सिरिकोंडा: तेलंगाना के आदिलाबाद जिले स्थित सिरिकोंडा मंडल के सुदूर वन क्षेत्र वायुपेटा में आदिवासियों ने एक भी पेड़ काटे बिना लकड़ी से महाकाली मंदिर का निर्माण किया. आदिवासी ग्रामीणों ने गिरी हुई लकड़ी का उपयोग करके एक अनोखा महाकाली मंदिर बनाया. अगर आप तेलंगाना में हैं, तो आपको इस अनोखे और खूबसूरत मंदिर की यात्रा जरूर करनी चाहिए.
कहां से मिली प्रेरणाः पीढ़ियों से, वनवासी समुदाय एक साधारण झोपड़ी में महाकाली की पूजा करता आ रहा है. लेकिन एक भव्य मंदिर की कल्पना तब हुई जब ग्रामीण किनाका शंभू नेपाल गए. वहां के जटिल रूप से डिजाइन किए गए लकड़ी के मंदिरों से प्रेरित हुए. अपने पैतृक गांव में भी कुछ ऐसा ही बनाने का दृढ़ संकल्प लेकर वह घर लौटे. जल्द ही पूरा गांव उनके पीछे जुट गया.
किन-किन सामग्री का इस्तेमालः मंदिर का निर्माण 2023 में शुरू हुआ. बारिश और जंगल की आग से पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हुए पेड़ों का इस्तेमाल ही मंदिर के निर्माण में किया गया. शंभू कहते हैं, "हमने एक भी जीवित पेड़ नहीं काटा." "हमने केवल वही इस्तेमाल किया जो जंगल ने पहले ही गिरा दिया था."

मंदिर की खासियतः
- 26 हस्तनिर्मित लकड़ी के खंभे
- एक गोपुरम, गर्भगृह, मुख्य द्वार और दीवारें, सभी लकड़ी से बनी हैं
- हर खंभे और बीम पर आदिवासी जानवरों, पक्षियों और देवताओं की जटिल नक्काशी

स्थानीय कारीगरों ने बनायाः इस पूरे ढांचे को इंजीनियरों या आधुनिक तकनीक की मदद के बिना बनाया गया है. स्थानीय आदिवासी बढ़ई ने मंदिर को जीवंत बनाने के लिए पारंपरिक तकनीकों और औजारों का इस्तेमाल किया. इस पर्यावरण-सचेत निर्माण ने न केवल गांव की आध्यात्मिक भावना को बढ़ाया है, बल्कि परंपरा और प्रकृति के प्रति सम्मान में गहराई से निहित टिकाऊ वास्तुकला का एक उदाहरण भी स्थापित किया है.
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