिन सरकार द्वारा इसे बढ़ाने और पर्याप्त रूप से बढ़ाने के लिए कोई ठोस और निर्णायक निर्णय नहीं लिया गया है. इससे पहले, कई समितियों ने न्यूनतम पेंशन बढ़ाने की सिफारिश की है. यहां तक ​​कि श्रम मंत्रालय ने भी वित्त मंत्रालय को न्यूनतम पेंशन को कम से कम 2,000 रुपये तक बढ़ाने के लिए मनाने का निरर्थक प्रयास किया, जो कि मौजूदा मुद्रास्फीति और सेवानिवृत्त लोगों की दुर्दशा को देखते हुए एक दिखावा होगा.

EPFO higher pension scheme
दिल्ली में 237वीं बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज की बैठक. (/pib.gov.in/)

न्यूनतम पेंशन में पर्याप्त वृद्धि की जानी चाहिएः उच्चतम न्यायालय के निर्देशानुसार पात्र लोगों को उच्च पेंशन की अनुमति दी जानी चाहिए तथा कर्मचारियों की पेंशन योजना को इस तरह से सुधारित किया जाना चाहिए कि भविष्य में सभी कर्मचारियों को अंतिम प्राप्त वेतन का आधा हिस्सा पेंशन के रूप में दिया जाए. वरिष्ठ नागरिकों के लिए एक सम्मानजनक जीवन सुनिश्चित करना तथा उन्हें उचित पेंशन प्रदान करना लोकतांत्रिक सरकारों का कर्तव्य है. ये सब संभव है और इससे सरकार पर कोई खास बोझ नहीं पड़ेगा. कमी पैसे की नहीं बल्कि सरकार की इच्छाशक्ति की है.

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