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Apple ने फोन असेंबल के लिए भारत को ही क्यों चुना? जानें टिम कुक ने Trump की मांग क्यों ठुकराई? - US MADE VS INDIA MADE IPHONE

एप्पल अपने लगभग 15 फीसदी आईफोन भारत में असेंबल करता है, जबकि बाकी का उत्पादन अभी भी चीन में किया जा रहा है.

Apple
प्रतीकात्मक फोटो (Getty Image)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : May 17, 2025 at 4:19 PM IST

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नई दिल्ली: जैसे-जैसे इस बात की अटकलें लगाई जा रही हैं कि एप्पल अपने आईफोन की असेंबली भारत से अमेरिका ले जा सकता है. वैसे-वैसे विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि तकनीकी दिग्गज एप्पल को दक्षिण एशियाई देश से कहीं ज्यादा नुकसान उठाना पड़ सकता है.

ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के संस्थापक अजय श्रीवास्तव की एक रिपोर्ट के अनुसार इस तरह के फैसले से एप्पल के मुनाफे में काफी कमी आ सकती है, जबकि भारत को गहन और ज्यादा एडवांस मैन्युफैक्चरिंग की ओर ध्यान केंद्रित करने का मौका मिल सकता है.

फिलहाल एप्पल अपने लगभग 15 फीसदी आईफोन भारत में असेंबल करता है, जबकि बाकी का उत्पादन अभी भी चीन में किया जा रहा है. हालांकि भारत का योगदान छोटा लग सकता है, लेकिन बहस तेज हो रही है. खासकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के विनिर्माण नौकरियों को वापस अमेरिकी धरती पर लाने के राजनीतिक प्रयासों के बीच.

अजय श्रीवास्तव ने कहा कि भारत यहां असेंबल किए गए प्रत्येक आईफोन पर 30 डॉलर से भी कम कमाता है, जिसका अधिकांश हिस्सा उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के तहत सब्सिडी के माध्यम से एप्पल को वापस कर दिया जाता है. मूल्य का असली हिस्सा डिजाइन, सॉफ्टवेयर और प्रमुख घटकों में योगदान देने वाले देशों के पास है, न कि असेंबल करने वाले देशों के पास जाता है.

आईफोन प्रोडक्शन से अन्य देशों को लाभ
अमेरिका में लगभग 1,000 डॉलर में बिकने वाले एक सामान्य आईफोन का मूल्य वैश्विक स्तर पर वितरित होता है. एप्पल की ब्रांडिंग और सॉफ्टवेयर के माध्यम से अमेरिका को लगभग 450 डॉलर का लाभ होता है. क्वालकॉम और ब्रॉडकॉम जैसे यूएस-आधारित घटक निर्माता 80 डॉलर और कमाते हैं. ताइवान चिप उत्पादन के माध्यम से 150 डॉलर जोड़ता है. दक्षिण कोरिया OLED डिस्प्ले और मेमोरी चिप्स के माध्यम से 90 डॉलर कमाता है. जबकि जापान मुख्य रूप से कैमरा घटकों के माध्यम से 85 डॉलर का योगदान देता है. जर्मनी, वियतनाम और मलेशिया से प्राप्त छोटे घटक 45 डॉलर तक होते हैं.

भारत और चीन को बहुत कम लाभ
इसकी तुलना में भारत और चीन, जहां वास्तविक असेंबली होती है, केवल 30 डॉलर कमाते हैं. कुल डिवाइस मूल्य का तीन फीसदी से भी कम. हालांकि असेंबली पर मौद्रिक रिटर्न मामूली है, लेकिन रोजगार पर इसका प्रभाव महत्वपूर्ण है.

अगर Apple भारत में विनिर्माण इकाई स्थापित नहीं करता है, तो कई आर्थिक नुकसान हो सकते हैं. खासकर भारत के वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने पर वर्तमान फोकस को देखते हुए.

अगर Apple भारत में मैन्युफैक्चरिंग नहीं करता है तो भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?

US made vs India made iPhone
प्रतीकात्मक फोटो (ETV Bharat)

ट्रंप अमेरिका में आईफोन की असेंबली क्यों चाहते हैं?
वर्तमान में 60,000 से अधिक भारतीय और लगभग 300,000 चीनी कर्मचारी इन असेंबली लाइनों में लगे हुए हैं. अजय श्रीवास्तव ने कहा कि यही कारण है कि ट्रम्प ने नौकरियों को फिर से बढ़ाने के लिए इस क्षेत्र को लक्षित किया है. यह उच्च तकनीक क्षमताओं के बारे में नहीं है. यह रोजगार के बारे में है. ट्रंप यही बात अमेरिका में वापस लाना चाहते हैं.

Apple क्यों नहीं चाहता अमेरिका में आईफोन की असेंबली?
ट्रंप के इस तरह के कदम की एक कीमत है - जिसे Apple के लिए अनदेखा करना मुश्किल हो सकता है. भारत में कंपनी असेंबली कर्मचारियों को औसतन 290 डॉलर प्रति माह का भुगतान करती है. अमेरिका में न्यूनतम वेतन कानूनों का पालन करने से यह बढ़कर 2,900 डॉलर प्रति कर्मचारी हो जाएगा, जिससे असेंबली लागत 30 डॉलर से बढ़कर लगभग 390 डॉलर प्रति डिवाइस हो जाएगी. इससे Apple का प्रति यूनिट लाभ 450 डॉलर से घटकर केवल 60 डॉलर रह सकता है, जब तक कि वह iPhone की कीमतें बढ़ाने का विकल्प नहीं चुनता - जो पहले से ही महंगाई से जूझ रहे अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए एक गलत निर्णय हो सकता है.

टिम कुक क्या चुनेंगे- देशभक्ति या लाभ?
कुछ विश्लेषकों का मानना ​​है कि ट्रंप की हालिया बयानबाजी भारत के साथ अधिक अनुकूल व्यापार समझौते को सुरक्षित करने के उद्देश्य से व्यापक वार्ता रणनीति का हिस्सा हो सकती है. ट्रंप ने चीन में एप्पल के उत्पादन के बारे में ऐसी सार्वजनिक मांग नहीं की है, जहां अभी भी 85 फीसदी iPhone का निर्माण होता है, जिससे व्यापार विशेषज्ञों के बीच चिंता बढ़ गई है. इस बीच अगर एप्पल अपना परिचालन बदलता है तो भारत को उम्मीद की किरण मिल सकती है.

अजय श्रीवास्तव ने तर्क दिया कि अगर एप्पल बाहर निकलता है, तो भारत कम मूल्य वाली असेंबली का समर्थन करना बंद कर सकता है और चिप उत्पादन, बैटरी निर्माण और डिस्प्ले तकनीक में क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित कर सकता है.

आईफोन निर्माण पर ट्रंप की टिप्पणी
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एप्पल के सीईओ टिम कुक से भारत में विनिर्माण कार्यों का विस्तार बंद करने का आग्रह किया, जबकि नई दिल्ली ने अमेरिका को नो-टैरिफ प्रस्ताव दिया है. ट्रंप की कतर की राजकीय यात्रा के दौरान की गई यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है. जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम कराने के उनके विवादास्पद दावे के बाद तनाव पहले से ही बहुत अधिक है. एक ऐसा दावा जिसका भारत ने खंडन किया है.

एप्पल प्रमुख के साथ अपनी हालिया बातचीत के बारे में बोलते हुए ट्रंप ने कहा कि टिम कुक के साथ मेरी थोड़ी असहमति थी. वह पूरे भारत में परिचालन स्थापित कर रहे हैं. मैंने उनसे कहा कि मैं नहीं चाहता कि आप भारत में निर्माण करें। भारत खुद की देखभाल कर सकता है.

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ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के संस्थापक अजय श्रीवास्तव की एक रिपोर्ट के अनुसार इस तरह के फैसले से एप्पल के मुनाफे में काफी कमी आ सकती है, जबकि भारत को गहन और ज्यादा एडवांस मैन्युफैक्चरिंग की ओर ध्यान केंद्रित करने का मौका मिल सकता है.

फिलहाल एप्पल अपने लगभग 15 फीसदी आईफोन भारत में असेंबल करता है, जबकि बाकी का उत्पादन अभी भी चीन में किया जा रहा है. हालांकि भारत का योगदान छोटा लग सकता है, लेकिन बहस तेज हो रही है. खासकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के विनिर्माण नौकरियों को वापस अमेरिकी धरती पर लाने के राजनीतिक प्रयासों के बीच.

अजय श्रीवास्तव ने कहा कि भारत यहां असेंबल किए गए प्रत्येक आईफोन पर 30 डॉलर से भी कम कमाता है, जिसका अधिकांश हिस्सा उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के तहत सब्सिडी के माध्यम से एप्पल को वापस कर दिया जाता है. मूल्य का असली हिस्सा डिजाइन, सॉफ्टवेयर और प्रमुख घटकों में योगदान देने वाले देशों के पास है, न कि असेंबल करने वाले देशों के पास जाता है.

आईफोन प्रोडक्शन से अन्य देशों को लाभ
अमेरिका में लगभग 1,000 डॉलर में बिकने वाले एक सामान्य आईफोन का मूल्य वैश्विक स्तर पर वितरित होता है. एप्पल की ब्रांडिंग और सॉफ्टवेयर के माध्यम से अमेरिका को लगभग 450 डॉलर का लाभ होता है. क्वालकॉम और ब्रॉडकॉम जैसे यूएस-आधारित घटक निर्माता 80 डॉलर और कमाते हैं. ताइवान चिप उत्पादन के माध्यम से 150 डॉलर जोड़ता है. दक्षिण कोरिया OLED डिस्प्ले और मेमोरी चिप्स के माध्यम से 90 डॉलर कमाता है. जबकि जापान मुख्य रूप से कैमरा घटकों के माध्यम से 85 डॉलर का योगदान देता है. जर्मनी, वियतनाम और मलेशिया से प्राप्त छोटे घटक 45 डॉलर तक होते हैं.

भारत और चीन को बहुत कम लाभ
इसकी तुलना में भारत और चीन, जहां वास्तविक असेंबली होती है, केवल 30 डॉलर कमाते हैं. कुल डिवाइस मूल्य का तीन फीसदी से भी कम. हालांकि असेंबली पर मौद्रिक रिटर्न मामूली है, लेकिन रोजगार पर इसका प्रभाव महत्वपूर्ण है.

अगर Apple भारत में विनिर्माण इकाई स्थापित नहीं करता है, तो कई आर्थिक नुकसान हो सकते हैं. खासकर भारत के वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने पर वर्तमान फोकस को देखते हुए.

अगर Apple भारत में मैन्युफैक्चरिंग नहीं करता है तो भारतीय अर्थव्यवस्था पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?

US made vs India made iPhone
प्रतीकात्मक फोटो (ETV Bharat)

ट्रंप अमेरिका में आईफोन की असेंबली क्यों चाहते हैं?
वर्तमान में 60,000 से अधिक भारतीय और लगभग 300,000 चीनी कर्मचारी इन असेंबली लाइनों में लगे हुए हैं. अजय श्रीवास्तव ने कहा कि यही कारण है कि ट्रम्प ने नौकरियों को फिर से बढ़ाने के लिए इस क्षेत्र को लक्षित किया है. यह उच्च तकनीक क्षमताओं के बारे में नहीं है. यह रोजगार के बारे में है. ट्रंप यही बात अमेरिका में वापस लाना चाहते हैं.

Apple क्यों नहीं चाहता अमेरिका में आईफोन की असेंबली?
ट्रंप के इस तरह के कदम की एक कीमत है - जिसे Apple के लिए अनदेखा करना मुश्किल हो सकता है. भारत में कंपनी असेंबली कर्मचारियों को औसतन 290 डॉलर प्रति माह का भुगतान करती है. अमेरिका में न्यूनतम वेतन कानूनों का पालन करने से यह बढ़कर 2,900 डॉलर प्रति कर्मचारी हो जाएगा, जिससे असेंबली लागत 30 डॉलर से बढ़कर लगभग 390 डॉलर प्रति डिवाइस हो जाएगी. इससे Apple का प्रति यूनिट लाभ 450 डॉलर से घटकर केवल 60 डॉलर रह सकता है, जब तक कि वह iPhone की कीमतें बढ़ाने का विकल्प नहीं चुनता - जो पहले से ही महंगाई से जूझ रहे अमेरिकी उपभोक्ताओं के लिए एक गलत निर्णय हो सकता है.

टिम कुक क्या चुनेंगे- देशभक्ति या लाभ?
कुछ विश्लेषकों का मानना ​​है कि ट्रंप की हालिया बयानबाजी भारत के साथ अधिक अनुकूल व्यापार समझौते को सुरक्षित करने के उद्देश्य से व्यापक वार्ता रणनीति का हिस्सा हो सकती है. ट्रंप ने चीन में एप्पल के उत्पादन के बारे में ऐसी सार्वजनिक मांग नहीं की है, जहां अभी भी 85 फीसदी iPhone का निर्माण होता है, जिससे व्यापार विशेषज्ञों के बीच चिंता बढ़ गई है. इस बीच अगर एप्पल अपना परिचालन बदलता है तो भारत को उम्मीद की किरण मिल सकती है.

अजय श्रीवास्तव ने तर्क दिया कि अगर एप्पल बाहर निकलता है, तो भारत कम मूल्य वाली असेंबली का समर्थन करना बंद कर सकता है और चिप उत्पादन, बैटरी निर्माण और डिस्प्ले तकनीक में क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित कर सकता है.

आईफोन निर्माण पर ट्रंप की टिप्पणी
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एप्पल के सीईओ टिम कुक से भारत में विनिर्माण कार्यों का विस्तार बंद करने का आग्रह किया, जबकि नई दिल्ली ने अमेरिका को नो-टैरिफ प्रस्ताव दिया है. ट्रंप की कतर की राजकीय यात्रा के दौरान की गई यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है. जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध विराम कराने के उनके विवादास्पद दावे के बाद तनाव पहले से ही बहुत अधिक है. एक ऐसा दावा जिसका भारत ने खंडन किया है.

एप्पल प्रमुख के साथ अपनी हालिया बातचीत के बारे में बोलते हुए ट्रंप ने कहा कि टिम कुक के साथ मेरी थोड़ी असहमति थी. वह पूरे भारत में परिचालन स्थापित कर रहे हैं. मैंने उनसे कहा कि मैं नहीं चाहता कि आप भारत में निर्माण करें। भारत खुद की देखभाल कर सकता है.

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