भारत की बीयर इंडस्ट्री में एल्यूमीनियम कैन की भारी कमी, सरकार से BIS नियमों में छूट की मांग
भारत की बीयर इंडस्ट्री को एल्यूमीनियम कैन की भारी कमी, बीएआई ने BIS नियमों में अस्थायी छूट की मांग की ताकि सप्लाई प्रभावित न हो.

Published : October 12, 2025 at 5:26 PM IST
नई दिल्ली: भारत की बीयर इंडस्ट्री इस समय एल्यूमीनियम कैन की गंभीर कमी से जूझ रही है. ब्रूअर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (BAI) ने सरकार से अनुरोध किया है कि सप्लाई में रुकावट रोकने के लिए क्वॉलिटी कंट्रोल (BIS सर्टिफिकेशन) नियमों में अस्थायी छूट दी जाए. रिपोर्ट्स के मुताबिक, देश में हर साल करीब 12 से 13 करोड़ 500 मिलीलीटर कैन की कमी हो रही है, जो कुल बीयर बिक्री का लगभग 20% हिस्सा है. इस कमी से केंद्र और राज्य सरकारों को 1,200-1,300 करोड़ रुपये के राजस्व नुकसान का अनुमान है.
BIS सर्टिफिकेशन से बढ़ी दिक्कतें
1 अप्रैल 2025 से ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स (BIS) सर्टिफिकेशन एल्यूमीनियम कैन के लिए अनिवार्य कर दिया गया है. यह कदम उत्पाद की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया था, लेकिन इससे बीयर और पेय उद्योग में पैकेजिंग की भारी किल्लत पैदा हो गई है.
घरेलू सप्लायर जैसे BALL बेवरेज पैकेजिंग इंडिया और Can-Pack इंडिया पहले से अपनी पूरी क्षमता पर काम कर रहे हैं और उन्होंने कहा है कि नई उत्पादन लाइन शुरू होने तक (6 से 12 महीने) वे सप्लाई नहीं बढ़ा पाएंगे.
आयात भी अटका
BIS सर्टिफिकेशन प्रक्रिया में कई महीने लगने के कारण विदेशों से कैन आयात भी रुका हुआ है. इससे बीयर कंपनियों के पास सीमित विकल्प बचे हैं और सप्लाई चेन में व्यवधान का खतरा और बढ़ गया है.
BAI की दो प्रमुख मांगें
- बीएआई, जो AB InBev, कार्ल्सबर्ग और यूनाइटेड ब्रूअरीज जैसी प्रमुख कंपनियों का प्रतिनिधित्व करता है, ने सरकार से दो मुख्य मांगे रखी हैं:
- आयातित एल्यूमीनियम कैन के लिए BIS सर्टिफिकेशन की अनिवार्यता को अप्रैल 2026 तक स्थगित किया जाए.
- जिन अंतरराष्ट्रीय सप्लायर्स ने BIS सर्टिफिकेशन के लिए आवेदन किया है, उन्हें आवेदन प्रक्रिया पूरी होने तक अस्थायी रूप से कैन आयात की अनुमति दी जाए.
उद्योग पर असर
यूनाइटेड ब्रूअरीज लिमिटेड (UBL) के CEO ने कहा कि बीयर उद्योग की सबसे बड़ी चुनौती अब महंगाई नहीं बल्कि पैकेजिंग सामग्री की कमी है. भारत में बीयर सेक्टर में 55 से अधिक ब्रुअरीज हैं जो 27,000 से अधिक लोगों को रोजगार देती हैं और करीब 25,000 करोड़ रुपये का निवेश करती हैं.
BAI ने चेतावनी दी है कि यह कमी सिर्फ सप्लाई चेन तक सीमित नहीं रहेगी बल्कि राज्य सरकारों के उत्पाद शुल्क राजस्व, किसानों, पैकेजिंग, लॉजिस्टिक्स और रिटेल सेक्टर पर भी असर डालेगी.
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