तेल अवीव: हमास-इजरायल वॉर को लेकर पूर्व इज़रायली सैनिक तंग आ गए हैं. युद्ध को लेकर इनकी ये परेशानी इन विरोध पत्रों में साफ झलक रही है. जो चीख-चीखकर ये कह रहे हैं कि वो मौजूदा युद्ध को लेकर खुश नहीं हैं.
बता दें कि जब बीते सप्ताह 1,000 इजरायली वायुसेना के दिग्गजों ने गाजा में युद्ध को समाप्त करने के लिए एक खुले पत्र पर हस्ताक्षर किए थे, तो सेना ने कड़े कदम उठाने की बात कही थी. तब इजरायली सेना ने कहा था कि वह इस दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने वाले किसी भी सक्रिय रिजर्विस्ट सैनिक को बर्खास्त कर देगी. लेकिन उसके बावजूद सेना के हजारों सेवानिवृत और रिजर्विस्ट सैनिकों ने इसी तरह के समर्थन पत्रों पर हस्ताक्षर किए हैं.
विरोध पत्रों में दिख रहा है इजरायल सरकार का विरोध
इस तरह से देखा जाए तो इन पत्रों के जरिए पूर्व सैनिकों का विरोध अभियान बढ़ रहा है. इन पत्रों में सरकार पर युद्ध को जारी रखने और बाकी बंधकों को वापस लाने में विफल रहने का आरोप लगाया जा रहा है. इससे ये साफ दिख रहा है कि गाजा में इजरायल की लड़ाई जारी रखने को लेकर इजरायल में पहले जैसा जोश नहीं देखा जा रहा है.
'लड़ाई से राष्ट्रीय एकता पर संकट'

वायु सेना विरोध पत्र के शुरुआती लोगों में से एक सेवानिवृत पायलट गाय पोरन ने एसोसिएटेड प्रेस को बताया कि इस लड़ाई ने राष्ट्रीय एकता को खतरे में डाल दिया है. साथ ही सेना की पूरी ताकत से लड़ाई जारी रखने की क्षमता पर सवाल उठ रहे हैं. वो कहते हैं कि यह साल 2023 की शुरुआत में इजरायल की कानूनी व्यवस्था को दुरुस्त करने के सरकार के प्रयासों को लेकर भड़के तीखे विभाजन से भी मेल खा रहा है. इसके बारे में कुछ लोगों का कहना है कि इसने देश को कमजोर किया. साथ ही हमास के हमले को बढ़ावा दिया. इसी के बाद ही युद्ध शुरू हुआ. गाय पोरेन कहते हैं कि "यह बिल्कुल साफ है कि युद्ध की फिर से शुरुआत राजनीतिक कारणों से हुआ है. इसके पीछे सुरक्षा का कारण नहीं है.
विरोध की वजह बना नेतन्याहू के फिर युद्ध शुरू करने का फैसला
इन विरोध पत्रों के पीछे प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के 18 मार्च को लिया गया वह निर्णय था, जिसमें उन्होंने युद्ध विराम पर कायम रहने के बजाय फिर से युद्ध शुरू करने का फैसला लिया था. इसके तहत कुछ बंधकों की रिहाई हुई थी. इस युद्ध को सही साबित करने को लेकर नेतन्याहू का कहना है कि हमास को शेष बंधकों को रिहा करने के लिए मजबूर करने के लिए सैन्य दबाव की जरूरत है.

इजरायल-हमास वॉर के चलने से इजरायली बंधकों के परिवारों समेत आलोचकों को भी डर लगने लगा कि कहीं वो उन्हें मार न दें. नेतन्याहू द्वारा युद्ध फिर से शुरू करने के एक महीने बीत जाने के बाद भी हमास द्वारा पकड़े गए 59 बंधकों में से किसी को भी छुड़ाया नहीं जा सका है. ऐसा माना जाता है कि बंधकों में से 24 बंधक अब भी जीवित हैं.
गौर करें तो अपने पत्रों में, प्रदर्शनकारियों ने सेवा करने से मना कर दिया है. और इन विरोध पत्रों में जिन 10,000 सैनिकों ने हस्ताक्षर किए हैं उनमें से अधिकतर सेवानिवृत हैं. इस पर पोरन कहते हैं कि खुद को पूर्व पायलट के रूप में पहचानने का उनका निर्णय जानबूझकर किया गया था.
नेतन्याहू का हमास के खात्मे का एलान अभी अधूरा
इस तरह से देखा जाए तो हाल के दिनों में हजारों शिक्षाविदों, डॉक्टरों, पूर्व राजदूतों, छात्रों और उच्च तकनीक श्रमिकों ने युद्ध की समाप्ति के लिए मांग की है. 7 अक्टूबर, 2023 को हमास ने इजरायल पर हमला शुरू किया था. तब इस युद्ध में इजरायल के 1,200 लोग मारे गए और 251 अन्य को बंधक बना लिया गया था. तब इस युद्ध के दौरान पीएम नेतन्याहू ने दो प्रमुख लक्ष्य निर्धारित किए हैं. पहला ये है कि हमास को नष्ट करना और दूसरे बंधकों को घर सुरक्षित वापस लाना.
'नेतन्याहू के दो लक्ष्य एक साथ हासिल नहीं हो सकते'

गाजा के स्वास्थ्य अधिकारियों के मुताबिक, इजरायली सेना नागरिकों और लड़ाकों के बीच अंतर नहीं करती है. इजरायल के आक्रमण ने गाजा के अधिकांश हिस्से को मलबे में बदल दिया है. इस लड़ाई में अब तक 51,000 से अधिक फिलिस्तीनी मारे गए हैं. हालांकि गाजा में तबाही के कारण इजरायल की भारी अंतरराष्ट्रीय आलोचना हुई है. ऐसे में अगर देखा जाए तो संघर्ष के लिए घरेलू विरोध एक व्यापक धारणा को दर्शाता है कि नेतन्याहू के युद्ध के लक्ष्य यथार्थवादी नहीं हैं.
जेरूसलम थिंक टैंक इजरायल डेमोक्रेसी इंस्टीट्यूट द्वारा किए गए एक अध्ययन की रिपोर्ट ये कहती है कि अब लगभग 70 फीसदी इजरायली ये मानने लगे हैं कि बंधकों को वापस लाना युद्ध का सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य है. ऐसे लोगों की ताादद जनवरी 2024 में 50 फीसदी से थोड़ी अधिक हो गई है. वहीं तकरीबन 60 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि नेतन्याहू के दो लक्ष्य एक साथ हासिल नहीं हो सकते.
नेतन्याहू पर कट्टरपंथी गठबंधन सहयोगियों को खुश करने का आरोप
सर्वेक्षण में लगभग 750 लोगों का इंटरव्यू लिया गया और इसमें 3.6 फीसदी तक की त्रुटि हो सकती है. सर्वेक्षण में नेतन्याहू के विरोधियों ने उन पर अपने कट्टरपंथी गठबंधन सहयोगियों को खुश करने के लिए युद्ध को फिर से शुरू करने का आरोप लगाया है. इन कट्टरपंथियों ने लड़ाई समाप्त करने पर सरकार को गिराने की धमकी भी दी है. गौर करें तो कई लोग वायु सेना के रिजर्व सैनिकों को बर्खास्त करने के सेना के अचानक लिए गए फैसले पर आश्चर्य जता रहे थे. आश्यर्य जताने वाले ये वो लोग थे जिन्होंने विरोध पत्र पर हस्ताक्षर किए थे.

रिजर्विस्टों के विरोध को गंभीरता से ले रही है सेना और सरकार
बता दें कि इजरायल की कई प्रमुख इकाइयाँ रिजर्विस्टों पर बहुत अधिक निर्भर करती हैं. ये लोग अक्सर 40 की उम्र तक सेवा करते हैं. इनको लेकर सेना ने कहा कि इसे "सभी राजनीतिक विवादों से ऊपर" होना चाहिए. लेकिन जैसे-जैसे विरोध आंदोलन बढ़ता गया, सरकार और सेना इसे गंभीरता से लेने लगी है.
एक सैन्य अधिकारी ने कहा कि सेना विरोध पत्रों को "बहुत गंभीरता से" ले रही है. उन्होंने कहा कि यह विरोध रिजर्विस्टों को बुलाने की चुनौतियों की सूची में शामिल हो गया है और सेना उनका समर्थन करने के लिए काम कर रही है. इतना ही नहीं बहुतों ने थकावट, पारिवारिक कारण और काम से गायब होने के वित्तीय बोझ का हवाला देते हुए रिजर्विस्टों की बढ़ती संख्या ने ड्यूटी पर आना बंद कर दिया है.
इजरायल के सैन्य दिशा-निर्देशों के तहत नाम न बताने की शर्त पर एक अधिकारी ने कहा,
"समस्या तब आती है जब लोग सेना को अपने विचारों को बढ़ावा देने के लिए एक उपकरण के रूप में इस्तेमाल करते हैं, चाहे वे कुछ भी हों." 2,500 पूर्व पैराट्रूपर्स द्वारा हस्ताक्षरित एक पत्र को आगे बढ़ाने वाले एरन दुवदेवानी ने एपी को बताया कि सेना दुविधा का सामना कर रही है. "अगर वह पायलटों को सेवा से मुक्त करना जारी रखेगी, तो उन सभी अन्य लोगों का क्या होगा जिन्होंने पत्रों पर हस्ताक्षर किए हैं? क्या उन्हें भी सेवा से बर्खास्त कर दिया जाएगा?"
उन्होंने कहा कि उन्होंने यह दिखाने के लिए पत्र का आयोजन किया कि "पायलट अकेले नहीं हैं."
18 महीने की लड़ाई से तनाव में इज़रायली सेना
युद्ध की दिशा को लेकर पूर्व सैनिकों की चिंता एक व्यापक राय है, और आपको इसे ध्यान में रखना होगा. हालाँकि हस्ताक्षरकर्ताओं में से केवल कुछ सौ ही अब भी सक्रिय रूप से सेवा कर रहे हैं. उधर इज़रायली सेना 18 महीने की लड़ाई से तनाव में है और किसी भी रिजर्व ड्यूटी से किसी को भी दूर करने की स्थिति में नहीं है. कई इज़रायली इस बात से भी नाराज हैं कि जब रिजर्व सैनिकों को बार-बार कार्रवाई के लिए बुलाया जाता है. साथ ही रिजर्व ड्यूटी के लिए रिपोर्ट करना जारी रखने वाले इज़रायली लोगों की संख्या इतनी कम हो गई है कि सेना ने सेवा जारी रखने के लिए लोगों को भर्ती करने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया है.
येरुशलम के हिब्रू विश्वविद्यालय में सामाजिक मनोविज्ञान के एक्सपर्ट एरन हैल्परिन ने इन विरोध पत्रों को “इस विशेष युद्ध में लोकाचार के क्षरण का सबसे खास संकेत” कहा है. यद्यपि युद्ध को शुरू में व्यापक समर्थन था, लेकिन संदेह बढ़ गया है, क्योंकि बहुत सारे बंधक अब भी कैद में हैं. इतना ही नहीं इजरायल में मरने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है.

वॉर में अब तक 850 इजरायली सैनिक मारे गए
हैल्परिन कहते हैं कि हमास-इजरायल वॉर के शुरू होने से लेकर अब तक लगभग 850 इजरायली सैनिक मारे जा चुके हैं. वो कहते हैं कि इस तरह से जब युद्ध से संबंधित मुख्य प्रश्नों पर इतनी गहरी असहमतियां हों, तो ऐसे हिंसक संघर्ष में युद्ध को बनाए रखना और प्रबंधित करना बहुत ही कठिन है." वहीं हाल के दिनों में, नेतन्याहू के कार्यालय ने बंधकों के परिवारों के साथ बैठकों का प्रचार करते हुए कई संदेश प्रकाशित किए हैं, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि वह उनकी वापसी में तेजी लाने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं.
नेतन्याहू ने रिजर्विस्टों को सराहा, कहा- हम अपने भविष्य के लिए लड़ रहे
इस बीच पीएम नेतन्याहू और उनके रक्षा मंत्री ने उत्तरी गाजा का दौरा किया. यहां पर नेतन्याहू ने “अद्भुत काम” करने वाले “अद्भुत रिजर्विस्ट” की प्रशंसा की. इसको लेकर नेतन्याहू के कार्यालय ने दर्जनों सैनिकों से घिरे रेतीले टीलों के बीच से मार्च करते हुए उनका वीडियो जारी किया. उन्होंने कहा, “हम अपने अस्तित्व के लिए लड़ रहे हैं।” “हम अपने भविष्य के लिए लड़ रहे हैं.”
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