ETV Bharat / bharat

आज लोकसभा में पेश होगा वक्फ संशोधन बिल! बिहार में शिया-सुन्नी की क्या है राय? - WAQF AMENDMENT BILL

आज लोकसभा में वक्फ संशोधन बिल पेश किया जाएगा. इसको लेकर बिहार के शिया-सुन्नी से ईटीवी भारत ने राय जानना चाहा.

Waqf Amendment Bill
सीएम नीतीश कुमार के साथ वक्फ बोर्ड के सदस्य (ETV Bharat)
author img

By ETV Bharat Bihar Team

Published : April 1, 2025 at 8:54 PM IST

12 Min Read

पटना: पूरे देश में वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर हलचल है. संभवत: केंद्र सरकार बुधवार को लोकसभा में वक्फ संसोधन विधेयक पेश कर सकती है. वक्फ बिल को लेकर सबसे ज्यादा विवाद बिहार में देखने को मिल रहा है. बिहार में शिया और सुन्नी वक्फ बोर्ड इस विधेयक को लोकसभा में पेश किए जाने को लेकर अपनी-अपनी राय दे रही है.

नीतीश को अल्पसंख्यकों का समर्थन: 20 वर्षों से बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार चल रही है. नेताओं का कहना है कि सीएम ने अल्पसंख्यकों के लिए अनेक काम किए. यही कारण है कि बिहार में एनडीए की सरकार के हिस्सा रहने के बावजूद नीतीश कुमार को अल्पसंख्यकों का समर्थन मिलता रहा है.

क्यों हो रही राजनीतिक?: इसी साल बिहार में विधानसभा का चुनाव होना है. यही कारण है कि वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर सबसे ज्यादा राजनीति बिहार में हो रही है. केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार पूर्ण बहुमत की नहीं है. इस बार नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के सहयोग से केंद्र की सरकार को बहुमत मिला है. यही कारण है कि मुस्लिम संगठनों का नीतीश कुमार पर इस बिल को लेकर दवाब बनाया जा रहा है.

नीतीश कुमार की इफ्तार का विरोध: नीतीश कुमार हर वर्ष रमजान के महीने में इफ्तार पार्टी का आयोजन करते रहे हैं. इस बार भी उन्होंने अपने आवास पर इसका आयोजन किया. वक्फ संशोधन विधेयक में जदयू के स्टैंड को लेकर कई मुस्लिम संगठनों ने इफ्तार पार्टी का बॉयकॉट किया था. हालांकि मुख्यमंत्री के पार्टी में काफी संख्या में मुस्लिम शामिल भी हुए थे.

शिया-सुन्नी की राय: लोकसभा में वक्फ संशोधन विधेयक के पेश होने को लेकर बिहार के शिया वक्फ बोर्ड और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इसपर आपत्ति दर्ज की है. दोनों वक्फ बोर्ड का कहना है कि केंद्र सरकार जल्दबाजी में यह विधेयक लोकसभा में पेश ना करें बल्कि इसपार विचार करे.

शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमेन ने क्या कहा?: लोकसभा में पेश होने वाले वक्फ संसोधन विधेयक को लेकर ईटीवी भारत ने बिहार शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमेन सैयद अफजल अब्बास से खास बातचीत की. बातचीत में उन्होंने नीतीश कुमार के काम की तारीफ की. कहा कि नीतीश कुमार ने अल्पसंख्यकों के लिए काफी काम किया. इतना अब तक के किसी सीएम ने नहीं किया. कहा कि जो भी फैसला होगा वह अच्छा होगा.

सवाल: कल लोकसभा में वक्फ संशोधन विधेयक पेश किया जा सकता है. इसपर आपलोगों का क्या स्टैंड है?

सैयद अफजल अब्बास: कल वक्फ संशोधन विधेयक पेश किया जा सकता है इसकी विधिवत जानकारी नहीं है. यदि ऐसा होता है तो यह बहुत जल्दबाजी होगी. देश के 30 करोड़ मुसलमान को इग्नोर करके उनके आकांक्षाओं के विपरीत यदि बिल पास किया जाता है तो यह अच्छा नहीं होगा. यह कहीं ना कहीं मजहब से जुड़ा हुआ मसाला है.

सैयद अफजल अब्बास कहते हैं कि सीएम नीतीश कुमार उनके घर आए थे. उस समय भी पत्रकारों ने पूछा था तो मैं यही जवाब दिया था कि अपने 20 वर्षों के शासन में नीतीश कुमार ने बिहार में मुसलमान के लिए जितना काम किया. आजादी के बाद किसी मुख्यमंत्री ने उतना नहीं किया. 'यह मैं ईमानदारी से बोल रहा हूं.'

जहां तक विधेयक की बात है तो संशोधन हमेशा बेहतरीन के लिए होता है. 100, 200 या 500 आदमी इस बिल का विरोध करता तब कोई बात थी, लेकिन पूरे देश का मुसलमान इस बिल का विरोध कर रहा है. यह हमारे धर्म से और आस्था से जुड़ा हुआ मामला है.

अफजल अब्बास ने केंद्र सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि यदि आपकी आस्था से जुड़ा हुआ मामला आता है तो आस्था की बुनियाद पर फैसला दे दिया जाता है. लेकिन जब हमारे आस्था का मामला आता है तो इस पर विवाद क्यों?

"यह हमारे आस्था से जुड़ा हुआ मामला है. मेरे कॉम के लोगों ने प्रॉपर्टी दान की है. पूरा कानून वक्फनामे से चलती है. जहां तक बिहार की बात है तो दोनों बोर्ड ने बिहार सरकार को 40 से 50 एकड़ जमीन अल्पसंख्यक छात्रावास बनाने के लिए दिया है. हम तो वक्फ का सदुपयोग कर रहे हैं. हमें लगता है कि इस तरीके का मामला उठाकर कहीं ना कहीं विवादित मसला खड़ा होगा. यह केवल मुसलमान का मसाला नहीं है. यह मुस्लिम और हिंदू दोनों का मसला है. विवाद शुरू होगा तो देश में गंगा-जमुनी तार-तार होगा." -सैयद अफजल अब्बास, चेयरमेन, शिया वक्फ बोर्ड बिहार

सैयद अफजल अब्बास कहते हैं कि जब जेपीसी की बैठक बुलाई गई थी तो हम लोगों ने 32 संशोधन कमेटी के सामने में रखा. बाद में घटकर 14 संशोधन रखा गया, लेकिन उन लोगों की बात नहीं सुनी गई. इसका मतलब है कि आप इस मसले पर हठधार्मिता कर रहे हैं.

"नए विधेयक में कहा जा रहा है कि वक्फ बोर्ड का सदस्य हिन्दू होगा तो हमारी भी मांग होगी कि धार्मिक न्यास बोर्ड में भी मुसलमान को जगह दी जाए. महावीर मंदिर के ट्रस्ट में मुसलमान को रखा जाए, क्या यह संभव है. हम अपने रीति-रिवाज से चलते हैं. दूसरे धर्म के लोग अपने मजहब के हिसाब से चलते हैं. कहीं ना कहीं देश में फसाद होगा." --सैयद अफजल अब्बास, चेयरमेन, शिया वक्फ बोर्ड बिहार

सवाल: किन-किन बिंदुओं पर आपत्ति है?

सैयद अफजल अब्बास: देश में सभी मंदिरों को रजिस्टर्ड किया जा सकता है, लेकिन हम अपने कब्रिस्तान को रजिस्टर्ड नहीं कर सकते हैं. देश में 300 वर्ष से अधिक पुरानी मस्जिद है, किसके पास पुराना रिकॉर्ड होगा. 1912 के बाद देश में सर्वे हुआ जो अनक्लेमड प्रॉपर्टी थी, उसको बिहार सरकार को घोषित कर दिया गया.

नीतीश कुमार पर उम्मीद: बिहार में 9000 से ऊपर कब्रिस्तानों की घेराबंदी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने करवा दिया. यह बहुत बड़ा काम किया. इसके अलावा भी बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अल्पसंख्यकों के लिए बहुत सारे काम किया. नीतीश कुमार अनुभवी राजनीतिज्ञ हैं. पूरी दुनिया यह जानती है. हम लोगों को लग रहा है कि नीतीश कुमार कुछ स्टैंड लेंगे.

सवाल: जदयू का स्टैंड क्लियर नहीं हुआ है. मुख्यमंत्री ने भी इस मामले में अभी तक कोई बयान नहीं दिया है.

सैयद अफजल अब्बास: हमलोग अदना सा हैं. ना एमपी हूं और ना जेपीसी का मेंबर हूं, लेकिन इस बिल को लेकर जब बात आई थी हमलोग मुख्यमंत्री से मुलाकात की थी. बिहार सरकार के मंत्री विजय चौधरी. केंद्रीय मंत्री ललन सिंह. सुन्नी वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष भी मौजूद थे. इस विधेयक को लेकर चर्चा भी हुई थी. उसी वक्त वहां से संजय झा जी को फोन भी किया गया.

अफजल अब्बास कहते हैं कि आज भले ही इसको लेकर क्रेडिट कोई ले, लेकिन नीतीश कुमार ने स्पष्ट रूप से कह दिया था कि हमारे रहते हुए एक तरफा फैसला नहीं होगा. मैंने कहा कि सर यह बिहार नहीं केंद्र सरकार का एक्ट है. जो भी वक्फ की प्रॉपर्टी है, वह सेंट्रल एक्ट से कंट्रोल होता है.

समझने की बात है कि जो दाता आज से 200 साल पहले जमीन डोनेट किए. हिंदू धर्म में भी दान दिया जाता है और इस्लाम में भी दान देने की प्रथा है. दान देने के बाद लोग भूल जाते हैं. क्योंकि दान की गयी जमीन भगवान की हो जाती है. यदि बिल अभी पास होता है तो बहुत सारे ऑप्शन खुले हुए हैं.

"सुप्रीम कोर्ट है, लेकिन मसला कोर्ट में जाने की नौबत नहीं आनी चाहिए. यह देश में मोस्ट सेंसेटिव इश्यू बन चुका है. ऐसी स्थिति में हम यह आग्रह करेंगे. पूरे देश की निगाह विधेयक पर लगी हुई है. इसका कारण है कि देश की गंगा जमुनी तहजीब बरकरार रहे. इसको तार तार करने से रोका जा सके."-सैयद अफजल अब्बास, चेयरमेन, शिया वक्फ बोर्ड बिहार

सवाल: बिल पास होता है तो क्या जदयू की राजनीति पर प्रभाव पड़ेगा?

सैयद अफजल अब्बास: यह काम बहुत ही इमोशनल और सेंसिटिव है. जब धर्म का मुद्दा आता है तो लोग पुरानी बातें भूल जाते हैं. इसका कितना असर पड़ेगा यह भविष्य के गर्भ में छुपा हुआ है. बिहार का हर मुसलमान कहता है कि नीतीश कुमार से बेहतरीन काम किसी ने नहीं किया. हम लोगों ने अच्छा सुझाव जेपीसी को दिया और मुख्यमंत्री के अलावे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को भी दिया. सबको अपना दर्द बयां कर चुके हैं. अब फैसला उन लोगों को लेना होगा की देश हित में क्या अच्छा होगा.

सुन्नी वक्फ बोर्ड की राय: सुन्नी वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष मो. इरशादुल्लाह का भी मानना है कि वक्फ संशोधन विधेयक पिछले 4 महीना से चल रहा है. मैं भी जेपीसी के सामने अपना सुझाव रखा था. करीब 21 बिंदुओं पर उन लोगों को आपत्ति थी. अब ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमिटी क्या रिपोर्ट दिया है यह उन लोगों को नहीं पता.

"हम लोगों का आग्रह है कि इस मुद्दे पर एक बार फिर से चिंतन करें. इस विधेयक पर फिर से गौर करने के बाद विधेयक को लोकसभा में पेश किया जाए." -मो. इरशादुल्लाह, अध्यक्ष, सुन्नी वक्फ बोर्ड

वक्फ क्या होता है?: कोई भी चल या अचल संपत्ति को इस्लाम मानने वाले लोग दान कर सकते हैं. दान करने के बाद वह इसक मालिक नहीं होता है. यह संपत्ति इस्लाम धर्म की हो जाती है. हालांकि इसके बेहतर संचालित के लिए संस्थाएं बनायी जाती है.

कैसे किया जाता है?: मान लीजिए कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति दान करता चाहता है. वह अपने वसीयत में वक्फ को दान देने की बात लिख सकता है. अगर संबंधित व्यक्ति की मौत भी हो जाती है तो उस संपत्ति का इस्तेमाल उसके परिवार के लोग नहीं करेंगे. इसमें जमीन, मकान से लेकर कैश और कई सामान भी हो सकते हैं.

कौन कर सकता है वक्फ: इस्लाम धर्म को मानने वाले कोई भी व्यक्ति संपत्ति दान कर सकता है. दान करने वाले व्यक्ति की उम्र 18 साल से ज्यादा होना चाहिए. वक्फ की गयी संपत्ति पर परिवार के कोई भी सदस्य या फिर कोई दूसरा दावा नहीं कर सकता.

कौन करता प्रबंधन?: दान की गयी संपत्ति के देखभाल और इस्तेमाल के लिए संस्थान गठित की गयी है. स्थानीय और राज्य स्तर पर वक्फ बोर्ड हैं जो वक्फ बोर्ड अधिनियम 1995 के तहत काम करता है. बिहार में शिया और सुन्नी के लिए अलग अलग वक्फ बोर्ड है. यह बोर्ड संपत्ति का रखरखाव और उनके आने वाली आय का हिसाब किताब रखता है. देश में सभी कब्रिस्तान का रख रखाव यही संस्थान करता है.

वक्फ संसोधन विधेयक क्या है? 8 अगस्त को यह विधेयक लोकसभा में पेश किया गया था. इसके बाद यह JPC (संयुक्त संसदीय समिति जो किसी बिल या मुद्दे पर गहन जांच के लिए गठित की जाती है) के पास चला गया. संसोधन विधेयक में परिवर्तन की बात कही गयी है.

क्या है परिवर्तन: वक्फ बोर्ड में मुस्लिम महिलाओं का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना, किसी भी धर्म के लोग कमेटी के सदस्य हो सकते हैं. ऐसा इसलिए कि वक्फ बोर्ड पर चंद लोगों का कब्जा है. इससे आम मुसलमान को इंसाफ नहीं मिल पाता है. इसलिए यह बिल लाया जा रहा है.

वक्फ की शुरुआत कब हुई? इतिहासकार मानते हैं कि वक्फ की शुरुआत दिल्ली सल्तनत से जुड़ी है. माना जाता है कि सुल्तान मुइजुद्दीन सैम गौर ने जामा मस्जिद के लिए दो गांव दान किया था. इसका प्रशासन शेखुल इस्लाम को दिया था. जैसे-जैसे दिल्ली सल्तनत और इस्लामी राजवंश की बढ़ोतरी हुई वक्फ की संपत्तियों में बढ़ोतरी होती गयी.

देश में वक्फ की संपत्ति: सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में 9 लाख 40 हजार एकड़ में फैली 8 लाख 70 हजार संपत्ति है. इसकी कीमत 1.20 लाख करोड़ रुपये है. संसोधन विधेयक में वक्फ अधिनियम धारा 40 को हटाने का प्रस्ताव है. इससे बोर्डों को वक्फ संपत्ति की स्थिति निर्धारित करने का अधिकार देता है.

ये भी पढ़ें:

पटना: पूरे देश में वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर हलचल है. संभवत: केंद्र सरकार बुधवार को लोकसभा में वक्फ संसोधन विधेयक पेश कर सकती है. वक्फ बिल को लेकर सबसे ज्यादा विवाद बिहार में देखने को मिल रहा है. बिहार में शिया और सुन्नी वक्फ बोर्ड इस विधेयक को लोकसभा में पेश किए जाने को लेकर अपनी-अपनी राय दे रही है.

नीतीश को अल्पसंख्यकों का समर्थन: 20 वर्षों से बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार चल रही है. नेताओं का कहना है कि सीएम ने अल्पसंख्यकों के लिए अनेक काम किए. यही कारण है कि बिहार में एनडीए की सरकार के हिस्सा रहने के बावजूद नीतीश कुमार को अल्पसंख्यकों का समर्थन मिलता रहा है.

क्यों हो रही राजनीतिक?: इसी साल बिहार में विधानसभा का चुनाव होना है. यही कारण है कि वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर सबसे ज्यादा राजनीति बिहार में हो रही है. केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार पूर्ण बहुमत की नहीं है. इस बार नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू के सहयोग से केंद्र की सरकार को बहुमत मिला है. यही कारण है कि मुस्लिम संगठनों का नीतीश कुमार पर इस बिल को लेकर दवाब बनाया जा रहा है.

नीतीश कुमार की इफ्तार का विरोध: नीतीश कुमार हर वर्ष रमजान के महीने में इफ्तार पार्टी का आयोजन करते रहे हैं. इस बार भी उन्होंने अपने आवास पर इसका आयोजन किया. वक्फ संशोधन विधेयक में जदयू के स्टैंड को लेकर कई मुस्लिम संगठनों ने इफ्तार पार्टी का बॉयकॉट किया था. हालांकि मुख्यमंत्री के पार्टी में काफी संख्या में मुस्लिम शामिल भी हुए थे.

शिया-सुन्नी की राय: लोकसभा में वक्फ संशोधन विधेयक के पेश होने को लेकर बिहार के शिया वक्फ बोर्ड और सुन्नी वक्फ बोर्ड ने इसपर आपत्ति दर्ज की है. दोनों वक्फ बोर्ड का कहना है कि केंद्र सरकार जल्दबाजी में यह विधेयक लोकसभा में पेश ना करें बल्कि इसपार विचार करे.

शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमेन ने क्या कहा?: लोकसभा में पेश होने वाले वक्फ संसोधन विधेयक को लेकर ईटीवी भारत ने बिहार शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमेन सैयद अफजल अब्बास से खास बातचीत की. बातचीत में उन्होंने नीतीश कुमार के काम की तारीफ की. कहा कि नीतीश कुमार ने अल्पसंख्यकों के लिए काफी काम किया. इतना अब तक के किसी सीएम ने नहीं किया. कहा कि जो भी फैसला होगा वह अच्छा होगा.

सवाल: कल लोकसभा में वक्फ संशोधन विधेयक पेश किया जा सकता है. इसपर आपलोगों का क्या स्टैंड है?

सैयद अफजल अब्बास: कल वक्फ संशोधन विधेयक पेश किया जा सकता है इसकी विधिवत जानकारी नहीं है. यदि ऐसा होता है तो यह बहुत जल्दबाजी होगी. देश के 30 करोड़ मुसलमान को इग्नोर करके उनके आकांक्षाओं के विपरीत यदि बिल पास किया जाता है तो यह अच्छा नहीं होगा. यह कहीं ना कहीं मजहब से जुड़ा हुआ मसाला है.

सैयद अफजल अब्बास कहते हैं कि सीएम नीतीश कुमार उनके घर आए थे. उस समय भी पत्रकारों ने पूछा था तो मैं यही जवाब दिया था कि अपने 20 वर्षों के शासन में नीतीश कुमार ने बिहार में मुसलमान के लिए जितना काम किया. आजादी के बाद किसी मुख्यमंत्री ने उतना नहीं किया. 'यह मैं ईमानदारी से बोल रहा हूं.'

जहां तक विधेयक की बात है तो संशोधन हमेशा बेहतरीन के लिए होता है. 100, 200 या 500 आदमी इस बिल का विरोध करता तब कोई बात थी, लेकिन पूरे देश का मुसलमान इस बिल का विरोध कर रहा है. यह हमारे धर्म से और आस्था से जुड़ा हुआ मामला है.

अफजल अब्बास ने केंद्र सरकार पर सवाल उठाते हुए कहा कि यदि आपकी आस्था से जुड़ा हुआ मामला आता है तो आस्था की बुनियाद पर फैसला दे दिया जाता है. लेकिन जब हमारे आस्था का मामला आता है तो इस पर विवाद क्यों?

"यह हमारे आस्था से जुड़ा हुआ मामला है. मेरे कॉम के लोगों ने प्रॉपर्टी दान की है. पूरा कानून वक्फनामे से चलती है. जहां तक बिहार की बात है तो दोनों बोर्ड ने बिहार सरकार को 40 से 50 एकड़ जमीन अल्पसंख्यक छात्रावास बनाने के लिए दिया है. हम तो वक्फ का सदुपयोग कर रहे हैं. हमें लगता है कि इस तरीके का मामला उठाकर कहीं ना कहीं विवादित मसला खड़ा होगा. यह केवल मुसलमान का मसाला नहीं है. यह मुस्लिम और हिंदू दोनों का मसला है. विवाद शुरू होगा तो देश में गंगा-जमुनी तार-तार होगा." -सैयद अफजल अब्बास, चेयरमेन, शिया वक्फ बोर्ड बिहार

सैयद अफजल अब्बास कहते हैं कि जब जेपीसी की बैठक बुलाई गई थी तो हम लोगों ने 32 संशोधन कमेटी के सामने में रखा. बाद में घटकर 14 संशोधन रखा गया, लेकिन उन लोगों की बात नहीं सुनी गई. इसका मतलब है कि आप इस मसले पर हठधार्मिता कर रहे हैं.

"नए विधेयक में कहा जा रहा है कि वक्फ बोर्ड का सदस्य हिन्दू होगा तो हमारी भी मांग होगी कि धार्मिक न्यास बोर्ड में भी मुसलमान को जगह दी जाए. महावीर मंदिर के ट्रस्ट में मुसलमान को रखा जाए, क्या यह संभव है. हम अपने रीति-रिवाज से चलते हैं. दूसरे धर्म के लोग अपने मजहब के हिसाब से चलते हैं. कहीं ना कहीं देश में फसाद होगा." --सैयद अफजल अब्बास, चेयरमेन, शिया वक्फ बोर्ड बिहार

सवाल: किन-किन बिंदुओं पर आपत्ति है?

सैयद अफजल अब्बास: देश में सभी मंदिरों को रजिस्टर्ड किया जा सकता है, लेकिन हम अपने कब्रिस्तान को रजिस्टर्ड नहीं कर सकते हैं. देश में 300 वर्ष से अधिक पुरानी मस्जिद है, किसके पास पुराना रिकॉर्ड होगा. 1912 के बाद देश में सर्वे हुआ जो अनक्लेमड प्रॉपर्टी थी, उसको बिहार सरकार को घोषित कर दिया गया.

नीतीश कुमार पर उम्मीद: बिहार में 9000 से ऊपर कब्रिस्तानों की घेराबंदी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने करवा दिया. यह बहुत बड़ा काम किया. इसके अलावा भी बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अल्पसंख्यकों के लिए बहुत सारे काम किया. नीतीश कुमार अनुभवी राजनीतिज्ञ हैं. पूरी दुनिया यह जानती है. हम लोगों को लग रहा है कि नीतीश कुमार कुछ स्टैंड लेंगे.

सवाल: जदयू का स्टैंड क्लियर नहीं हुआ है. मुख्यमंत्री ने भी इस मामले में अभी तक कोई बयान नहीं दिया है.

सैयद अफजल अब्बास: हमलोग अदना सा हैं. ना एमपी हूं और ना जेपीसी का मेंबर हूं, लेकिन इस बिल को लेकर जब बात आई थी हमलोग मुख्यमंत्री से मुलाकात की थी. बिहार सरकार के मंत्री विजय चौधरी. केंद्रीय मंत्री ललन सिंह. सुन्नी वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष भी मौजूद थे. इस विधेयक को लेकर चर्चा भी हुई थी. उसी वक्त वहां से संजय झा जी को फोन भी किया गया.

अफजल अब्बास कहते हैं कि आज भले ही इसको लेकर क्रेडिट कोई ले, लेकिन नीतीश कुमार ने स्पष्ट रूप से कह दिया था कि हमारे रहते हुए एक तरफा फैसला नहीं होगा. मैंने कहा कि सर यह बिहार नहीं केंद्र सरकार का एक्ट है. जो भी वक्फ की प्रॉपर्टी है, वह सेंट्रल एक्ट से कंट्रोल होता है.

समझने की बात है कि जो दाता आज से 200 साल पहले जमीन डोनेट किए. हिंदू धर्म में भी दान दिया जाता है और इस्लाम में भी दान देने की प्रथा है. दान देने के बाद लोग भूल जाते हैं. क्योंकि दान की गयी जमीन भगवान की हो जाती है. यदि बिल अभी पास होता है तो बहुत सारे ऑप्शन खुले हुए हैं.

"सुप्रीम कोर्ट है, लेकिन मसला कोर्ट में जाने की नौबत नहीं आनी चाहिए. यह देश में मोस्ट सेंसेटिव इश्यू बन चुका है. ऐसी स्थिति में हम यह आग्रह करेंगे. पूरे देश की निगाह विधेयक पर लगी हुई है. इसका कारण है कि देश की गंगा जमुनी तहजीब बरकरार रहे. इसको तार तार करने से रोका जा सके."-सैयद अफजल अब्बास, चेयरमेन, शिया वक्फ बोर्ड बिहार

सवाल: बिल पास होता है तो क्या जदयू की राजनीति पर प्रभाव पड़ेगा?

सैयद अफजल अब्बास: यह काम बहुत ही इमोशनल और सेंसिटिव है. जब धर्म का मुद्दा आता है तो लोग पुरानी बातें भूल जाते हैं. इसका कितना असर पड़ेगा यह भविष्य के गर्भ में छुपा हुआ है. बिहार का हर मुसलमान कहता है कि नीतीश कुमार से बेहतरीन काम किसी ने नहीं किया. हम लोगों ने अच्छा सुझाव जेपीसी को दिया और मुख्यमंत्री के अलावे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को भी दिया. सबको अपना दर्द बयां कर चुके हैं. अब फैसला उन लोगों को लेना होगा की देश हित में क्या अच्छा होगा.

सुन्नी वक्फ बोर्ड की राय: सुन्नी वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष मो. इरशादुल्लाह का भी मानना है कि वक्फ संशोधन विधेयक पिछले 4 महीना से चल रहा है. मैं भी जेपीसी के सामने अपना सुझाव रखा था. करीब 21 बिंदुओं पर उन लोगों को आपत्ति थी. अब ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमिटी क्या रिपोर्ट दिया है यह उन लोगों को नहीं पता.

"हम लोगों का आग्रह है कि इस मुद्दे पर एक बार फिर से चिंतन करें. इस विधेयक पर फिर से गौर करने के बाद विधेयक को लोकसभा में पेश किया जाए." -मो. इरशादुल्लाह, अध्यक्ष, सुन्नी वक्फ बोर्ड

वक्फ क्या होता है?: कोई भी चल या अचल संपत्ति को इस्लाम मानने वाले लोग दान कर सकते हैं. दान करने के बाद वह इसक मालिक नहीं होता है. यह संपत्ति इस्लाम धर्म की हो जाती है. हालांकि इसके बेहतर संचालित के लिए संस्थाएं बनायी जाती है.

कैसे किया जाता है?: मान लीजिए कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति दान करता चाहता है. वह अपने वसीयत में वक्फ को दान देने की बात लिख सकता है. अगर संबंधित व्यक्ति की मौत भी हो जाती है तो उस संपत्ति का इस्तेमाल उसके परिवार के लोग नहीं करेंगे. इसमें जमीन, मकान से लेकर कैश और कई सामान भी हो सकते हैं.

कौन कर सकता है वक्फ: इस्लाम धर्म को मानने वाले कोई भी व्यक्ति संपत्ति दान कर सकता है. दान करने वाले व्यक्ति की उम्र 18 साल से ज्यादा होना चाहिए. वक्फ की गयी संपत्ति पर परिवार के कोई भी सदस्य या फिर कोई दूसरा दावा नहीं कर सकता.

कौन करता प्रबंधन?: दान की गयी संपत्ति के देखभाल और इस्तेमाल के लिए संस्थान गठित की गयी है. स्थानीय और राज्य स्तर पर वक्फ बोर्ड हैं जो वक्फ बोर्ड अधिनियम 1995 के तहत काम करता है. बिहार में शिया और सुन्नी के लिए अलग अलग वक्फ बोर्ड है. यह बोर्ड संपत्ति का रखरखाव और उनके आने वाली आय का हिसाब किताब रखता है. देश में सभी कब्रिस्तान का रख रखाव यही संस्थान करता है.

वक्फ संसोधन विधेयक क्या है? 8 अगस्त को यह विधेयक लोकसभा में पेश किया गया था. इसके बाद यह JPC (संयुक्त संसदीय समिति जो किसी बिल या मुद्दे पर गहन जांच के लिए गठित की जाती है) के पास चला गया. संसोधन विधेयक में परिवर्तन की बात कही गयी है.

क्या है परिवर्तन: वक्फ बोर्ड में मुस्लिम महिलाओं का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना, किसी भी धर्म के लोग कमेटी के सदस्य हो सकते हैं. ऐसा इसलिए कि वक्फ बोर्ड पर चंद लोगों का कब्जा है. इससे आम मुसलमान को इंसाफ नहीं मिल पाता है. इसलिए यह बिल लाया जा रहा है.

वक्फ की शुरुआत कब हुई? इतिहासकार मानते हैं कि वक्फ की शुरुआत दिल्ली सल्तनत से जुड़ी है. माना जाता है कि सुल्तान मुइजुद्दीन सैम गौर ने जामा मस्जिद के लिए दो गांव दान किया था. इसका प्रशासन शेखुल इस्लाम को दिया था. जैसे-जैसे दिल्ली सल्तनत और इस्लामी राजवंश की बढ़ोतरी हुई वक्फ की संपत्तियों में बढ़ोतरी होती गयी.

देश में वक्फ की संपत्ति: सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में 9 लाख 40 हजार एकड़ में फैली 8 लाख 70 हजार संपत्ति है. इसकी कीमत 1.20 लाख करोड़ रुपये है. संसोधन विधेयक में वक्फ अधिनियम धारा 40 को हटाने का प्रस्ताव है. इससे बोर्डों को वक्फ संपत्ति की स्थिति निर्धारित करने का अधिकार देता है.

ये भी पढ़ें:

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.