हैदराबाद: दादा साहब फाल्के की आज, 30 अप्रैल को जयंती है. आज पूरा देश दादा साहब फाल्के की 155वीं जयंती मना रहा है. उन्होंने भारतीय सिनेमा के लिए कई महत्वपूर्ण काम किए हैं. आइए दादा साहब फाल्के की 155वीं जयंती पर भारतीय सिनेमा के लिए किए गए उनके योगदानों पर एक नजर डालते हैं.
कैसे मिला दादा साहब फाल्के को 'फादर ऑफ इंडियन सिनेमा' का टाइटल?
साल 1870 में आज ही के दिन नासिक में जन्मे दादा साहब फाल्के का असली नाम धुंडिराज गोविंद फाल्के था. उनका जन्म स्थान त्र्यंबकेश्वर है, जो नासिक में पड़ता है. दादा साहब फाल्के ने 1913 में भारतीय सिनेमा के लिए पहली फिल्म बनाई थी, जिसका नाम था 'राजा हरिश्चंद्र' था. यह एक फुल-लेंथ वाली फीचर फिल्म थी. इस फिल्म के बाद उन्हें 'फादर ऑफ इंडियन सिनेमा' यानी 'भारतीय सिनेमा के पिता' कहा जाने लगा. उनकी अग्रणी दृष्टि ने देश को सिनेमाई कहानी कहने की कला से परिचित कराया.
दादा साहब फाल्के को कहां से आया फिल्म बनाने का आइडिया?
किसी को किसी भी नए काम की शुरुआत करने के लिए कहीं न कहीं से प्रेरणा मिलती है. जब फाल्के ने भारतीय सिनेमा के लिए पहली फिल्म बनाई, तो लोगों के मन में ये सवाल आने लगा कि उन्हें इसे बनाने की प्रेरणा कहां से मिली.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, दादा साहब फाल्के को फिल्म बनाने का आइडिया 1911 में यूरोपीय फिल्म 'द लाइफ ऑफ क्राइस्ट' देखने के बाद आया. इस फिल्म की कहानी और सीन से प्रभावित होकर फाल्के ने भारतीय पौराणिक कथाओं और उसकी संस्कृति पर फिल्म बनाने की सोची. इस नए काम की शुरुआत में प्रसिद्ध कलाकार राजा रवि वर्मा ने मदद की. राजा रवि ने उन्हें समझाया कि पौराणिक पात्रों को स्क्रीन पर कैसे चित्रित किया जा सकता है.
फाल्के ने अपने सपने को पूरा करने के लिए अपनी पत्नी के गहने गिरवी रख दिए. वहीं, दोस्तों से भी पैसे उधार लिए. इसके बाद वह इंग्लैंड गए और उन्होंने ब्रिटिश अग्रणी सेसिल हेपवर्थ के अधीन फिल्म निर्माण के बारे में पढ़ा. हर चीज समझने के बाद वह विलियमसन कैमरा समेत कई चीजें वहां लेकर भारत लौटे.
'राजा हरिश्चंद्र' बनाने में किन चुनौतियों का करना पड़ा सामना?
दादा साहब फाल्के के लिए फिल्म 'राजा हरिश्चंद्र' बनाना इतना आसान नहीं था. इस फिल्म के लिए सबसे बड़ी चुनौती अभिनेत्रियों का चुनाव था, क्योंकि उस जमाने में किसी भी महिला के लिए अभिनय करना मना था. आखिर में महिलाओं के किरदार के लिए पुरुषों का चुनाव किया गया है और एक्टर अन्ना सालुके को रानी तारामती की महिला भूमिका निभाने के लिए चुना गया. फिल्म का निर्देशन, निर्माण और कैमरा उन्होंने खुद ही किया था. परिवार और दोस्तों की मदद से यह फिल्म 6 महीने 27 दिनों मे पूरी हुई. इस फिल्म का प्रीमियर 3 मई 1913 को किया गया. इसी के साथ भारतीय सिनेमा की शुरुआत हुई.
दादा साहब फाल्के की अन्य फिल्में
राजा हरिश्चंद्र की सफलता के बाद, दादा साहब फाल्के का विजन और भी बढ़ गया है. उन्होंने फिल्म स्पेशल इफेक्ट्स और ट्रिक फोटोग्राफी पर काम किया और 1917 में हिंदुस्तान फिल्म नाम की कंपनी बनाई. इस कंपनी के बैनर तले उन्होंने 19 सालों में 95 फीचर फिल्में और 27 शार्ट फिल्में बनाई, जिनमें से 1917 में लंका दहन, 1918 में श्री कृष्ण जन्म, 1920 में सैरंध्री, 1920 में शकुंतला और 1923 में गुरु द्रोणाचार्य जैसी फिल्में शामिल हैं. उनकी आखिरी फिल्म गंगावतरण (1937) थी, जो उनकी एकमात्र साउंड फिल्म थी.
दादा साहब फाल्के पुरस्कार
भारत सरकार ने दादा साहब फाल्के की विरासत को जिंदा रखने के लिए दादा साहब फाल्के पुरस्कार की स्थापना की, जो भारतीय सिनेमा का सर्वोच्च सम्मान है. यह फिल्म इंडस्ट्री में किसी व्यक्ति द्वारा दिए गए उनके योगदानों के लिए दिया जाता है. यह पुरस्कार समारोह हर साल होता है.