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पुणे में वरिष्ठ खगोलशास्त्री जयंत नार्लीकर का निधन, विज्ञान जगत में शोक की लहर - JAYANT NARLIKAR PASSES AWAY

प्रोफेसर जयंत विष्णु नार्लीकर का 86 वर्ष की आयु में निधन हो गया. उन्होंने खगोल विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान दिया,

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जयंत नार्लीकर (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : May 20, 2025 at 11:39 AM IST

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पुणे: प्रख्यात खगोलशास्त्री और विज्ञान लेखक प्रोफेसर जयंत विष्णु नार्लीकर का आज पुणे स्थित उनके आवास पर निधन हो गया. वे 86 वर्ष के थे. उनके निधन से पूरे वैज्ञानिक समुदाय और साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई है. प्रोफेसर नार्लीकर न केवल एक उत्कृष्ट वैज्ञानिक थे, बल्कि एक लोकप्रिय विज्ञान लेखक और शिक्षाविद भी थे.

2021 में नासिक में आयोजित अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष रहे नार्लीकर ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खगोल विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान दिया. कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से भारत लौटने के बाद उन्होंने पुणे में प्रतिष्ठित 'आयुका' (आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान अनुसंधान संस्थान) की स्थापना की, जो खगोल विज्ञान और खगोल भौतिकी के क्षेत्र में एक प्रमुख संस्थान है.

विरासत और योगदान: जयंत नार्लीकर का जन्म एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था. उनके पिता, रैंगलर विष्णु वासुदेव नार्लीकर, एक प्रसिद्ध गणितज्ञ थे और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के गणित विभाग के प्रमुख थे. उनकी मां, सुमति विष्णु नार्लीकर, संस्कृत की विदुषी थीं.

नार्लीकर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा वाराणसी में प्राप्त की और बाद में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की, जहाँ उन्होंने पीएचडी की उपाधि प्राप्त की. अपने पिता की तरह, उन्होंने प्रतिष्ठित रैंगलर की उपाधि भी हासिल की और खगोल विज्ञान में टायसन पदक जीता.

उन्होंने मुंबई में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर) के खगोल विज्ञान विभाग के प्रमुख और पुणे में 'आयुका' के निदेशक के रूप में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाईं.

नार्लीकर ने विज्ञान को आम लोगों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने मराठी में कई विज्ञान कथाएं लिखीं, जिन्होंने बच्चों में विज्ञान के प्रति रुचि पैदा की. उनकी पुस्तकें न केवल मनोरंजक थीं, बल्कि विज्ञान की जटिल अवधारणाओं को सरल भाषा में समझाने में भी सफल रहीं.

शोक संवेदनाएं: खगोलशास्त्री लीना आयुस्का ने डॉ. जयंत नार्लीकर के निधन पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए कहा कि वे खगोल विज्ञान के प्रति उत्साही लोगों और इस क्षेत्र में करियर बनाने वालों के लिए एक आदर्श थे. उन्होंने कहा, "डॉ. जयंत विष्णु नार्लीकर खगोल विज्ञान के प्रति उत्साही और खगोल विज्ञान में करियर बनाने वालों के लिए एक आदर्श थे. हमने उनके बारे में दो पीढ़ियों से सुना है. हमने उनकी किताबें पढ़ी हैं. डॉ. नार्लीकर भारत की पहली पीढ़ी के खगोलशास्त्री थे. उन्होंने एक लेखक के रूप में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. वह पुणे विद्यापति के कुलपति थे. एक शिक्षाविद् और लेखक के रूप में उनका मेरे बेटे पर बहुत अच्छा प्रभाव था. मैं उनसे बिना अपॉइंटमेंट लिए आयुका में मिल सकता था. हम एलियंस और अन्य विज्ञान विषयों पर चर्चा करते थे. उन्होंने मुझे प्रेरित किया. मैं एक खगोलशास्त्री बन गया. उनका स्वभाव बहुत शांत था, चेहरा हमेशा मुस्कुराता रहता था. वे एक संतुष्ट व्यक्ति थे."

सम्मान और पुरस्कार: पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित जयंत नार्लीकर का निधन भारत के लिए एक अपूरणीय क्षति है. उनके वैज्ञानिक योगदान, शिक्षा के प्रति समर्पण और विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के प्रयासों को हमेशा याद किया जाएगा.

प्रोफेसर नार्लीकर अपने पीछे एक समृद्ध विरासत छोड़ गए हैं, जो आने वाली पीढ़ियों को विज्ञान के क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती रहेगी. उनका निधन भारतीय विज्ञान जगत के लिए एक गहरा आघात है, जिसकी भरपाई करना मुश्किल होगा.

यह भी पढ़ें- महाराष्ट्र: फडणवीस मंत्रिमंडल का विस्तार, छगन भुजबल ने मंत्री पद की शपथ ली

पुणे: प्रख्यात खगोलशास्त्री और विज्ञान लेखक प्रोफेसर जयंत विष्णु नार्लीकर का आज पुणे स्थित उनके आवास पर निधन हो गया. वे 86 वर्ष के थे. उनके निधन से पूरे वैज्ञानिक समुदाय और साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई है. प्रोफेसर नार्लीकर न केवल एक उत्कृष्ट वैज्ञानिक थे, बल्कि एक लोकप्रिय विज्ञान लेखक और शिक्षाविद भी थे.

2021 में नासिक में आयोजित अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष रहे नार्लीकर ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खगोल विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान दिया. कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से भारत लौटने के बाद उन्होंने पुणे में प्रतिष्ठित 'आयुका' (आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान अनुसंधान संस्थान) की स्थापना की, जो खगोल विज्ञान और खगोल भौतिकी के क्षेत्र में एक प्रमुख संस्थान है.

विरासत और योगदान: जयंत नार्लीकर का जन्म एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था. उनके पिता, रैंगलर विष्णु वासुदेव नार्लीकर, एक प्रसिद्ध गणितज्ञ थे और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के गणित विभाग के प्रमुख थे. उनकी मां, सुमति विष्णु नार्लीकर, संस्कृत की विदुषी थीं.

नार्लीकर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा वाराणसी में प्राप्त की और बाद में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की, जहाँ उन्होंने पीएचडी की उपाधि प्राप्त की. अपने पिता की तरह, उन्होंने प्रतिष्ठित रैंगलर की उपाधि भी हासिल की और खगोल विज्ञान में टायसन पदक जीता.

उन्होंने मुंबई में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर) के खगोल विज्ञान विभाग के प्रमुख और पुणे में 'आयुका' के निदेशक के रूप में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाईं.

नार्लीकर ने विज्ञान को आम लोगों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने मराठी में कई विज्ञान कथाएं लिखीं, जिन्होंने बच्चों में विज्ञान के प्रति रुचि पैदा की. उनकी पुस्तकें न केवल मनोरंजक थीं, बल्कि विज्ञान की जटिल अवधारणाओं को सरल भाषा में समझाने में भी सफल रहीं.

शोक संवेदनाएं: खगोलशास्त्री लीना आयुस्का ने डॉ. जयंत नार्लीकर के निधन पर गहरा दुख व्यक्त करते हुए कहा कि वे खगोल विज्ञान के प्रति उत्साही लोगों और इस क्षेत्र में करियर बनाने वालों के लिए एक आदर्श थे. उन्होंने कहा, "डॉ. जयंत विष्णु नार्लीकर खगोल विज्ञान के प्रति उत्साही और खगोल विज्ञान में करियर बनाने वालों के लिए एक आदर्श थे. हमने उनके बारे में दो पीढ़ियों से सुना है. हमने उनकी किताबें पढ़ी हैं. डॉ. नार्लीकर भारत की पहली पीढ़ी के खगोलशास्त्री थे. उन्होंने एक लेखक के रूप में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. वह पुणे विद्यापति के कुलपति थे. एक शिक्षाविद् और लेखक के रूप में उनका मेरे बेटे पर बहुत अच्छा प्रभाव था. मैं उनसे बिना अपॉइंटमेंट लिए आयुका में मिल सकता था. हम एलियंस और अन्य विज्ञान विषयों पर चर्चा करते थे. उन्होंने मुझे प्रेरित किया. मैं एक खगोलशास्त्री बन गया. उनका स्वभाव बहुत शांत था, चेहरा हमेशा मुस्कुराता रहता था. वे एक संतुष्ट व्यक्ति थे."

सम्मान और पुरस्कार: पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित जयंत नार्लीकर का निधन भारत के लिए एक अपूरणीय क्षति है. उनके वैज्ञानिक योगदान, शिक्षा के प्रति समर्पण और विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के प्रयासों को हमेशा याद किया जाएगा.

प्रोफेसर नार्लीकर अपने पीछे एक समृद्ध विरासत छोड़ गए हैं, जो आने वाली पीढ़ियों को विज्ञान के क्षेत्र में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती रहेगी. उनका निधन भारतीय विज्ञान जगत के लिए एक गहरा आघात है, जिसकी भरपाई करना मुश्किल होगा.

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