भारत को "डायबिटीज कैपिटल ऑफ वर्ल्ड" का नाम दिया गया है क्योंकि यहां डायबिटीज रोगियों की संख्या बहुत अधिक है. इसे "दुनिया की मधुमेह राजधानी" भी कहा जाता है और साल दर साल शुगर के रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है. ऐसे में सैफी अस्पताल के कंसल्टेंट गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट डॉ होजेफा रांडरवाला का कहना है कि डायबिटीज का पेट की बीमारी से गहरा संबंध है, उनका कहना है कि एक गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट के रूप में, वह कई डायबिटीज रोगियों का निदान करते हैं, जिनमें नियमित रूप से गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल लक्षण होते हैं. डायबिटीज और कब्ज के बीच सीधा संबंध होता है. डायबिटीज में खासकर अनकंट्रोल शुगर लेवल तंत्रिका क्षति (Nerve damage) का कारण बन सकता है, जो पाचन तंत्र में भी शामिल हो सकती है. इस नर्व डैमेज के कारण पाचन क्रिया धीमी हो सकती है, जिससे कब्ज हो सकता है. इसके अलावा, कुछ शुगर की दवाएं भी कब्ज का कारण बन सकती हैं.
डायबिटीज पेट के स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करता है?
डॉ. होजेफा रांडरवाला का कहना है कि डायबिटीज पेट के स्वास्थ्य को कई तरीकों से प्रभावित कर सकती है, जिसमें गैस्ट्रोपेरेसिस, दस्त, और कब्ज शामिल हैं. हाई ब्लड शुगर लेवल पाचन तंत्र की नसों को नुकसान पहुंचा सकता है, जिससे पाचन में गड़बड़ी हो सकती है. डायबिटीज नॉर्मल इंटेस्टाइन मूवमेंट को ब्लॉक करता है और छोटी आंत में अधिक मात्रा में बैक्टीरिया बना सकता है, जिसे शॉर्ट फॉर्म में SIBO कहा जाता है. इसके कारण सूजन, बेचैनी और पोषक तत्वों का मैलाब्सॉर्प्शन हो सकता है. इसके अलावा, डायबिटीज पेट खाली करने की प्रक्रिया को धीमा कर देता है, जो आम तौर पर पेट में सूजन और पेट में भारीपन का कारण बनता है. इसके कारण होने वाले गैस्ट्रोपेरेसिस के कारण भोजन के बाद मतली और पेट में भारीपन भी होता है, जिससे रोगियों के लिए संतुलित आहार लेना मुश्किल हो जाता है.
डॉ. होजेफा रांडरवाला का कहना है कि मेटफॉर्मिन जैसी डायबिटीज दवाएं ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित करने के लिए नियमित रूप से ली जाती हैं. हालांकि, कुछ दवाओं के साइड इफेक्ट भी होते हैं, जो कभी-कभी गैस्ट्राइटिस, मतली और पेट की अन्य बीमारियों का कारण बन सकते हैं. वहीं, डायबिटीज की अन्य दवाएं अग्न्याशय को भी प्रभावित कर सकती हैं, जिससे पेट की बीमारियां और भी बदतर हो सकती हैं, जिससे रोगी के पाचन तंत्र में और भी कॉम्प्लिकेशन हो सकती हैं. अनकंट्रोल डायबिटीज के कारण इरेगुलर ब्लड शुगर लेवल भी ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम में हस्तक्षेप कर सकता है. बता दें, ऑटोनोमिक नर्वस सिस्टम आंत की गतिशीलता को नियंत्रित करने में एक मुख्य भूमिका निभाता है.
अनकंट्रोल डायबिटीज गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट के कई डिसऑर्डर को जन्म दे सकता है जैसे कि अनस्टेबल बाउल फंक्शन और असुविधा आदि. डायबिटीज आंत की म्यूकोसल परत को कई तरह से प्रभावित कर सकता है, जिससे आंत की पारगम्यता बढ़ती है, सूजन होती है, और पाचन तंत्र की कार्यक्षमता कम हो जाती है. ये प्रभाव डायबिटीज मरीजों में गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल प्रोब्लेम्स, कब्ज, और यहां तक कि अन्य हेल्थ प्रोब्लेम्स में कंट्रीब्यूट करते हैं.
डॉ. होजेफा रांडरवाला का कहना है कि इंटेस्टाइनल डिसफंक्शन की शुरुआत को रोकने के लिए, लगातार मॉनिटरिंग, इलाज, दवा और संतुलित आहार आवश्यक है. डाइट फाइबर कंटेंट की मात्रा बढ़ाकर और सिंपल कार्बोहाइड्रेट का सेवन सीमित करके, ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित किया जा सकता है. इससे ओवरऑल पाचन स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है. यदि डायबिटीज को नियंत्रित करने के बाद भी गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल प्रोब्लेम्स बनी रहती हैं, तो निश्चित रूप से गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट से मिलें. वास्तव में, सटीक निदान और इलाज की संभावनाएं Underlying etiology को संबोधित कर सकती हैं और जठरांत्र संबंधी लक्षणों को कम कर सकती हैं, जिससे रोगी के जीवन की गुणवत्ता में सुधार हो सकता है।
अंत में, डॉ. होजेफा रांडरवाला का कहना है कि डायबिटीज और पाचन स्वास्थ्य एक साथ चलते हैं, और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल कॉम्प्लिकेशन को रोकने और उनका इलाज करने के लिए ब्लड शुगर को कंट्रोल में रखना बेहद महत्वपूर्ण है. अधिक जानकारी और सलाह के लिए अपने स्वास्थ्य सेवा प्रदाता से संपर्क करें.
(डिस्क्लेमर: इस वेबसाइट पर आपको प्रदान की गई सभी स्वास्थ्य जानकारी, चिकित्सा सुझाव केवल आपकी जानकारी के लिए हैं. हम यह जानकारी वैज्ञानिक अनुसंधान, अध्ययन, चिकित्सा और स्वास्थ्य पेशेवर सलाह के आधार पर प्रदान कर रहे हैं, लेकिन बेहतर होगा कि इन पर अमल करने से पहले आप अपने निजी डॉक्टर की सलाह ले लें.)