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Explainer: बलूचिस्तान क्यों उठा रहा आवाज, क्या फिर टूटेगा पाकिस्तान ? - PAKISTAN OCCUPIED BALOCHISTAN

बलूचिस्तान, पाकिस्तान का सबसे बड़ा राज्य है, और वहां लंबे समय से विद्रोह हो रहा है. विद्रोह के इतिहास और कारण जानें सबकुछ...

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आखिर क्यों पाकिस्तान से अलग होना चाहते हैं बलूच? (Photo Credit- Mir Yar Baloch and freeworldmap)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : May 12, 2025 at 5:35 PM IST

9 Min Read

हैदराबाद: पाकिस्तान इन दिनों चौतरफा मुश्किलों से घिरा हुआ है. एक तरफ भारत सीमा पार आतंकवाद पर कड़ा प्रहार कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान के भीतर बलूचिस्तान में विद्रोही गुटों का हमला लगातार जारी है, जिससे पाकिस्तानी सेना की हालत खस्ता हो रही है. हाल ही में, बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) ने पाकिस्तानी सेना पर एक और बड़ा हमला किया, जिसमें दर्जनभर सैनिकों के मारे जाने की खबर है. वहीं, बीएलए ने बलूचिस्तान में 51 से अधिक स्थानों पर हमले करने की जिम्मेदारी ली है. लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर बलूच लिबरेशन आर्मी और पाकिस्तानी सेना के बीच यह संघर्ष क्यों हो रहा है? बलूचिस्तान पाकिस्तान से अलग क्यों होना चाहता है? आइए जानते हैं इन सवालों के जवाब.

सोमवार को बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने बलूचिस्तान में 51 से ज्यादा जगहों पर 71 हमलों की जिम्मेदारी ली है. बीएलए ने कहा है कि दक्षिण एशिया में एक बड़ा बदलाव होने वाला है और वो किसी विदेशी ताकत के हाथ में नहीं, बल्कि क्षेत्र की रणनीतिक स्थिति में एक सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं. उन्होंने पाकिस्तान पर धोखे का आरोप लगाया और भारत सहित अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को पाकिस्तान की 'शांति' की बातों में न फंसने की चेतावनी दी है.

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बीएलए ने बयान जारी कर बताया 51 से अधिक स्थान पर किए हमले (X@bahot_baluch)

BLA ने करीब 12 पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारा
बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) ने पाकिस्तानी सेना के खिलाफ एक और बड़ी कार्रवाई को अंजाम दिया है. बलूचिस्तान प्रांत के बोलन दर्रा इलाके में हुए हमले में 12 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया गया. बताया जा रहा है कि बलूच लिबरेशन आर्मी के स्पेशल टैक्टिकल ऑपरेशंस स्क्वाड ने इस हमले को अंजाम दिया. पाकिस्तानी सेना का दस्ता जब इलाके में गश्त कर रहा था, तभी रिमोट कंट्रोल से आईईडी ब्लास्ट किया गया, जिसमें 12 पाकिस्तानी सैनिकों के चीथड़े उड़ गए.

क्या है BLA, कब बनाई अपनी आर्मी
लगभग 25 साल पहले, सन 2000 में, बलूचिस्तान के लोगों ने अपनी सुरक्षा और अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए एक सशस्त्र सेना का गठन किया. बलूचिस्तान लिब्रेशन आर्मी (बीएलए) नामक इस समूह में 6,000 से अधिक लड़ाके हैं जो आधुनिक हथियारों से लैस हैं. यह बलूचिस्तान का सबसे बड़ा सशस्त्र संगठन माना जाता है, हालांकि पाकिस्तान सरकार ने 2006 से इस पर प्रतिबंध लगा रखा है. इसके बावजूद, बीएलए लगातार अपनी क्षमता को मजबूत करने में प्रयासरत है.

बलूचिस्तान में क्यों हो रही है जंग?
बलूचिस्तान में चल रहे इस संघर्ष की जड़ें ऐतिहासिक और सामाजिक-आर्थिक अन्याय में गहरी जमी हैं. बलूच लोगों का आरोप है कि पाकिस्तान सरकार उनके साथ भेदभाव करती है और उनके संसाधनों का दोहन करती है.

बलूचिस्तान के लोगों की समस्या
बलूचिस्तान के लोगों की समस्या (Photo Credit- Mir Yar Baloch and freeworldmap)
  • बलूचिस्तान में बगावत का कारण: बलूचिस्तान में बगावत का सबसे बड़ा कारण पाकिस्तान में इस क्षेत्र और यहां की आबादी के साथ भेदभाव है. बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा खनिज भंडार वाला क्षेत्र है, लेकिन इसके बावजूद यह आर्थिक विकास में सबसे पिछड़ा हुआ है.
  • ग्वादर पोर्ट का विरोध: पाकिस्तान ने बलूचिस्तान के ग्वादर पोर्ट को चीन को सौंप दिया है, लेकिन स्थानीय लोगों को इस परियोजना से कोई लाभ नहीं मिल रहा है. इसके चलते बलूचिस्तान में चीन के प्रोजेक्ट का लगातार विरोध हो रहा है.

पाकिस्तान से अलग क्यों होना चाहते हैं बलोच?
बलूच लोग पाकिस्तान से अलग होकर अपना स्वतंत्र राष्ट्र बनाना चाहते हैं, इसके पीछे कई कारण हैं:

  • क्षेत्रफल और आबादी: बलूचिस्तान का क्षेत्रफल पूरे पाकिस्तान का 46% है, लेकिन यहां की आबादी सिर्फ 1.5 करोड़ है, जो पाकिस्तान की कुल आबादी का लगभग 6% है.
  • गरीबी: बलूचिस्तान में 70% लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करते हैं.
  • भेदभाव: बलूच लोगों का आरोप है कि उन्हें पाकिस्तानी समाज में भेदभाव का सामना करना पड़ता है, खासकर पंजाब क्षेत्र के मुसलमानों द्वारा. पाकिस्तानी सेना के शीर्ष पदों पर बलूच लोगों को नियुक्त नहीं किया जाता है.

पाकिस्तान का दमनकारी रवैया
दुनिया जानती है कि 1948 से ही बलूचिस्तान पाकिस्तान की सैन्य दमन नीति का शिकार रहा है. पाकिस्तान ने बलूच जनता के राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकारों को छीन लिया है और उनकी आवाज को बेरहमी से दबाया है. मानवाधिकार संगठनों के अनुसार, बलूचिस्तान में पिछले दो दशकों में हजारों लोग लापता हुए हैं. पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) पर बलूच छात्रों, लेखकों और कार्यकर्ताओं को अगवा करने और 'एनकाउंटर' में मारने के आरोप लगते रहे हैं. कई बार सामूहिक कब्रें भी मिली हैं, जो बलूचिस्तान में मानवाधिकारों के उल्लंघन की कहानी बयां करती हैं. वहां न तो स्वास्थ्य सेवाएं हैं, न शिक्षा का ढांचा और न ही मूलभूत सुविधाएं. प्राकृतिक संसाधनों जैसे गैस, कोयला और खनिजों से भरपूर होने के बावजूद बलूच लोग गरीबी में जी रहे हैं, जबकि इन संसाधनों से बाकी पाकिस्तान समृद्ध हो रहा है.

पाकिस्तान के खिलाफ BLA की हाल की कार्रवाई
पाकिस्तान के खिलाफ BLA की हाल की कार्रवाई (Photo Credit- Mir Yar Baloch and freeworldmap)

बलूचिस्तान का इतिहास
बलूचिस्तान का इतिहास करीब 9,000 साल पुराना है. यह क्षेत्र प्राचीन काल में मकरान और गंधार सभ्यता का हिस्सा था. सिकंदर भी इसी क्षेत्र से होकर भारत आया था. समय के साथ यह क्षेत्र अफ़ग़ानों, ईरानियों और बाद में अंग्रेजों के नियंत्रण में आया. बलूच लोग अपनी स्वतंत्र राजनीतिक पहचान के लिए सदियों से संघर्ष करते आए हैं. 17वीं और 18वीं शताब्दी में यहां कालात राज्य का गठन हुआ, जिसने कई दशकों तक शासन किया, पर ब्रिटिश साम्राज्य ने धीरे-धीरे इसे अपने अधीन कर लिया.

बलूचिस्तान का इतिहास भारत से जुड़ा रहा है
कभी ब्रिटिश इंडिया का हिस्सा रहे बलूचिस्तान को 1876 में ब्रिटिश राज ने 'खान ऑफ कालात' के साथ संधि कर एक रियासत के रूप में अपने अधीन कर लिया था. यह रियासत भारतीय उपमहाद्वीप का हिस्सा थी और ब्रिटिश इंडिया की संरक्षित राज्य मानी जाती थी. यद्यपि इसका शासन स्वतंत्र था, लेकिन इसकी विदेश नीति और सुरक्षा ब्रिटिश नियंत्रण में थी. 1947 में भारत विभाजन के समय, अन्य रियासतों की तरह बलूचिस्तान के पास भी भारत या पाकिस्तान में विलय का विकल्प था.

हालांकि, 1947 में विभाजन के दौरान 'खान ऑफ कालात' ने बलूचिस्तान को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया और पाकिस्तान में शामिल होने से इनकार कर दिया. लेकिन पाकिस्तान ने दबाव डालकर 27 मार्च 1948 को सेना के माध्यम से बलूचिस्तान पर हमला कर उसे अपने में मिला लिया. बलूच राष्ट्रवादियों ने इसे 'बलूचिस्तान पर कब्जा' बताते हुए स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत की.

पाकिस्तान ने बलूचिस्तान पर कैसे किया कब्जा?
पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने पहले बलूचिस्तान को स्वायत्त राज्य माना था, लेकिन कालात के स्वतंत्र रहने की घोषणा के बाद, जिन्ना और पाकिस्तानी सेना ने राजनीतिक दबाव और सैन्य हस्तक्षेप का सहारा लिया. 27 मार्च 1948 को पाकिस्तान ने बलूचिस्तान को जबरन अपने साथ मिला लिया. खान ऑफ कालात के विरोध के बावजूद, उन्हें विलय स्वीकार करना पड़ा जिसके बाद बलूच नेताओं और जनजातियों में असंतोष फैल गया और विद्रोह शुरू हो गया.

मोहम्मद अली जिन्ना
मोहम्मद अली जिन्ना और पाकिस्तानी सेना ने 27 मार्च 1948 को बलूचिस्तान को जबरन अपने साथ मिला लिया (ETV Bharat)

बलूचिस्तान का स्वतंत्रता आंदोलन
बलूचिस्तान में स्वतंत्रता के लिए एक लंबा संघर्ष चल रहा है, जिसमें 1948 से अब तक पांच बड़े विद्रोह हुए हैं. 2004 से जारी वर्तमान आंदोलन सबसे लंबा और संगठित है, जिसका नेतृत्व बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA), बलूच रिपब्लिकन आर्मी (BRA), और बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट (BLF) जैसे संगठन कर रहे हैं. इन संगठनों का लक्ष्य बलूचिस्तान को स्वतंत्र करना है और वे पाकिस्तान के आर्थिक, सैन्य और राजनीतिक प्रतिष्ठानों को निशाना बना रहे हैं. वे विशेष रूप से चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि उनका मानना है कि यह परियोजना उनकी ज़मीन पर विदेशी कब्जे को मजबूत करेगी.

ऑपरेशन सिंदूर ने बदली तस्वीर
2021 में, संयुक्त राष्ट्र और अन्य मानवाधिकार संगठनों ने बलूचिस्तान की स्थिति पर चिंता व्यक्त की थी, और भारत में भी आंदोलनकारियों को नैतिक समर्थन देने की मांग उठी है. हाल ही में, भारत ने 'ऑपरेशन सिंदूर' नामक एक कार्रवाई की, जिसने पाकिस्तान के अंदरूनी हालात को बदल दिया है और बलूच आंदोलनकारियों में नई ऊर्जा का संचार किया है. इसके जवाब में, पाकिस्तानी सेना ने बलूचिस्तान में छापे और गिरफ्तारियां बढ़ा दी हैं, जिससे मानवाधिकारों का उल्लंघन भी बढ़ा है, लेकिन बलूच विद्रोही भी जवाबी कार्रवाई कर रहे हैं.

बलूचिस्तान पाकिस्तान का एक उपेक्षित प्रांत होने के साथ-साथ मानवता के लिए खतरा बनते पाकिस्तान का एक जीता-जागता उदाहरण है. पाकिस्तान के अन्याय, सैन्य दमन और संसाधनों की लूट ने वहां के लोगों में विद्रोह को जन्म दिया है. भारत के लिए यह एक कूटनीतिक अवसर है कि वह पाकिस्तान के अंदरूनी विरोध को वैश्विक स्तर पर उजागर करे. यद्यपि भारत किसी देश की आंतरिक स्वायत्तता में हस्तक्षेप नहीं करता, बलूचिस्तान की स्थिति अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार के दृष्टिकोण से हस्तक्षेप योग्य है. अब दुनिया को इस संघर्ष को केवल 'आंतरिक मामला' नहीं मानना चाहिए, बल्कि इसे इंसानियत और न्याय का प्रश्न मानकर समर्थन देना चाहिए.

पाकिस्तान ट्रेन हाईजैक के बाद कि तस्वीर
पाकिस्तान ट्रेन हाईजैक के बाद कि तस्वीर (ETV Bharat)

यह भी पढ़ें- बीएलए के ताबड़तोड़ हमलों से थर्राया पाकिस्तान, 51 ठिकानों पर ली हमले की जिम्मेदारी

हैदराबाद: पाकिस्तान इन दिनों चौतरफा मुश्किलों से घिरा हुआ है. एक तरफ भारत सीमा पार आतंकवाद पर कड़ा प्रहार कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान के भीतर बलूचिस्तान में विद्रोही गुटों का हमला लगातार जारी है, जिससे पाकिस्तानी सेना की हालत खस्ता हो रही है. हाल ही में, बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) ने पाकिस्तानी सेना पर एक और बड़ा हमला किया, जिसमें दर्जनभर सैनिकों के मारे जाने की खबर है. वहीं, बीएलए ने बलूचिस्तान में 51 से अधिक स्थानों पर हमले करने की जिम्मेदारी ली है. लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर बलूच लिबरेशन आर्मी और पाकिस्तानी सेना के बीच यह संघर्ष क्यों हो रहा है? बलूचिस्तान पाकिस्तान से अलग क्यों होना चाहता है? आइए जानते हैं इन सवालों के जवाब.

सोमवार को बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने बलूचिस्तान में 51 से ज्यादा जगहों पर 71 हमलों की जिम्मेदारी ली है. बीएलए ने कहा है कि दक्षिण एशिया में एक बड़ा बदलाव होने वाला है और वो किसी विदेशी ताकत के हाथ में नहीं, बल्कि क्षेत्र की रणनीतिक स्थिति में एक सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं. उन्होंने पाकिस्तान पर धोखे का आरोप लगाया और भारत सहित अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को पाकिस्तान की 'शांति' की बातों में न फंसने की चेतावनी दी है.

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बीएलए ने बयान जारी कर बताया 51 से अधिक स्थान पर किए हमले (X@bahot_baluch)

BLA ने करीब 12 पाकिस्तानी सैनिकों को मौत के घाट उतारा
बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) ने पाकिस्तानी सेना के खिलाफ एक और बड़ी कार्रवाई को अंजाम दिया है. बलूचिस्तान प्रांत के बोलन दर्रा इलाके में हुए हमले में 12 पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया गया. बताया जा रहा है कि बलूच लिबरेशन आर्मी के स्पेशल टैक्टिकल ऑपरेशंस स्क्वाड ने इस हमले को अंजाम दिया. पाकिस्तानी सेना का दस्ता जब इलाके में गश्त कर रहा था, तभी रिमोट कंट्रोल से आईईडी ब्लास्ट किया गया, जिसमें 12 पाकिस्तानी सैनिकों के चीथड़े उड़ गए.

क्या है BLA, कब बनाई अपनी आर्मी
लगभग 25 साल पहले, सन 2000 में, बलूचिस्तान के लोगों ने अपनी सुरक्षा और अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए एक सशस्त्र सेना का गठन किया. बलूचिस्तान लिब्रेशन आर्मी (बीएलए) नामक इस समूह में 6,000 से अधिक लड़ाके हैं जो आधुनिक हथियारों से लैस हैं. यह बलूचिस्तान का सबसे बड़ा सशस्त्र संगठन माना जाता है, हालांकि पाकिस्तान सरकार ने 2006 से इस पर प्रतिबंध लगा रखा है. इसके बावजूद, बीएलए लगातार अपनी क्षमता को मजबूत करने में प्रयासरत है.

बलूचिस्तान में क्यों हो रही है जंग?
बलूचिस्तान में चल रहे इस संघर्ष की जड़ें ऐतिहासिक और सामाजिक-आर्थिक अन्याय में गहरी जमी हैं. बलूच लोगों का आरोप है कि पाकिस्तान सरकार उनके साथ भेदभाव करती है और उनके संसाधनों का दोहन करती है.

बलूचिस्तान के लोगों की समस्या
बलूचिस्तान के लोगों की समस्या (Photo Credit- Mir Yar Baloch and freeworldmap)
  • बलूचिस्तान में बगावत का कारण: बलूचिस्तान में बगावत का सबसे बड़ा कारण पाकिस्तान में इस क्षेत्र और यहां की आबादी के साथ भेदभाव है. बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा खनिज भंडार वाला क्षेत्र है, लेकिन इसके बावजूद यह आर्थिक विकास में सबसे पिछड़ा हुआ है.
  • ग्वादर पोर्ट का विरोध: पाकिस्तान ने बलूचिस्तान के ग्वादर पोर्ट को चीन को सौंप दिया है, लेकिन स्थानीय लोगों को इस परियोजना से कोई लाभ नहीं मिल रहा है. इसके चलते बलूचिस्तान में चीन के प्रोजेक्ट का लगातार विरोध हो रहा है.

पाकिस्तान से अलग क्यों होना चाहते हैं बलोच?
बलूच लोग पाकिस्तान से अलग होकर अपना स्वतंत्र राष्ट्र बनाना चाहते हैं, इसके पीछे कई कारण हैं:

  • क्षेत्रफल और आबादी: बलूचिस्तान का क्षेत्रफल पूरे पाकिस्तान का 46% है, लेकिन यहां की आबादी सिर्फ 1.5 करोड़ है, जो पाकिस्तान की कुल आबादी का लगभग 6% है.
  • गरीबी: बलूचिस्तान में 70% लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करते हैं.
  • भेदभाव: बलूच लोगों का आरोप है कि उन्हें पाकिस्तानी समाज में भेदभाव का सामना करना पड़ता है, खासकर पंजाब क्षेत्र के मुसलमानों द्वारा. पाकिस्तानी सेना के शीर्ष पदों पर बलूच लोगों को नियुक्त नहीं किया जाता है.

पाकिस्तान का दमनकारी रवैया
दुनिया जानती है कि 1948 से ही बलूचिस्तान पाकिस्तान की सैन्य दमन नीति का शिकार रहा है. पाकिस्तान ने बलूच जनता के राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकारों को छीन लिया है और उनकी आवाज को बेरहमी से दबाया है. मानवाधिकार संगठनों के अनुसार, बलूचिस्तान में पिछले दो दशकों में हजारों लोग लापता हुए हैं. पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) पर बलूच छात्रों, लेखकों और कार्यकर्ताओं को अगवा करने और 'एनकाउंटर' में मारने के आरोप लगते रहे हैं. कई बार सामूहिक कब्रें भी मिली हैं, जो बलूचिस्तान में मानवाधिकारों के उल्लंघन की कहानी बयां करती हैं. वहां न तो स्वास्थ्य सेवाएं हैं, न शिक्षा का ढांचा और न ही मूलभूत सुविधाएं. प्राकृतिक संसाधनों जैसे गैस, कोयला और खनिजों से भरपूर होने के बावजूद बलूच लोग गरीबी में जी रहे हैं, जबकि इन संसाधनों से बाकी पाकिस्तान समृद्ध हो रहा है.

पाकिस्तान के खिलाफ BLA की हाल की कार्रवाई
पाकिस्तान के खिलाफ BLA की हाल की कार्रवाई (Photo Credit- Mir Yar Baloch and freeworldmap)

बलूचिस्तान का इतिहास
बलूचिस्तान का इतिहास करीब 9,000 साल पुराना है. यह क्षेत्र प्राचीन काल में मकरान और गंधार सभ्यता का हिस्सा था. सिकंदर भी इसी क्षेत्र से होकर भारत आया था. समय के साथ यह क्षेत्र अफ़ग़ानों, ईरानियों और बाद में अंग्रेजों के नियंत्रण में आया. बलूच लोग अपनी स्वतंत्र राजनीतिक पहचान के लिए सदियों से संघर्ष करते आए हैं. 17वीं और 18वीं शताब्दी में यहां कालात राज्य का गठन हुआ, जिसने कई दशकों तक शासन किया, पर ब्रिटिश साम्राज्य ने धीरे-धीरे इसे अपने अधीन कर लिया.

बलूचिस्तान का इतिहास भारत से जुड़ा रहा है
कभी ब्रिटिश इंडिया का हिस्सा रहे बलूचिस्तान को 1876 में ब्रिटिश राज ने 'खान ऑफ कालात' के साथ संधि कर एक रियासत के रूप में अपने अधीन कर लिया था. यह रियासत भारतीय उपमहाद्वीप का हिस्सा थी और ब्रिटिश इंडिया की संरक्षित राज्य मानी जाती थी. यद्यपि इसका शासन स्वतंत्र था, लेकिन इसकी विदेश नीति और सुरक्षा ब्रिटिश नियंत्रण में थी. 1947 में भारत विभाजन के समय, अन्य रियासतों की तरह बलूचिस्तान के पास भी भारत या पाकिस्तान में विलय का विकल्प था.

हालांकि, 1947 में विभाजन के दौरान 'खान ऑफ कालात' ने बलूचिस्तान को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया और पाकिस्तान में शामिल होने से इनकार कर दिया. लेकिन पाकिस्तान ने दबाव डालकर 27 मार्च 1948 को सेना के माध्यम से बलूचिस्तान पर हमला कर उसे अपने में मिला लिया. बलूच राष्ट्रवादियों ने इसे 'बलूचिस्तान पर कब्जा' बताते हुए स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत की.

पाकिस्तान ने बलूचिस्तान पर कैसे किया कब्जा?
पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने पहले बलूचिस्तान को स्वायत्त राज्य माना था, लेकिन कालात के स्वतंत्र रहने की घोषणा के बाद, जिन्ना और पाकिस्तानी सेना ने राजनीतिक दबाव और सैन्य हस्तक्षेप का सहारा लिया. 27 मार्च 1948 को पाकिस्तान ने बलूचिस्तान को जबरन अपने साथ मिला लिया. खान ऑफ कालात के विरोध के बावजूद, उन्हें विलय स्वीकार करना पड़ा जिसके बाद बलूच नेताओं और जनजातियों में असंतोष फैल गया और विद्रोह शुरू हो गया.

मोहम्मद अली जिन्ना
मोहम्मद अली जिन्ना और पाकिस्तानी सेना ने 27 मार्च 1948 को बलूचिस्तान को जबरन अपने साथ मिला लिया (ETV Bharat)

बलूचिस्तान का स्वतंत्रता आंदोलन
बलूचिस्तान में स्वतंत्रता के लिए एक लंबा संघर्ष चल रहा है, जिसमें 1948 से अब तक पांच बड़े विद्रोह हुए हैं. 2004 से जारी वर्तमान आंदोलन सबसे लंबा और संगठित है, जिसका नेतृत्व बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA), बलूच रिपब्लिकन आर्मी (BRA), और बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट (BLF) जैसे संगठन कर रहे हैं. इन संगठनों का लक्ष्य बलूचिस्तान को स्वतंत्र करना है और वे पाकिस्तान के आर्थिक, सैन्य और राजनीतिक प्रतिष्ठानों को निशाना बना रहे हैं. वे विशेष रूप से चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि उनका मानना है कि यह परियोजना उनकी ज़मीन पर विदेशी कब्जे को मजबूत करेगी.

ऑपरेशन सिंदूर ने बदली तस्वीर
2021 में, संयुक्त राष्ट्र और अन्य मानवाधिकार संगठनों ने बलूचिस्तान की स्थिति पर चिंता व्यक्त की थी, और भारत में भी आंदोलनकारियों को नैतिक समर्थन देने की मांग उठी है. हाल ही में, भारत ने 'ऑपरेशन सिंदूर' नामक एक कार्रवाई की, जिसने पाकिस्तान के अंदरूनी हालात को बदल दिया है और बलूच आंदोलनकारियों में नई ऊर्जा का संचार किया है. इसके जवाब में, पाकिस्तानी सेना ने बलूचिस्तान में छापे और गिरफ्तारियां बढ़ा दी हैं, जिससे मानवाधिकारों का उल्लंघन भी बढ़ा है, लेकिन बलूच विद्रोही भी जवाबी कार्रवाई कर रहे हैं.

बलूचिस्तान पाकिस्तान का एक उपेक्षित प्रांत होने के साथ-साथ मानवता के लिए खतरा बनते पाकिस्तान का एक जीता-जागता उदाहरण है. पाकिस्तान के अन्याय, सैन्य दमन और संसाधनों की लूट ने वहां के लोगों में विद्रोह को जन्म दिया है. भारत के लिए यह एक कूटनीतिक अवसर है कि वह पाकिस्तान के अंदरूनी विरोध को वैश्विक स्तर पर उजागर करे. यद्यपि भारत किसी देश की आंतरिक स्वायत्तता में हस्तक्षेप नहीं करता, बलूचिस्तान की स्थिति अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार के दृष्टिकोण से हस्तक्षेप योग्य है. अब दुनिया को इस संघर्ष को केवल 'आंतरिक मामला' नहीं मानना चाहिए, बल्कि इसे इंसानियत और न्याय का प्रश्न मानकर समर्थन देना चाहिए.

पाकिस्तान ट्रेन हाईजैक के बाद कि तस्वीर
पाकिस्तान ट्रेन हाईजैक के बाद कि तस्वीर (ETV Bharat)

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