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दक्षिण एशिया में तनाव के बीच स्थिरता और सहयोग के लिए क्यों अहम है भारत - INDIA FACTOR SOUTH ASIA DIPLOMACY

तनाव के बीच नेपाल, बांग्लादेश और अन्य पड़ोसी देश भारत से मजबूत संबंध चाहते हैं. ये हित आर्थिक, रणनीतिक और सुरक्षा हितों से प्रेरित हैं.

Between friction and necessity The India factor in South Asia diplomacy
पीएम मोदी और बांग्लादेश के प्रमुख मो. यूनुस (ANI)
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By Aroonim Bhuyan

Published : March 24, 2025 at 12:23 PM IST

10 Min Read

नई दिल्ली: दक्षिण एशिया में बदलते राजनीतिक परिदृश्य में नेपाल, बांग्लादेश और अन्य पड़ोसी देश भारत के साथ मजबूत संबंध चाहते हैं. इन देशों के भारत से जुड़े ये हित आर्थिक, रणनीतिक और सुरक्षा हितों से प्रेरित हैं.

दक्षिण एशिया में राजनीति अक्सर भावनाओं के बजाय व्यावहारिकता पर आधारित होती हैं. आए दिन ऐसी भी खबरें आती हैं कि भारत के साथ कई पड़ोसी देशों में खटपट चल रही है. लेकिन इसी बीच देखा जा रहा है कि अप्रैल के पहले सप्ताह में थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में होने वाले बिम्सटेक शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बातचीत करने के लिए बांग्लादेश और नेपाल लाइन लगाए खड़े हैं. ये एक अलग सच्चाई बयां कर रहे हैं.

नेपाल की ही बात करें तो प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली चीन और भारत दोनों के साथ जटिल संबंधों को संभाल रहे हैं, जबकि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार घरेलू बदलावों के बीच वैधता और स्थिरता की तलाश कर रही है. ऐसे में दोनों देशों के लिए, भारत के साथ कूटनीतिक संबंध बनाए रखना सिर्फ़ सद्भावना की बात नहीं है, बल्कि ये बदलती क्षेत्रीय व्यवस्था के बीच रणनीतिक जरूरत है.

ये बातें ऐसे समय में सामने आई हैं जब विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शनिवार को विदेश मामलों की संसदीय सलाहकार समिति की बैठक में भाग लिया. जयशंकर ने सांसदों को बांग्लादेश, मालदीव, म्यांमार और श्रीलंका के साथ संबंधों के बारे में जानकारी दी.

बैठक के बाद जयशंकर ने अपने एक्स हैंडल पर लिखा, "विदेश मामलों के लिए 2025 की पहली सलाहकार समिति की बैठक संपन्न हुई." "बांग्लादेश, मालदीव, म्यांमार और श्रीलंका के साथ भारत के संबंधों पर उपयोगी चर्चा हुई."

वहीं बिम्सटेक शिखर सम्मेलन के दौरान पीएम मोदी और बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस के बीच संभावित बैठक को लेकर विदेश मंत्रालय ने कोई प्रतिबद्धता नहीं जताई.

इससे पहले विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा था कि बैंकॉक में इन दोनों देशों के नेताओं की आपसी बातचीत को लेकर कोई जानकारी नहीं है.

हालांकि, परामर्शदात्री समिति की बैठक में कथित तौर पर जयशंकर ने कहा कि बिम्सटेक शिखर सम्मेलन में यूनुस और मोदी के बीच बैठक के लिए बांग्लादेश का अनुरोध अभी विचाराधीन है.

गौर करें तो अगस्त 2024 में प्रधानमंत्री शेख हसीना के सत्ता से बाहर होने के बाद बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो गई. वहां पर अंतरिम सरकार चल रही है. इस सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस हैं. वहीं तत्कालीन पीएम शेख हसीना भारत में शरण लिए हुए हैं. इसको लेकर भी दोनों देशों के बीच तनाव है.

हसीना के सत्ता से बाहर होने के बाद बांग्लादेश में कट्टरपंथी इस्लामी तत्वों का उदय हुआ, जिसके कारण हिंदुओं के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा हुई. हिंदुओं पर हो रही हिंसा को लेकर भारत लगातार अपनी चिंता व्यक्त करता रहा है.

इस बीच बैंकॉक में मोदी और यूनुस के बीच संभावित बैठक को लेकर लोगों में उत्सुकता बनी हुई है. साथ ही बांग्लादेश में भारत द्वारा वित्तपोषित विकास परियोजनाओं के फिर से शुरू होने को लेकर भी कयास लगाए जा रहे हैं. बांग्लादेश की अंतरिम सरकार में वित्त सलाहकार सालेहुद्दीन अहमद कहते हैं कि भारतीय ऋण (एलओसी) के तहत ये परियोजनाएं जारी रहेंगी.

सालेहुद्दीन अहमद की प्रतिक्रिया से पहले मोहम्मद यूनुस ने भी एक ब्रिटिश मीडिया से कहा था कि ढाका नई दिल्ली से अच्छे रिलेशन में है और आगे भी अच्छे संबंध रहेंगे.

भारत-बांग्लादेश संबंधों को लेकर ढाका स्थित पत्रकार सैफुर रहमान तपन कहते हैं कि मोदी और यूनुस के बीच बैंकॉक की संभावित बैठक के बारे में एस जयशंकर की टिप्पणी को बांग्लादेश की मीडिया सकारात्मक रूप से ले रही है.

तपन ने ढाका से ईटीवी भारत को फोन पर बताया, "हमारी सरकार को मोदी के साथ बैठक की सख्त जरूरत है. बांग्लादेश पर भारी अंतरराष्ट्रीय दबाव है, चाहे वह अमेरिका हो, यूरोपीय संघ (ईयू) हो या संयुक्त राष्ट्र हो."

तपन ने कहा कि इस मार्च महीने में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी ढाका का दौरा किया था. इस दौरान रोहिंगिया का मुद्दा जोरशोर से उठा था.

उन्होंने कहा, इस दौरान गुटेरेस ने म्यांमार में अराकान सेना की मदद से रोहिंग्या लोगों के गृह राज्य राखीन राज्य तक मानवीय सहायता गलियारा बनाने की मांग की थी. इसलिए, बांग्लादेश सरकार के लिए भारतीय पीएम मोदी के साथ बैठक खास है.

गौर करें तो बांग्लादेश एक तरफ बैंकॉक में भारत के साथ द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन की मांग कर है. साथ ही मोहम्मद यूनुस 26 से 29 मार्च तक चीन के दौरे पर रहेंगे. यहां वो बोआओ फोरम फॉर एशिया (बीएफए) के वार्षिक सम्मेलन में हिस्सा लेंगे. इस दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ उनके द्विपक्षीय बैठक होने की भी उम्मीद है.

ढाका में एक वरिष्ठ राजनयिक सूत्र ने मार्च की शुरुआत में मीडिया को बताया था कि बिम्सटेक शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए मो. यूनुस की यात्रा की तैयारियां चल रही हैं. जिसमें सहयोग और समझौते की संभावना है.

मीडिया में चल रही खबरों को मानें तो नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली भी 2 से 4 अप्रैल तक बैंकॉक में होने वाले बिम्सटेक शिखर सम्मेलन के दौरान पीएम मोदी के साथ द्विपक्षीय बैठक का मंसूबा बांधे हुए हैं.

नेपाली अधिकारियों के हवाले से काठमांडू पोस्ट में प्रकाशित एक खबर के अनुसार, नेपाल ने शिखर सम्मेलन के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य नेताओं के साथ द्विपक्षीय बैठकों का प्रस्ताव रखा है.

इस तरह से जुलाई 2024 में चौथी बार नेपाल के प्रधानमंत्री के रूप में ओली के सत्ता में आने के बाद भारत और नेपाल के बीच अच्छे संबंध दिख रहे हैं. वहीं इस बीच नेपाल भारत के अलावा चीन के साथ ही अपने संबंधों को नई ऊंचाई देने में लगा है.

नेपाल-भारत संबंधों को मजबूत करने को लेकर प्रधानमंत्री ओली सक्रिय हैं. इसी सिलसिले में सितंबर 2024 में न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान पीएम मोदी ने पीएम ओली के साथ द्विपक्षीय बैठक कर संबंधों को और गहरा कर दिया है.

ओली के कार्यकाल के दौरान आर्थिक सहयोग पर भी जोर रहा है. विशेष रूप से ऊर्जा क्षेत्र में भारत-नेपाल संबंधों को नई ऊंचाई मिली है.

हालांकि, दिसंबर 2024 में प्रधानमंत्री ओली ने चीन का दौरा कर उस पुरानी परंपरा तोड़ दिया, जिसमें कोई भी नेपाली पीएम पदभार ग्रहण करने के बाद पहले भारत के दौरे पर जाता था. नेपाल के इस कदम से इन दोनों के साथ संबंधों को संतुलित करने में मदद मिली. साथ ही इसे भारत पर नेपाल की निर्भरता को कम करने के प्रयास के रूप में भी देखा गया. आज के समय में नेपाल के व्यापार में यह बदलाव साफ दिख रहा है.

हालांकि पीएम ओली ने पहले देश के राष्ट्रवादी एजेंडे को आगे बढ़ाया था, जिसकी वजह से नई दिल्ली के साथ ढाका के संबंध तनावपूर्ण रहे. ये तनाव कालापानी-लिंपियाधुरा क्षेत्र पर सीमा विवाद को लेकर भी हुआ. लेकिन अब नेपाल सरकार भारत के साथ मजबूत संबंध बनाना चाहती है.

नेपाल की आर्थिक निर्भरता भारत पर टिके होने के कारण दोनों देशों में बातचीत की जरूरत है. गौर करें तो व्यापार मार्गों और निवेश प्रवाह से लेकर ऊर्जा सहयोग तक, नेपाल का विकास उसके दक्षिणी पड़ोसी देशों के साथ संबंधों पर ही निर्भर है. मौजूदा हालात को देखते हुए काठमांडू नई दिल्ली के साथ अपने संबंधों को फिर से मजबूत करना चाहता है. वहीं ओली को भारत आने का निमंत्रण देना दोनों देशों के संबंधों को एक बड़ा मुकाम देगा.

नेपाल में भारत के राजदूत रहे रंजीत राय ने ईटीवी भारत से कहा, "मुझे यकीन है कि प्रधानमंत्री मोदी बैंकॉक में बिम्सटेक शिखर सम्मेलन के दौरान नेपाली पीएम ओली से मुलाकात करेंगे. यह दोनों पक्षों के लिए लंबित मुद्दों को सुलझाने का एक अच्छा अवसर है."

हाल के दिनों में नेपाल में राजशाही और हिंदू राज्य की वापसी की मांग तेजी से बढ़ रही है. इसको देखते हुए ओली द्वारा बैंकॉक में मोदी के साथ द्विपक्षीय बैठक की मांग करना खास है।

बैंकॉक में मोदी की यूनुस या ओली के साथ द्विपक्षीय बैठकें होंगी या नहीं होगी. ये अभी तक तय नहीं है, जबकि बिम्सटेक शिखर सम्मेलन के बाद पीएम मोदी का श्रीलंका जाना तय है.

ये जगजाहिर है कि भारत चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजनाओं का मुकाबला करने में लगा है. इसके लिए नई दिल्ली अनुदान आधारित सहायता और रियायती वित्तपोषण के माध्यम से बुनियादी ढांचे के विकास को बढ़ावा देने के लिए पड़ोसी देशों के साथ काम कर रहा है. इस कड़ी में श्रीलंका में मोदी की यात्रा का उद्देश्य साफ है. पीएम मोदी की इस यात्रा के जरिए समुद्री सुरक्षा, बंदरगाह विकास और रक्षा सहयोग के मुद्दे पर नए सिरे से काम हो सकता है. इसके साथ भारत इस दिशा में कदम बढ़ाकर श्रीलंका का पसंदीदा रणनीतिक साझेदार बनाए रखेगा.

वहीं श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके ने एलान किया है कि पीएम मोदी की यात्रा के दौरान कोलंबो भारत के साथ संयुक्त उद्यम सौर ऊर्जा संयंत्र पर भी काम शुरू करेगा.

इसी बजट सेशन में पीएम दिसानायके ने संसद में बताया था कि भारत से बिजली खरीद समझौते को अंतिम रूप दे दिया गया है. इसके तहत पावर संयंत्र से राष्ट्रीय ग्रिड को बिजली 5.97 अमेरिकी सेंट प्रति यूनिट की दर से आपूर्ति की जाएगी.

गौर करें तो भारत-श्रीलंका सहयोग से सामपुर में स्थित सौर ऊर्जा परियोजना की शुरुआत हुई थी. ये प्रोजेक्ट भारत की एनटीपीसी और श्रीलंका के सीलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड (सीईबी) के बीच सहयोग से संभव हुई थी. इन दोनों संस्थाओं ने एक ही स्थान पर 500 मेगावाट का कोयला बिजली संयंत्र लगाने की प्लानिंग की थी, लेकिन टर्बाइनों के लिए अंतरराष्ट्रीय टेंडर जारी होने से पहले ही परियोजना को स्थगित कर दिया गया था.

अब इस परियोजना केंद्र के लिए त्रिंकोमाली को चुना गया है. इस तरह से ये सौर ऊर्जा संयंत्र श्रीलंका के नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बदलाव का इशारा कर रहा है. इस तरह से भारत के साथ गहन ऊर्जा सहयोग की दिशा में श्रीलंका का एक महत्वपूर्ण कदम है.

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दक्षिण एशिया में राजनीति अक्सर भावनाओं के बजाय व्यावहारिकता पर आधारित होती हैं. आए दिन ऐसी भी खबरें आती हैं कि भारत के साथ कई पड़ोसी देशों में खटपट चल रही है. लेकिन इसी बीच देखा जा रहा है कि अप्रैल के पहले सप्ताह में थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में होने वाले बिम्सटेक शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बातचीत करने के लिए बांग्लादेश और नेपाल लाइन लगाए खड़े हैं. ये एक अलग सच्चाई बयां कर रहे हैं.

नेपाल की ही बात करें तो प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली चीन और भारत दोनों के साथ जटिल संबंधों को संभाल रहे हैं, जबकि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार घरेलू बदलावों के बीच वैधता और स्थिरता की तलाश कर रही है. ऐसे में दोनों देशों के लिए, भारत के साथ कूटनीतिक संबंध बनाए रखना सिर्फ़ सद्भावना की बात नहीं है, बल्कि ये बदलती क्षेत्रीय व्यवस्था के बीच रणनीतिक जरूरत है.

ये बातें ऐसे समय में सामने आई हैं जब विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शनिवार को विदेश मामलों की संसदीय सलाहकार समिति की बैठक में भाग लिया. जयशंकर ने सांसदों को बांग्लादेश, मालदीव, म्यांमार और श्रीलंका के साथ संबंधों के बारे में जानकारी दी.

बैठक के बाद जयशंकर ने अपने एक्स हैंडल पर लिखा, "विदेश मामलों के लिए 2025 की पहली सलाहकार समिति की बैठक संपन्न हुई." "बांग्लादेश, मालदीव, म्यांमार और श्रीलंका के साथ भारत के संबंधों पर उपयोगी चर्चा हुई."

वहीं बिम्सटेक शिखर सम्मेलन के दौरान पीएम मोदी और बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस के बीच संभावित बैठक को लेकर विदेश मंत्रालय ने कोई प्रतिबद्धता नहीं जताई.

इससे पहले विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा था कि बैंकॉक में इन दोनों देशों के नेताओं की आपसी बातचीत को लेकर कोई जानकारी नहीं है.

हालांकि, परामर्शदात्री समिति की बैठक में कथित तौर पर जयशंकर ने कहा कि बिम्सटेक शिखर सम्मेलन में यूनुस और मोदी के बीच बैठक के लिए बांग्लादेश का अनुरोध अभी विचाराधीन है.

गौर करें तो अगस्त 2024 में प्रधानमंत्री शेख हसीना के सत्ता से बाहर होने के बाद बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो गई. वहां पर अंतरिम सरकार चल रही है. इस सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस हैं. वहीं तत्कालीन पीएम शेख हसीना भारत में शरण लिए हुए हैं. इसको लेकर भी दोनों देशों के बीच तनाव है.

हसीना के सत्ता से बाहर होने के बाद बांग्लादेश में कट्टरपंथी इस्लामी तत्वों का उदय हुआ, जिसके कारण हिंदुओं के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा हुई. हिंदुओं पर हो रही हिंसा को लेकर भारत लगातार अपनी चिंता व्यक्त करता रहा है.

इस बीच बैंकॉक में मोदी और यूनुस के बीच संभावित बैठक को लेकर लोगों में उत्सुकता बनी हुई है. साथ ही बांग्लादेश में भारत द्वारा वित्तपोषित विकास परियोजनाओं के फिर से शुरू होने को लेकर भी कयास लगाए जा रहे हैं. बांग्लादेश की अंतरिम सरकार में वित्त सलाहकार सालेहुद्दीन अहमद कहते हैं कि भारतीय ऋण (एलओसी) के तहत ये परियोजनाएं जारी रहेंगी.

सालेहुद्दीन अहमद की प्रतिक्रिया से पहले मोहम्मद यूनुस ने भी एक ब्रिटिश मीडिया से कहा था कि ढाका नई दिल्ली से अच्छे रिलेशन में है और आगे भी अच्छे संबंध रहेंगे.

भारत-बांग्लादेश संबंधों को लेकर ढाका स्थित पत्रकार सैफुर रहमान तपन कहते हैं कि मोदी और यूनुस के बीच बैंकॉक की संभावित बैठक के बारे में एस जयशंकर की टिप्पणी को बांग्लादेश की मीडिया सकारात्मक रूप से ले रही है.

तपन ने ढाका से ईटीवी भारत को फोन पर बताया, "हमारी सरकार को मोदी के साथ बैठक की सख्त जरूरत है. बांग्लादेश पर भारी अंतरराष्ट्रीय दबाव है, चाहे वह अमेरिका हो, यूरोपीय संघ (ईयू) हो या संयुक्त राष्ट्र हो."

तपन ने कहा कि इस मार्च महीने में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी ढाका का दौरा किया था. इस दौरान रोहिंगिया का मुद्दा जोरशोर से उठा था.

उन्होंने कहा, इस दौरान गुटेरेस ने म्यांमार में अराकान सेना की मदद से रोहिंग्या लोगों के गृह राज्य राखीन राज्य तक मानवीय सहायता गलियारा बनाने की मांग की थी. इसलिए, बांग्लादेश सरकार के लिए भारतीय पीएम मोदी के साथ बैठक खास है.

गौर करें तो बांग्लादेश एक तरफ बैंकॉक में भारत के साथ द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन की मांग कर है. साथ ही मोहम्मद यूनुस 26 से 29 मार्च तक चीन के दौरे पर रहेंगे. यहां वो बोआओ फोरम फॉर एशिया (बीएफए) के वार्षिक सम्मेलन में हिस्सा लेंगे. इस दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ उनके द्विपक्षीय बैठक होने की भी उम्मीद है.

ढाका में एक वरिष्ठ राजनयिक सूत्र ने मार्च की शुरुआत में मीडिया को बताया था कि बिम्सटेक शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए मो. यूनुस की यात्रा की तैयारियां चल रही हैं. जिसमें सहयोग और समझौते की संभावना है.

मीडिया में चल रही खबरों को मानें तो नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली भी 2 से 4 अप्रैल तक बैंकॉक में होने वाले बिम्सटेक शिखर सम्मेलन के दौरान पीएम मोदी के साथ द्विपक्षीय बैठक का मंसूबा बांधे हुए हैं.

नेपाली अधिकारियों के हवाले से काठमांडू पोस्ट में प्रकाशित एक खबर के अनुसार, नेपाल ने शिखर सम्मेलन के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य नेताओं के साथ द्विपक्षीय बैठकों का प्रस्ताव रखा है.

इस तरह से जुलाई 2024 में चौथी बार नेपाल के प्रधानमंत्री के रूप में ओली के सत्ता में आने के बाद भारत और नेपाल के बीच अच्छे संबंध दिख रहे हैं. वहीं इस बीच नेपाल भारत के अलावा चीन के साथ ही अपने संबंधों को नई ऊंचाई देने में लगा है.

नेपाल-भारत संबंधों को मजबूत करने को लेकर प्रधानमंत्री ओली सक्रिय हैं. इसी सिलसिले में सितंबर 2024 में न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान पीएम मोदी ने पीएम ओली के साथ द्विपक्षीय बैठक कर संबंधों को और गहरा कर दिया है.

ओली के कार्यकाल के दौरान आर्थिक सहयोग पर भी जोर रहा है. विशेष रूप से ऊर्जा क्षेत्र में भारत-नेपाल संबंधों को नई ऊंचाई मिली है.

हालांकि, दिसंबर 2024 में प्रधानमंत्री ओली ने चीन का दौरा कर उस पुरानी परंपरा तोड़ दिया, जिसमें कोई भी नेपाली पीएम पदभार ग्रहण करने के बाद पहले भारत के दौरे पर जाता था. नेपाल के इस कदम से इन दोनों के साथ संबंधों को संतुलित करने में मदद मिली. साथ ही इसे भारत पर नेपाल की निर्भरता को कम करने के प्रयास के रूप में भी देखा गया. आज के समय में नेपाल के व्यापार में यह बदलाव साफ दिख रहा है.

हालांकि पीएम ओली ने पहले देश के राष्ट्रवादी एजेंडे को आगे बढ़ाया था, जिसकी वजह से नई दिल्ली के साथ ढाका के संबंध तनावपूर्ण रहे. ये तनाव कालापानी-लिंपियाधुरा क्षेत्र पर सीमा विवाद को लेकर भी हुआ. लेकिन अब नेपाल सरकार भारत के साथ मजबूत संबंध बनाना चाहती है.

नेपाल की आर्थिक निर्भरता भारत पर टिके होने के कारण दोनों देशों में बातचीत की जरूरत है. गौर करें तो व्यापार मार्गों और निवेश प्रवाह से लेकर ऊर्जा सहयोग तक, नेपाल का विकास उसके दक्षिणी पड़ोसी देशों के साथ संबंधों पर ही निर्भर है. मौजूदा हालात को देखते हुए काठमांडू नई दिल्ली के साथ अपने संबंधों को फिर से मजबूत करना चाहता है. वहीं ओली को भारत आने का निमंत्रण देना दोनों देशों के संबंधों को एक बड़ा मुकाम देगा.

नेपाल में भारत के राजदूत रहे रंजीत राय ने ईटीवी भारत से कहा, "मुझे यकीन है कि प्रधानमंत्री मोदी बैंकॉक में बिम्सटेक शिखर सम्मेलन के दौरान नेपाली पीएम ओली से मुलाकात करेंगे. यह दोनों पक्षों के लिए लंबित मुद्दों को सुलझाने का एक अच्छा अवसर है."

हाल के दिनों में नेपाल में राजशाही और हिंदू राज्य की वापसी की मांग तेजी से बढ़ रही है. इसको देखते हुए ओली द्वारा बैंकॉक में मोदी के साथ द्विपक्षीय बैठक की मांग करना खास है।

बैंकॉक में मोदी की यूनुस या ओली के साथ द्विपक्षीय बैठकें होंगी या नहीं होगी. ये अभी तक तय नहीं है, जबकि बिम्सटेक शिखर सम्मेलन के बाद पीएम मोदी का श्रीलंका जाना तय है.

ये जगजाहिर है कि भारत चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) परियोजनाओं का मुकाबला करने में लगा है. इसके लिए नई दिल्ली अनुदान आधारित सहायता और रियायती वित्तपोषण के माध्यम से बुनियादी ढांचे के विकास को बढ़ावा देने के लिए पड़ोसी देशों के साथ काम कर रहा है. इस कड़ी में श्रीलंका में मोदी की यात्रा का उद्देश्य साफ है. पीएम मोदी की इस यात्रा के जरिए समुद्री सुरक्षा, बंदरगाह विकास और रक्षा सहयोग के मुद्दे पर नए सिरे से काम हो सकता है. इसके साथ भारत इस दिशा में कदम बढ़ाकर श्रीलंका का पसंदीदा रणनीतिक साझेदार बनाए रखेगा.

वहीं श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके ने एलान किया है कि पीएम मोदी की यात्रा के दौरान कोलंबो भारत के साथ संयुक्त उद्यम सौर ऊर्जा संयंत्र पर भी काम शुरू करेगा.

इसी बजट सेशन में पीएम दिसानायके ने संसद में बताया था कि भारत से बिजली खरीद समझौते को अंतिम रूप दे दिया गया है. इसके तहत पावर संयंत्र से राष्ट्रीय ग्रिड को बिजली 5.97 अमेरिकी सेंट प्रति यूनिट की दर से आपूर्ति की जाएगी.

गौर करें तो भारत-श्रीलंका सहयोग से सामपुर में स्थित सौर ऊर्जा परियोजना की शुरुआत हुई थी. ये प्रोजेक्ट भारत की एनटीपीसी और श्रीलंका के सीलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड (सीईबी) के बीच सहयोग से संभव हुई थी. इन दोनों संस्थाओं ने एक ही स्थान पर 500 मेगावाट का कोयला बिजली संयंत्र लगाने की प्लानिंग की थी, लेकिन टर्बाइनों के लिए अंतरराष्ट्रीय टेंडर जारी होने से पहले ही परियोजना को स्थगित कर दिया गया था.

अब इस परियोजना केंद्र के लिए त्रिंकोमाली को चुना गया है. इस तरह से ये सौर ऊर्जा संयंत्र श्रीलंका के नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बदलाव का इशारा कर रहा है. इस तरह से भारत के साथ गहन ऊर्जा सहयोग की दिशा में श्रीलंका का एक महत्वपूर्ण कदम है.

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