एक थर्मल सिग्नल मल्टीस्पेक्ट्रल सेंसर पर दिखाई देता है. यह एक दुश्मन हथियार की मौजूदगी का संकेत है. कुछ ही माइक्रोसेकंड में, उसकी गर्मी, तोप का आकार, रडार सिग्नल, गतिशीलता, इलेक्ट्रॉनिक उत्सर्जन और ध्वनि की जानकारी एकत्र हो जाती है. यह डेटा एक हाई-टेक, AI-पावर्ड इंटेलिजेंस सिस्टम में जाता है. एक बड़ा लैंग्वेज मॉडल लाखों डिफेंस डेटासेट्स का विश्लेषण करता है और पुष्टि करता है कि यह 'टाइप 09A सेल्फ-प्रोपेल्ड आर्टिलरी' है, जो चीन में बना है.
AI काम जारी रखता है. आसपास के सैटेलाइट्स, ड्रोन और रडार अपने आप टारगेट पर फोकस करते हैं. लाखों हमले के विकल्प बनाए और जांचे जाते हैं. कमांडर के सामने तीन सबसे अच्छे स्ट्राइक विकल्प आते हैं. दूसरा विकल्प एक लॉइटरिंग म्यूनिशन (हवा में चक्कर काटने वाला हथियार) का इस्तेमाल सुझाता है, जो पहले से मौजूद है. कमांडर मंजूरी देता है. हमला होता है. धुआं उठता है.
एक छोटा ड्रोन नजदीक से नुकसान का जायजा लेने जाता है. मिसाइल नष्ट हो चुकी है, लेकिन उसका निचला हिस्सा हल्का हिलता है. AI दूसरा, हल्का हथियार भेजता है. टारगेट पूरी तरह खत्म. यह कोई साइंस फिक्शन नहीं, बल्कि आज की हकीकत है.

युद्धक्षेत्र में सूचनाओं की बाढ़ आती हैः
आज के युद्ध क्षेत्र में सैटेलाइट्स, ड्रोन, सेंसर, इंटरसेप्टेड संदेश और सोशल मीडिया से सूचनाएं बाढ़ की तरह आती हैं. कुछ जानकारी व्यवस्थित होती है, जैसे युद्धक्षेत्र की रिपोर्ट या जीपीएस डेटा. कुछ अव्यवस्थित, जैसे इंटरसेप्टेड बातचीत या टेक्स्ट. हर जानकारी का अपना संदर्भ होता है. मौसम, सैनिकों का मनोबल, या जमीन की स्थिति जैसे अपडेट बहुत जरूरी हैं. ये सब अलग-अलग रूपों में आते हैं, जैसे- तस्वीरें, वीडियो, थर्मल इमेज, मल्टीस्पेक्ट्रल तस्वीरें, और रियल-टाइम ड्रोन फुटेज.
यहां AI फिर से काम आता है. यह लाइव डेटा को पुराने ज्ञान के साथ जोड़ता है. क्लाउड में स्टोर किए गए पेटाबाइट्स डेटा को मशीन लर्निंग, डीप लर्निंग और न्यूरल नेटवर्क्स प्रोसेस करते हैं. क्वांटम कंप्यूटिंग लाखों परिदृश्यों की तुलना करता है. पैटर्न पहचाने जाते हैं. खतरे चिह्नित होते हैं. हर असामान्यता की जांच होती है. अव्यवस्था स्पष्टता में बदल जाती है. AI इंसानों से तेज, साफ, और पहले पूरी तस्वीर देख लेता है.
यह सब दुनिया ने देखा है. यूक्रेन में GIS Arta बिखरी हुई जानकारियों को मिनटों में समन्वित हमलों में बदल देता है. यूक्रेन में, जीआईएस आर्टा बिखरी हुई खुफिया जानकारी को मिनटों में समन्वित हमलों में बदल देता है. चीन में Hikvision और iFlytek जैसे प्लेटफॉर्म युद्धक्षेत्र की रियल-टाइम तस्वीरें PLA कमांड सिस्टम को भेजते हैं, ताकि युद्ध क्षेत्रों पर लगातार नजर रखी जा सके.

AI से संचालित ड्रोन युद्ध:
वैश्विक स्तर पर, यूक्रेन AI-आधारित युद्ध का केंद्र बन चुका है. इसके फर्स्ट पर्सन व्यू (FPV) ड्रोन रूसी कवच को पहचान सकते हैं, लॉक कर सकते और नष्ट करते हैं. लिउटी जैसे घूमते हुए हथियार दृश्य पहचान का उपयोग करते हैं, ताकि सभी संचार खो जाने पर भी वे अपने मार्ग पर बने रहें. AI ने ड्रोन को सोचने वाली और शिकार करने वाली मशीनों में बदल दिया है. इजरायल ने भी गाजा और दक्षिणी लेबनान में निगरानी करने, डेटा साझा करने और मशीन-समन्वित सटीकता के साथ हमला करने के लिए ड्रोन दल तैनात किए हैं
भारत का ऑपरेशन सिंदूर इस युद्धक्षेत्र की हकीकत में निर्णायक कदम था. स्वदेशी NavIC नेविगेशन सिस्टम और AI-आधारित कमांड नेटवर्क से निर्देशित आत्मघाती ड्रोन ने सटीक हमले किए. उन्होंने पहाड़ी इलाकों में नेविगेट किया, इलेक्ट्रॉनिक जैमिंग का सामना किया और शायद मिशन के बीच में लाइव सर्विलांस के आधार पर टारगेट बदले. कोई पायलट नहीं. कोई दूसरा मौका नहीं.
सैन्य लॉजिस्टिक्स और रखरखाव में AI:
पुरानी कहावत है, 'सेना पेट के बल चलती है.' आज यह डेटा के बल पर चलती है. AI रियल-टाइम जानकारी से सप्लाई रास्ते बदलता है, संसाधनों की खपत का अनुमान लगाता है और उपकरण खराब होने से पहले बता देता है. यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी मोर्चा खाली न रहे. अमेरिकी वायुसेना विमान रखरखाव का पूर्वानुमान लगाने, महंगे डाउनटाइम को रोकने और बेड़े की तत्परता में सुधार करने के लिए AI का उपयोग करके लाखों की बचत करती है.

साइबर और सूचना युद्ध में AI:
एआई साइबर युद्ध को ढाल और तलवार दोनों के रूप में पुनर्परिभाषित कर रहा है. यह सैन्य नेटवर्क की रक्षा करता है-असामान्यताओं को पकड़ता है, घुसपैठ का जवाब देता है, और खतरों को तुरंत कम करता है। आक्रामक रूप से, AI अनुकूली मालवेयर बनाता है और बुद्धिमान घुसपैठ करता है, जो मानव हैकर्स से तेजी से कमजोरियों का फायदा उठाता है.
ईरान की इजराइल के खिलाफ AI-आधारित साइबर मुहिम और चीन की स्ट्रैटेजिक सपोर्ट फोर्स द्वारा मशीन लर्निंग से हमलों का जवाब देना और दुश्मन नेटवर्क की कमजोरियां ढूंढना इस दोहरी भूमिका को दर्शाता है.
डिजिटल ढांचे से परे, AI मनोवैज्ञानिक युद्ध को भी बदल रहा है. एल्गोरिदम ऑनलाइन व्यवहार का विश्लेषण करते हैं, भावनाओं के पैटर्न बनाते हैं, और लक्षित प्रचार तैयार करते हैं ताकि फैसले प्रभावित हों. इससे युद्ध और सूचना अभियानों की रेखा धुंधली हो रही है.
नैतिक चुनौतियां और वैश्विक अस्पष्टता:
जैसे-जैसे AI जीवन-मृत्यु के फैसले ले रहा है, नैतिक चुनौतियां बढ़ रही हैं. सबसे उन्नत सिस्टम भी खिलौने वाली बंदूक वाले बच्चे और राइफल वाले सैनिक में फर्क करने में मुश्किल पाते हैं. जटिल माहौल में गलत पहचान विनाशकारी हो सकती है.

यह आपके लिए क्यों मायने रखता है:
ऑपरेशन सिंदूर ने एक महत्वपूर्ण सत्य साबित किया. स्वदेशी सिस्टम जैसे आकाश और NavIC ने युद्धक्षेत्र में विदेशी प्लेटफॉर्म्स को पीछे छोड़ दिया. जैमिंग, दबाव, और रियल-टाइम युद्ध अनिश्चितता में विदेशी सिस्टम कमजोर पड़ते हैं. इसलिए भारत को अपने AI-आधारित युद्ध प्रबंधन सिस्टम बनाने की जरूरत है, जो भारतीय सिद्धांत, उपकरण, और रणनीतिक हकीकतों पर डिजाइन, प्रशिक्षित, और परखे गए हों.
इसके लिए राष्ट्रीय प्रयास चाहिए. सैन्य अनुभवी ऑपरेशनल अनुभव लाएंगे. शिक्षाविद् ढांचा और दृष्टिकोण देंगे. भारत के टेक्नोलॉजिस्ट और इंजीनियरिंग छात्रों को इसे कोड में बदलना होगा. आयातित बुद्धिमत्ता भारतीय युद्ध नहीं जीतेगी. केवल वही AI काम करेगा, जो हमारी सैन्य भाषा बोलता हो.
निष्कर्ष
AI सिर्फ़ एक और उभरती हुई तकनीक नहीं है. यह एक प्रतिमान बदलाव है. यह निर्णय समयसीमा को कम करता है, परिचालन पहुंच का विस्तार करता है. जो राष्ट्र इसके अनुप्रयोग में महारत हासिल करेंगे, वे युद्ध के भविष्य को आकार देंगे. जो देरी करेंगे, वे रणनीतिक रूप से पीछे रह जाएंगे. युद्ध का मैदान अब इंसान बनाम इंसान नहीं है. यह एल्गोरिदम बनाम एल्गोरिदम है. भारत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसका कोड जीत को परिभाषित करे, न कि उसकी अनुपस्थिति को.
(यह लेखक के निजी विचार हैं)
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