पटनाः राजधानी पटना की ऋचा सिंह राजपूत, माहवारी के दौरान स्वच्छता के प्रति जागरूकता फैलाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं. उन्होंने स्लम एरिया और कॉलेजों में सैनेटरी पैड वेंडिंग मशीन लगाने का अभियान शुरू किया है, जिससे आर्थिक रूप से कमजोर महिलाएं केवल दो रुपये में सैनेटरी पैड प्राप्त कर सकती हैं. इस पहल का उद्देश्य महिलाओं को माहवारी के दौरान स्वच्छता बनाए रखने में मदद करना है, खासकर उन महिलाओं के लिए जो स्लम एरिया में रहती हैं और जिनके पास जरूरी संसाधनों की कमी है.
पहले मुफ्त में बांटती थी सेनेटरी पैडः ऋचा सिंह ने शुरुआत के कुछ साल में उन्होंने मुफ्त में सेनेटरी पैड बांटने का काम किया. लेकिन महिलाओं द्वारा इसका सही इस्तेमाल नहीं किया जा रहा था. कुछ दिनों तक वह बहुत ही कम कीमत पर स्लम की महिलाओं को सेनेटरी पैड उपलब्ध करवाती थी. अब उन्होंने राजधानी पटना के कई इलाकों में सेनेटरी पैड की वेडिंग मशीन लगाने का निर्णय लिया. इन मशीनों में 50 सेनेटरी पैड भरा रहता है. 2 रुपया का सिक्का डालने पर एक सेनेटरी पैड एटीएम की तरह बाहर निकलता है.
अब फ्री में क्यों नहीं बांटतीः ऋचा सिंह ने कहा कि जब वह स्लम बस्तियों में जाकर लोगों से मिली और बात की तो उन्हें पता चला कि कुछ एनजीओ फ्री में सेनेटरी नैपकिन बांट कर चले जाते हैं, लेकिन उसका सही उपयोग नहीं हो पाता है. फ्री में देना कोई सॉल्यूशन नहीं है, इससे उनका आदत खराब हो जाती है. इसीलिए उसने महिलाओं को जागरूक करना शुरू किया. अब स्लम की लड़कियां भी 2 रुपये का सिक्का डालकर वेडिंग मशीन से सेनेटरी पैड लेती हैं. अभी तक पटना के पांच स्लम बस्तियों में इस तरीके की मशीन लगाई गई है.
कहां-कहां लगी हैं वेंडिग मशीनेंः पटना के कई स्लम एरिया और कई पार्कों में यह वेंडिंग मशीन लगायी जा चुकी है. संजय गांधी जैविक उद्यान में 2, पटना के इको पार्क में 2, राजवंशी नगर स्थित नवीन सिंह पार्क में 1, कदमकुआं स्थित कांग्रेस मैदान के पास एक एवं तीन स्लम एरिया में सेनेटरी पैड का वेडिंग मशीन लगायी गयी है. यहां 2 रुपये का सिक्का डालकर कोई भी महिला सेनेटरी पैड ले सकती है.
एक मशीन लगाने में कितना आता खर्चः आमतौर पर सेनेटरी पैड की 1 वेडिंग मशीन लगाने में 15 हजार से 20 हजार का खर्चा आता है. इसके अलावे सेनेटरी पैड का खर्च आता है. यदि मशीन में कोई खराबी आ गई तो उसके मेंटेनेंस के लिए भी पैसे लगते हैं. ऋचा ने बताया कि पटना में बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो सेनेटरी पैड बनाते हैं. स्लम एरिया में जाने के बाद पता चला कि उन लोगों को जो फ्री में पैड दिया जाता था वह अच्छी क्वालिटी की नहीं थी. महिलाओं ने जिस तरीके के पैड का डिमांड किया, उस तरह की सेनेटरी नैपकिन बनायी गयी.
पांच साल से कर रही है कामः महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर ऋचा पिछले 5 वर्षों से काम कर रही है. राजधानी पटना का महिला कॉलेज हो या स्लम एरिया वो लड़कियों और महिलाओं के स्वास्थ को लेकर जागरूकता अभियान चला रही हैं. शुरू में अकेले उन्होंने महिलाओं के स्वास्थ को लेकर जागरूक करने का काम शुरू किया, लेकिन धीरे धीरे उनके साथ कई लड़कियों का साथ मिलने लगा. बाद में उन्होंने महिलाओं के लिए पोथी पत्र फाऊंडेशन की स्थापना की. आज उनके साथ कई कॉलेजों की लड़कियां उनके इस काम में हाथ बटाती हैं.
दोस्त कर रहे हैं मददः ऋचा ने कहा कि महिलाओं को जागरूक करने के लिए उन्होंने सबसे पहले अपने घर से पहल की थी. इस अभियान में अपने पॉकेट से जो भी बन पड़ता था वह करती थी. लेकिन जब लोगों को लगा कि यह एक अच्छी पहल है तो उनके दोस्तों ने भी अब कुछ-कुछ हाथ बढ़ाना शुरू कर दिया है. बहुत से लोग अब मदद के लिए आगे आ रहे हैं. वो उनके इस अभियान में सहयोग करने को इच्छुक हैं. कोई सेनेटरी पैड उपलब्ध करवा देता है, तो कोई मशीन लगाने में कुछ मदद कर देता है.
स्लम एरिया में काम करने की जरूरतः ऋचा का लक्ष्य है कि 30 स्लम एरिया में वह लोग कम करे. क्योंकि सबसे ज्यादा स्लम एरिया में महिलाओं को जागरूक करने की जरूरत है, जो बहुत ही मुश्किल है. यही कारण है कि वह लोग लगातार स्लम एरिया में जाकर महिलाओं को माहवारी और उनके स्वास्थ्य के प्रति जागरूक कर रही है. धीरे-धीरे लोग अब उन लोगों की बातों को समझने लगे हैं. ऋचा को भरोसा है कि उनकी टीम इन महिलाओं को जागरूक करने में सफल होगी.
सेनेटरी पैड यूज करने में बिहार बहुत पीछेः माहवारी के समय सेनेटरी पैड का इस्तेमाल करने के मामले में पूरे देश में बिहार अन्य राज्यों से बहुत पीछे है. स्वास्थ्य से जुड़े आंकड़े देने वाली संस्था की रिपोर्ट में इसकी पुष्टि होती है. बिहार में महिलाओं में मेंस्ट्रूअल हाइजीन के प्रति जागरूकता अधिक नहीं है. NFHS-5 की रिपोर्ट भी बताती है कि देश में सेनेटरी पैड का यूज करने वाली महिलाओं में बिहार सबसे पीछे है. मात्र 60% महिलाएं सैनिटरी पैड का यूज करती हैं.
समाज में नई सोच को दे रहा जन्मः स्लम एरिया में रहने वाली महिलाओं के पास अक्सर स्वच्छता के लिए पर्याप्त साधन नहीं होते हैं, जिससे वे गंभीर संक्रमणों का शिकार हो सकती हैं. ऋचा सिंह की इस पहल से उन महिलाओं को एक सुरक्षित और स्वस्थ माहवारी का अनुभव करने का मौका मिल रहा है, जो उनके जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है. ऋचा का यह अभियान न केवल महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि समाज में स्वच्छता और जागरूकता के प्रति एक नई सोच को भी जन्म दे रहा है.
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