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खूंखार शिकारी भूल रहे पारंपरिक शिकार का तरीका, आसान शिकार करा रहा इंसानों से आमना-सामना - Wildlife abandoning hunting methods

Wildlife Traditional Change In Hunting जंगल के शिकारी अब अपने पारंपरिक शिकार को छोड़कर आसान और कम मेहनत वाले भोजन पर निर्भर होने लगे हैं. परेशानी यह है कि खूंखार शिकारियों की यही आदत उनके इंसानों से मुठभेड़ की कारण भी बन रही है. पीढ़ी दर पीढ़ी बदलती आदतें नए खतरों के साथ वन विभाग के अफसरों की चिंताएं भी बढ़ा रही है. जंगल में बदलते हालात पर विशेषज्ञ चिंतित हैं. पढ़ें खबर...

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By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Aug 12, 2024, 12:51 PM IST

There has been a change in the traditional way of hunting wildlife
वन्यजीवों के पारंपरिक शिकार के तरीके में आया बदलाव (Photo- ETV Bharat)
वन्यजीव भूल रहे पारंपरिक शिकार करने का तरीका (Video-ETV ETV Bharat)

देहरादून (उत्तराखंड): जंगल में खूंखार शिकारियों का खौफ कुछ कम हुआ है, इसकी वजह कई शिकारी वन्यजीवों का जंगल से बाहर निकलना है तो कुछ पालतू पशुओं का जंगल में दाखिल होना भी है. उत्तराखंड में गुलदार और बाघ जैसे शिकारी वन्यजीवों की आदतों में बदलाव देखने को मिल रहे हैं. ये बदलाव जंगल में उस मानव भूल का नतीजा हैं, जिसका खामियाजा भी कहीं न कहीं इंसानों को भी झेलना पड़ रहा है. बात मवेशियों को जंगल में छोड़ने से जुड़ी है.जिन्हें भरपूर चारा तो जंगल में मिल जाता है लेकिन कई बार ये खुद वन्यजीवों का शिकार बन जाते हैं.

वन्यजीव पारंपरिक शिकार के तरीके को छोड़ रहे: पीसीसीएफ (प्रिंसिपल चीफ कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट) वाइल्डलाइफ समीर सिन्हा का कहना है कि बड़ी संख्या में जंगलों के भीतर छोड़े जा रहे मवेशियों के चलते गुलदार और बाघ जैसे खूंखार शिकारी वन्यजीव अपने पारंपरिक शिकार के तरीके को छोड़ रहे हैं और पीढ़ी दर पीढ़ी इन वन्यजीवों में अपने भोजन को लेकर आदतें बदल रही हैं.

मेहनत से शिकार करना नापसंद: समीर सिन्हा ने बताया कि आसानी से भोजन मिलने के कारण जंगल के भीतर मेहनत से होने वाले शिकार को करना नापसंद किया जा रहा है. चिंता की बात यह है कि गुलदार या बाघ की यही नई आदत इंसानों के लिए भी मुसीबत बन रही. इन्हीं मवेशियों के पीछे गुलदार और बाघ भी कई बार इंसानी बस्तियों के नजदीक पहुंच रहे हैं और इसके कारण मानव वन्यजीव संघर्ष के खतरे भी बढ़े हैं.

इस वजह से हो रहा गौ सदनों का निर्माण: गौर हो कि ऐसा नहीं है कि इस बात की जानकारी वन विभाग या सरकार को नहीं है. वाइल्डलाइफ तक सालों साल तक काम करने वाले अफसर सरकार और विभाग के बड़े हुक्मरानों को भी इसका बोध कराते रहे हैं. इसी का नतीजा है कि हाल ही में सरकार ने प्रदेश में ज्यादा से ज्यादा गौ सदनों की स्थापना करने का निर्णय लिया है. इसके पीछे की मंशा गौ सदनों के जरिए आवारा पशुओं को जंगलों में जाने से रोकना भी होगा. ताकि शिकारी वन्यजीवों की पारंपरिक शिकार करने की आदत पूरी तरह से न छूट जाए.

मानव और वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं में इजाफा: उत्तराखंड में मानव वन्यजीव संघर्ष के कई मामले सामने आते रहते हैं. आंकड़े भी इस बात की तस्वीर करते हैं कि मानव वन्यजीव संघर्ष दिनों दिन लोगों के लिए मुसीबत बन रहा है. राज्य में पिछले 3 साल के भीतर 1222 लोगों पर शिकारी वन्यजीवों ने हमले किए, इस तरह ऑस्टिन हर साल 400 से ज्यादा हमले वन्यजीवों द्वारा किए जा रहे हैं. इसमें सबसे ज्यादा हमले गुलदार द्वारा हुए हैं.

बदलाव भविष्य के लिए खतरा: जंगलों में वन्यजीव बचपन से ही अब मवेशियों पर निर्भर होने लगे हैं. इसके चलते यह शिकारी वन्यजीव अपनी मां के साथ जो शिकार का तरीका और पारंपरिक आदतों को शिकार के दौरान अपनाते थे, उसमें भी पीढ़ी दर पीढ़ी बदलाव होने से भविष्य के खतरे बढ़ रहे हैं. ऐसे में मवेशी की खोज में इंसानी बस्ती के पास पहुंचे यह वन्यजीव इंसानों पर खासतौर पर महिलाएं और बच्चों पर भी हमले कर रहे हैं.

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वन्यजीव भूल रहे पारंपरिक शिकार करने का तरीका (Video-ETV ETV Bharat)

देहरादून (उत्तराखंड): जंगल में खूंखार शिकारियों का खौफ कुछ कम हुआ है, इसकी वजह कई शिकारी वन्यजीवों का जंगल से बाहर निकलना है तो कुछ पालतू पशुओं का जंगल में दाखिल होना भी है. उत्तराखंड में गुलदार और बाघ जैसे शिकारी वन्यजीवों की आदतों में बदलाव देखने को मिल रहे हैं. ये बदलाव जंगल में उस मानव भूल का नतीजा हैं, जिसका खामियाजा भी कहीं न कहीं इंसानों को भी झेलना पड़ रहा है. बात मवेशियों को जंगल में छोड़ने से जुड़ी है.जिन्हें भरपूर चारा तो जंगल में मिल जाता है लेकिन कई बार ये खुद वन्यजीवों का शिकार बन जाते हैं.

वन्यजीव पारंपरिक शिकार के तरीके को छोड़ रहे: पीसीसीएफ (प्रिंसिपल चीफ कंजरवेटर ऑफ फॉरेस्ट) वाइल्डलाइफ समीर सिन्हा का कहना है कि बड़ी संख्या में जंगलों के भीतर छोड़े जा रहे मवेशियों के चलते गुलदार और बाघ जैसे खूंखार शिकारी वन्यजीव अपने पारंपरिक शिकार के तरीके को छोड़ रहे हैं और पीढ़ी दर पीढ़ी इन वन्यजीवों में अपने भोजन को लेकर आदतें बदल रही हैं.

मेहनत से शिकार करना नापसंद: समीर सिन्हा ने बताया कि आसानी से भोजन मिलने के कारण जंगल के भीतर मेहनत से होने वाले शिकार को करना नापसंद किया जा रहा है. चिंता की बात यह है कि गुलदार या बाघ की यही नई आदत इंसानों के लिए भी मुसीबत बन रही. इन्हीं मवेशियों के पीछे गुलदार और बाघ भी कई बार इंसानी बस्तियों के नजदीक पहुंच रहे हैं और इसके कारण मानव वन्यजीव संघर्ष के खतरे भी बढ़े हैं.

इस वजह से हो रहा गौ सदनों का निर्माण: गौर हो कि ऐसा नहीं है कि इस बात की जानकारी वन विभाग या सरकार को नहीं है. वाइल्डलाइफ तक सालों साल तक काम करने वाले अफसर सरकार और विभाग के बड़े हुक्मरानों को भी इसका बोध कराते रहे हैं. इसी का नतीजा है कि हाल ही में सरकार ने प्रदेश में ज्यादा से ज्यादा गौ सदनों की स्थापना करने का निर्णय लिया है. इसके पीछे की मंशा गौ सदनों के जरिए आवारा पशुओं को जंगलों में जाने से रोकना भी होगा. ताकि शिकारी वन्यजीवों की पारंपरिक शिकार करने की आदत पूरी तरह से न छूट जाए.

मानव और वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं में इजाफा: उत्तराखंड में मानव वन्यजीव संघर्ष के कई मामले सामने आते रहते हैं. आंकड़े भी इस बात की तस्वीर करते हैं कि मानव वन्यजीव संघर्ष दिनों दिन लोगों के लिए मुसीबत बन रहा है. राज्य में पिछले 3 साल के भीतर 1222 लोगों पर शिकारी वन्यजीवों ने हमले किए, इस तरह ऑस्टिन हर साल 400 से ज्यादा हमले वन्यजीवों द्वारा किए जा रहे हैं. इसमें सबसे ज्यादा हमले गुलदार द्वारा हुए हैं.

बदलाव भविष्य के लिए खतरा: जंगलों में वन्यजीव बचपन से ही अब मवेशियों पर निर्भर होने लगे हैं. इसके चलते यह शिकारी वन्यजीव अपनी मां के साथ जो शिकार का तरीका और पारंपरिक आदतों को शिकार के दौरान अपनाते थे, उसमें भी पीढ़ी दर पीढ़ी बदलाव होने से भविष्य के खतरे बढ़ रहे हैं. ऐसे में मवेशी की खोज में इंसानी बस्ती के पास पहुंचे यह वन्यजीव इंसानों पर खासतौर पर महिलाएं और बच्चों पर भी हमले कर रहे हैं.

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