नई दिल्ली: विश्व वन्यजीव दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात में शेरों को देखने का भरपूर आनंद लिया होगा, लेकिन दुख की बात है कि जंगल में हालात ठीक नहीं हैं. जब वनों और वन्यजीवों के संरक्षण की दिशा में कदम उठाने की बात आती है, तो मोदी सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती है - अवैध कटाई और खनन. एक रिपोर्ट यह भी बताती है कि भारत 2070 तक वन्यजीव मानव संघर्ष के लिए ग्लोबल हॉटस्पॉट बन सकता है.
आइए हम हाल की रिपोर्टों को देखकर इसकी शुरुआत करते हैं. अधिकांश राज्य असामान्य रूप से उच्च पशु-मानव नकारात्मक संबंधों का अनुभव कर रहे हैं. उदाहरण के लिए पिछले महीने लखनऊ में एक तेंदुआ कथित तौर पर एक शादी में घुस आया था, लेकिन अन्य जिलों में इससे कहीं अधिक भयावह स्थिति की सूचना मिल रही है.
बिजनौर में पिछले सप्ताह ही 28वें तेंदुए के शिकार की सूचना मिली थी. खबर में आगे कहा गया है कि जिले में गन्ने के खेतों में अभी भी लगभग 500 तेंदुए डेरा डाले हुए हैं. प्रभावित ग्रामीणों ने मवेशियों और खुद की सुरक्षा के लिए पहले ही लोहे के जाल का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. रात के समय ग्रामीणों को बंद कर दिया जाता है और तेंदुए के हमलों से परेशान लोग केवल समूहों में ही बाहर निकल रहे हैं.

2020-22 तेंदुए के हमले के 98 मामले
2020-22 के बीच एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पिछले दो साल में राज्य में मानव और बड़ी बिल्ली के संघर्ष के 98 मामले सामने आए हैं. अकेले उत्तर प्रदेश में बाघों के हमलों ने पिछले तीन वर्षों में सात लोगों की जान ले ली है.
जनवरी के मध्य में बिजनौर के नजदीक देहरादून में एक और बच्चे पर तेंदुए ने हमला किया. तमिलनाडु के दक्षिण में वेल्लोर में एक और तेंदुए के हमले में 22 वर्षीय महिला की मौत हो गई. महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ जैसे अन्य राज्यों में भी तेंदुए के हमले हो रहे हैं, लेकिन समस्या सिर्फ बिग कैट तक ही सीमित नहीं है.
हाथियों के हमलों में भी इजाफा
हाथियों के हमले बड़ी समस्या हैं. भारत में 2024 में हाथियों के हमलों के कारण 2829 लोगों की मौत की सूचना है. जब हम वार्षिक आंकड़ों को देखते हैं तो पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2023-24 में सबसे अधिक 629 लोगों की मौत हुई और उसके बाद 2022-23 में 605 लोगों की मौत हुई.
छत्तीसगढ़ 595 लोगों की जान जा चुकी है
छत्तीसगढ़ में 2024 तक 11 सालों में करीब 595 लोगों की जान जा चुकी है. इस बीच जंगलों के पास बसे छोटे शहरों और गांवों को हर मौसम में वन्यजीवों और खास तौर पर हाथियों से खतरा बना हुआ है. सीएम के निर्वाचन क्षेत्र के काफी करीब जशपुर को भी हाथियों ने नहीं बख्शा है, लेकिन अभी तक वनों की कटाई रोकने या नकारात्मक मानव-पशु संबंधों की रोकथाम के लिए हरित गलियारे बनाने के लिए कोई नीति नहीं बनाई गई है. राज्य में अवैध खनन और कटाई भी बढ़ रही है.

पांच साल में बाघों ने ली 349 लोगों की जान
वहीं, अगर बात करें दक्षिण भारत की तो केरल में भी वन्यजीवों के साथ होने वाले नकारात्मक व्यवहार की बहुत अधिक संख्या में रिपोर्ट की गई है, खास तौर पर 2018-19 की अवधि के दौरान, जिसके परिणामस्वरूप हर साल कई मौतें हुईं. वर्ष 2024 में, 57 लोग इन संघर्षों के कारण मारे गए.सरकार की रिपोर्ट बताती है कि 2019-2024 में बाघों के हमलों में 349 लोग मारे गए. अकेले महाराष्ट्र में 200 मौतें दर्ज की गईं और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) के अनुसार 2012 से अब तक अवैध शिकार के कारण 227 बाघ मारे गए, जिसमें मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र सबसे ऊपर हैं.
नीलगायों का खतरा
वहीं, नीलगायों का उत्तर भारत में कृषि क्षेत्र में बहुत बड़ा संकट रहा है. राजस्थान, यूपी, बिहार आदि में नीलगायों का कहर हर मौसम में देखने को मिलता है. बिहार में यह समस्या इतनी गंभीर है कि सरकार अब उन्हें मारने पर उतर आई है. अगर हम महाराष्ट्र का उदाहरण लें तो वन विभाग हिरण, नीलगाय और जंगली सूअरों से फसल को हुए नुकसान की भरपाई के लिए हर साल 150 करोड़ रुपये का भुगतान करता है.
यूपी के सीएम आदित्यनाथ ने सितंबर 2024 में लोकभवन में बोलते हुए कहा था, "अगर जंगल जलेंगे, तो पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा और भूस्खलन होगा. न केवल वन्यजीव, बल्कि मनुष्यों को भी असामयिक जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों का सामना करना पड़ेगा. वनों की कमी के कारण मानव-वन्यजीव संघर्ष होता है."
एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले 5 साल में वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के तहत गैर-वन गतिविधियों के लिए करीब 1 लाख हेक्टेयर वन भूमि का उपयोग किया गया. अब कोई यह कह सकता है कि यूपी के सीएम आदित्यनाथ द्वारा वनों की कटाई को अकेले दोष देना आसान है, इसके कई कारण हैं- जिसमें तेंदुए और हाथी जैसी प्रजातियों की अनुकूलनशीलता और लचीलापन, जलवायु पैटर्न में बदलाव, मानव बस्तियों के पास भोजन की आसान पहुंच आदि शामिल हैं, लेकिन इससे भी वास्तविकता कम नहीं होती. वनों की कटाई एक बड़ा संकट है जो जानवरों और मानव जीवन दोनों को प्रभावित कर रहा है.
मोदी सरकार में वनों की कटाई बढ़ी
मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से वनों की कटाई की गति में वृद्धि हुई है. कोंकण क्षेत्र में अवैध कटाई के कारण अकेले 2014-2019 के बीच दक्षिण कोंकण में 1600 एकड़ भूमि नष्ट हो गई. पूर्वोत्तर राज्यों की एक और रिपोर्ट चिंताजनक है, पूर्वोत्तर राज्यों ने 2001-23 के बीच 17,650 वर्ग किलोमीटर वृक्षों का आवरण खो दिया है, जो दिल्ली के क्षेत्रफल का लगभग 12 गुना है.
2019 में पहले कार्यकाल के अंत तक 1.2 लाख हेक्टेयर वनों का नुकसान होने की सूचना मिली थी. एक अन्य मीडिया रिपोर्ट बताती है कि भारत ने पिछले दो दशकों में 2.33 मिलियन हेक्टेयर से अधिक वृक्षों का आवरण खो दिया है. अब ये बढ़े हुए हरित आवरण और वन वन्यजीवों के हमलों में वृद्धि के साथ नहीं चलते. ये दोनों तथ्य एक दूसरे का खंडन करते हैं. क्योंकि अगर जंगलों और वनों में पर्याप्त जगह और भोजन है, तो जानवर मानव बस्तियों, खासकर पुणे और लखनऊ जैसे शहरों में क्यों आएंगे?
जैसा कि पहले बताया गया है कि इसके अन्य कारण भी हैं, लेकिन अगर वनों की कटाई और अवैध कटाई में वृद्धि और नकारात्मक मानव-पशु संबंधों की बढ़ती संख्या पर गौर किया जाए तो इसके पीछे कोई अदृश्य हाथ हो सकता है. अवैध कटाई और खनन कार्य भी पशु गलियारों पर अतिरिक्त दबाव डाल रहे हैं और मानव-पशु संघर्ष को बढ़ा रहे हैं.
अब अगर सरकार अभी भी पशु-मानव नकारात्मक संबंधों के लिए वैश्विक हॉटस्पॉट बनने से बचना चाहती है, तो उसे देश के सभी हिस्सों में, खासकर भाजपा शासित राज्यों में अवैध कटाई को रोकने के लिए अपनी पूरी ताकत लगानी चाहिए. छत्तीसगढ़ जैसे अधिक वन और हरित आवरण वाले राज्यों को संरक्षण के लिए प्राथमिकता दी जानी चाहिए. राज्यों के बीच हरित गलियारे बनाने पर अतिरिक्त धन खर्च किया जाना चाहिए ताकि हाथी और बाघ जैसे बड़े जानवर मानव गांवों को परेशान किए बिना स्वतंत्र रूप से घूम सकें.
मोदी सरकार को कमर कसनी चाहिए और इकोसिस्टम और वन्यजीव संतुलन को बहाल करने की दिशा में कदम उठाना चाहिए और मुनाफे के लिए पर्यावरण कानूनों को और कमजोर नहीं करना चाहिए. यह हमारे 'वसुधैव कुटुंबकम' के दर्शन की असली कसौटी होगी. पीएम मोदी को हमारी जैव विविधता की रक्षा करने और हमारे जानवरों को एक नया आवास देने के लिए अवैध लकड़ी मिलों, लकड़हारों और खनन कार्यों पर कड़ी कार्रवाई करने की जरूरत है.
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