हैदराबाद: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बना हुआ है. युद्ध के खतरों के बीच केंद्र सरकार ने 7 मई, 2025 को पूरे देश में सिविल डिफेंस मॉक ड्रिल करने की घोषणा की है. गृह मंत्रालय ने 244 जिलों को मॉक ड्रिल करने का निर्देश दिया है, जिसमें युद्ध जैसी आपात स्थितियों के लिए तैयार रहने के लिए ब्लैकआउट सिमुलेशन, हवाई हमले के सायरन, निकासी अभ्यास और सार्वजनिक प्रशिक्षण सत्र शामिल होंगे.
पाकिस्तान के साथ युद्ध होने की स्थिति में नागरिक तत्परता का परीक्षण करने के लिए मॉक ड्रिल की योजना बनाई गई है. हालांकि, अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि यह मॉक ड्रिल तत्काल युद्ध का संकेत नहीं है, बल्कि व्यापक नागरिक सुरक्षा प्रयासों का हिस्सा है.

यह अभ्यास नागरिक सुरक्षा नियम, 1968 के अंतर्गत आता है. गृह मंत्रालय के जनरल फायर सर्विस, सिविल डिफेंस एंड होम गार्ड और सिविल डिफेंस महानिदेशालय की ओर से 5 मई को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिव को निर्देश भेजा गया है. सिविल डिफेंस कानून के मुताबिक गृह मंत्रालय के पास राज्यों को इस प्रकार के मॉक ड्रिल के लिए निर्देश देने का अधिकार होता है.

सिविल डिफेंस मॉक ड्रिल क्या है?
नागरिक सुरक्षा मॉक ड्रिल युद्ध के खतरों से पहले एक तैयारी अभ्यास है जिसका उद्देश्य यह परीक्षण करना है कि युद्ध, मिसाइल हमलों या हवाई हमलों जैसी आपातकालीन स्थितियों के दौरान नागरिक और सरकारी सिस्टम कैसे प्रतिक्रिया करते हैं. मॉक ड्रिल के लिए चुनिंदा लोगों और वॉलंटियर्स को ट्रेनिंग भी दी जाती है. दुश्मन के हमले या आगजनी जैसी स्थिति के लिए अपनी तैयारी को जानने के लिए मॉक ड्रिल की जाती है. मॉक ड्रिल में कई प्रकार के अभ्यास शामिल होते हैं. इनमें हवाई हमले की चेतावनी और कंट्रोल रूम के कार्य को परखना और आम लोगों को ट्रेनिंग देना शामिल है.
मॉक ड्रिल में हवाई हमले के सायरन बजते हैं, शहरों में लाइट बंद हो जाती है, नागरिक आश्रय प्रक्रियाओं का अभ्यास करते हैं, और आपात बचाव दल वास्तविक समय में काम करते हैं. ऐसे अभ्यासों का उद्देश्य घबराहट को कम करना, भ्रम से बचना और जागरूकता तथा तत्परता बढ़ाकर जीवन बचाना है.
शीत युद्ध में हुआ था मॉक ड्रिल
शीत युद्ध के दौरान इस तरह के नागरिक सुरक्षा उपायों का इस्तेमाल किया जाता था. उस समय, युद्ध में शामिल देश ब्लैकआउट और निकासी अभ्यास चलाकर संभावित हवाई हमलों और परमाणु हमलों के लिए तैयार रहते थे. अमेरिका और सोवियत संघ (अब रूस) के बीच संघर्ष को शीत युद्ध के नाम से जाना जाता है, जो 1947 में शुरू होकर 1991 में सोवियत संघ के विघटन के साथ खत्म हुआ था.

पाकिस्तान के साथ नए सिरे से तनाव और सुरक्षा जोखिमों के साथ, भारत में इन उपायों को फिर से अपनाया जा रहा है. पाकिस्तान के साथ बढ़ते तनाव के बीच इस अभ्यास को काफी अहम माना जा रहा है.
मॉक ड्रिल में किए जाने वाले उपाय
- हवाई हमले की चेतावनी देने वाले सायरन का ऑपरेशन
- दुश्मन देश के हमले की स्थिति में खुद को बचाने के लिए नागरिक सुरक्षा पहलुओं पर नागरिकों, छात्रों आदि को प्रशिक्षण.
- क्रैश ब्लैकआउट उपायों का प्रावधान
- प्रमुक संयंत्रों या प्रतिष्ठानों को समय रहते छिपाने का प्रावधान (Camouflaging)
- निकासी योजना का अपडेशन और उसका पूर्वाभ्यास
मॉक ड्रिल ब्लैकआउट के दौरान होने वाले अनुभव
मॉक ड्रिल अभ्यास के दौरान, अस्थायी ब्लैकआउट, मोबाइल सिग्नल का निलंबन या ट्रैफिक डायवर्जन का अनुभव हो सकता है. इस दौरान अधिकारी निकासी अभ्यास भी कर सकते हैं या सार्वजनिक घोषणाएं कर सकते हैं. कुछ क्षेत्रों में, पुलिस और अर्धसैनिक बल युद्ध जैसी आपात स्थिति का अनुकरण कर सकते हैं.
मॉक ड्रिल क्यों जरूरी
सरकार चाहती है कि लोग इसे युद्ध की तैयारी की तरह लें. यह घबराहट का संकेत नहीं है. इस अभ्यास से अधिकारियों और जनता दोनों को अपनी भूमिका बेहतर ढंग से समझने का मौका मिलता है. अधिकारियों से उम्मीद की जाती है कि वे मॉक ड्रिल के परिणाम का आकलन करें और जरूरत के हिसाब से सुधार करें.

ऐसे समय में जब दुनिया पहले से ही क्षेत्रीय अस्थिरता को लेकर चिंतित है, भारत का इस तरह की ड्रिल करने का कदम यह संकेत देता है कि वह पाकिस्तान के साथ चल रहे गतिरोध में संभावित वृद्धि के लिए तैयार है. जबकि भूकंप या इमारत ढहने जैसी प्राकृतिक आपदाओं के लिए तैयार रहने के लिए नियमित रूप से मॉक ड्रिल आयोजित की जाती हैं, लेकिन 'बाहरी खतरों' या दुश्मन के हमले से बचाव के उद्देश्य से उपायों को शामिल करना बहुत महत्वपूर्ण है. अभ्यास का उद्देश्य नागरिकों को सबसे खराब स्थिति के लिए तैयार करना है. यह अब काल्पनिक खतरों के बारे में नहीं, बल्कि युद्ध की वास्तविक संभावना के लिए तैयारी है.
मॉक ड्रिल में कौन लोग शामिल होंगे?
राज्य और जिला अधिकारियों के समन्वय से 7 मई को निर्दिष्ट जिलों में मॉक ड्रिल अभ्यास किया जाएगा. इसमें सिविल डिफेंस वार्डन, होम गार्ड, राष्ट्रीय कैडेट कोर (एनसीसी), राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) के स्वयंसेवक, नेहरू युवा केंद्र संगठन (एनवाईकेएस) के सदस्य और स्कूल और कॉलेजों के छात्र शामिल होंगे.

इस दौरान नागरिकों को अल्पकालिक बिजली कटौती, ब्लैकआउट सिमुलेशन, तेज सायरन और कुछ सार्वजनिक क्षेत्रों में प्रतिबंधित पहुंच का सामना करना पड़ सकता है. कुछ शहरों में यातायात को अस्थायी रूप से डायवर्ट भी किया जा सकता है.
सिविल डिफेंस मॉक ड्रिल का संचालन
गृह मंत्रालय ने मॉक ड्रिल में भाग लेने वाले प्रत्येक जिले और राज्य को विभिन्न प्रकार के कर्मियों और स्वयंसेवकों को शामिल करने का निर्देश दिया है:
- समन्वय के लिए जिला अधिकारी
- ग्राउंड ऑपरेशन के लिए होम गार्ड और सिविल डिफेंस वार्डन
- जागरूकता और सहायता भूमिकाओं के लिए एनसीसी, एनएसएस, एनवाईकेएस के वॉलंटियर्स और छात्र
- ड्रिल के बाद सभी राज्यों को घटना, प्रतिक्रिया अंतराल और सिफारिशों के साथ एक 'एक्शन रिपोर्ट' प्रस्तुत करनी होगी
मॉक ड्रिल के दौरान इन बातों का रखें ध्यान
- शांत रहें और स्थानीय निर्देशों का पालन करें
- पानी, दवाई और टॉर्च जैसी बुनियादी आपूर्तियां तैयार रखें
- सोशल मीडिया पर अफवाहें या असत्यापित समाचार साझा करने से बचें
- अगर बिजली या इंटरनेट कुछ समय के लिए बंद हो जाए तो घबराएं नहीं
- आधिकारिक अपडेट के लिए रेडियो या सरकारी चैनल सुनें
मॉक ड्रिल की प्रमुख गतिविधियां
हवाई हमले के सायरन: सार्वजनिक चेतावनी प्रणालियों का परीक्षण करने के लिए सायरन एक्टिव किए जाएंगे. ये हवाई खतरों के मामले में चेतावनी के रूप में काम करते हैं, जिससे लोगों को छिपने का समय मिल जाता है.

क्रैश ब्लैकआउट: शहरों में युद्ध के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली ब्लैकआउट स्थितियों की नकल करने के लिए घरों की लाइट बंद की जाएगी. इससे रात के समय हवाई हमलों के दौरान पता लगने का जोखिम कम हो जाता है. भारत ने आखिरी बार 1971 में ब्लैकआउट अभ्यास का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया था.
कैमोफ्लाज अभ्यास: महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों - जिसमें संचार टावर, बिजली संयंत्र और सैन्य क्षेत्र शामिल हैं - पर हवाई या उपग्रह निगरानी से छिपने की तकनीकों का परीक्षण करने के लिए कैमोफ्लाज अभियान चलाया जाएगा.
निकासी अभ्यास: उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों से सुरक्षित स्थानों पर निकासी का अभ्यास किया जाएगा. ये अभ्यास रसद संबंधी मुद्दों की पहचान करने और प्रतिक्रिया समय को बेहतर बनाने में मदद करते हैं.
नागरिक प्रशिक्षण सत्र: मॉक ड्रिल के तहत स्कूल, कॉलेज, कार्यालय और सामुदायिक केंद्र जागरूकता सत्र आयोजित करेंगे. ये लोगों को आश्रय खोजने, बुनियादी प्राथमिक चिकित्सा का उपयोग करने और आपात स्थिति के दौरान शांत रहने का तरीका सिखाएंगे.

दीर्घकालिक रणनीति
भारत सरकार का यह कदम नागरिक तैयारियों को बढ़ावा देने के लिए दीर्घकालिक रणनीति के अनुरूप है. अक्टूबर 2022 में 'चिंतन शिविर' में शीर्ष नेताओं ने देशव्यापी तत्परता की आवश्यकता पर जोर दिया. जनवरी 2023 में केंद्रीय गृह सचिव के एक अनुवर्ती पत्र में नागरिक सुरक्षा को मजबूत करने का आह्वान किया गया, विशेष रूप से सीमा और तटीय क्षेत्रों में. 7 मई को भारत का नागरिक सुरक्षा अभ्यास राष्ट्रीय तत्परता में सुधार के उद्देश्य से एक योजनाबद्ध उपाय है. ऐसे अभ्यासों को प्रभावी और सार्थक बनाने के लिए सार्वजनिक सहयोग और जागरूकता अहम है.
1971 के युद्ध में नहीं की गई थी मॉक ड्रिल
भारत में 1970 के दशक की शुरुआत में भारत-पाकिस्तान युद्ध- बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान इस तरह की ड्रिल नहीं की गई थी. उस समय भारत ने सायरन रेड किया था, जिसमें एक निश्चित समय पर सायरन बजता था, जिसके बाद लोगों को लाइट बंद करनी पड़ती थी. 1971 की मॉक ड्रिल की याद रखने वाले कुछ लोगों ने बताया कि कैसे उन्हें अपने घरों के शीशे कागज से ढकने पड़ते थे और अगर आप बाहर होते और सायरन सुनते, तो आपको फर्श पर लेटकर अपने कान बंद कर लेने होते थे.
मॉक ड्रिल अभ्यास का आधार
गृह मंत्रालय के निर्देशानुसार, बुधवार को 35 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के कुल 244 जिले राष्ट्रव्यापी मॉक ड्रिल में भाग लेंगे. इनमें से 100 को अत्यधिक जिलों को संवेदनशील के रूप में पहचाना गया है.
अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से निकटता: पंजाब, राजस्थान, गुजरात और जम्मू-कश्मीर के जिलों को उनकी अग्रिम पंक्ति की स्थिति के कारण प्राथमिकता दी गई है.

महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे की उपस्थिति: रक्षा प्रतिष्ठानों, बिजली ग्रिड, रिफाइनरी, बंदरगाहों और संचार नेटवर्क वाले क्षेत्रों को इसमें शामिल किया गया है.
शहरी घनत्व और जनसंख्या जोखिम: युद्ध में बड़े शहरी केंद्रों के लक्ष्य बनने की अधिक संभावना रहती है और उन्हें जटिल निकासी और जागरूकता योजना की आवश्यकता है.
तटीय संवेदनशीलता: तटीय जिले विशेष रूप से समुद्री खतरों के संपर्क में हैं, रक्षा में उनकी रणनीतिक भूमिका के लिए उन पर जोर दिया जाता है.
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