नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि, किसी ऐसे व्यक्ति को संसद में प्रवेश की अनुमति क्यों दी जानी चाहिए, जिसे 5 प्रतिशत वोट भी नहीं मिलेंगे. कोर्ट ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 53(2) को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियां कीं. यह धारा मतदान कराए बिना निर्विरोध चुनावों में उम्मीदवारों के सीधे चुनाव का प्रावधान करती है.
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि, हमारा संविधान बहुमत से लोकतंत्र की बात करता है. अदालत ने सुझाव दिया कि, लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, यदि ऐसा प्रावधान है, जहां एक से अधिक उम्मीदवारों ने नामांकन दाखिल किया है और जब अन्य उम्मीदवार अंतिम समय में अपना नाम वापस ले लेते हैं, तो किसी उम्मीदवार को जीतने के लिए कम से कम 10 प्रतिशत, 15 प्रतिशत और 25 फीसदी मतदाताओं को वोट देना होगा.
सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा कि चुनाव आयोग ने कहा है कि केवल 9 मामले ऐसे हैं,जहां चुनाव निर्विरोध हुआ. चुनाव आयोग का प्रतिनिधित्व कर रहे सीनियर एडवोकेट राकेश द्विवेदी ने कहा कि पिछले 30 सालों में केवल एक मामला ऐसा है, जहां चुनाव निर्विरोध हुआ. याचिकाकर्ता विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार ने दलील दी कि, उदाहरण के लिए अरुणाचल प्रदेश में 60 उम्मीदवारों में से 10 एकल उम्मीदवार थे, वे निर्विरोध थे.
दातार ने तर्क दिया कि अगर कोई उम्मीदवार यह सुनिश्चित करके चुनाव में अकेले खड़ा हो जाता है कि बाकी सभी लोग पीछे हट जाएं,तो संभावित खतरा है. दातार के तर्क पर, पीठ ने कहा कि यह एक अच्छा सुधार होगा और इससे किसी को असुविधा नहीं होगी. अदालत ने कहा, हमने डेटा देखा है, 9 उदाहरण हैं और 1991 के बाद, केवल एक उदाहरण (संसदीय चुनाव में) है".
पीठ ने कहा कि ऐसी संभावना है कि कोई अमीर उम्मीदवार, शायद दबाव डालकर, शायद प्रभावित करके, या राजी करके, जो भी हो, अंत में केवल एक उम्मीदवार रह जाए. अचानक मतदाताओं को पता चलता है कि, एक उम्मीदवार के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है. ऐसे में वोटरों को प्रतिक्रिया करने का मौका नहीं मिलेगा, क्योंकि वह निर्विरोध चुने जाएंगे.
जस्टिस कांत ने द्विवेदी से कहा, "वर्तमान वैधानिक योजना ऐसी ही है. आपको भी इसकी घोषणा करनी होगी. NOTA (इनमें से कोई नहीं) को आपने स्वीकार कर लिया है... यहां आप और मतदाता दोनों असहाय हैं. पीठ ने टिप्पणी की कि यदि ऐसा कोई प्रावधान है,जहां एक से अधिक उम्मीदवार नामांकन दाखिल करते हैं और अन्य उम्मीदवार अंतिम समय में अपना नाम वापस ले लेते हैं. ऐसे में 10 प्रतिशत, 15 प्रतिशत और 25% मतदाताओं को आपको वोट देना होगा."
द्विवेदी ने कहा कि, उनके अनुभव के मुताबिक, NOTA एक असफल विचार है. उनके मतुाबिक, यह चुनावों पर कोई प्रभाव नहीं डाल रहा है और जीतने वाले उम्मीदवारों पर इसका कभी कोई असर नहीं पड़ता है. केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अटॉर्नी जनरल (एजी) आर वेंकटरमणी ने द्विवेदी की दलील पर अपनी सहमती जताई.
बेंच ने स्पष्ट किया कि आज वह किसी आदेश पर नहीं है, बल्कि वह एक काल्पनिक स्थिति को उजागर कर रहा है जो उत्पन्न हो भी सकती है और नहीं भी हो सकती है.अगर अचानक से ऐसा कुछ होता है तो एक मजबूत लोकतांत्रिक संस्था को किसी चुनौती से निपटने के लिए अच्छी तरह तैयार रहना चाहिए.
पीठ ने कहा कि इस तर्क की कोई आवश्यकता नहीं है कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 53(2) को समाप्त कर दिया जाना चाहिए और प्रावधान वही रहेगा तथा वे इसके तहत एक प्रावधान जोड़ सकते हैं कि उम्मीदवार को 10% या 15% वोट हासिल करने होंगे.
सुप्रीम कोर्ट के सुझाव पर एजी ने कहा कि इसमें राजनीतिक दलों सहित कई हितधारकों को शामिल किया जाएगा. उन्होंने कहा कि,अगर वे गलत नहीं हैं तो यह विचार-विमर्श पहले ही हो चुका है...हम पता लगाएंगे." पीठ ने कहा कि अगर इस मुद्दे पर पहले ही विचार-विमर्श हो चुका है,तो एजी उसे बता सकते हैं कि क्या निर्णय लिया गया.
बेंच ने कहा कि वह समझती है कि केंद्र को राज्य सरकारों से परामर्श करना होगा, क्योंकि राज्य स्तर पर भी इसी तरह के प्रावधानों की आवश्यकता होगी. न्यायमूर्ति कांत ने कहा, अदालत को लगता है कि एक दिलचस्प प्रावधान है जो उम्मीदवार को उसके निर्वाचन क्षेत्र के लिए बहुत जिम्मेदारी के अधीन कर देगा.
सबकी दलील सुनने के बाद, बेंच ने बताया कि, चुनाव आयोग ने पहले ही हलफनामा दायर कर दिया है. केंद्र को इस पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए और सप्ताह का समय दिया गया है. मामले को जुलाई में आगे की सुनवाई के लिए पोस्ट कर दिया गया है. अक्टूबर 2024 में, सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग (ईसीआई) और केंद्र सरकार से एक प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका पर जवाब मांगा था.
इसमें दावा किया गया था कि यह मतदाताओं को केवल एक उम्मीदवार होने पर "इनमें से कोई नहीं" (नोटा) विकल्प चुनने से रोकता है. ऐसे में याचिकाकर्ता ने अधिनियम की धारा 53 (2) को चुनौती दी है जो निर्विरोध चुनावों में उम्मीदवारों के सीधे चुनाव का प्रावधान करती है.
याचिका में कहा गया है कि प्रत्यक्ष चुनावों (लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव) में जो निर्विरोध होते हैं, विवादित उप-धारा (2) मतदाताओं को केवल एक उम्मीदवार होने पर 'इनमें से कोई नहीं' विकल्प चुनकर 'नेगेटिव वोट' डालने से रोकती है.
सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के अनुसार, ईवीएम पर 'नोटा' दबाकर चुनाव में नेगेटिव वोट डालने का मतदाता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उनके मौलिक अधिकार का हिस्सा है. याचिकाकर्ता ने इस फैसले का हवाला दिया.
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