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ट्रंप के निशाने पर क्यों हैं अमेरिका के एलीट विश्वविद्यालय, जानें सब कुछ... - TRUMP TARGETING ELITE UNIVERSITIES

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प कुछ अमेरिकी एलीट विश्वविद्यालयों के खिलाफ फरवरी से ही कड़ी निगरानी रख रहे हैं. अब उनकी फंडिंग पर रोक की धमकी मिली.

President Donald Trump in the mood to take action against American elite universities.
अमेरिकी एलीट विश्वविद्यालयों पर एक्शन के मूड में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप. (ANI)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : April 15, 2025 at 5:26 PM IST

12 Min Read

वॉशिंगटन: राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प फरवरी माह से ही कुछ अमेरिकी एलीट विश्वविद्यालयों के खिलाफ कड़ी निगरानी रख रहे हैं. अब उनकी फंडिंग पर रोक की धमकी दी जा रही है.

यूएसए के विशिष्ट विश्वविद्यालयों के खिलाफ राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का अभियान बीते फरवरी महीने से शुरू हुआ था. इसकी शुरुआत के पीछे यहूदी-विरोधी भावना के खिलाफ एक नए संघीय टास्क फोर्स की रिपोर्ट थी. इस रिपोर्ट में 10 विश्वविद्यालयों की सूची जारी की गई थी. जिन पर यहूदी विरोधी भावना के खिलाफ काम करने का आरोप लगा था. इसी के बाद संघीय टास्क फोर्स ने इन विश्वविद्यालयों की जांच की योजना बनाई थी. इस रिपोर्ट में प्रशासन ने दावों का हवाला दिया था कि ये संस्थान साल 2023 और 2024 में अपने परिसरों में फिलिस्तीनी समर्थक विरोध प्रदर्शनों के दौरान यहूदी छात्रों और संकाय सदस्यों को भेदभाव से बचाने में विफल हो सकते हैं.

ये वो विश्वविद्यालय हैं, जिनको अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने निशाना बनाया है.

29.01.2025: ट्रम्प ने यहूदी-विरोधी भावना से निपटने के लिए एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए. इसमें उन्होंने "वामपंथी" विश्वविद्यालयों में यहूदी-विरोधी नस्लवाद पर ध्यान केंद्रित करने का कहा.

03.02.2025: ट्रम्प ने इस कार्य को पूरा करने के लिए एक बहु-एजेंसी टास्क फोर्स के गठन की घोषणा की.

28.02.2025: यहूदी-विरोधी भावना से निपटने के लिए गठित नए संघीय कार्यबल ने घोषणा की है कि वह यहूदी-विरोधी उत्पीड़न को समाप्त करने के प्रयास में 10 विश्वविद्यालयों का दौरा करेगा. दौरा किए जाने वाले विश्वविद्यालयों में कोलंबिया और हार्वर्ड भी शामिल हैं.

07.03.2025: सरकार ने यहूदी छात्रों की सुरक्षा के लिए "निष्क्रियता" का हवाला देते हुए कोलंबिया को दिए जाने वाले $400 मिलियन के अनुदान और अनुबंधों को "प्रारंभिक रूप से रद" करने की घोषणा की. विश्वविद्यालय की अंतरिम राष्ट्रपति कैटरीना आर्मस्ट्रांग ने 1 अप्रैल, 2025 को इस्तीफा दे दिया

10.03.2025: इसके साथ ही ब्राउन, कॉर्नेल, हार्वर्ड, प्रिंसटन और येल सहित 60 संस्थानों को चेतावनी भेजी गयी.

21.03.2025: Johns Hopkins University: इसके तहत 800 मिलियन डॉलर का वित्त पोषण खोना पड़ा. इसके परिणामस्वरूप 2,200 से अधिक नौकरियां खत्म हो गईं.

31.03.2025: अमेरिकी सरकार ने हार्वर्ड के साथ 256 मिलियन डॉलर के अनुबंधों और अनुदानों और विश्वविद्यालय और संबद्ध अस्पतालों के लिए 8.7 बिलियन डॉलर के कमिटमेंट की “समीक्षा” की घोषणा की.

01.04.2025: प्रिंसटन विश्वविद्यालय को अनुसंधान अनुदान में 210 मिलियन डॉलर का नुकसान हुआ. इसमें नासा और ऊर्जा विभाग से प्राप्त अनुदान भी शामिल है.

02.04.2025: पेन्सिल्वेनिया विश्वविद्यालय, जिसका 2022 में एक ट्रांसजेंडर एथलीट की भागीदारी के प्रति दृष्टिकोण के कारण 175 मिलियन डॉलर का संघीय वित्त पोषण निलंबित कर दिया गया.

03.04.2025: इजरायल विरोधी सक्रियता के प्रति प्रतिक्रिया के कारण ब्राउन यूनिवर्सिटी की 510 मिलियन डॉलर की धनराशि रोक दी गई.

10.04.2025: ट्रम्प प्रशासन ने कॉर्नेल विश्वविद्यालय को दी जाने वाली 1 बिलियन डॉलर से अधिक की संघीय धनराशि और नॉर्थवेस्टर्न को दी जाने वाली 790 मिलियन डॉलर की धनराशि रोक दी है.

14.04.2025: हार्वर्ड विश्वविद्यालय के अध्यक्ष एलन गार्बर ने एक सार्वजनिक पत्र जारी कर ट्रम्प प्रशासन की मांगों को “हार्वर्ड समुदाय को नियंत्रित करने” का प्रयास बताया. साथ ही स्कूल के “ज्ञान की खोज, उत्पादन और प्रसार के लिए समर्पित एक निजी संस्थान के रूप में मूल्यों” को खतरे में डालने वाला बताया.

14.04.2025: ट्रम्प प्रशासन ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय की 2.3 बिलियन डॉलर से अधिक की धनराशि पर रोक लगाने की घोषणा की.

ट्रंप प्रशासन के एक्शन के बाद विश्वविद्यालयों का रिएक्शन

13.04.2025: ट्रम्प प्रशासन के खिलाफ हार्वर्ड फैकल्टी और अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ यूनिवर्सिटी प्रोफेसर्स (AAUP) ने मुकदमा दायर किया. इस मुकदमे में आरोप लगाया गया है कि फंडिंग में कटौती की धमकी देकर कैंपस में भाषण और शासन को नियंत्रित करने के असंवैधानिक प्रयास किए जा रहे हैं. गौर करें तो कानूनी कार्रवाई, प्रशासन को हार्वर्ड विश्वविद्यालय और उसके संबद्ध अस्पतालों के लिए संघीय निधि में $8.7 बिलियन को रोकने से रोकने का प्रयास करती है. क्योंकि इसके तहत विश्वविद्यालय को विशिष्ट नीतिगत परिवर्तनों को लागू करने और अपने संचालन को पुनर्गठित करने की मांग की गई है.

कुलीन अमेरिकी विश्वविद्यालय क्यों है ट्रम्प के रडार पर

इस तरह से राष्ट्रपति ट्रम्प और उनके शीर्ष सहयोगी उच्च शिक्षा प्रणाली के वैचारिक झुकाव को बदलने के लिए संघीय अनुसंधान धन की बड़ी मात्रा पर कंट्रोल कर रहे हैं. इसे वे रुढ़िवादियों के प्रति शत्रुतापूर्ण और उदारवाद को कायम रखने के इरादे से देखते हैं. प्रशासन ने अक्सर दावा किया है कि लक्षित स्कूलों में यहूदी विरोधी भावनाएँ हैं. जब साल 2024 में गाजा में इजरायल के युद्ध के खिलाफ एक विरोध आंदोलन ने कॉलेज परिसरों को अपनी चपेट में ले लिया.

भारतीय छात्रों पर प्रभाव

अमेरिका में अंतर्राष्ट्रीय छात्रों का सबसे बड़ा स्रोत भारत पर भी इसका असर पड़ा है. साल 2024 में, 531,000 से अधिक भारतीय छात्रों ने यूएस में नामांकन कराया था. लेकिन इस माहौल में नाटकीय रूप से बदलाव आया है. इसके बाद मामूली या पुराने उल्लंघनों के कारण छात्रों को वीजा से वंचित किया जा रहा है. साथ ही कमियां पाए जाने पर निर्वासित किए जाने की खबरें बढ़ रही हैं.

विदेशी छात्रों पर अमेरिका की सख्ती और उसका असर

अमेरिका में करीब 1.1 मिलियन अंतरराष्ट्रीय वीजाधारक छात्र हैं. इनसाइड हायर एड ट्रैकर के मुताबिक, 80 से ज़्यादा विश्वविद्यालयों ने वीजा रद किए जाने की सूचना दी है. NAFSA (एसोसिएशन ऑफ़ इंटरनेशनल एजुकेटर्स) के अनुसार, उसने अमेरिका भर के उच्च शिक्षा संस्थानों से रिपोर्ट संकलित करके 500 वीजा रद किए जाने की पहचान की है.

अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अंतर्राष्ट्रीय छात्रों का योगदान

अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा को बढ़ावा देने वाली एजेंसी NAFSA के आंकड़ों के मुताबिक, 2023-2024 शैक्षणिक वर्ष में, अमेरिकी विश्वविद्यालयों में 1.1 मिलियन अंतर्राष्ट्रीय छात्रों ने देश की अर्थव्यवस्था में $43.8 बिलियन का योगदान दिया. इसके साथ ही 378,000 से अधिक नौकरियों को प्रोमोट किया.

अध्ययन के प्रति अमेरिकी विश्वविद्यालयों में रुचि में आई कमी

वैश्विक शिक्षा मंच स्टडी पोर्टल्स के मुताबिक, साल 2025 में अमेरिकी स्नातक कार्यक्रमों में रुचि में 42% की गिरावट आई है. अब यूएस के बजाय छात्र कनाडा, यूके और ऑस्ट्रेलिया की ओर देख रहे हैं. इन देशों में इनका स्वागत किया जा रहा है. देखा जाए तो यह गिरावट अमेरिकी विश्वविद्यालयों के लिए एक बड़ा झटका है. यहां जानना जरूरी है कि ये संस्थान ट्यूशन और शोध सहायता के लिए अंतरराष्ट्रीय छात्रों पर बहुत अधिक निर्भर हैं. खासकर STEM क्षेत्रों में विदेशियों की ज्यादा जरूरत है.
चीन से मिलने वाले दान का अमेरिकी विश्वविद्यालयों को वृद्धि

अमेरिकी सरकार के डेटा के ब्लूमबर्ग विश्लेषण के मुताबिक, वर्ष 2013 से 2020 के बीच 100 से अधिक अमेरिकी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को चीन के स्रोतों से दान, उपहार या अनुबंध प्राप्त हुए. हार्वर्ड विश्वविद्यालय को सबसे अधिक - लगभग 100 मिलियन डॉलर - मिले. इन उपहारों में से अधिकतर दान उपहार माने गए.

द वॉल स्ट्रीट जर्नल की समीक्षा के अनुसार, साल 2012 से 2024 के बीच 200 अमेरिकी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों ने चीनी व्यवसायों के साथ 2.32 बिलियन डॉलर मूल्य के अनुबंध किए.

अमेरिकी विश्वविद्यालयों में शैक्षणिक स्वतंत्रता पर हमलों का इतिहास

गौर करें तो 20वीं सदी के मध्य में संघीय सरकार द्वारा इसे गंभीरता से वित्तपोषित करने के बाद से रुढ़िवादी अमेरिकी विश्वविद्यालय को नया रूप देने की कोशिश कर रहे हैं. तभी से विश्वविद्यालय की स्वतंत्रता - और शैक्षणिक स्वतंत्रता आलोचनाओं का शिकार रही है. इसके तहत अमेरिकी गृहयुद्ध, प्रथम विश्व युद्ध, रेड स्केयर और 1950 के दशक की शुरुआत का शीत युद्ध, वियतनाम युद्ध और 11 सितंबर का आतंकवादी हमले इसमें शामिल है.

अमेरिका में शिक्षाविदों और शिक्षाविदों पर कुछ कठोर कार्रवाईयों पर एक नज़र

अमेरिकी गृह युद्ध: दासता के मुद्दे पर अमेरिकी गृह युद्ध के दौरान दक्षिणी विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरों ने कॉन्फेडरेट राजनीतिक रूढ़िवाद को चुनौती दी थी. जब उनकी नौकरी खतरे में पड़ गई थी. इसी दौर में उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान के प्रोफेसर बेंजामिन हेड्रिक ने 1856 के राष्ट्रपति चुनाव में दासता विरोधी उम्मीदवार जॉन सी. फ़्रेमोंट का समर्थन करने का सार्वजनिक रूप से वचन दिया. उसके बाद विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने उनकी निंदा की और उन्हें नौकरी से निकाल दिया. तब गुस्साए छात्रों ने उनका पुतला जलाया.

साल 1900 में, जेन स्टैनफोर्ड ने संस्थान पर अर्थशास्त्र के प्रोफेसर और प्रमुख सुजननवादी तथा आव्रजन विरोधी समर्थक एडवर्ड रॉस को उनके "पक्षपातपूर्ण" रवैये के कारण नौकरी से निकालने का दबाव बनाया. जिसके कारण कई अन्य प्रोफेसरों ने रॉस के साथ एकजुटता दिखाते हुए इस्तीफा दे दिया.

अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ यूनिवर्सिटी प्रोफेशनल्स की स्थापना

1913 में विभिन्न विषयों के शिक्षाविदों ने एक साथ मिलकर अपने संरक्षण के लिए एक संगठन की स्थापना की. ये संगठन बाद में प्रोफेसरों को नौकरी से निकालने के राजनेताओं और प्रशासकों के प्रयासों के खिलाफ लड़ने के लिए अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ यूनिवर्सिटी प्रोफेशनल्स (AAUP) बन गया.

जनवरी 1915 में, AAUP ने “शैक्षणिक स्वतंत्रता और शैक्षणिक कार्यकाल पर सिद्धांतों की घोषणा” जारी की. इस घोषणा में कहा गया कि प्रोफेसरों और छात्रों की जांच करने और उसके परिणामों को प्रकाशित करने की पूर्ण और असीमित स्वतंत्रता विश्वविद्यालय में मौजूद हैं. इस दस्तावेज़ को ही अब अमेरिकी उच्च शिक्षा में “शैक्षणिक स्वतंत्रता” की मूलभूत परिभाषा माना जाता है.

1917 में प्रथम विश्व युद्ध में संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रवेश करने और बोल्शेविक क्रांति के बाद पूर्वी यूरोप में साम्यवादी सरकार आने के बाद संघर्षों के कारण अकादमिक स्वतंत्रता को फिर से खतरा पैदा हो गया. इसके देश भर के विश्वविद्यालयों में प्रोफेसरों की आलोचना की गई. इतना ही नहीं उन्हें कुछ मामलों में "अनिष्ठाहीनता" के आरोप के तहत बर्खास्त कर दिया गया.

लाल रंग का भय

1950 और 1960 के दशक में जब शीत युद्ध गर्म हुआ, तो दक्षिणपंथी राजनेताओं और कार्यकर्ताओं ने विश्वविद्यालयों पर यह आरोप लगाते हुए हमला किया कि वे "लाल प्रोफेसरों" से भरे हुए हैं. साथ ही ये कहा गया कि ये सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए "खुद को 'शैक्षणिक स्वतंत्रता' का चोला ओढ़ते हैं. इसको लेकरउन संकाय सदस्यों की जांच की और उन्हें नौकरी से निकाल दिया. इन लोगों पर संदेह था कि वे "कम्युनिस्ट" समर्थक हैं.

वियतनाम युद्ध

1960 के दशक के अंत में, राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के प्रशासन ने परिसरों में वियतनाम युद्ध के विरोध प्रदर्शनों के कारण विश्वविद्यालय के वित्तपोषण में कटौती करने पर विचार-विमर्श किया. हालाँकि यह कभी लागू नहीं हुआ, लेकिन बिना कार्यकाल वाले 100 से अधिक लोगों को उनकी राजनीतिक गतिविधियों के लिए नौकरी से निकाल दिया गया. इसके साथ ही राज्यों ने परिसर में विरोध प्रदर्शनों में भागीदारी को अपराध बनाने के लिए विधेयकों पर विचार किया.

अफ़गानिस्तान और इराक युद्ध

9/11 के बाद अकादमिक स्वतंत्रता से समझौता करने को सही ठहराने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा अधिकार का इस्तेमाल किया गया. रुढ़िवादियों ने अफगानिस्तान और इराक में होने वाले युद्धों का फायदा उठाते हुए उन शिक्षाविदों पर हमला किया. इस दौरान जिन्होंने बुश प्रशासन की विदेश नीति की आलोचना करने की हिम्मत की और इसे "देशद्रोही" बताया गया.

कुछ मामलों में, वे अमेरिकी विदेश नीति की आलोचना करने वाले प्रोफेसरों को अमेरिकी विश्वविद्यालयों में पढ़ाने से रोकने में कामयाब रहे. ऐसे दौर में उन कई प्रोफेसरों को नौकरी से निकाल दिया गया. इन पर आरोप था कि इन्होंने कक्षा में इराक युद्ध की आलोचना की या विवादास्पद राजनीतिक रुख अपनाया. साल 2003 में, प्रतिनिधि सभा ने एक विधेयक पारित किया. इसके बारे में ACLU ने चेतावनी दी थी कि उच्च शिक्षा कार्यक्रमों के लिए संघीय निधि को "स्वीकृत सरकारी सिद्धांत" पढ़ाने की उनकी इच्छा से जोड़कर अकादमिक स्वतंत्रता को खतरा हो सकता है. डोनाल्ड ट्रम्प के पहले कार्यकाल में "मुस्लिम प्रतिबंध", चीनी STEM छात्रों के लिए बड़े पैमाने पर वीज़ा रद किए गए. इसके साथ ही पोस्ट-ग्रेजुएशन वर्क परमिट रद करने के प्रयास किए गए. राष्ट्रपति बिडेन, चीनी छात्रों को लक्षित करने वाले जासूसी विरोधी प्रयास तब तक जारी रहे जब तक कि नागरिक स्वतंत्रता समूहों ने विरोध नहीं किया.

ये भी पढ़ें - ट्रंप प्रशासन के साथ टकराव के बाद हार्वर्ड के लिए 2.2 बिलियन डॉलर की फंडिंग पर रोक

वॉशिंगटन: राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प फरवरी माह से ही कुछ अमेरिकी एलीट विश्वविद्यालयों के खिलाफ कड़ी निगरानी रख रहे हैं. अब उनकी फंडिंग पर रोक की धमकी दी जा रही है.

यूएसए के विशिष्ट विश्वविद्यालयों के खिलाफ राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का अभियान बीते फरवरी महीने से शुरू हुआ था. इसकी शुरुआत के पीछे यहूदी-विरोधी भावना के खिलाफ एक नए संघीय टास्क फोर्स की रिपोर्ट थी. इस रिपोर्ट में 10 विश्वविद्यालयों की सूची जारी की गई थी. जिन पर यहूदी विरोधी भावना के खिलाफ काम करने का आरोप लगा था. इसी के बाद संघीय टास्क फोर्स ने इन विश्वविद्यालयों की जांच की योजना बनाई थी. इस रिपोर्ट में प्रशासन ने दावों का हवाला दिया था कि ये संस्थान साल 2023 और 2024 में अपने परिसरों में फिलिस्तीनी समर्थक विरोध प्रदर्शनों के दौरान यहूदी छात्रों और संकाय सदस्यों को भेदभाव से बचाने में विफल हो सकते हैं.

ये वो विश्वविद्यालय हैं, जिनको अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने निशाना बनाया है.

29.01.2025: ट्रम्प ने यहूदी-विरोधी भावना से निपटने के लिए एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए. इसमें उन्होंने "वामपंथी" विश्वविद्यालयों में यहूदी-विरोधी नस्लवाद पर ध्यान केंद्रित करने का कहा.

03.02.2025: ट्रम्प ने इस कार्य को पूरा करने के लिए एक बहु-एजेंसी टास्क फोर्स के गठन की घोषणा की.

28.02.2025: यहूदी-विरोधी भावना से निपटने के लिए गठित नए संघीय कार्यबल ने घोषणा की है कि वह यहूदी-विरोधी उत्पीड़न को समाप्त करने के प्रयास में 10 विश्वविद्यालयों का दौरा करेगा. दौरा किए जाने वाले विश्वविद्यालयों में कोलंबिया और हार्वर्ड भी शामिल हैं.

07.03.2025: सरकार ने यहूदी छात्रों की सुरक्षा के लिए "निष्क्रियता" का हवाला देते हुए कोलंबिया को दिए जाने वाले $400 मिलियन के अनुदान और अनुबंधों को "प्रारंभिक रूप से रद" करने की घोषणा की. विश्वविद्यालय की अंतरिम राष्ट्रपति कैटरीना आर्मस्ट्रांग ने 1 अप्रैल, 2025 को इस्तीफा दे दिया

10.03.2025: इसके साथ ही ब्राउन, कॉर्नेल, हार्वर्ड, प्रिंसटन और येल सहित 60 संस्थानों को चेतावनी भेजी गयी.

21.03.2025: Johns Hopkins University: इसके तहत 800 मिलियन डॉलर का वित्त पोषण खोना पड़ा. इसके परिणामस्वरूप 2,200 से अधिक नौकरियां खत्म हो गईं.

31.03.2025: अमेरिकी सरकार ने हार्वर्ड के साथ 256 मिलियन डॉलर के अनुबंधों और अनुदानों और विश्वविद्यालय और संबद्ध अस्पतालों के लिए 8.7 बिलियन डॉलर के कमिटमेंट की “समीक्षा” की घोषणा की.

01.04.2025: प्रिंसटन विश्वविद्यालय को अनुसंधान अनुदान में 210 मिलियन डॉलर का नुकसान हुआ. इसमें नासा और ऊर्जा विभाग से प्राप्त अनुदान भी शामिल है.

02.04.2025: पेन्सिल्वेनिया विश्वविद्यालय, जिसका 2022 में एक ट्रांसजेंडर एथलीट की भागीदारी के प्रति दृष्टिकोण के कारण 175 मिलियन डॉलर का संघीय वित्त पोषण निलंबित कर दिया गया.

03.04.2025: इजरायल विरोधी सक्रियता के प्रति प्रतिक्रिया के कारण ब्राउन यूनिवर्सिटी की 510 मिलियन डॉलर की धनराशि रोक दी गई.

10.04.2025: ट्रम्प प्रशासन ने कॉर्नेल विश्वविद्यालय को दी जाने वाली 1 बिलियन डॉलर से अधिक की संघीय धनराशि और नॉर्थवेस्टर्न को दी जाने वाली 790 मिलियन डॉलर की धनराशि रोक दी है.

14.04.2025: हार्वर्ड विश्वविद्यालय के अध्यक्ष एलन गार्बर ने एक सार्वजनिक पत्र जारी कर ट्रम्प प्रशासन की मांगों को “हार्वर्ड समुदाय को नियंत्रित करने” का प्रयास बताया. साथ ही स्कूल के “ज्ञान की खोज, उत्पादन और प्रसार के लिए समर्पित एक निजी संस्थान के रूप में मूल्यों” को खतरे में डालने वाला बताया.

14.04.2025: ट्रम्प प्रशासन ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय की 2.3 बिलियन डॉलर से अधिक की धनराशि पर रोक लगाने की घोषणा की.

ट्रंप प्रशासन के एक्शन के बाद विश्वविद्यालयों का रिएक्शन

13.04.2025: ट्रम्प प्रशासन के खिलाफ हार्वर्ड फैकल्टी और अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ यूनिवर्सिटी प्रोफेसर्स (AAUP) ने मुकदमा दायर किया. इस मुकदमे में आरोप लगाया गया है कि फंडिंग में कटौती की धमकी देकर कैंपस में भाषण और शासन को नियंत्रित करने के असंवैधानिक प्रयास किए जा रहे हैं. गौर करें तो कानूनी कार्रवाई, प्रशासन को हार्वर्ड विश्वविद्यालय और उसके संबद्ध अस्पतालों के लिए संघीय निधि में $8.7 बिलियन को रोकने से रोकने का प्रयास करती है. क्योंकि इसके तहत विश्वविद्यालय को विशिष्ट नीतिगत परिवर्तनों को लागू करने और अपने संचालन को पुनर्गठित करने की मांग की गई है.

कुलीन अमेरिकी विश्वविद्यालय क्यों है ट्रम्प के रडार पर

इस तरह से राष्ट्रपति ट्रम्प और उनके शीर्ष सहयोगी उच्च शिक्षा प्रणाली के वैचारिक झुकाव को बदलने के लिए संघीय अनुसंधान धन की बड़ी मात्रा पर कंट्रोल कर रहे हैं. इसे वे रुढ़िवादियों के प्रति शत्रुतापूर्ण और उदारवाद को कायम रखने के इरादे से देखते हैं. प्रशासन ने अक्सर दावा किया है कि लक्षित स्कूलों में यहूदी विरोधी भावनाएँ हैं. जब साल 2024 में गाजा में इजरायल के युद्ध के खिलाफ एक विरोध आंदोलन ने कॉलेज परिसरों को अपनी चपेट में ले लिया.

भारतीय छात्रों पर प्रभाव

अमेरिका में अंतर्राष्ट्रीय छात्रों का सबसे बड़ा स्रोत भारत पर भी इसका असर पड़ा है. साल 2024 में, 531,000 से अधिक भारतीय छात्रों ने यूएस में नामांकन कराया था. लेकिन इस माहौल में नाटकीय रूप से बदलाव आया है. इसके बाद मामूली या पुराने उल्लंघनों के कारण छात्रों को वीजा से वंचित किया जा रहा है. साथ ही कमियां पाए जाने पर निर्वासित किए जाने की खबरें बढ़ रही हैं.

विदेशी छात्रों पर अमेरिका की सख्ती और उसका असर

अमेरिका में करीब 1.1 मिलियन अंतरराष्ट्रीय वीजाधारक छात्र हैं. इनसाइड हायर एड ट्रैकर के मुताबिक, 80 से ज़्यादा विश्वविद्यालयों ने वीजा रद किए जाने की सूचना दी है. NAFSA (एसोसिएशन ऑफ़ इंटरनेशनल एजुकेटर्स) के अनुसार, उसने अमेरिका भर के उच्च शिक्षा संस्थानों से रिपोर्ट संकलित करके 500 वीजा रद किए जाने की पहचान की है.

अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अंतर्राष्ट्रीय छात्रों का योगदान

अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा को बढ़ावा देने वाली एजेंसी NAFSA के आंकड़ों के मुताबिक, 2023-2024 शैक्षणिक वर्ष में, अमेरिकी विश्वविद्यालयों में 1.1 मिलियन अंतर्राष्ट्रीय छात्रों ने देश की अर्थव्यवस्था में $43.8 बिलियन का योगदान दिया. इसके साथ ही 378,000 से अधिक नौकरियों को प्रोमोट किया.

अध्ययन के प्रति अमेरिकी विश्वविद्यालयों में रुचि में आई कमी

वैश्विक शिक्षा मंच स्टडी पोर्टल्स के मुताबिक, साल 2025 में अमेरिकी स्नातक कार्यक्रमों में रुचि में 42% की गिरावट आई है. अब यूएस के बजाय छात्र कनाडा, यूके और ऑस्ट्रेलिया की ओर देख रहे हैं. इन देशों में इनका स्वागत किया जा रहा है. देखा जाए तो यह गिरावट अमेरिकी विश्वविद्यालयों के लिए एक बड़ा झटका है. यहां जानना जरूरी है कि ये संस्थान ट्यूशन और शोध सहायता के लिए अंतरराष्ट्रीय छात्रों पर बहुत अधिक निर्भर हैं. खासकर STEM क्षेत्रों में विदेशियों की ज्यादा जरूरत है.
चीन से मिलने वाले दान का अमेरिकी विश्वविद्यालयों को वृद्धि

अमेरिकी सरकार के डेटा के ब्लूमबर्ग विश्लेषण के मुताबिक, वर्ष 2013 से 2020 के बीच 100 से अधिक अमेरिकी विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को चीन के स्रोतों से दान, उपहार या अनुबंध प्राप्त हुए. हार्वर्ड विश्वविद्यालय को सबसे अधिक - लगभग 100 मिलियन डॉलर - मिले. इन उपहारों में से अधिकतर दान उपहार माने गए.

द वॉल स्ट्रीट जर्नल की समीक्षा के अनुसार, साल 2012 से 2024 के बीच 200 अमेरिकी कॉलेजों और विश्वविद्यालयों ने चीनी व्यवसायों के साथ 2.32 बिलियन डॉलर मूल्य के अनुबंध किए.

अमेरिकी विश्वविद्यालयों में शैक्षणिक स्वतंत्रता पर हमलों का इतिहास

गौर करें तो 20वीं सदी के मध्य में संघीय सरकार द्वारा इसे गंभीरता से वित्तपोषित करने के बाद से रुढ़िवादी अमेरिकी विश्वविद्यालय को नया रूप देने की कोशिश कर रहे हैं. तभी से विश्वविद्यालय की स्वतंत्रता - और शैक्षणिक स्वतंत्रता आलोचनाओं का शिकार रही है. इसके तहत अमेरिकी गृहयुद्ध, प्रथम विश्व युद्ध, रेड स्केयर और 1950 के दशक की शुरुआत का शीत युद्ध, वियतनाम युद्ध और 11 सितंबर का आतंकवादी हमले इसमें शामिल है.

अमेरिका में शिक्षाविदों और शिक्षाविदों पर कुछ कठोर कार्रवाईयों पर एक नज़र

अमेरिकी गृह युद्ध: दासता के मुद्दे पर अमेरिकी गृह युद्ध के दौरान दक्षिणी विश्वविद्यालयों के प्रोफेसरों ने कॉन्फेडरेट राजनीतिक रूढ़िवाद को चुनौती दी थी. जब उनकी नौकरी खतरे में पड़ गई थी. इसी दौर में उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान के प्रोफेसर बेंजामिन हेड्रिक ने 1856 के राष्ट्रपति चुनाव में दासता विरोधी उम्मीदवार जॉन सी. फ़्रेमोंट का समर्थन करने का सार्वजनिक रूप से वचन दिया. उसके बाद विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने उनकी निंदा की और उन्हें नौकरी से निकाल दिया. तब गुस्साए छात्रों ने उनका पुतला जलाया.

साल 1900 में, जेन स्टैनफोर्ड ने संस्थान पर अर्थशास्त्र के प्रोफेसर और प्रमुख सुजननवादी तथा आव्रजन विरोधी समर्थक एडवर्ड रॉस को उनके "पक्षपातपूर्ण" रवैये के कारण नौकरी से निकालने का दबाव बनाया. जिसके कारण कई अन्य प्रोफेसरों ने रॉस के साथ एकजुटता दिखाते हुए इस्तीफा दे दिया.

अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ यूनिवर्सिटी प्रोफेशनल्स की स्थापना

1913 में विभिन्न विषयों के शिक्षाविदों ने एक साथ मिलकर अपने संरक्षण के लिए एक संगठन की स्थापना की. ये संगठन बाद में प्रोफेसरों को नौकरी से निकालने के राजनेताओं और प्रशासकों के प्रयासों के खिलाफ लड़ने के लिए अमेरिकन एसोसिएशन ऑफ यूनिवर्सिटी प्रोफेशनल्स (AAUP) बन गया.

जनवरी 1915 में, AAUP ने “शैक्षणिक स्वतंत्रता और शैक्षणिक कार्यकाल पर सिद्धांतों की घोषणा” जारी की. इस घोषणा में कहा गया कि प्रोफेसरों और छात्रों की जांच करने और उसके परिणामों को प्रकाशित करने की पूर्ण और असीमित स्वतंत्रता विश्वविद्यालय में मौजूद हैं. इस दस्तावेज़ को ही अब अमेरिकी उच्च शिक्षा में “शैक्षणिक स्वतंत्रता” की मूलभूत परिभाषा माना जाता है.

1917 में प्रथम विश्व युद्ध में संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रवेश करने और बोल्शेविक क्रांति के बाद पूर्वी यूरोप में साम्यवादी सरकार आने के बाद संघर्षों के कारण अकादमिक स्वतंत्रता को फिर से खतरा पैदा हो गया. इसके देश भर के विश्वविद्यालयों में प्रोफेसरों की आलोचना की गई. इतना ही नहीं उन्हें कुछ मामलों में "अनिष्ठाहीनता" के आरोप के तहत बर्खास्त कर दिया गया.

लाल रंग का भय

1950 और 1960 के दशक में जब शीत युद्ध गर्म हुआ, तो दक्षिणपंथी राजनेताओं और कार्यकर्ताओं ने विश्वविद्यालयों पर यह आरोप लगाते हुए हमला किया कि वे "लाल प्रोफेसरों" से भरे हुए हैं. साथ ही ये कहा गया कि ये सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए "खुद को 'शैक्षणिक स्वतंत्रता' का चोला ओढ़ते हैं. इसको लेकरउन संकाय सदस्यों की जांच की और उन्हें नौकरी से निकाल दिया. इन लोगों पर संदेह था कि वे "कम्युनिस्ट" समर्थक हैं.

वियतनाम युद्ध

1960 के दशक के अंत में, राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के प्रशासन ने परिसरों में वियतनाम युद्ध के विरोध प्रदर्शनों के कारण विश्वविद्यालय के वित्तपोषण में कटौती करने पर विचार-विमर्श किया. हालाँकि यह कभी लागू नहीं हुआ, लेकिन बिना कार्यकाल वाले 100 से अधिक लोगों को उनकी राजनीतिक गतिविधियों के लिए नौकरी से निकाल दिया गया. इसके साथ ही राज्यों ने परिसर में विरोध प्रदर्शनों में भागीदारी को अपराध बनाने के लिए विधेयकों पर विचार किया.

अफ़गानिस्तान और इराक युद्ध

9/11 के बाद अकादमिक स्वतंत्रता से समझौता करने को सही ठहराने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा अधिकार का इस्तेमाल किया गया. रुढ़िवादियों ने अफगानिस्तान और इराक में होने वाले युद्धों का फायदा उठाते हुए उन शिक्षाविदों पर हमला किया. इस दौरान जिन्होंने बुश प्रशासन की विदेश नीति की आलोचना करने की हिम्मत की और इसे "देशद्रोही" बताया गया.

कुछ मामलों में, वे अमेरिकी विदेश नीति की आलोचना करने वाले प्रोफेसरों को अमेरिकी विश्वविद्यालयों में पढ़ाने से रोकने में कामयाब रहे. ऐसे दौर में उन कई प्रोफेसरों को नौकरी से निकाल दिया गया. इन पर आरोप था कि इन्होंने कक्षा में इराक युद्ध की आलोचना की या विवादास्पद राजनीतिक रुख अपनाया. साल 2003 में, प्रतिनिधि सभा ने एक विधेयक पारित किया. इसके बारे में ACLU ने चेतावनी दी थी कि उच्च शिक्षा कार्यक्रमों के लिए संघीय निधि को "स्वीकृत सरकारी सिद्धांत" पढ़ाने की उनकी इच्छा से जोड़कर अकादमिक स्वतंत्रता को खतरा हो सकता है. डोनाल्ड ट्रम्प के पहले कार्यकाल में "मुस्लिम प्रतिबंध", चीनी STEM छात्रों के लिए बड़े पैमाने पर वीज़ा रद किए गए. इसके साथ ही पोस्ट-ग्रेजुएशन वर्क परमिट रद करने के प्रयास किए गए. राष्ट्रपति बिडेन, चीनी छात्रों को लक्षित करने वाले जासूसी विरोधी प्रयास तब तक जारी रहे जब तक कि नागरिक स्वतंत्रता समूहों ने विरोध नहीं किया.

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