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बैंकॉक कूटनीति: ढाका में बदलाव के बीच स्थिरता की ओर देख रहे भारत-बांग्लादेश - INDIA BANGLADESH BANGKOK DIPLOMACY

बैंकॉक कूटनीति के तहत बैंकॉक में शुरू हो रहे BIMSTEC सम्मेलन में भारत-बांग्लादेश आपसी संबंधों को मजबूत करने में लगे हैं...

PM Modi will participate in the BIMSTEC conference to be held in Bangkok.
बैंकॉक में होने वाले बिम्सटेक सम्मेलन में भाग लेंगे पीएम मोदी. (ANI)
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By Aroonim Bhuyan

Published : April 3, 2025 at 12:41 PM IST

9 Min Read

नई दिल्ली: थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में शुरू हो रहे BIMSTEC सम्मेलन में भारत-बांग्लादेश आपसी संबंधों को मजबूत करने में लगे हैं. बिम्सटेक 2025 के इस सम्मेलन में संभावित मोदी-यूनुस की मुलाकात भारत-बांग्लादेश संबंधों को एक नया आधार दे सकती है. इसमें शेख हसीना के बाद बांग्लादेश के युग में व्यापार, सुरक्षा और क्षेत्रीय सहयोग को नया आयाम मिल सकता है.

ढाका में राजनीतिक बदलाव के बीच भारत अपनी क्षेत्रीय रणनीति को नए सिरे से तैयार कर रहा है. बांग्लादेश में मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 4 अप्रैल को बैंकॉक में बिम्सटेक शिखर सम्मेलन के दौरान बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस से मुलाकात कर सकते हैं.

Doubt over talks between PM Modi and Mohammad Yunus in Bangkok.
बैंकॉक में पीएम मोदी और मोहम्मद यूनुस में वार्ता पर संशय. ((एएनआई-रायटर्स (फाइल फोटो)))

ढाका में विदेश सेवा अकादमी में मीडिया ब्रीफिंग के दौरान डेली स्टार ने रोहिंग्या और अन्य प्राथमिकताओं पर मुख्य सलाहकार के उच्च प्रतिनिधि खलीलुर रहमान के हवाले से कहा, "बांग्लादेश बिम्सटेक का अगला अध्यक्ष बनने जा रहा है." "इसलिए, सदस्य देशों के प्रमुख मुख्य सलाहकार से मिलने और बिम्सटेक के भविष्य के पाठ्यक्रम पर चर्चा करने का यह मौका होगा. इसलिए, हम उम्मीद कर सकते हैं कि मोहम्मद यूनुस की भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भी बैठक होगी." इस दौरान यूनुस के प्रेस सचिव शफीकुल आलम और उप प्रेस सचिव अबुल कलाम आजाद मजूमदार भी मीडिया ब्रीफिंग में मौजूद थे.

इस बीच, यूनाइटेड न्यूज ऑफ बांग्लादेश (यूएनबी) ने एक सूत्र के हवाले से बताया कि ऐसी बैठक की संभावना है.

गौर करें तो बीते महीने ढाका द्वारा बिम्सटेक शिखर सम्मेलन में इस तरह की बैठक के लिए अनुरोध किए जाने के बाद से नई दिल्ली ने इस पर कोई प्रतिबद्धता नहीं जताई. हालांकि ये कहा था कि इस पर विचार किया जा रहा है. पर्यवेक्षकों का मानना ​​है कि इस तरह की बैठक के लिए भारत की अनिच्छा रणनीतिक विचारों और घरेलू राजनीतिक संवेदनशीलता दोनों में निहित थी. बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के पास लोकतांत्रिक जनादेश नहीं है. साथ ही इस सरकार का सत्ता में आना विवादास्पद बना हुआ है. इसलिए भारत ने भी इसी तरह की नीति अपनाई है.

बता दें कि अगस्त 2024 में प्रधानमंत्री शेख हसीना के सत्ता से बाहर होने के बाद बांग्लादेश में राजनीतिक संकट पैदा हुआ. भारी अराजकता और छात्रों की क्रांति के बाद हसीना को सत्ता से हटना पड़ा. बड़े पैमाने पर विद्रोह की स्थिति बनी रही. शेख हसीना का डेढ़ दशक लंबा शासन अचानक ही खत्म हो गया. उसके बाद से वहां पर अंतरिम सरकार है.

हसीना के बांग्लादेश की सत्ता से बाहर होने के तुरंत बाद मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन हुआ. हसीना के भारत में शरण लेने के बाद से ही दोनों दक्षिण एशियाई पड़ोसियों के बीच संबंध सामान्य नहीं हैं, हालांकि दिसंबर 2024 में विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने संरचित विदेश कार्यालय परामर्श के लिए ढाका का दौरा किया था.

उसी दौर में, बांग्लादेश के अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आईसीटी) ने अगस्त में हुए उथल-पुथल के बाद देश छोड़कर भागी हसीना और उनके कई सहयोगियों के प्रत्यर्पण का आदेश दिया था.

हसीना के सत्ता से बाहर होने के बाद बांग्लादेश के राजनीतिक परिदृश्य में कट्टरपंथी इस्लामी तत्वों के उदय के कारण धार्मिक अल्पसंख्यकों, खासकर हिंदुओं के खिलाफ हिंसा हुई. भारत इन घटनाक्रमों पर अपनी चिंता व्यक्त करता रहा है.

वहीं अगस्त 2024 में सत्ता संभालने के बाद यूनुस ने भारत विरोधी कई बातें कहीं. हालांकि, एक ब्रिटिश मीडिया आउटलेट को दिए इंटरव्यू में यूनुस ने कहा कि बांग्लादेश के लिए भारत के साथ अच्छे संबंधों के अलावा कोई विकल्प नहीं है. यूनुस ने दावा किया कि भारत के साथ बांग्लादेश के संबंध "बहुत अच्छे" हैं और "हमारे संबंध हमेशा बहुत अच्छे रहेंगे".

वहीं भारत की ओर से पीएम मोदी ने 26 मार्च को बांग्लादेश के स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर यूनुस और भारत के पूर्वी पड़ोसी देश के लोगों को शुभकामनाएं दीं.

तब मोदी ने अपने संदेश में कहा, "यह दिन हमारे साझा इतिहास और बलिदान का प्रमाण है, जिसने हमारी द्विपक्षीय साझेदारी की नींव रखी है." "बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम की भावना हमारे संबंधों के लिए मार्गदर्शक बनी हुई है, जो कई क्षेत्रों में फली-फूली है और हमारे लोगों को ठोस लाभ पहुंचा रही है."

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत “इस साझेदारी को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है, जो शांति, स्थिरता और समृद्धि के लिए हमारी साझा आकांक्षाओं से प्रेरित है और एक-दूसरे के हितों और चिंताओं के प्रति आपसी संवेदनशीलता पर आधारित है.” इसके बाद पीएम मोदी ने ईद-उल-फितर से पहले यूनुस को अपनी शुभकामनाएं दीं.

मोदी ने अपने संदेश में लिखा, "रमजान का पवित्र महीना संपन्न होने वाला है. मैं इस अवसर पर आपको और बांग्लादेश के लोगों को ईद-उल-फितर की खुशी के मौके पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं देता हूं." "इस पवित्र महीने में, इस्लाम धर्म के 200 मिलियन भारतीय अपने दुनिया भर के भाइयों और बहनों के साथ उपवास और प्रार्थना में पवित्र समय बिताने में शामिल हुए. ईद-उल-फितर का खुशी का अवसर उत्सव, चिंतन, कृतज्ञता और एकता का समय है. यह हमें करुणा, उदारता और एकजुटता के मूल्यों की याद दिलाता है जो हमें राष्ट्रों और वैश्विक समुदाय के सदस्यों के रूप में एक साथ बांधते हैं."

विश्व के लिए मोदी ने शांति, सद्भाव, स्वास्थ्य और खुशहाली की कामना की. इसके साथ ही भारत और बांग्लादेश के बीच मित्रता और मजबूत होने की आशा व्यक्त की.

गौर करें तो पीएम मोदी और मो. यूनुस के बीच बैंकॉक में संभावित मुलाकात की खबरें बीते महीने यूनुस की चीन यात्रा के बाद आई हैं. इस दौरे पर उन्होंने ऐसे बयान दिए जो भारत के हितों के प्रतिकूल लग रहे थे. उन्होंने चीनी निवेशकों को तीस्ता नदी जल प्रबंधन परियोजना में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया. तीस्ता नदी जल प्रबंधन परियोजना को पहले शेख हसीना ने भारत को सौंपा था. इसके साथ ही सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो में यूनुस ने अपने देश में चीन के आर्थिक प्रभाव को संबोधित करते हुए कहा: "भारत के 7 राज्य, भारत का पूर्वी भाग, जो सेवन सिस्टर्स कहलाते हैं. वे भारत का एक भू-आबद्ध क्षेत्र हैं. उनके पास समुद्र तक पहुँचने का कोई रास्ता नहीं है."

मो यूनुस ने चीन में ही बांग्लादेश को भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए "महासागर का संरक्षक" बताया था. इस बयान से भारत में राजनीतिक दलों से ऊपर उठकर गुस्सा भड़क उठा.

इन सबके मद्देनजर बैंकॉक में मोदी और यूनुस के बीच संभावित बैठक भारत-बांग्लादेश संबंधों में एक खास पल होगा. इस मीटिंग के जरिए भारत सीमा पार सुरक्षा, व्यापार समझौतों और क्षेत्रीय संपर्क परियोजनाओं पर नए प्रशासन के रुख पर स्पष्टता चाहता है.

जान लें कि बैंकॉक शिखर सम्मेलन के बाद बांग्लादेश बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल (बिम्सटेक) की अध्यक्षता संभालेगा. साल 1997 में गठित बिम्सटेक में बंगाल की खाड़ी के तटीय और आसपास के क्षेत्रों में स्थित 7 देश शामिल हैं. इस संगठन में बांग्लादेश, भूटान, भारत, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका और थाईलैंड देश हैं. इस समूह में 1.73 बिलियन लोग शामिल हैं और साल 2023 तक इसका संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद 5.2 ट्रिलियन डॉलर था.

बिम्सटेक में भारत भारी निवेश कर रहा है, क्योंकि BIMSTEC दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच पुल का काम करता है. यह निवेश रणनीतिक, आर्थिक और भू-राजनीतिक अनिवार्यताओं से प्रेरित है. भारत का ये निवेश क्षेत्रीय स्थिरता और विकास के लिए भारत के दृष्टिकोण से मेल खाता है.

इसको लेकर भारत में पर्यवेक्षक बैंकॉक में बिम्सटेक शिखर सम्मेलन के दौरान मोदी और यूनुस के बीच औपचारिक द्विपक्षीय बैठक को लेकर अब भी कुछ कह पाने की स्थिति में नहीं हैं.

बांग्लादेश की राजनीति और अर्थव्यवस्था पर गहरी पकड़ रखने वाले एक भारतीय विशेषज्ञ ने नाम न बताने की शर्त पर ईटीवी भारत को बताया, "देखिए, ब्लॉक के सभी नेता एक ही समय में प्लेनरी हॉल में मौजूद रहेंगे. इसलिए, वे एक-दूसरे का अभिवादन करने से नहीं बच सकते. मैं जो देख सकता हूं, वह यह है कि पीएम मोदी और मो यूनुस एक-दूसरे का अभिवादन करेंगे."

बांग्लादेश और भारत में राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव के बीच मोदी और यूनुस की संभावित मुलाकात द्विपक्षीय संबंधों के भविष्य के बारे में एक दिशा दे सकती है. बीते दौर में देखा गया है कि भारत ने शेख हसीना के नेतृत्व में ढाका के साथ पारंपरिक रूप से मजबूत रिश्ते बनाए थे. लेकिन प्रमुख मुद्दों पर बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का दीर्घकालिक रुख अब भी स्पष्ट नहीं है. यह बैठक नीतिगत निरंतरता की ओर ले जाती है या भारत-बांग्लादेश संबंधों में बदलाव का संकेत देती है. यह इन नेताओं की चर्चाओं के परिणामों पर निर्भर करेगी. इसके साथ ही आने वाले महीनों में बांग्लादेश में व्यापक राजनीतिक संभावना पर भी निर्भर करेगा.

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ढाका में राजनीतिक बदलाव के बीच भारत अपनी क्षेत्रीय रणनीति को नए सिरे से तैयार कर रहा है. बांग्लादेश में मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 4 अप्रैल को बैंकॉक में बिम्सटेक शिखर सम्मेलन के दौरान बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस से मुलाकात कर सकते हैं.

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इस बीच, यूनाइटेड न्यूज ऑफ बांग्लादेश (यूएनबी) ने एक सूत्र के हवाले से बताया कि ऐसी बैठक की संभावना है.

गौर करें तो बीते महीने ढाका द्वारा बिम्सटेक शिखर सम्मेलन में इस तरह की बैठक के लिए अनुरोध किए जाने के बाद से नई दिल्ली ने इस पर कोई प्रतिबद्धता नहीं जताई. हालांकि ये कहा था कि इस पर विचार किया जा रहा है. पर्यवेक्षकों का मानना ​​है कि इस तरह की बैठक के लिए भारत की अनिच्छा रणनीतिक विचारों और घरेलू राजनीतिक संवेदनशीलता दोनों में निहित थी. बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के पास लोकतांत्रिक जनादेश नहीं है. साथ ही इस सरकार का सत्ता में आना विवादास्पद बना हुआ है. इसलिए भारत ने भी इसी तरह की नीति अपनाई है.

बता दें कि अगस्त 2024 में प्रधानमंत्री शेख हसीना के सत्ता से बाहर होने के बाद बांग्लादेश में राजनीतिक संकट पैदा हुआ. भारी अराजकता और छात्रों की क्रांति के बाद हसीना को सत्ता से हटना पड़ा. बड़े पैमाने पर विद्रोह की स्थिति बनी रही. शेख हसीना का डेढ़ दशक लंबा शासन अचानक ही खत्म हो गया. उसके बाद से वहां पर अंतरिम सरकार है.

हसीना के बांग्लादेश की सत्ता से बाहर होने के तुरंत बाद मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन हुआ. हसीना के भारत में शरण लेने के बाद से ही दोनों दक्षिण एशियाई पड़ोसियों के बीच संबंध सामान्य नहीं हैं, हालांकि दिसंबर 2024 में विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने संरचित विदेश कार्यालय परामर्श के लिए ढाका का दौरा किया था.

उसी दौर में, बांग्लादेश के अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आईसीटी) ने अगस्त में हुए उथल-पुथल के बाद देश छोड़कर भागी हसीना और उनके कई सहयोगियों के प्रत्यर्पण का आदेश दिया था.

हसीना के सत्ता से बाहर होने के बाद बांग्लादेश के राजनीतिक परिदृश्य में कट्टरपंथी इस्लामी तत्वों के उदय के कारण धार्मिक अल्पसंख्यकों, खासकर हिंदुओं के खिलाफ हिंसा हुई. भारत इन घटनाक्रमों पर अपनी चिंता व्यक्त करता रहा है.

वहीं अगस्त 2024 में सत्ता संभालने के बाद यूनुस ने भारत विरोधी कई बातें कहीं. हालांकि, एक ब्रिटिश मीडिया आउटलेट को दिए इंटरव्यू में यूनुस ने कहा कि बांग्लादेश के लिए भारत के साथ अच्छे संबंधों के अलावा कोई विकल्प नहीं है. यूनुस ने दावा किया कि भारत के साथ बांग्लादेश के संबंध "बहुत अच्छे" हैं और "हमारे संबंध हमेशा बहुत अच्छे रहेंगे".

वहीं भारत की ओर से पीएम मोदी ने 26 मार्च को बांग्लादेश के स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर यूनुस और भारत के पूर्वी पड़ोसी देश के लोगों को शुभकामनाएं दीं.

तब मोदी ने अपने संदेश में कहा, "यह दिन हमारे साझा इतिहास और बलिदान का प्रमाण है, जिसने हमारी द्विपक्षीय साझेदारी की नींव रखी है." "बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम की भावना हमारे संबंधों के लिए मार्गदर्शक बनी हुई है, जो कई क्षेत्रों में फली-फूली है और हमारे लोगों को ठोस लाभ पहुंचा रही है."

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि भारत “इस साझेदारी को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है, जो शांति, स्थिरता और समृद्धि के लिए हमारी साझा आकांक्षाओं से प्रेरित है और एक-दूसरे के हितों और चिंताओं के प्रति आपसी संवेदनशीलता पर आधारित है.” इसके बाद पीएम मोदी ने ईद-उल-फितर से पहले यूनुस को अपनी शुभकामनाएं दीं.

मोदी ने अपने संदेश में लिखा, "रमजान का पवित्र महीना संपन्न होने वाला है. मैं इस अवसर पर आपको और बांग्लादेश के लोगों को ईद-उल-फितर की खुशी के मौके पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं देता हूं." "इस पवित्र महीने में, इस्लाम धर्म के 200 मिलियन भारतीय अपने दुनिया भर के भाइयों और बहनों के साथ उपवास और प्रार्थना में पवित्र समय बिताने में शामिल हुए. ईद-उल-फितर का खुशी का अवसर उत्सव, चिंतन, कृतज्ञता और एकता का समय है. यह हमें करुणा, उदारता और एकजुटता के मूल्यों की याद दिलाता है जो हमें राष्ट्रों और वैश्विक समुदाय के सदस्यों के रूप में एक साथ बांधते हैं."

विश्व के लिए मोदी ने शांति, सद्भाव, स्वास्थ्य और खुशहाली की कामना की. इसके साथ ही भारत और बांग्लादेश के बीच मित्रता और मजबूत होने की आशा व्यक्त की.

गौर करें तो पीएम मोदी और मो. यूनुस के बीच बैंकॉक में संभावित मुलाकात की खबरें बीते महीने यूनुस की चीन यात्रा के बाद आई हैं. इस दौरे पर उन्होंने ऐसे बयान दिए जो भारत के हितों के प्रतिकूल लग रहे थे. उन्होंने चीनी निवेशकों को तीस्ता नदी जल प्रबंधन परियोजना में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया. तीस्ता नदी जल प्रबंधन परियोजना को पहले शेख हसीना ने भारत को सौंपा था. इसके साथ ही सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो में यूनुस ने अपने देश में चीन के आर्थिक प्रभाव को संबोधित करते हुए कहा: "भारत के 7 राज्य, भारत का पूर्वी भाग, जो सेवन सिस्टर्स कहलाते हैं. वे भारत का एक भू-आबद्ध क्षेत्र हैं. उनके पास समुद्र तक पहुँचने का कोई रास्ता नहीं है."

मो यूनुस ने चीन में ही बांग्लादेश को भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए "महासागर का संरक्षक" बताया था. इस बयान से भारत में राजनीतिक दलों से ऊपर उठकर गुस्सा भड़क उठा.

इन सबके मद्देनजर बैंकॉक में मोदी और यूनुस के बीच संभावित बैठक भारत-बांग्लादेश संबंधों में एक खास पल होगा. इस मीटिंग के जरिए भारत सीमा पार सुरक्षा, व्यापार समझौतों और क्षेत्रीय संपर्क परियोजनाओं पर नए प्रशासन के रुख पर स्पष्टता चाहता है.

जान लें कि बैंकॉक शिखर सम्मेलन के बाद बांग्लादेश बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल (बिम्सटेक) की अध्यक्षता संभालेगा. साल 1997 में गठित बिम्सटेक में बंगाल की खाड़ी के तटीय और आसपास के क्षेत्रों में स्थित 7 देश शामिल हैं. इस संगठन में बांग्लादेश, भूटान, भारत, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका और थाईलैंड देश हैं. इस समूह में 1.73 बिलियन लोग शामिल हैं और साल 2023 तक इसका संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद 5.2 ट्रिलियन डॉलर था.

बिम्सटेक में भारत भारी निवेश कर रहा है, क्योंकि BIMSTEC दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच पुल का काम करता है. यह निवेश रणनीतिक, आर्थिक और भू-राजनीतिक अनिवार्यताओं से प्रेरित है. भारत का ये निवेश क्षेत्रीय स्थिरता और विकास के लिए भारत के दृष्टिकोण से मेल खाता है.

इसको लेकर भारत में पर्यवेक्षक बैंकॉक में बिम्सटेक शिखर सम्मेलन के दौरान मोदी और यूनुस के बीच औपचारिक द्विपक्षीय बैठक को लेकर अब भी कुछ कह पाने की स्थिति में नहीं हैं.

बांग्लादेश की राजनीति और अर्थव्यवस्था पर गहरी पकड़ रखने वाले एक भारतीय विशेषज्ञ ने नाम न बताने की शर्त पर ईटीवी भारत को बताया, "देखिए, ब्लॉक के सभी नेता एक ही समय में प्लेनरी हॉल में मौजूद रहेंगे. इसलिए, वे एक-दूसरे का अभिवादन करने से नहीं बच सकते. मैं जो देख सकता हूं, वह यह है कि पीएम मोदी और मो यूनुस एक-दूसरे का अभिवादन करेंगे."

बांग्लादेश और भारत में राजनीतिक परिदृश्य में बदलाव के बीच मोदी और यूनुस की संभावित मुलाकात द्विपक्षीय संबंधों के भविष्य के बारे में एक दिशा दे सकती है. बीते दौर में देखा गया है कि भारत ने शेख हसीना के नेतृत्व में ढाका के साथ पारंपरिक रूप से मजबूत रिश्ते बनाए थे. लेकिन प्रमुख मुद्दों पर बांग्लादेश की अंतरिम सरकार का दीर्घकालिक रुख अब भी स्पष्ट नहीं है. यह बैठक नीतिगत निरंतरता की ओर ले जाती है या भारत-बांग्लादेश संबंधों में बदलाव का संकेत देती है. यह इन नेताओं की चर्चाओं के परिणामों पर निर्भर करेगी. इसके साथ ही आने वाले महीनों में बांग्लादेश में व्यापक राजनीतिक संभावना पर भी निर्भर करेगा.

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