काठमांडू: दुनिया के लिए जलवायु परिवर्तन सबसे बड़ी समस्या है. ऐसे में नेपाल ने हिमालय पर ध्यान केंद्रित किया है, जहां वैश्विक तापमान वृद्धि के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. जिसके कारण एशिया के जल मीनार माने जाने वाले क्षेत्रों और उसके आसपास के पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा पैदा हो रहा है.
सगरमाथा संवाद या माउंट एवरेस्ट डॉयलाग के माध्यम से केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाली सरकार ने हिमालय और अन्य पर्वतीय क्षेत्रों के आसपास के विश्व को एकजुट करने का प्रयास किया है, जो पहले से ही ग्लोबल वार्मिंग का दंश झेल रहे हैं.

नेपाली सरकार ने सगरमाथा संवाद को 'नेपाल की प्रमुख पहल' बताया है. सगरमाथा को माउंट एवरेस्ट के नाम से भी जाना जाता है और इसे तीसरा ध्रुव भी कहा जाता है. सरकार का कहना है कि यह एक बहु-हितधारक संवाद मंच है जो वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय महत्व के सबसे प्रमुख मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के लिए प्रतिबद्ध है.
सगरमाथा संवाद शुक्रवार को काठमांडू में शुरू हुआ और इसमें दुनिया भर से 300 से ज़्यादा प्रतिनिधि शामिल हुए. इनमें कम से कम एक दर्जन देशों के उच्च-स्तरीय प्रतिनिधि शामिल हैं. नेपाल के द्विपक्षीय और बहुपक्षीय दाताओं के अलावा चीन, भारत और अन्य एशियाई देशों जैसे नेपाल के निकटतम पड़ोसियों को भी शामिल किया गया है.
नेपाली अधिकारियों ने बताया कि कुल वैश्विक उत्सर्जन में लगभग 0.027 प्रतिशत ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन न के बराबर होने के बावजूद लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने बताया कि, घटते ग्लेशियरों की वजह से ग्लेशियल झीलें बढ़ रही है और बेहद खराब मौसम संबंधी घटनाओं के कारण लोगों को कष्ट का सामना करना पड़ रहा है.

इतना ही नहीं, ग्लेशियल झीलों के फटने से आने वाली बाढ़ भी एक बड़ी समस्या है. अक्टूबर 2023 में सिक्किम में तथा जून 2023 में नेपाल में मेलम्ची नदी में आई बाढ़, तथा बेमौसम भारी बारिश और भूस्खलन, जो हाल ही में दुनिया भर में आम हो गए हैं.
पीएम केपी शर्मा ओली ने पूरी बात ध्यान से सुनी और तुरंत इस पर ध्यान दिया. उन्होंने मंच को दिए अपने संदेश में कहा कि, जलवायु संकट अब सबसे बड़ा खतरा है. उन्होंने कहा, पहाड़, पीछे हटते ग्लेशियर, जैव विविधता को हो रहे नुकसान, अनियमित मौसम पैटर्न और बढ़ता समुद्र का जल स्तर ये संकेत स्पष्ट हैं कि, जलवायु परिवर्तन अब कोई दूर का खतरा नहीं रह गया है. यह वास्तविक है और अब हो रहा है, हम सभी को प्रभावित कर रहा है.
उन्होंने आगे कहा कि, पहाड़ भले ही बहुत दूर लगें उनकी वजह से ही आधी दुनिया सांस ले रही है. पहाड़ों की वजह से ही आधी दुनिया जीवित हैं. उन्होंने कहा कि, आर्कटिक से लेकर एंडीज तक, आल्प्स से लेकर हिमालय तक, वे पृथ्वी के जल मीनार हैं. वे हमारी जलवायु की नब्ज हैं और वे खतरे में हैं.

इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट (ICIMOD) के अनुसार, हिंदू कुश हिमालय में लगभग 54,000 ग्लेशियर हैं. लगभग 60,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले ये ग्लेशियर दक्षिण एशिया में बहने वाली नदियों के लिए पानी का एक प्रमुख स्रोत हैं.
लेकिन ग्लेशियरों की तेजी से पिघलने की गति ने वैज्ञानिकों और स्थानीय समुदायों को चिंतित करना शुरू कर दिया है. पिछले हफ्ते ही, काठमांडू से 100 किलोमीटर उत्तर में स्थित लांगटांग घाटी के वैज्ञानिकों और स्थानीय लोगों के एक समूह ने पानी के सबसे ज़्यादा अध्ययन किए गए स्रोत को समझने के लिए याला ग्लेशियर (5,750 मीटर) तक चढ़ाई की.
आज से 50 साल पहले जब पहली बार इस ग्लेशियर का अध्ययन किया गया था, तब से अब तक इसकी सतह का 66 प्रतिशत हिस्सा नष्ट हो चुका है. शोधकर्ताओं को डर है कि यदि वैश्विक तापमान में वृद्धि की तीव्र दर को नहीं रोका गया और 2015 के पेरिस समझौते का सम्मान करते हुए तापमान को पूर्व औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं सीमित किया गया, तो याला और इस क्षेत्र के अन्य ग्लेशियर हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगे.
शोधकर्ताओं का मानना है कि हिमालय में तापमान वृद्धि की दर पहले से ही वैश्विक औसत से दोगुनी है. इसके परिणामस्वरूप, सैकड़ों ग्लेशियर पतले हो रहे हैं और छोटे होते जा रहे हैं, जिससे कभी-कभी ग्लेशियल झीलें बन जाती हैं और अत्यधिक बारिश या भूकंप की स्थिति में फट जाती हैं.

नेपाल के विदेश मंत्री आरजू राणा देउबा ने कहा कि तीन दिवसीय वैश्विक संवाद, जो लोकप्रिय संस्कृत वाक्यांश 'वादे वादे जयते तत्त्वबोधः (ज्ञान प्रवचनों से उत्पन्न होता है)' से प्रेरित है को ब्राजील में होने वाले सीओपी 30 से पहले एक महत्वपूर्ण मंच के रूप में जाना जाना चाहिए.
उन्होंने कहा कि इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि सगरमाथा संवाद का ध्यान ‘जलवायु परिवर्तन, पर्वत और मानवता के भविष्य’ पर केंद्रित है, तथा इसमें पृथ्वी ग्रह के जीवन के अंतर-संबंधित ताने-बाने के कई पहलुओं को शामिल किया गया है.
भारत के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि, पहाड़ों और वहां के लोगों की दुर्दशा हर जगह एक जैसी ही है. उन्होंने एक्स पर लिखा, "पर्यावरण संकट का एक बड़ा बोझ हिमालय पर है." "हम भारत में, अपने महत्वपूर्ण हिमालयी क्षेत्र के साथ, इन प्रभावों को प्रत्यक्ष रूप से देख रहे हैं."
सगरमाथा संवाद के लिए केपी ओली की सरकार ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे प्रभावशाली राष्ट्राध्यक्षों या सरकार प्रमुखों को आमंत्रित किया था, परंतु किसी कारणवश वे उपस्थित नहीं हो सके. ऐसे में भारत की ओर से केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने शुक्रवार को काठमांडू में आयोजित पहले सगरमाथा संवाद में भारत का प्रतिनिधित्व किया. चीन की तरफ से 14वीं नेशनल पीपुल्स कांग्रेस की स्थायी समिति के उपाध्यक्ष शियाओ जी भी शामिल हो रहे हैं.
C0P29 के अध्यक्ष तथा अजरबैजान के पारिस्थितिकी एवं प्राकृतिक संसाधन मंत्री मुख्तार बाबायेव, भूटान के ऊर्जा एवं प्राकृतिक संसाधन मंत्री जेम शेरिंग तथा मालदीव के पर्यटन एवं पर्यावरण मंत्री थोरिक इब्राहिम भी सगरमाथा संवाद में भाग ले रहे हैं.
अधिकारियों का कहना है कि यह वार्ता प्रधानमंत्री ओली के दिमाग की उपज है और हर दो साल में इसकी योजना बनाई जाती है. इसका उद्देश्य नेपाल को जलवायु कूटनीति में आगे ले जाना है. बदले में, इसका उद्देश्य जलवायु कार्रवाई को बढ़ावा देना, जलवायु न्याय की वकालत करना, कमजोर समुदायों को मुआवजा सुनिश्चित करना और जलवायु वित्त के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना शामिल है.
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