ETV Bharat / opinion

PLA चीन की आर्म्ड फोर्स नहीं, CPC की सशस्त्र सेना है, आखिर क्या है ऐसी मजबूरी? - CHINA ARMED FORCE

पिछले कुछ सालों से पीएलए के भीतर भ्रष्टाचार के आरोपों में सीनियर जनरलों को हटाया जा रहा है. शायद यही वजह है कि, कई लोगों ने पेशेवराना व्यवहार और प्रशिक्षण के बजाय शी जिनपिंग के प्रति अपनी वफादारी दिखाना शुरू कर दिया है.

चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग चीनी जन राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन के समापन समारोह में,
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग चीनी जन राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन के समापन समारोह में, फाइल फोटो (AP)
author img

By Major General Harsha Kakar

Published : March 24, 2025 at 7:38 PM IST

8 Min Read

प्रत्येक देश के पास बाहरी और आंतरिक दोनों ही तरह के खतरों से खुद को बचाने के लिए एक सशस्त्र बल होता है. इन बलों को बढ़ाने, बनाए रखने और बनाए रखने का खर्च राष्ट्रीय खजाने से आता है, जिसका भुगतान करदाता करते हैं. इसलिए, सशस्त्र बल निर्वाचित प्राधिकार के अधीन होते हैं, संविधान के प्रति निष्ठा रखते हैं और जब भी जरूरत होती है अपने नागरिकों का समर्थन और सहायता करने के लिए मौजूद रहते हैं. हालांकि, इसके अपवाद भी हैं.

अगर पाकिस्तान की बात करें तो यहां की सेना के पास एक राष्ट्र है. यहां सेना के जनरल के पास सबकुछ है. वे अमीर और समृद्ध होते हैं और वहीं यहां के लोग गरीब होते चले जाते हैं. पाकिस्तान एक ऐसा देश है जो वैश्विक वित्त पोषण संगठनों से कर्ज और सहयोगियों से मिलने वाली खैरात पर जिंदा रहता है. वहीं, निरंकुश चीन की बात करें तो यहां की जनता की आवाज को दबा दिया जाता है. चीन का लीडरशीप हमेशा असंतुष्ट और दुखी आबादी से निकलने वाले गुस्से से खुद को असहज महसूस करता है और उनसे डरता है. चीन में जनता को उनकी स्वतंत्रता से वंचित कर दिया है.

शी जिनपिंग नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के समापन समारोह के दौरान, फाइल फोटो
शी जिनपिंग नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के समापन समारोह के दौरान, फाइल फोटो (AP)

चीन के नेतृत्व को अपने अस्तितव को सुरक्षित रखने के लिए अपने और जनता के बीच फोर्स की आवश्यकता है. शायद इसलिए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और उनकी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) ने पीएलए (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) और उसके अंगों को अपने और आबादी के बीच में ला खड़ा किया है.

पीएलए सीएमसी (केंद्रीय सैन्य आयोग) के अधीन है, जिसके प्रमुख शी जिनपिंग खुद हैं. यहां तक कि, पीपुल्स आर्म्ड पुलिस (पीएपी), जो इसका प्रमुख अर्धसैनिक बल है, सीएमसी के माध्यम से शी द्वारा कंट्रोल किया जाता है. यह केवल चीन में ही है कि सशस्त्र बलों को आधिकारिक तौर पर 'चीन के सशस्त्र बलों' के बजाय ‘सत्तारूढ़ पार्टी (सीसीपी) की एक सशस्त्र शाखा कहा जाता है. यहां पॉलिटिक्ल कंट्रोल इतना है कि 2014 में, कई सीनियर जनरलों ने रक्षा और सैन्य रणनीति पर उनके विचारों को लागू करने की कसम खाकर शी जिनपिंग के प्रति वफादारी की शपथ ली.

पिछले कुछ सालों से पीएलए के भीतर एक तरह से सफाई अभियान चल रहा है. इस अभियान के तहत भ्रष्टाचार के आरोपों में सीनियर जनरलों को हटाया जा रहा है. ऐसी अफवाहें हैं कि ये पीएलए के भीतर सत्ता के लिए आंतरिक संघर्ष से भी जुड़े हैं. 2012 से रक्षा मंत्रियों सहित 160 से अधिक वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं. उनकी जगह प्रमोट किए जा रहे लोगों को पता है कि अगला नंबर उनका हो सकता है. शायद यही वजह है कि, कई लोगों ने पेशेवराना व्यवहार और प्रशिक्षण के बजाय सीसीपी और शी जिनपिंग के प्रति वफादारी दिखाने पर अपना ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया है.

पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए)
पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) (AFP)

एक सैनिक की लड़ने की प्रेरणा उसके राष्ट्र के प्रति कर्तव्य और जिम्मेदारी की भावना से पैदा होती है. यह उस सम्मान से भी उत्पन्न होती है जो राष्ट्र उसे देता है. भारतीय सैनिक राष्ट्र के प्रति निष्ठा की शपथ लेता है, जो उसके परिवार की देखभाल करने के लिए जिम्मेदार है. भले ही वह अपनी जान देश की सुरक्षा के लिए कुर्बान कर दे. भारतीय सशस्त्र बल न केवल लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हैं, बल्कि जरूरत पड़ने पर सहायता के लिए भी मौजूद रहते हैं.

वे आपदाओं के दौरान सबसे पहले प्रतिक्रिया देने वाले होते हैं और केवल चरम स्थितियों में व्यवस्था बहाल करने के लिए तैनात किए जाते हैं. इसलिए, भारतीय सेना देश की सबसे लोकप्रिय और सब लोगों की पसंद आने वाली संस्था बनी हुई है. हालांकि, चीन में ऐसा नहीं है. सीसीपी सैनिकों में रुचि नहीं रखती है, जिनमें से लगभग 66 फीसदी सैनिक भर्ती के तौर पर काम करते हैं.

चीन का एकमात्र उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जनता से खतरे खत्म हो जाएं और इसका शासन सुरक्षित रहे. इसने पीएलए को अपनी नीतियों को अपने ही लोगों के खिलाफ बेरहमी से लागू करने के लिए नियुक्त किया है. भले ही इससे पीएलए की प्रतिष्ठा को कितना भी नुकसान क्यों न हो.

पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए)
पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) (AFP)

साल 1989 में तियानमेन स्क्वायर विद्रोह को बेरहमी से कुचलने के लिए PLA का शोषण किया गया, जिसके परिणामस्वरूप हजारों युवा मारे गए. इनमें से अधिकतर वे लोग मारे गए थे जो शांतिपूर्ण विरोध के लिए एकत्र हुए थे. हांगकांग में छात्र लोकतंत्र विरोध को कुचलने के लिए भी इसे इसी तरह से इस्तेमाल किया गया था.

महामारी के दौरान शी जिनपिंग की कठोर COVID नीतियों को लागू करने के लिए इसे फिर से जिम्मेदार बनाया गया. लाखों लोगों को बिना भोजन और पानी के क्रूर परिस्थितियों में बंद कर दिया गया. उन्हें हथियारों से लैस लोगों द्वारा उनकी कड़ी निगरानी की गई,और विरोध करने वालों को गोली मारने के आदेश दिए गए. वहां यह तबाही थी, लेकिन फिर चीन में यह आम बात है.

वहीं, दूसरी तरफ भारतीय सैनिक कभी पीछे नहीं हटे और गोला-बारूद की कमी और संख्या में अधिक होने के बावजूद अपनी जमीन पर डटे रहे. 1962 में भी, सभी बाधाओं के बावजूद, लगभग हर चौकी पर, भारतीय सैनिकों ने देश और अपने कार्य के प्रति प्रतिबद्धता दिखाते हुए आखिरी आदमी और आखिरी गोली तक लड़ाई लड़ी. इसने सभी बाधाओं के बावजूद करगिल की ऊंचाइयों को फिर से हासिल किया.

वहीं, पीएलए के बारे में कभी भी ऐसा नहीं कहा जा सकता. 1962 में यह केवल संख्या के आधार पर सफल हुए. अभी तक अपने मरने वालों की सही संख्या को स्वीकार नहीं किया है. इसे वियतनाम में हार का सामना करना पड़ा. 1967 में नाथू ला और चो ला में भारतीय सेना द्वारा पराजित किया गया. 1986 में सुमदोरोंग चू और हाल ही में यांग्त्जी में भी यही हाल रहा. जब भी भारत ने बलपूर्वक जवाब दिया है, चीनी सैनिकों ने पीछे हटना शुरू कर दिया.

भारतीय जनता शवों को ले जाती है और अपने मरने वालों को श्रद्धांजलि देती है. यहां भारत में शहर थम गए और लाखों लोग करगिल की लड़ाई और गलवान में हुई झड़पों में मारे गए लोगों के अंतिम संस्कार में शामिल हुए. इस दौरान राष्ट्र सैनिक के साथ खड़ा था.

पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए)
पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) (AFP)

चीन की बात करें तो एक भी बच्चे को खोने का डर असहनीय है. हालांकि, CCP अपने ही लोगों से इतना भयभीत है कि उसने अभी तक गलवान झड़प में अपने वास्तविक नुकसान को स्वीकार नहीं किया है. वे झूठ पे झूठ बोले जा रहे हैं और एक झूठी छवि पेश करते हैं. वहीं, चीन में उन ब्लॉगर्स को गिरफ्तार करते हैं जो मरने वालों के आंकड़ों पर सवाल उठाते हैं. यह साम्यवादी चीन है, जो अपने ही लोगों से सच्चाई छिपा रहा है और डर रहा है कि पीएलए की विफलता से उसकी अपनी जनता को नियंत्रित करने की क्षमता कम हो जाएगी.

दूसरी तरफ लाखों लोग भारतीय सेना में शामिल होने के लिए दौड़ रहे हैं. वहीं चीन में पीएलए के लिए कोई भी इच्छुक नहीं है. चीन से मिली रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि पीएलए में शामिल होने को लेकर चीन शिक्षित युवाओं को आकर्षित करने में विफल रहा है. वहीं जो लोग शामिल होते भी हैं, उनमें से कई पहले अवसर पर ही भाग जाते हैं. जबकि जो लोग पीएलए में बने रहते हैं वे भविष्य के अवसरों के लिए अपनी सेवा का फायदा उठाने के लिए ऐसा करते हैं.

चीनी सेना में 'नाम, नमक और निशान' की कोई अवधारणा नहीं है. पीएलए में हर आदमी अपने लिए है. इसके नेता शी और सीसीपी के प्रति अटूट वफादारी दिखाने के लिए बेताब हैं. यही कारण है कि चीन कॉन्टैक्ट वॉर से बचता है और खतरों और ग्रे जोन युद्ध पर भरोसा करते हुए 'बिना लड़े दुश्मन को वश में करने' की अपनी नीति का प्रचार करता है.

चीन जानता है कि भारतीय सैनिक महापराक्रमी हैं, जिन्हें वे युद्ध के मैदान में कभी नहीं हरा सकते. ऐसा इसलिए है क्योंकि भारतीय सेना एक राष्ट्रीय सेना है, न कि राजनीतिक है. दूसरी ओर, पीएलए मुख्य रूप से सीसीपी और शी जिनपिंग के अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए है, राष्ट्र की रक्षा के लिए नहीं. ऐसी सेना कभी भी लड़ने के लिए प्रेरित नहीं होती है, जिससे सीएमसी को संघर्ष से बचने के लिए वैकल्पिक रणनीति तैयार करने के लिए मजबूर होना पड़ता है.

ये भी पढ़ें: मालदीव ने चीनी रिसर्ज जहाजों को कथित तौर पर प्रवेश की अनुमति दी, भारत के लिए क्यों है चिंता का विषय?

प्रत्येक देश के पास बाहरी और आंतरिक दोनों ही तरह के खतरों से खुद को बचाने के लिए एक सशस्त्र बल होता है. इन बलों को बढ़ाने, बनाए रखने और बनाए रखने का खर्च राष्ट्रीय खजाने से आता है, जिसका भुगतान करदाता करते हैं. इसलिए, सशस्त्र बल निर्वाचित प्राधिकार के अधीन होते हैं, संविधान के प्रति निष्ठा रखते हैं और जब भी जरूरत होती है अपने नागरिकों का समर्थन और सहायता करने के लिए मौजूद रहते हैं. हालांकि, इसके अपवाद भी हैं.

अगर पाकिस्तान की बात करें तो यहां की सेना के पास एक राष्ट्र है. यहां सेना के जनरल के पास सबकुछ है. वे अमीर और समृद्ध होते हैं और वहीं यहां के लोग गरीब होते चले जाते हैं. पाकिस्तान एक ऐसा देश है जो वैश्विक वित्त पोषण संगठनों से कर्ज और सहयोगियों से मिलने वाली खैरात पर जिंदा रहता है. वहीं, निरंकुश चीन की बात करें तो यहां की जनता की आवाज को दबा दिया जाता है. चीन का लीडरशीप हमेशा असंतुष्ट और दुखी आबादी से निकलने वाले गुस्से से खुद को असहज महसूस करता है और उनसे डरता है. चीन में जनता को उनकी स्वतंत्रता से वंचित कर दिया है.

शी जिनपिंग नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के समापन समारोह के दौरान, फाइल फोटो
शी जिनपिंग नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के समापन समारोह के दौरान, फाइल फोटो (AP)

चीन के नेतृत्व को अपने अस्तितव को सुरक्षित रखने के लिए अपने और जनता के बीच फोर्स की आवश्यकता है. शायद इसलिए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और उनकी चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) ने पीएलए (पीपुल्स लिबरेशन आर्मी) और उसके अंगों को अपने और आबादी के बीच में ला खड़ा किया है.

पीएलए सीएमसी (केंद्रीय सैन्य आयोग) के अधीन है, जिसके प्रमुख शी जिनपिंग खुद हैं. यहां तक कि, पीपुल्स आर्म्ड पुलिस (पीएपी), जो इसका प्रमुख अर्धसैनिक बल है, सीएमसी के माध्यम से शी द्वारा कंट्रोल किया जाता है. यह केवल चीन में ही है कि सशस्त्र बलों को आधिकारिक तौर पर 'चीन के सशस्त्र बलों' के बजाय ‘सत्तारूढ़ पार्टी (सीसीपी) की एक सशस्त्र शाखा कहा जाता है. यहां पॉलिटिक्ल कंट्रोल इतना है कि 2014 में, कई सीनियर जनरलों ने रक्षा और सैन्य रणनीति पर उनके विचारों को लागू करने की कसम खाकर शी जिनपिंग के प्रति वफादारी की शपथ ली.

पिछले कुछ सालों से पीएलए के भीतर एक तरह से सफाई अभियान चल रहा है. इस अभियान के तहत भ्रष्टाचार के आरोपों में सीनियर जनरलों को हटाया जा रहा है. ऐसी अफवाहें हैं कि ये पीएलए के भीतर सत्ता के लिए आंतरिक संघर्ष से भी जुड़े हैं. 2012 से रक्षा मंत्रियों सहित 160 से अधिक वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं. उनकी जगह प्रमोट किए जा रहे लोगों को पता है कि अगला नंबर उनका हो सकता है. शायद यही वजह है कि, कई लोगों ने पेशेवराना व्यवहार और प्रशिक्षण के बजाय सीसीपी और शी जिनपिंग के प्रति वफादारी दिखाने पर अपना ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया है.

पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए)
पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) (AFP)

एक सैनिक की लड़ने की प्रेरणा उसके राष्ट्र के प्रति कर्तव्य और जिम्मेदारी की भावना से पैदा होती है. यह उस सम्मान से भी उत्पन्न होती है जो राष्ट्र उसे देता है. भारतीय सैनिक राष्ट्र के प्रति निष्ठा की शपथ लेता है, जो उसके परिवार की देखभाल करने के लिए जिम्मेदार है. भले ही वह अपनी जान देश की सुरक्षा के लिए कुर्बान कर दे. भारतीय सशस्त्र बल न केवल लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए हैं, बल्कि जरूरत पड़ने पर सहायता के लिए भी मौजूद रहते हैं.

वे आपदाओं के दौरान सबसे पहले प्रतिक्रिया देने वाले होते हैं और केवल चरम स्थितियों में व्यवस्था बहाल करने के लिए तैनात किए जाते हैं. इसलिए, भारतीय सेना देश की सबसे लोकप्रिय और सब लोगों की पसंद आने वाली संस्था बनी हुई है. हालांकि, चीन में ऐसा नहीं है. सीसीपी सैनिकों में रुचि नहीं रखती है, जिनमें से लगभग 66 फीसदी सैनिक भर्ती के तौर पर काम करते हैं.

चीन का एकमात्र उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि जनता से खतरे खत्म हो जाएं और इसका शासन सुरक्षित रहे. इसने पीएलए को अपनी नीतियों को अपने ही लोगों के खिलाफ बेरहमी से लागू करने के लिए नियुक्त किया है. भले ही इससे पीएलए की प्रतिष्ठा को कितना भी नुकसान क्यों न हो.

पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए)
पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) (AFP)

साल 1989 में तियानमेन स्क्वायर विद्रोह को बेरहमी से कुचलने के लिए PLA का शोषण किया गया, जिसके परिणामस्वरूप हजारों युवा मारे गए. इनमें से अधिकतर वे लोग मारे गए थे जो शांतिपूर्ण विरोध के लिए एकत्र हुए थे. हांगकांग में छात्र लोकतंत्र विरोध को कुचलने के लिए भी इसे इसी तरह से इस्तेमाल किया गया था.

महामारी के दौरान शी जिनपिंग की कठोर COVID नीतियों को लागू करने के लिए इसे फिर से जिम्मेदार बनाया गया. लाखों लोगों को बिना भोजन और पानी के क्रूर परिस्थितियों में बंद कर दिया गया. उन्हें हथियारों से लैस लोगों द्वारा उनकी कड़ी निगरानी की गई,और विरोध करने वालों को गोली मारने के आदेश दिए गए. वहां यह तबाही थी, लेकिन फिर चीन में यह आम बात है.

वहीं, दूसरी तरफ भारतीय सैनिक कभी पीछे नहीं हटे और गोला-बारूद की कमी और संख्या में अधिक होने के बावजूद अपनी जमीन पर डटे रहे. 1962 में भी, सभी बाधाओं के बावजूद, लगभग हर चौकी पर, भारतीय सैनिकों ने देश और अपने कार्य के प्रति प्रतिबद्धता दिखाते हुए आखिरी आदमी और आखिरी गोली तक लड़ाई लड़ी. इसने सभी बाधाओं के बावजूद करगिल की ऊंचाइयों को फिर से हासिल किया.

वहीं, पीएलए के बारे में कभी भी ऐसा नहीं कहा जा सकता. 1962 में यह केवल संख्या के आधार पर सफल हुए. अभी तक अपने मरने वालों की सही संख्या को स्वीकार नहीं किया है. इसे वियतनाम में हार का सामना करना पड़ा. 1967 में नाथू ला और चो ला में भारतीय सेना द्वारा पराजित किया गया. 1986 में सुमदोरोंग चू और हाल ही में यांग्त्जी में भी यही हाल रहा. जब भी भारत ने बलपूर्वक जवाब दिया है, चीनी सैनिकों ने पीछे हटना शुरू कर दिया.

भारतीय जनता शवों को ले जाती है और अपने मरने वालों को श्रद्धांजलि देती है. यहां भारत में शहर थम गए और लाखों लोग करगिल की लड़ाई और गलवान में हुई झड़पों में मारे गए लोगों के अंतिम संस्कार में शामिल हुए. इस दौरान राष्ट्र सैनिक के साथ खड़ा था.

पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए)
पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) (AFP)

चीन की बात करें तो एक भी बच्चे को खोने का डर असहनीय है. हालांकि, CCP अपने ही लोगों से इतना भयभीत है कि उसने अभी तक गलवान झड़प में अपने वास्तविक नुकसान को स्वीकार नहीं किया है. वे झूठ पे झूठ बोले जा रहे हैं और एक झूठी छवि पेश करते हैं. वहीं, चीन में उन ब्लॉगर्स को गिरफ्तार करते हैं जो मरने वालों के आंकड़ों पर सवाल उठाते हैं. यह साम्यवादी चीन है, जो अपने ही लोगों से सच्चाई छिपा रहा है और डर रहा है कि पीएलए की विफलता से उसकी अपनी जनता को नियंत्रित करने की क्षमता कम हो जाएगी.

दूसरी तरफ लाखों लोग भारतीय सेना में शामिल होने के लिए दौड़ रहे हैं. वहीं चीन में पीएलए के लिए कोई भी इच्छुक नहीं है. चीन से मिली रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि पीएलए में शामिल होने को लेकर चीन शिक्षित युवाओं को आकर्षित करने में विफल रहा है. वहीं जो लोग शामिल होते भी हैं, उनमें से कई पहले अवसर पर ही भाग जाते हैं. जबकि जो लोग पीएलए में बने रहते हैं वे भविष्य के अवसरों के लिए अपनी सेवा का फायदा उठाने के लिए ऐसा करते हैं.

चीनी सेना में 'नाम, नमक और निशान' की कोई अवधारणा नहीं है. पीएलए में हर आदमी अपने लिए है. इसके नेता शी और सीसीपी के प्रति अटूट वफादारी दिखाने के लिए बेताब हैं. यही कारण है कि चीन कॉन्टैक्ट वॉर से बचता है और खतरों और ग्रे जोन युद्ध पर भरोसा करते हुए 'बिना लड़े दुश्मन को वश में करने' की अपनी नीति का प्रचार करता है.

चीन जानता है कि भारतीय सैनिक महापराक्रमी हैं, जिन्हें वे युद्ध के मैदान में कभी नहीं हरा सकते. ऐसा इसलिए है क्योंकि भारतीय सेना एक राष्ट्रीय सेना है, न कि राजनीतिक है. दूसरी ओर, पीएलए मुख्य रूप से सीसीपी और शी जिनपिंग के अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए है, राष्ट्र की रक्षा के लिए नहीं. ऐसी सेना कभी भी लड़ने के लिए प्रेरित नहीं होती है, जिससे सीएमसी को संघर्ष से बचने के लिए वैकल्पिक रणनीति तैयार करने के लिए मजबूर होना पड़ता है.

ये भी पढ़ें: मालदीव ने चीनी रिसर्ज जहाजों को कथित तौर पर प्रवेश की अनुमति दी, भारत के लिए क्यों है चिंता का विषय?

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.