हैदराबाद: अमेरिका और ईरान के बीच संबंध दशकों से तनावपूर्ण रहे हैं. ईरान के परमाणु कार्यक्रम इसकी बड़ी वजह हैं. अमेरिका, इजराइल और अन्य यूरोपीय देश इसके खिलाफ हैं. इन देशों की बड़ी चिंता यह है कि ईरान के परमाणु शक्ति संपन्न होने से मध्य-पूर्व और पश्चिम एशिया में सामरिक संतुलन बिगड़ जाएगा.
2015 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के प्रशासन ने ईरान के साथ परमाणु समझौता किया था. इस समझौते पर फ्रांस, ब्रिटेन और अन्य देशों ने भी हस्ताक्षर किए थे. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने वर्ष 2018 में इस समझौता को समाप्त कर दिया था.
दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप ईरान के साथ बातचीत को तैयार हैं. राष्ट्रपति ट्रंप ने सोमवार को घोषणा की कि अमेरिका और ईरान तेहरान के परमाणु कार्यक्रम पर सीधी बातचीत करने के लिए तैयार हैं. दोनों देशों के प्रतिनिधियों के बीच 13 अप्रैल को ओमान में परमाणु वार्ता होगी. ईरान के विदेश मंत्री सैयद अब्बास अराकची ने एक्स पर एक पोस्ट में बताया कि अमेरिका और ईरान तेहरान के परमाणु कार्यक्रमों पर अप्रत्यक्ष उच्च स्तरीय वार्ता के लिए शनिवार को ओमान में मिलेंगे.

आइए अमेरिका और ईरान के संबंधों पर एक नजर डालते हैं...
1953
मोहम्मद मोसद्दिक का तख्तापटल: अमेरिका और ब्रिटिश खुफिया एजेंसियों ने ईरान के लोकतांत्रिक रूप से चुने गए प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसद्दिक को हटाने के लिए तख्तापलट की योजना बनाई, क्योंकि मोसद्दिक ईरान के तेल उद्योग का राष्ट्रीयकरण करना चाहते थे.
मई 1972
निक्सन का ईरान का दौरा: अमेरिका का तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने ईरान की यात्रा की और वहां के शाह (राजा) से मध्य पूर्व में अमेरिकी सुरक्षा हितों की रक्षा के लिए मदद मांगी, जिसमें सोवियत संघ के सहयोगी इराक का विरोध करना भी शामिल था. बदले में, निक्सन ने वादा किया कि ईरान अपनी इच्छानुसार कोई भी गैर-परमाणु हथियार प्रणाली खरीद सकता है.
1979
ईरानी क्रांति: अमेरिका के समर्थक माने जाने वाले ईरान के शाह मोहम्मद रजा पहलवी के शासन के खिलाफ महीनों तक प्रदर्शन हुए, जिसके कारण 16 जनवरी को उन्हें देश छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा. दो सप्ताह बाद इस्लामी धार्मिक नेता अयातुल्ला खुमैनी निर्वासन से ईरान लौटते हैं. जनमत संग्रह के बाद, 1 अप्रैल को इस्लामी गणतंत्र ईरान (Islamic Republic of Iran) की घोषणा की जाती है.
1979-81
अमेरिकी दूतावास बंधक संकट: नवंबर 1979 में प्रदर्शनकारियों ने तेहरान में अमेरिकी दूतावास पर कब्जा कर लिया और अमेरिकी बंधकों को 444 दिनों तक अंदर रखा गया. जनवरी 1981 में, अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के शपथ ग्रहण के दिन, शेष 52 बंधकों को रिहा किया गया. दूतावास से भागे अन्य छह अमेरिकी नागरिकों को फिल्म निर्माताओं की एक टीम द्वारा ईरान से बाहर निकाला गया. 2012 की ऑस्कर विजेता फिल्म अर्गो में इन घटनाओं को नाटकीय रूप दिया गया.
1984
ईरान आतंकवाद समर्थक देश घोषित: 23 अक्टूबर 1983 को इस्लामिक जिहाद नामक एक समूह ने विस्फोटकों से भरे ट्रकों को बैरकों में घुसाकर 241 अमेरिकी और फ्रांसीसी सैन्य कर्मियों को मार डाला. इस्लामिक जिहाद को हिजबुल्लाह का मुखौटा माना जाता है. इसने लेबनान से अमेरिकी नौसैनिकों की वापसी को तेज कर दिया. 1984 में अमेरिका ने ईरान को आतंकवाद प्रायोजित करने वाला देश घोषित कर दिया.
1985-86
ईरान-कॉन्ट्रा स्कैंडल: अमेरिका ने कथित तौर पर लेबनान में हिजबुल्लाह के आतंकवादियों द्वारा बंधक बनाए गए अमेरिकी लोगों को छुड़ाने में तेहरान की मदद के बदले में ईरान को गुप्त रूप से हथियार भेजे.
1988
अमेरिका ने ईरान के यात्री विमान को मार गिराया: अमेरिकी युद्धपोत यूएसएस विंसेनेस ने 3 जुलाई को खाड़ी में ईरान एयर के विमान को मार गिराया, जिसमें सवार सभी 290 लोग मारे गए. अमेरिका का कहना है कि एयरबस ए300 को लड़ाकू विमान समझ लिया गया था.
2002
'बुराई की जड़': अपने स्टेट ऑफ द यूनियन संबोधन में, तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने इराक और उत्तर कोरिया के साथ ईरान को 'बुराई की जड़' बताया. इस भाषण से ईरान में आक्रोश फैल गया.
ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षा और अमेरिकी प्रतिबंध
2000
अमेरिकी विदेश मंत्री मेडेलीन अलब्राइट ने 1998 के संयुक्त राष्ट्र महासभा के दौरान सिक्स-प्लस-टू वार्ता में ईरान के उप-विदेश मंत्री से मुलाकात की. यह 1979 के बाद अमेरिका-ईरान के नेताओं के बीच पहली मुलाकात थी. अप्रैल 2000 में, अलब्राइट ने मोसद्दिक को उखाड़ फेंकने में अमेरिका की भूमिका को स्वीकार किया और ईरान के प्रति पिछली नीति को 'दुर्भाग्यपूर्ण रूप से अदूरदर्शी' बताया.
2002
एक ईरानी विपक्षी समूह ने खुलासा किया कि ईरान यूरेनियम संवर्धन संयंत्र सहित परमाणु सुविधाएं विकसित कर रहा है. अमेरिका ने ईरान पर गुप्त रूप से परमाणु हथियार बनाने का आरोप लगाया, जिसे ईरान ने नकार दिया. एक दशक की कूटनीतिक गतिविधि और संयुक्त राष्ट्र की परमाणु निगरानी संस्था के साथ ईरान के बीच रुक-रुक कर जुड़ाव के बाद यह हुआ. लेकिन अति-रूढ़िवादी राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद की सरकार के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका और यूरोपीय संघ ने कई प्रतिबंध लगाए. इससे ईरान की मुद्रा दो साल में बहुत ज्यादा गिर गई थी.
2006
अहमदीनेजाद का बुश को पत्र: 1979 के बाद से किसी ईरानी नेता द्वारा अमेरिकी नेता को लिखा गया यह पहला पत्र था. अहमदीनेजाद परमाणु कार्यक्रम को लेकर अमेरिका-ईरान के बीच तनाव को कम करना चाहते थे.
2013-2016: घनिष्ठ संबंध और परमाणु समझौता
सितंबर 2013 में, ईरान के नए उदारवादी राष्ट्रपति हसन रूहानी के पदभार ग्रहण करने के एक महीने बाद उन्होंने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से फोन पर बात की. 30 से अधिक वर्षों में इस तरह की पहली शीर्ष-स्तरीय बातचीत थी.
2015
संयुक्त व्यापक कार्य योजना: ईरान, P5+1 और यूरोपीय संघ ने ईरान परमाणु कार्यक्रम समझौते पर हस्ताक्षर किया, जिसे संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCPOA) नाम दिया गया. प्रतिबंधों से राहत पाने के लिए ईरान कई कदम उठाने के लिए सहमत हुआ, जिसमें अराक में अपने परमाणु रिएक्टर को नष्ट करना और फिर से डिजाइन करना शामिल था.
2018- 2019: खाड़ी में तनाव
2018
अमेरिका ने ईरान परमाणु समझौते से खुद को अलग किया: ट्रंप ने चुनाव अभियान के दौरान किए गए वादे को पूरा करते हुए 8 मई को घोषणा की कि अमेरिका ईरान परमाणु समझौते से खुद को अलग कर रहा है.
प्रतिबंधों का पहला दौर: अमेरिका ने 7 अगस्त 2018 को फिर से ईरान पर कई प्रतिबंध लगाए, जिन्हें परमाणु समझौते के हिस्से के रूप में हटा दिया गया था. 8 अप्रैल को, ट्रंप ने ईरानी सेना की एक शक्तिशाली शाखा इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) को विदेशी आतंकवादी संगठन के रूप में नामित करने की घोषणा की.
2019
मई और जून 2019 में, ओमान की खाड़ी में छह तेल टैंकरों पर विस्फोट हुए, और अमेरिका ने ईरान पर आरोप लगाया.
जून: 20 जून को, ईरानी सेना ने होर्मुज जलडमरूमध्य के ऊपर एक अमेरिकी सैन्य ड्रोन को मार गिराया. अमेरिका का कहना था कि यह अंतरराष्ट्रीय जलक्षेत्र में था, जबकि ईरान का कहना है कि अमेरिकी ड्रोन उसकी सीमा में था.
2020 रिश्तों में और गिरावट
कासिम सुलेमानी की हत्या: 3 जनवरी, 2020 को पेंटागन ने घोषणा की कि उसने इराक के बगदाद में ड्रोन हमले में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के निर्देश पर ईरान के इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) के कुद्स फोर्स के प्रमुख कासिम सुलेमानी को मारने के लिए सफल ऑपरेशन किया.
08 जनवरी 2020 को ईरान ने शीर्ष ईरानी कमांडर कासिम सुलेमानी की हत्या का बदला लेने के लिए इराक में अमेरिकी सुविधाओं पर मिसाइल हमले किए.
2021-2025
2021: राष्ट्रपति बाइडेन ने JCPOA में लौटने की इच्छा व्यक्त की, अगर ईरान अपनी परमाणु प्रतिबद्धताओं का अनुपालन करता है.
सितंबर-अक्टूबर 2022: व्हाइट हाउस ने संकेत दिया कि विरोध प्रदर्शनों और ईरान द्वारा यूक्रेन पर रूसी आक्रमण का समर्थन करने के कारण परमाणु वार्ता अनिश्चित काल के लिए रुकी हुई है.
जुलाई 2022: बाइडेन ने ईरान को परमाणु हथियार हासिल करने से रोकने के लिए अमेरिका को अपनी राष्ट्रीय शक्ति के सभी तत्वों का उपयोग करने के लिए प्रतिबद्ध किया.
8 सितंबर 2023: वॉशिंगटन ने प्रतिबंधों में छूट दी, जिसके तहत ईरान में हिरासत में लिए गए पांच ईरानी अमेरिकी नागरिकों की रिहाई के बदले में दक्षिण कोरिया में जमा ईरानी फंड में से 6 बिलियन डॉलर को मुक्त किया गया.
अक्टूबर 2023: ईरान समर्थित फिलिस्तीनी आतंकवादी समूह हमास ने अक्टूबर की शुरुआत में इजराइल पर अब तक का सबसे घातक हमला किया और दर्जनों इजराइली नागरिकों को बंधक बना लिया. हमले के बाद, अमेरिका और कतर ने सितंबर 2023 में ईरान को जारी की गई 6 बिलियन डॉलर की मानवीय सहायता तक पहुंचने से रोकने के लिए सहयोग किया.
07 मार्च 2025: राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के सर्वोच्च नेता अली खामेनेई को एक पत्र भेजा, जिसमें तेहरान के साथ नया समझौता करने की मांग की गई, ताकि उसके तेजी से बढ़ते परमाणु कार्यक्रम को रोका जा सके. साथ ही उस समझौते को बदला जा सके, जिससे उन्होंने अपने पहले कार्यकाल के दौरान अमेरिका को अलग कर लिया था.
29 मार्च 2025: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान को धमकी दी कि अगर तेहरान अपने परमाणु कार्यक्रम पर वॉशिंगटन के साथ समझौता नहीं करता है तो वह बमबारी करेंग और दोहरी टैरिफ लगाएंगे.
8 अप्रैल 2025: ईरान का कहना है कि वह इस सप्ताह के अंत में ओमान में अमेरिका के साथ अप्रत्यक्ष वार्ता करेगा, जिससे ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर कूटनीति का संभावित रास्ता खुल सकता है.
यह भी पढ़ें- टैरिफ तनाव के बीच नेतन्याहू बोले- अमेरिका के साथ व्यापार घाटा खत्म करेंगे