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अपने ही इंटेलिजेंस प्रमुख तुलसी पर क्यों भड़के ट्रंप, ईरान मुद्दे पर लगाई लताड़, क्या एलन मस्क की तरह करेंगे बाहर ? - TRUMP VS TULSI

डोनाल्ड ट्रंप भारतीय मूल की तुलसी गैबार्ड से नाराज हैं. तुलसी इंटेलिजेंस निदेशक हैं. क्या है वजह, जानें

Tulsi Gabbard
तुलसी गैबार्ड, यूएस इंटेलिजेंस प्रमुख (X-Account, Tulsi Gabbard)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : June 21, 2025 at 7:28 PM IST

Updated : June 21, 2025 at 7:53 PM IST

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वॉशिंगटन : पहले एलन मस्क, और अब तुलसी गबार्ड. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनों पर ही भरोसा नहीं कर रहे हैं. भारतवंशी तुलसी गबार्ड यूएस नेशनल इंटेलिजेंस की डायरेक्टर हैं. लेकिन ईरान के मुद्दे पर तुलसी के जवाब से ट्रंप उखड़ गए. अब कहा जा रहा है कि ट्रंप उन्हें हटा भी सकते हैं.

तुलसी की नियुक्ति नवंबर 2024 में हुई थी. तुलसी की नियुक्ति को अमेरिका में विचारधारा के स्तर पर एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा था. तुलसी ने बतौर डेमोक्रेट के रूप में अपनी पहचान बनाई थी. वह ट्रंप की मुखर आलोचक थीं. बाद में उनका झुकाव रिपब्लिकंस की ओर हुआ. वैसे भी ट्रंप को अनोखे फैसले लेने के लिए जाना जाता है. उन्होंने अचानक ही तुलसी को इंटेलिजेंस प्रमुख की जिम्मेदारी देकर सबको चौंका दिया. लेकिन एक साल के भीतर ही दोनों के बीच संबंधों में तनाव नजर आ रहा है. यह कुछ-कुछ वैसा ही है, जैसा कि एलन मस्क के साथ हुआ.

एपी न्यूज एजेंसी के मुताबिक तुलसी गैबार्ड से जब किसी ने पूछा कि क्या ईरान के पास न्यूक्लियर बम है, तो उन्होंने साफ तौर पर कहा कि अभी तक की जो जानकारी है, उसके अनुसार ईरान के पास परमाणु बम नहीं है. ट्रंप तुलसी के इस जवाब से असहज हैं.

ट्रंप का जो राजनीतिक रूख रहा है, उससे साफ पर लग रहा है कि वह गैबार्ड से उम्मीद कर रही थीं कि वह उनके पॉलिटिकल नैरेटिव के हिसाब से खुफिया जानकारी को सबके सामने रखेंगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इसलिए ट्रंप ने तुलसी गैबार्ड की टिप्पणी को नजरअंदाज कर दिया.

ट्रंप ने कहा कि ईरान कुछ ही हफ्तों में परमाणु बम बना सकता है. उन्होंने कहा कि तुलसी गैबार्ड क्या कहती हैं, उनसे उन्हें कोई लेना-देना नहीं है, या फिर उन्हें जानकारी ही नहीं होगी. ट्रंप के इस जवाब से हर कौई हैरान हो गया. क्योंकि तुलसी इंटेलिजेंस चीफ हैं, लिहाजा यह माना जा रहा था कि ट्रंप और तुलसी के बीच एक राय होगी. लेकिन अब साफ-साफ लग रहा है कि दोनों के बीच समीकरण बिगड़ चुके हैं. ट्रंप इससे काफी नाराज हैं. इससे पहले भी उदाहरण मौजूद हैं, जब ट्रंप और गैबार्ड के बीच सबकुछ ठीकठाक नहीं लग रहा था. वैसे गैबार्ड ने सारा दोष मीडिया पर मढ़ा.

10 जून को गैबार्ड ने एक सोशल मीडिया एक्स पर एक पोस्ट किया था. इसमें उन्होंने कहा था कि कुछ पॉलिटिकल एलिट और युद्ध प्रेमी परमाणु संपन्न शक्तियों के बीच भय और तनाव को बढ़ावा दे रहे हैं, जिसकी वजह से दुनिया परमाणु विनाश के कगार पर पहुंच गई है. ट्रंप के करीबियों ने इस पोस्ट का विश्लेषण इस तरह से किया कि गैबार्ड नहीं चाहती हैं कि इजराइल किसी भी सूरत में ईरान पर हमला करे.

यानी इस मुद्दे पर दोनों की राय भिन्न-भिन्न रही है. वैसे, 2023 में गैबार्ड ने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की यूक्रेन नीति का विरोध किया था. वह नहीं चाहती थीं कि बाइडेन युद्ध का समर्थन करें. बाइडेन का विरोध करते-करते तुलसी उसी समय ट्रंप की तारीफ करने लगीं और उनके विदेश नीति को बाइडेन की विदेश नीति से बेहतर बताया था.

Iran Israel War
ईरान-इजराइल युद्ध (AP)

ट्रंप ने इस मौके को भुनाया और उन्होंने गैबार्ड का समर्थन किया. ऐसा कहा जाता है कि ट्रंप को राष्ट्रपति चुनाव में इसका फायदा भी मिला. रूढ़िवादियों को ट्रंप के पक्ष में लाने में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई थी. यही वजह थी कि ट्रंप ने नवंबर 2024 में उन्हें नामित कर दिया और वह इंटेलिजेंस प्रमुख बन गईं.

विश्लेषक मानते हैं कि ट्रंप अपने विश्वस्तों को ही बड़ी जिम्मेदारी सौंपते हैं. साथ ही वह वैसे लोगों को भी पंसद करते हैं जो अपने फैसले खुद लेते हैं, न कि किसी पर निर्भर रहकर काम करते हैं. तब गैबार्ड ट्रंप के लिए उपयोगी थीं, क्योंकि उन्होंने चुनाव प्रचार से पहले ही डेमोक्रेट्स की साख को कम करने में मदद की थीं. रूढ़िवादियों का झुकाव ट्रंप की ओर करने में उन्होंने भूमिका निभाई थीं.

ट्रंप ने गैबार्ड को इंटेलिजेंस प्रमुख बनाकर सबको चौंका दिया था. क्योंकि उनका मिलिट्री बैकग्राउंड नहीं था, लिहाजा हर कोई इस फैसले से हैरान था. तुलसी ट्रंप के लिए उपयोगी भी साबित हुईं.

Donald Trump, US President
डोनाल्ड ट्रंप, अमेरिकी राष्ट्रपति (AP)

ट्रंप डीप स्टेट के खिलाफ थे. वे विदेश नीति में हस्तक्षेप विरोधियों पर काफी आक्रामक रह चुके थे. वह चीन पर अपना फोकस करना चाहते थे. इन सारे मुद्दों पर उन्हें इटेलिजेंस प्रमुख का पूरा सहयोग मिला या फिर कह सकते हैं कि उनकी विचाराधारा के अनुसार ही काम हुआ.

लेकिन विश्लेषक मानते हैं कि ट्रंप ऐसे लोगों को तभी तक सहते हैं, जब तक कि वे उनके अनुसार काम करते रहें, जैसे ही वह व्यक्ति स्वतंत्र होकर फैसले लेने लगता है, ट्रंप इसे बर्दाश्त नहीं करते हैं. और एलन मस्क का उदाहरण सबके सामने है.

और अब तुलसी गैबार्ड की बारी लगती है. ऐसा कहा जाता है कि ट्रंप तुलसी के कार्यालय का पर कतरना चाहते थे. वे अपने सारे फैसलों के लिए अपने कैबिनेट के कुछ सहयोगियों पर निर्भर रहने लगे, उन विषयों में भी जिनमें माना जा रहा था कि वह उनका काम नहीं है. यानी ट्रंप गैबार्ड के डिपार्टमेंट की अनदेखी करने लगे.

इसी कड़ी में ईरान का मुद्दा सामने आ गया. ट्रंप ने इस मुद्दे पर कड़ा रूख अपनाया है, जबकि गैबार्ड ने साफ तौर पर इनकार किया था कि ईरान के पास इस समय परमाणु बम बनाने की क्षमता नहीं है. लेकिन स्वतंत्रता का दावा करने वाले नियुक्त लोगों के साथ संबंधों को खराब करने के ट्रंप के पैटर्न की एक लंबी मिसाल है, और अब गबार्ड अगली पंक्ति में हो सकती हैं.

ये भी पढ़ें : ट्रंप और मोदी के नेतृत्व में भारत-अमेरिका साझेदारी और मजबूत होगी, रायसीना डायलॉग में बोलीं तुलसी गबार्ड

वॉशिंगटन : पहले एलन मस्क, और अब तुलसी गबार्ड. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनों पर ही भरोसा नहीं कर रहे हैं. भारतवंशी तुलसी गबार्ड यूएस नेशनल इंटेलिजेंस की डायरेक्टर हैं. लेकिन ईरान के मुद्दे पर तुलसी के जवाब से ट्रंप उखड़ गए. अब कहा जा रहा है कि ट्रंप उन्हें हटा भी सकते हैं.

तुलसी की नियुक्ति नवंबर 2024 में हुई थी. तुलसी की नियुक्ति को अमेरिका में विचारधारा के स्तर पर एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा था. तुलसी ने बतौर डेमोक्रेट के रूप में अपनी पहचान बनाई थी. वह ट्रंप की मुखर आलोचक थीं. बाद में उनका झुकाव रिपब्लिकंस की ओर हुआ. वैसे भी ट्रंप को अनोखे फैसले लेने के लिए जाना जाता है. उन्होंने अचानक ही तुलसी को इंटेलिजेंस प्रमुख की जिम्मेदारी देकर सबको चौंका दिया. लेकिन एक साल के भीतर ही दोनों के बीच संबंधों में तनाव नजर आ रहा है. यह कुछ-कुछ वैसा ही है, जैसा कि एलन मस्क के साथ हुआ.

एपी न्यूज एजेंसी के मुताबिक तुलसी गैबार्ड से जब किसी ने पूछा कि क्या ईरान के पास न्यूक्लियर बम है, तो उन्होंने साफ तौर पर कहा कि अभी तक की जो जानकारी है, उसके अनुसार ईरान के पास परमाणु बम नहीं है. ट्रंप तुलसी के इस जवाब से असहज हैं.

ट्रंप का जो राजनीतिक रूख रहा है, उससे साफ पर लग रहा है कि वह गैबार्ड से उम्मीद कर रही थीं कि वह उनके पॉलिटिकल नैरेटिव के हिसाब से खुफिया जानकारी को सबके सामने रखेंगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इसलिए ट्रंप ने तुलसी गैबार्ड की टिप्पणी को नजरअंदाज कर दिया.

ट्रंप ने कहा कि ईरान कुछ ही हफ्तों में परमाणु बम बना सकता है. उन्होंने कहा कि तुलसी गैबार्ड क्या कहती हैं, उनसे उन्हें कोई लेना-देना नहीं है, या फिर उन्हें जानकारी ही नहीं होगी. ट्रंप के इस जवाब से हर कौई हैरान हो गया. क्योंकि तुलसी इंटेलिजेंस चीफ हैं, लिहाजा यह माना जा रहा था कि ट्रंप और तुलसी के बीच एक राय होगी. लेकिन अब साफ-साफ लग रहा है कि दोनों के बीच समीकरण बिगड़ चुके हैं. ट्रंप इससे काफी नाराज हैं. इससे पहले भी उदाहरण मौजूद हैं, जब ट्रंप और गैबार्ड के बीच सबकुछ ठीकठाक नहीं लग रहा था. वैसे गैबार्ड ने सारा दोष मीडिया पर मढ़ा.

10 जून को गैबार्ड ने एक सोशल मीडिया एक्स पर एक पोस्ट किया था. इसमें उन्होंने कहा था कि कुछ पॉलिटिकल एलिट और युद्ध प्रेमी परमाणु संपन्न शक्तियों के बीच भय और तनाव को बढ़ावा दे रहे हैं, जिसकी वजह से दुनिया परमाणु विनाश के कगार पर पहुंच गई है. ट्रंप के करीबियों ने इस पोस्ट का विश्लेषण इस तरह से किया कि गैबार्ड नहीं चाहती हैं कि इजराइल किसी भी सूरत में ईरान पर हमला करे.

यानी इस मुद्दे पर दोनों की राय भिन्न-भिन्न रही है. वैसे, 2023 में गैबार्ड ने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की यूक्रेन नीति का विरोध किया था. वह नहीं चाहती थीं कि बाइडेन युद्ध का समर्थन करें. बाइडेन का विरोध करते-करते तुलसी उसी समय ट्रंप की तारीफ करने लगीं और उनके विदेश नीति को बाइडेन की विदेश नीति से बेहतर बताया था.

Iran Israel War
ईरान-इजराइल युद्ध (AP)

ट्रंप ने इस मौके को भुनाया और उन्होंने गैबार्ड का समर्थन किया. ऐसा कहा जाता है कि ट्रंप को राष्ट्रपति चुनाव में इसका फायदा भी मिला. रूढ़िवादियों को ट्रंप के पक्ष में लाने में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई थी. यही वजह थी कि ट्रंप ने नवंबर 2024 में उन्हें नामित कर दिया और वह इंटेलिजेंस प्रमुख बन गईं.

विश्लेषक मानते हैं कि ट्रंप अपने विश्वस्तों को ही बड़ी जिम्मेदारी सौंपते हैं. साथ ही वह वैसे लोगों को भी पंसद करते हैं जो अपने फैसले खुद लेते हैं, न कि किसी पर निर्भर रहकर काम करते हैं. तब गैबार्ड ट्रंप के लिए उपयोगी थीं, क्योंकि उन्होंने चुनाव प्रचार से पहले ही डेमोक्रेट्स की साख को कम करने में मदद की थीं. रूढ़िवादियों का झुकाव ट्रंप की ओर करने में उन्होंने भूमिका निभाई थीं.

ट्रंप ने गैबार्ड को इंटेलिजेंस प्रमुख बनाकर सबको चौंका दिया था. क्योंकि उनका मिलिट्री बैकग्राउंड नहीं था, लिहाजा हर कोई इस फैसले से हैरान था. तुलसी ट्रंप के लिए उपयोगी भी साबित हुईं.

Donald Trump, US President
डोनाल्ड ट्रंप, अमेरिकी राष्ट्रपति (AP)

ट्रंप डीप स्टेट के खिलाफ थे. वे विदेश नीति में हस्तक्षेप विरोधियों पर काफी आक्रामक रह चुके थे. वह चीन पर अपना फोकस करना चाहते थे. इन सारे मुद्दों पर उन्हें इटेलिजेंस प्रमुख का पूरा सहयोग मिला या फिर कह सकते हैं कि उनकी विचाराधारा के अनुसार ही काम हुआ.

लेकिन विश्लेषक मानते हैं कि ट्रंप ऐसे लोगों को तभी तक सहते हैं, जब तक कि वे उनके अनुसार काम करते रहें, जैसे ही वह व्यक्ति स्वतंत्र होकर फैसले लेने लगता है, ट्रंप इसे बर्दाश्त नहीं करते हैं. और एलन मस्क का उदाहरण सबके सामने है.

और अब तुलसी गैबार्ड की बारी लगती है. ऐसा कहा जाता है कि ट्रंप तुलसी के कार्यालय का पर कतरना चाहते थे. वे अपने सारे फैसलों के लिए अपने कैबिनेट के कुछ सहयोगियों पर निर्भर रहने लगे, उन विषयों में भी जिनमें माना जा रहा था कि वह उनका काम नहीं है. यानी ट्रंप गैबार्ड के डिपार्टमेंट की अनदेखी करने लगे.

इसी कड़ी में ईरान का मुद्दा सामने आ गया. ट्रंप ने इस मुद्दे पर कड़ा रूख अपनाया है, जबकि गैबार्ड ने साफ तौर पर इनकार किया था कि ईरान के पास इस समय परमाणु बम बनाने की क्षमता नहीं है. लेकिन स्वतंत्रता का दावा करने वाले नियुक्त लोगों के साथ संबंधों को खराब करने के ट्रंप के पैटर्न की एक लंबी मिसाल है, और अब गबार्ड अगली पंक्ति में हो सकती हैं.

ये भी पढ़ें : ट्रंप और मोदी के नेतृत्व में भारत-अमेरिका साझेदारी और मजबूत होगी, रायसीना डायलॉग में बोलीं तुलसी गबार्ड

Last Updated : June 21, 2025 at 7:53 PM IST
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