नई दिल्ली: हाल ही में पाकिस्तान के साथ चले चार दिवसीय संघर्ष के दौरान भारतीय वायुसेना ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान और POK स्थित नौ आतंकी संगठनों को निशाना बनाया था. इस दौरान वायु सेना ने ब्रह्मोस मिसाइलों का इस्तेमाल किया. इसके साथ ही ब्रह्मोस ने सैन्य हलकों में रातोंरात प्रसिद्धी हासिल कर ली.
इन सुपरसोनिक मिसाइलों की सटीकता, गति और तबाही ने एक स्पष्ट संदेश दिया कि भारत अब विश्व स्तरीय हथियारों का सिर्फ खरीदार नहीं है, बल्कि इसका निर्माता भी बन गया है. इन मिसाइलों को जमीन, हवा या समुद्र से लॉन्च किया जा सकता है. यह मैक 3 की गति (ध्वनि की गति से तीन गुना) से ट्रैवल करती है और अपने टारगोट को तबाह कर सकती है.
ऐसे में सवाल उठता है कि भारत के पास फिलहाल कितनी ब्रह्मोस मिसाइलें है और वह साल में कितनी मिसाइलों का निर्माण करता है. वहीं, अगर इन मिसाइलों की डिमांड बढ़ती है तो क्या भारत इन्हें दूसरे देशों को निर्यात कर सकता है? तो चलिए अब आपको इन सभी सवालों के जवाब देते हैं.

भारत के पास कितनी ब्रह्मोस मिसाइलें हैं?
ब्रह्मोस मिसाइलों की संख्या फिलहाल पब्लिक डोमेन में नहीं है. हालांकि, यह अनुमान है कि भारतीय सशस्त्र बलों के पास 1,200 से 1,500 से अधिक ब्रह्मोस मिसाइलों का भंडार हो सकता है. अक्टूबर 2020 में भारत और चीन के तनाव के दौरान एक इंडियन डिफेंस पब्लिकेशन ने एक चीनी दावे का हवाला देते हुए सुझाव दिया था कि भारत के पास ब्रह्मोस की संख्या 14,000 थी, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि यह थोड़ा अतिशयोक्ति है.
वहीं, नवनिर्मित लखनऊ ब्रह्मोस यूनिट फैसिलिटी हर साल 80 से 100 ब्रह्मोस मिसाइलों का प्रोडक्शन करेगी, जिसमें प्रति वर्ष 100-150 नेक्सट जनरेशन वेरिएंट को बढ़ाने की योजना है.
अन्य देशों को ब्रह्मोस का निर्यात
बता दें कि 2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा था कि मिसाइल के मार्केटिंग का समय आ गया है. भारत ने फिलीपींस और वयतनाम जैसे देशों के साथ डील पर हस्ताक्षर किए थे, जबकि ब्राजील और सऊदी अरब जैसे देशों में भी इसकी डिमांड है.

फिलीपींस और वियतनाम के साथ डील
भारत ने 19 अप्रैल 2024 को फिलीपींस को ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलें दीं. जनवरी 2022 में दोनों देशों ने 375 मिलियन डॉलर के सौदे पर हस्ताक्षर किए, जिसने ब्रह्मोस और अन्य रक्षा सहयोग पर सरकार-से-सरकार डील का मार्ग प्रशस्त किया. फिलीपींस के बाद भारत ने वियतनाम को भी अपनी सेना और नौसेना बलों के लिए घातक सुपरसोनिक मिसाइल खरीदने के लिए नई दिल्ली के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए.
किन देशों में है ब्रह्मोस की मांग
थाईलैंड, सिंगापुर, ब्रुनेई, ब्राजील, चिली, अर्जेंटीना, वेनेजुएला, मिस्र, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर और ओमान जैसे देशों ने भारत से ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम खरीदने में अपनी रुचि व्यक्त की है.
क्या भारत ब्रह्मोस को स्वतंत्र रूप से निर्यात कर सकता है.
ऐसे में सवाल है कि क्या भारत इन देशों को स्वतंत्र रूप ब्रह्मोस मिसाइल निर्यात कर सकता है, तो इसका जवाब है नहीं. दरअसल, ब्रह्मोस भारत के डिफेंस एंड रिसर्च डेवसपमेंट ओर्गनाइजेशन (DRDO) और रूस के NPO मशीनोस्ट्रोयेनिया के बीच एक संयुक्त उद्यम का परिणाम है.
ब्रह्मोस एयरोस्पेस मिसाइल के प्रोडक्शन की देखरेख करता है, लेकिन किसी तीसरे देश को हर बिक्री के लिए मास्को की मंजूरी की आवश्यकता होती है. दोनों देशों की मिसाइल की तकनीक में 50-50 हिस्सेदारी है और इसलिए, भारत रूस की औपचारिक सहमति के बिना इसका निर्यात नहीं कर सकता.
रूस किसी तीसरे देश को निर्यात कैसे रोक सकता है?
अगर इंडोनेशिया जैसा कोई देश किसी डील पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार होता है और रूस अपने भू-राजनीतिक हितों या मौजूदा गठबंधनों के कारण हिचकिचाता है, तो बातचीत रुक सकती है. इसके अलावा रूस, सऊदी अरब या यूएई जैसे मध्य पूर्वी देशों को ब्रह्मोस बेचने से रोक सकता है, क्योंकि इन देशों के साथ अमेरिका के घनिष्ठ संबंध हैं.

वहीं, दक्षिण चीन सागर जैसे क्षेत्रों में जहां तनाव अधिक है. रूस वहां भी ब्रह्मोस की बिक्री के माध्यम से एक पक्ष को अप्रत्यक्ष रूप से हथियार देकर संघर्ष को बढ़ाने से बचना चाहेगा. यहां तक कि भारत जिन देशों को प्रमुख डिफेंस पार्टनर मानता है, उन्हें भी क्रेमलिन की मंजूरी का इंतजार करना होगा.
मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम
मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (MTCR) के प्रति भारत की प्रतिबद्धता भी इसके निर्यात के आढ़े आ सकती है. बता दें कि MTCR एक वैश्विक समझौता है जो गैर-सदस्य देशों को 300 किलोमीटर से अधिक की रेंज वाली मिसाइलों के निर्यात को रोकता है.
अनुपालन बनाए रखने के लिए, ब्रह्मोस के निर्यात वर्जन की सीमा 290 किलोमीटर है - जो भारत द्वारा अब उपयोग किए जाने वाले विस्तारित-रेंज वर्जन की तुलना में बहुत कम है. इसलिए, न केवल भारत को रूसी अप्रूवल की आवश्यकता है, बल्कि उसे अंतरराष्ट्रीय खरीदारों के लिए मिसाइल की क्षमताओं को भी सीमित करना होगा.
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