देहरादून: उत्तराखंड में इन दिनों खनन को लेकर घमासान मचा हुआ है. पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की ओर से सदन के भीतर अवैध खनन को लेकर उठाए गए विषय के बाद राजनीतिक घमासान जारी है. जबकि उत्तराखंड राज्य के लिए खनन काफी महत्वपूर्ण है. क्योंकि हर साल इससे करोड़ों रुपए का राजस्व प्राप्त होता है. यही वजह है कि किसी भी सरकार के कार्यकाल के दौरान खनन को लेकर सवाल उठते रहे हैं. उत्तराखंड राज्य में खनन की क्या रही स्थिति है? कुछ सालों के भीतर कैसे खनन राजस्व का दायरा बढ़ा? आइए विस्तार से जानते हैं.
उत्तराखंड में खनन, राजस्व का एक बड़ा जरिया है. यही वजह है कि हमेशा से ही खनन विभाग चर्चाओं में बना रहता है. जिसकी मुख्य वजह यही है कि समय-समय पर अवैध खनन के मामले सामने आते रहते हैं. इससे राजस्व को सीधा नुकसान पहुंचता है. खनन सामग्री मकान बनाने के लिए समेत इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के लिए बेहद जरूरी है. लेकिन उत्तराखंड की नदियों में हो रहा अत्यधिक खनन पर्यावरण के लिहाज से भी एक बड़ी समस्या बनता जा रहा है. यही वजह है कि राज्य सरकार इस बात का दावा करती रही है कि प्रदेश में अवैध खनन पर लगाम लगाई जा रही है. लेकिन दावे के बावजूद भी अवैध खनन का मामला प्रदेश की राजनीतिक गलियारों में चर्चाओं का विषय बनता रहता है.
यहां से शुरू हुआ अवैध खनन पर विवाद: 27 मार्च 2025 को लोकसभा सदन के भीतर हरिद्वार लोकसभा सीट से सांसद एवं उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अवैध खनन का मुद्दा उठाया था. सदन के भीतर त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अवैध खनन पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा था कि उत्तराखंड के देहरादून, हरिद्वार, उधम सिंह नगर और नैनीताल जिलों में रात के समय अवैध रूप से अवैध खनन ट्रकों का संचालन हो रहा है. ये न सिर्फ पर्यावरण और कानून व्यवस्था के लिए मुद्दा बनता जा रहा है. बल्कि जनता की सुरक्षा को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है.
साथ ही कहा कि, राज्य सरकार और प्रशासन के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद खनन माफिया अवैध ट्रकों का संचालन खुलेआम कर रहे हैं. इन ट्रकों में भारी मात्रा में ओवरलोडिंग की जाती है. बिना किसी वैध परमिशन के खननों को ढोया जाता है. इन अवैध गतिविधियों के चलते प्रदेश की सड़कों और पुलों को भी नुकसान पहुंच रहा है. ऐसे में सरकार तत्काल इस गंभीर समस्या की तरफ ध्यान दे.
खनन सचिव ने दिया जवाब: सदन के भीतर त्रिवेंद्र सिंह रावत की ओर से उठाए गए इस मामले के बाद उत्तराखंड राज्य में सियासत गर्मा गई. इसके पीछे की एक और वजह यह भी रही कि जिस दिन सदन के भीतर त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अवैध खनन का मुद्दा उठाया. उसी दिन रात को खनन सचिव ब्रजेश संत ने अवैध खनन पर स्थिति स्पष्ट की थी. जिसके चलते प्रदेश में अवैध खनन का मामला और अधिक गर्मा गया. सचिव ब्रजेश संत के बयान को इस नजरिए से देखा जाने लगा कि पूर्व मुख्यमंत्री और सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत को खनन सचिव ने करारा जवाब दिया है. जिसके चलते विपक्ष को बैठे बिठाए एक बड़ा मुद्दा मिल गया.
अवैध खनन के बढ़ने की वजह: हर सरकार के कार्यकाल के दौरान खनन का मुद्दा हमेशा से ही एक चर्चाओं का विषय रहा है. इस पूरे मामले पर ज्यादा जानकारी देते हुए वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत ने कहा कि अवैध खनन मामले में नेता और राजनीति बेनकाब हो जाती है. उत्तराखंड राज्य गठन से पहले और राज्य गठन के बाद भी ऐसा देखा जाता रहा है कि खनन के नाम पर नदियों का दोहन किया जाता रहा है. जिससे सरकार को राजस्व मिलता है तो वहीं नेताओं को इसका लाभ मिलता है. अवैध खनन फलने-फूलने की मुख्य वजह यही है कि जिस पार्टी की सरकार होती है, उस पार्टी के नेताओं को पुलिस और प्रशासन भी कुछ नहीं कहती है.
हालांकि, इस पूरे मामले पर पूर्व मुख्यमंत्री एवं सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सदन के भीतर मुद्दा उठाया है. जो स्थिति वास्तव में धरातल पर दिखाई भी देती है. लेकिन आश्चर्य की बात यही है कि देश के संसद में रूलिंग पार्टी का सांसद इस तरह का मुद्दा उठा रहा है तो इस मामले को नकारा नहीं जा सकता. जिससे स्पष्ट होता है कि यह मामला वास्तव में बेहद गंभीर है. जिस पर विस्तृत रूप से चर्चा करने की जरूरत है. जो पार्टियां सरकार में रही हैं, उन पार्टियों के सरकारों के दौरान भी स्थिति ऐसी ही रही है. हरिद्वार में भी ऐसा मामला पहले भी देखा गया है, जब नेता रातों-रात अमीर हो गए. उत्तराखंड के गोला नदी, सॉन्ग नदी और यमुना नदी में खनन सामग्री का दोहन होता रहा है. यह दोहन जिस पार्टी की सरकार रही, उसने की है.
ऐसे में एक बड़ा सवाल यही है कि अवैध खनन के माफिया तंत्र को राजनीतिक तंत्र बढ़ावा क्यों दे रहा है. ऐसे में अब जब पूर्व मुख्यमंत्री और सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अवैध खनन का मुद्दा उठाया है तो इस पूरे मामले को गंभीरता से लेने की जरूरत है. इस बात पर फोकस करने की जरूरत है कि आखिर ऐसा मामला उनके ही पार्टी के नेता ने क्यों उठाया? ऐसे में जिम्मेदार अधिकारियों और नेताओं को इस दिशा में ध्यान देने की जरूरत है. ताकि हमेशा से ही चर्चाओं में रहने वाला अवैध खनन पर लगाम लग सके.
कैग रिपोर्ट में खुलासा: ऐसा नहीं है अवैध खनन का मुद्दा राजनेताओं द्वारा ही उठाया गया है. साल 2023 के मार्च महीने में जारी हुई कैग की रिपोर्ट में अवैध खनन का मामला उजागर हुआ था. कैग की रिपोर्ट के अनुसार, 2017- 18 से लेकर 2020-21 के दौरान 37.17 लाख टन अवैध खनन होने का जिक्र किया गया था. इस दौरान उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत थे. साल 2017 से साल 2021 के बीच हुए अवैध खनन की वजह से सरकार को करीब 45 करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान हुआ था. कैग की रिपोर्ट जारी होने के बाद उस दौरान अवैध खनन का मामला काफी अधिक चर्चाओं में रहा था. उस दौरान भी विपक्षी दल कांग्रेस ने राज्य सरकार पर जमकर निशाना साधा था.
2024 में उठाया था सदन में मुद्दा: दिसंबर 2024 में उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री एवं हरिद्वार सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सदन के भीतर अवैध खनन का मुद्दा उठाया था. उस दौरान उन्होंने कहा था कि अवैज्ञानिक तरीके से अवैध खनन हो रहा है. जिससे किसान और जल स्रोत दोनों ही प्रभावित हो रहे हैं. उत्तराखंड के हरिद्वार जिले में अवैध खनन से संबंधित समय-समय पर मामले सामने आते रहे हैं. जिसको देखते हुए जिला प्रशासन की ओर से कई बार कार्रवाई भी की गई है. जिसके तहत तमाम स्क्रीनिंग प्लांट और क्रशर पर कार्रवाई करते हुए जुर्माना भी लगाया गया है. मुख्य रूप से अवैध खनन का मामला अधिकतर हरिद्वार, गोला नदी से आते रहे हैं. यही वजह है कि हरिद्वार सांसद इससे पहले भी कई बार इस मामले को सदन में उठा चुके हैं.
2020 में हाईकोर्ट पहुंचा अवैध खनन का मामला: साल 2020 में कोरोना काल के दौरान उत्तराखंड के थराली से लेकर कोटद्वार और हल्द्वानी तक नदियों में हुए खनन के मामले में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से रिपोर्ट तलब की थी. क्योंकि उस दौरान अवैध खनन को लेकर कुछ याचिकाकर्ताओं ने नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका दायर कर इस बात को कहा था कि नदियों में अवैध रूप से खनन किया जा रहा है. जिसके चलते नैनीताल हाईकोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार से रिपोर्ट मांगी थी. उस दौरान भी प्रदेश में अवैध खनन का मामला काफी अधिक चर्चाओं में आया था.
पिथौरागढ़ में अवैध खनन की एसएसबी ने दी थी जानकारी: साल 2016 में तात्कालिक हरीश रावत सरकार के दौरान भी प्रदेश में अवैध खनन का मामला काफी अधिक चर्चाओं में रहा था. उस दौरान भारत-नेपाल की सीमा के किनारे पर स्थित पिथौरागढ़ जिले के कानड़ी गांव के समीप अवैध खनन का मामला सामने आया था. हालांकि उस दौरान, नेपाल सीमा पर तैनात एसएसबी 55वीं वाहिनी ई कंपनी के तात्कालिक उपनिरीक्षक ने अवैध खनन के मामले को लेकर कंपनी मुख्यालय के उच्च अधिकारियों को जानकारी दी थी. इसके बाद जिला प्रशासन ने इस पूरे मामले पर जांच करने की बात कही थी. उस दौरान भी अवैध खनन को लेकर प्रदेश में काफी अधिक चर्चाएं हुई थी.
2011 में संत की मौत के बाद लगा था खनन पर रोक: साल 2011 के दौरान भी उत्तराखंड में अवैध खनन का मुद्दा काफी अधिक चर्चाओं में रहा था. इस दौरान उत्तराखंड की भुवन चंद्र खंडूड़ी सरकार में गंगा में चल रहे खनन मामले में एक वरिष्ठ मंत्री का नाम सामने आने से सरकार सवालों के घेरे में आ गई थी. खनन के विरोध में स्वामी शिवानंद ने 2011 को आमरण अनशन शुरू कर दिया था. हालांकि, उससे पहले एक संत निगमानंद की 13 जून को 68 दिनों के आमरण अनशन के बाद मौत हो गई थी. उस दौरान विपक्षी दलों और तमाम सामाजिक संगठनों ने राज्य सरकार का विरोध करना शुरू कर दिया था. जिसके चलते सरकार ने खनन पर रोक लगा दी थी.
उत्तराखंड में खनन राजस्व की स्थिति.
- वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान 397 करोड़ रुपए का राजस्व एकत्र हुआ था.
- वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान 570 करोड़ रुपए का राजस्व एकत्र हुआ था.
- वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान 472 करोड़ रुपए का राजस्व एकत्र हुआ था.
- वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान 645 करोड़ रुपए का राजस्व एकत्र हुआ था.
- वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान करीब 1025 करोड़ रुपए का राजस्व एकत्र हुआ है.
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