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पहली बार कश्मीर में तैनात हो रहे कोबरा कमांडो, जानें क्या है वजह ? - COBRA COMMANDOS

2023 में कश्मीर में कुछ कोबरा कंपनियों को तैनात किया गया था, लेकिन यह तैनाती केवल ट्रेनिंग के लिए की गई थी.

CoBRA Commandos
कोबरा कमांडो पहली बार कश्मीर क्यों जा रहे हैं? (ANI)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : April 18, 2025 at 4:08 PM IST

5 Min Read

श्रीनगर: सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स (CRPF) अपने बेहतरीन कोबरा कमांडो को जम्मू-कश्मीर में तैनात कर रहा है. ऐसा पहली बार है, जब CRPF जम्मू कश्मीर में कोबरा कमांडो की तैनाती कर रहा है. जंगल वॉपफेयर एक्स्पर्ट और भारत के रेड कॉरिडोर में सर्जिकल काउंटर-इंसर्जेंसी युद्ध-कौशल वाले जवान अब जम्मू के घने जंगलों में जा रहे हैं, जहां पिछले साल से आतंकवादी गतिविधियां तेजी से बढ़ रही हैं.

गौरतलब है कि 2023 में कश्मीर में कुछ कोबरा कंपनियों को तैनात किया गया था, लेकिन यह तैनाती केवल ट्रेनिंग के लिए की गई थी.अब जबकि जम्मू कश्मीर में कोबरा कमांडो की तैनाती हो रही है तो आपको इनके और कश्मीर में उनके मिशन के बारे में 10 तथ्य जानने चाहिए.

1. कश्मीर में पहली बार तैनाती: सीआरपीएफ की कोबरा, जो कि एक जंगल वॉर एक्सपर्ट यूनिट है. इसको 2008 में शामिल किए जाने के बाद पहली बार जम्मू और कश्मीर में तैनात किया जा रहा है. यह आंतरिक सुरक्षा रणनीति में बदलाव है, क्योंकि कोबरा ने इससे पहले इस राज्य में कभी भी ऑपरेशन नहीं किया है.

2. ओरिजिनली माओवादी क्षेत्रों के हुआ गठन: कमांडो बटालियन फॉर रेजोल्यूट एक्शन (CoBRA) की स्थापना भारत के रेड कॉरिडोर में वामपंथी उग्रवाद (LWE) का मुकाबला करने के लिए की गई थी - जो छत्तीसगढ़, झारखंड और महाराष्ट्र जैसे माओ प्रभावित राज्यों का एक क्षेत्र है.

3. जम्मू के जंगलों में बढ़ता आतंकवाद: इस बदलाव का कारण जम्मू के जंगलों में बढ़ती आतंकवादी गतिविधियां हैं. ऐसा माना जाता है कि यह एक ऐसा इलाका है कोबरा यूनिट की जंगल युद्ध क्षमताओं का उपयोग किया जा सकता है.

4. आधिकारिक घोषणा और नई यूनिट: सीआरपीएफ के महानिदेशक ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह ने गुरुवार को 86वें स्थापना दिवस समारोह के दौरान तैनाती की आधिकारिक घोषणा की. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने यह भी ऐलान किया की कि जम्मू-कश्मीर में ऑपरेशन के लिए विशेष रूप से एक नई कोबरा यूनिट बनाई जाएगी.

CoBRA Commandos
पहली बार कश्मीर जा रहे हैं कोबरा कमांडो (ETV Bharat Graphics)

5. गुरिल्ला स्पेशलाइज ट्रेनिंग: कोबरा के कमांडो को गुरिल्ला युद्ध, जंगल में जीवित रहने के कौशल, घात/प्रतिघात ट्रेनिंग, विस्फोटक प्रशिक्षण और बेलगाम में सीआरपीएफ के ट्रेनिंग स्कूल और मिजोरम में सेना के CIJW स्कूल में IED को निष्क्रिय करने का कठोर प्रशिक्षण मिलता है.

6. उच्च-स्तरीय हथियार और टेक्निकल इक्विपमेंट: वे इंसास, एके-47, टैवर एक्स-95, ग्रेनेड लांचर और स्नाइपर राइफलों से लैस होते हैं. इसके अलावा, वे जीपीएस डिवाइस, नाइट विजन इक्विपमेंट, सैटेलाइट कम्युनिकेशन टूल रखते हैं और जंगल में तेजी से आगे बढ़ने के लिए हल्के टेकटिकल गियर पहनते हैं.

7. ज्यादा रिस्क, ज्यादा वेतन: उनके मिशन की खतरनाक प्रकृति को समझते हुए, कोबरा कमांडो को रेगुलर सीआरपीएफ कर्मियों की तुलना में 15 प्रतिशत ज्यादा वेतन मिलता है. उनका काम दुश्मन के इलाकों में गुप्त, हाई रिस्क वाले, खुफिया जानकारी से प्रेरित ऑपरेशन के रूप में होता है.

8. पहले कश्मीर में तैनाती ऑपरेशनल नहीं थी: 2023 में कश्मीर में कुछ कोबरा कंपनियों को तैनात किया गया था, लेकिन केवल ट्रेनिंग के लिए. उन्हें ऑपरेशनल रूप से तैनात करने से इंटरनल रेजिस्टेंस का डर था, क्योंकि उनके स्किल कश्मीर के परिदृश्य के बजाय माओवादी जंगलों के लिए थे.

9. भौगोलिक समानता के कारण बदली हुई धारणा: शुरुआती प्रतिरोध के बावजूद जम्मू के घने जंगलों और माओवाद प्रभावित जंगलों में समानता का पुनर्मूल्यांकन हुआ है. जंगल वॉरफेयर तकनीक अब ऐसे इलाकों में सक्रिय आतंकवादियों का मुकाबला करने के लिए उपयोगी मानी जाती है.

10. अन्य क्षेत्र-आधारित इलाइट ग्रुप के साथ इंटीग्रेशन: कोबरा को बाद में जम्मू और कश्मीर में गश्त पर अन्य विशेषज्ञ समूहों के साथ इंटीग्रेट किया गया, जिनमें से प्रत्येक के पास अपने खुद के विशेष कौशल सेट हैं, जो क्षेत्र के विविध इलाकों के साथ-साथ इसके खतरे के विभिन्न क्षेत्रों के लिए भी उपयुक्त हैं.

MARCOS या भारतीय नौसेना के मरीन कमांडो एम्फीबियस वॉरफेयर एक्स्पर्ट हैं. उनका उपयोग मुख्य रूप से कश्मीर में नदी और झील के संचालन के लिए किया जाता है, खासकर जहां चुपचाप पानी से चलने वाले ऑपरेशन की आवश्यकता होती है, जैसे कि वुलर झील और झेलम नदी में.

राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG), या ब्लैक कैट्स, भारत की सबसे अच्छी आतंकवाद विरोधी और हॉस्टेड रेस्क्यू यूनिट है. कश्मीर में स्थायी तैनाती न होने के बावजूद, उन्हें हाई रिस्क वाले शहरी आतंकी ऑपरेशन करने के लिए भेजा जाता है, जहां सटीकता महत्वपूर्ण होती है.

भारतीय सेना के पैरा स्पेशल फोर्स (Para SF) को उच्च ऊंचाई पर काम करने, गहरी पैठ बनाने और नियंत्रण रेखा (LoC) पर काम करने के लिए ट्रेन किया जाता है. पहाड़ों में लड़ने और कठिन इलाकों में सर्जिकल स्ट्राइक करने में उनके कौशल विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं.कोबरा के साथ ये इलाइट फोर्स अब जम्मू कश्मीर में आतंकवाद से निपटने के लिए एक मल्टी डायमेंशन रेस्पांस फोर्स का गठन करेगी.

यह भी पढ़ें-जम्मू-कश्मीर: उमर सरकार के छह माह, NC ने गिनाईं उपलब्धियां, विपक्ष ने वादों से पलटने का आरोप लगाया

श्रीनगर: सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स (CRPF) अपने बेहतरीन कोबरा कमांडो को जम्मू-कश्मीर में तैनात कर रहा है. ऐसा पहली बार है, जब CRPF जम्मू कश्मीर में कोबरा कमांडो की तैनाती कर रहा है. जंगल वॉपफेयर एक्स्पर्ट और भारत के रेड कॉरिडोर में सर्जिकल काउंटर-इंसर्जेंसी युद्ध-कौशल वाले जवान अब जम्मू के घने जंगलों में जा रहे हैं, जहां पिछले साल से आतंकवादी गतिविधियां तेजी से बढ़ रही हैं.

गौरतलब है कि 2023 में कश्मीर में कुछ कोबरा कंपनियों को तैनात किया गया था, लेकिन यह तैनाती केवल ट्रेनिंग के लिए की गई थी.अब जबकि जम्मू कश्मीर में कोबरा कमांडो की तैनाती हो रही है तो आपको इनके और कश्मीर में उनके मिशन के बारे में 10 तथ्य जानने चाहिए.

1. कश्मीर में पहली बार तैनाती: सीआरपीएफ की कोबरा, जो कि एक जंगल वॉर एक्सपर्ट यूनिट है. इसको 2008 में शामिल किए जाने के बाद पहली बार जम्मू और कश्मीर में तैनात किया जा रहा है. यह आंतरिक सुरक्षा रणनीति में बदलाव है, क्योंकि कोबरा ने इससे पहले इस राज्य में कभी भी ऑपरेशन नहीं किया है.

2. ओरिजिनली माओवादी क्षेत्रों के हुआ गठन: कमांडो बटालियन फॉर रेजोल्यूट एक्शन (CoBRA) की स्थापना भारत के रेड कॉरिडोर में वामपंथी उग्रवाद (LWE) का मुकाबला करने के लिए की गई थी - जो छत्तीसगढ़, झारखंड और महाराष्ट्र जैसे माओ प्रभावित राज्यों का एक क्षेत्र है.

3. जम्मू के जंगलों में बढ़ता आतंकवाद: इस बदलाव का कारण जम्मू के जंगलों में बढ़ती आतंकवादी गतिविधियां हैं. ऐसा माना जाता है कि यह एक ऐसा इलाका है कोबरा यूनिट की जंगल युद्ध क्षमताओं का उपयोग किया जा सकता है.

4. आधिकारिक घोषणा और नई यूनिट: सीआरपीएफ के महानिदेशक ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह ने गुरुवार को 86वें स्थापना दिवस समारोह के दौरान तैनाती की आधिकारिक घोषणा की. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने यह भी ऐलान किया की कि जम्मू-कश्मीर में ऑपरेशन के लिए विशेष रूप से एक नई कोबरा यूनिट बनाई जाएगी.

CoBRA Commandos
पहली बार कश्मीर जा रहे हैं कोबरा कमांडो (ETV Bharat Graphics)

5. गुरिल्ला स्पेशलाइज ट्रेनिंग: कोबरा के कमांडो को गुरिल्ला युद्ध, जंगल में जीवित रहने के कौशल, घात/प्रतिघात ट्रेनिंग, विस्फोटक प्रशिक्षण और बेलगाम में सीआरपीएफ के ट्रेनिंग स्कूल और मिजोरम में सेना के CIJW स्कूल में IED को निष्क्रिय करने का कठोर प्रशिक्षण मिलता है.

6. उच्च-स्तरीय हथियार और टेक्निकल इक्विपमेंट: वे इंसास, एके-47, टैवर एक्स-95, ग्रेनेड लांचर और स्नाइपर राइफलों से लैस होते हैं. इसके अलावा, वे जीपीएस डिवाइस, नाइट विजन इक्विपमेंट, सैटेलाइट कम्युनिकेशन टूल रखते हैं और जंगल में तेजी से आगे बढ़ने के लिए हल्के टेकटिकल गियर पहनते हैं.

7. ज्यादा रिस्क, ज्यादा वेतन: उनके मिशन की खतरनाक प्रकृति को समझते हुए, कोबरा कमांडो को रेगुलर सीआरपीएफ कर्मियों की तुलना में 15 प्रतिशत ज्यादा वेतन मिलता है. उनका काम दुश्मन के इलाकों में गुप्त, हाई रिस्क वाले, खुफिया जानकारी से प्रेरित ऑपरेशन के रूप में होता है.

8. पहले कश्मीर में तैनाती ऑपरेशनल नहीं थी: 2023 में कश्मीर में कुछ कोबरा कंपनियों को तैनात किया गया था, लेकिन केवल ट्रेनिंग के लिए. उन्हें ऑपरेशनल रूप से तैनात करने से इंटरनल रेजिस्टेंस का डर था, क्योंकि उनके स्किल कश्मीर के परिदृश्य के बजाय माओवादी जंगलों के लिए थे.

9. भौगोलिक समानता के कारण बदली हुई धारणा: शुरुआती प्रतिरोध के बावजूद जम्मू के घने जंगलों और माओवाद प्रभावित जंगलों में समानता का पुनर्मूल्यांकन हुआ है. जंगल वॉरफेयर तकनीक अब ऐसे इलाकों में सक्रिय आतंकवादियों का मुकाबला करने के लिए उपयोगी मानी जाती है.

10. अन्य क्षेत्र-आधारित इलाइट ग्रुप के साथ इंटीग्रेशन: कोबरा को बाद में जम्मू और कश्मीर में गश्त पर अन्य विशेषज्ञ समूहों के साथ इंटीग्रेट किया गया, जिनमें से प्रत्येक के पास अपने खुद के विशेष कौशल सेट हैं, जो क्षेत्र के विविध इलाकों के साथ-साथ इसके खतरे के विभिन्न क्षेत्रों के लिए भी उपयुक्त हैं.

MARCOS या भारतीय नौसेना के मरीन कमांडो एम्फीबियस वॉरफेयर एक्स्पर्ट हैं. उनका उपयोग मुख्य रूप से कश्मीर में नदी और झील के संचालन के लिए किया जाता है, खासकर जहां चुपचाप पानी से चलने वाले ऑपरेशन की आवश्यकता होती है, जैसे कि वुलर झील और झेलम नदी में.

राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG), या ब्लैक कैट्स, भारत की सबसे अच्छी आतंकवाद विरोधी और हॉस्टेड रेस्क्यू यूनिट है. कश्मीर में स्थायी तैनाती न होने के बावजूद, उन्हें हाई रिस्क वाले शहरी आतंकी ऑपरेशन करने के लिए भेजा जाता है, जहां सटीकता महत्वपूर्ण होती है.

भारतीय सेना के पैरा स्पेशल फोर्स (Para SF) को उच्च ऊंचाई पर काम करने, गहरी पैठ बनाने और नियंत्रण रेखा (LoC) पर काम करने के लिए ट्रेन किया जाता है. पहाड़ों में लड़ने और कठिन इलाकों में सर्जिकल स्ट्राइक करने में उनके कौशल विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं.कोबरा के साथ ये इलाइट फोर्स अब जम्मू कश्मीर में आतंकवाद से निपटने के लिए एक मल्टी डायमेंशन रेस्पांस फोर्स का गठन करेगी.

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