देहरादून (रोहित सोनी): उत्तराखंड चारधाम यात्रा के दौरान हर साल लैंडस्लाइड की वजह से श्रद्धालुओं को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. यही नहीं, लैंडस्लाइड की वजह से तमाम सड़क दुर्घटनाएं होती हैं और वाहनों और यात्रियों को नुकसान पहुंचती है. लैंडस्लाइड होने की वजह से यात्रियों को कई घंटे तक रास्ता खुलने का इंतजार करना पड़ता है. भले ही चारधाम यात्रा के दौरान और मानसून सीजन के दौरान क्षेत्रों में मशीनें तैनात की जाती हों, लेकिन लैंडस्लाइड जोन में परमानेंट ट्रीटमेंट पर अधिक जोर नहीं दिया जा रहा है. आखिर क्या है लैंडस्लाइड जोन की मौजूदा स्थिति, लैंडस्लाइड को लेकर क्या है विभागों का रोड मैप? जानिए इस खास रिपोर्ट में.
उत्तराखंड भूस्खलन प्रभावित राज्य: उत्तराखंड राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते हर साल आपदा जैसे हालात बनते रहते हैं. खासकर पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन होने की वजह से आम जनमानस को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. कई बार भूस्खलन की वजह से न सिर्फ आवागमन ठप हो जाता है, बल्कि जानमाल का भी काफी नुकसान होता है. मानसून सीजन के दौरान प्रदेश के खासकर पर्वतीय क्षेत्रों की स्थिति बेहद गंभीर हो जाती है. उत्तराखंड चारधाम यात्रा शुरू होने जा रही है. हर साल यात्रा के दौरान यात्रा मार्गों पर भूस्खलन की घटनाएं होती हैं. जिसके चलते यात्रियों को कई घंटे तक सड़कों से मलबा हटाने का इंतजार करना पड़ता है. जब आवागमन शुरू होता है, तो उस दौरान जाम भी एक बड़ी चुनौती बन जाता है.
ये हैं भूस्खलन के कारण: उत्तराखंड राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों में ही सिर्फ भूस्खलन नहीं हो रहा है, बल्कि देश की कुल भूमि का करीब 12 फीसदी क्षेत्र भूस्खलन से प्रभावित है. वाडिया संस्थान के वैज्ञानिकों के अनुसार भूस्खलन के लिए कोई एक वजह जिम्मेदार नहीं है, बल्कि इसके तमाम कारण होते हैं. इसमें, क्लाइमेटिक फैक्टर, एंथ्रोपोजेनिक एक्टिविटी, एक्सेसिव रेनफॉल, नेचुरल एक्टिविटी और एनवायरमेंटल डिग्रेडेशन जैसे तमाम फैक्टर्स शामिल हैं. इन्हीं में से कई कारणों से उत्तराखंड समेत अन्य पर्वतीय राज्यों में भूस्खलन की समस्याएं उत्पन्न होती हैं. लिहाजा इन तमाम फैक्टर की वजह से ही भूस्खलन संभावित क्षेत्रों का ट्रीटमेंट सही ढंग से नहीं हो पता है, जिसके चलते उस क्षेत्र में लगातार भूस्खलन होता रहता है.

थोक के भाव होते हैं लैंडस्लाइड: राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र से मिली जानकारी के अनुसार, साल 1988 से साल 2024 के बीच प्रदेश में 14,200 से अधिक भूस्खलन की घटनाएं हुई हैं. इसके चलते काफी अधिक जान माल का नुकसान भी हुआ. उत्तराखंड में साल 2018 में 496 भूस्खलन की घटनाएं हुई थी. इसी तरह, साल 2019 में 291 बार भूस्खलन आया. साल 2020 में 973 भूस्खलन की घटनाएं हुईं. साल 2021 में 354 भूस्खलन के मामले सामने आए. साल 2022 में 245 बार भूस्खलन हुआ. साल 2023 में 1323 भूस्खलन की घटनाएं हुई थी. इसी तरह साल 2024 में 1813 भूस्खलन की घटनाएं हुई थी. हालांकि, भूस्खलन को रोकने के लिए संबंधित विभागों की ओर से काम तो किया जा रहा है, लेकिन भूस्खलन पर एकदम से लगाम लगाना संभव नहीं है.
पीडब्ल्यूडी सचिव क्या कहते हैं: ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए पीडब्ल्यूडी सचिव पंकज कुमार पांडे ने बताया कि-
जो लैंडस्लाइड प्रोन क्षेत्र हैं, वहां पर सड़कों से मलबा हटाने के लिए मशीनें लगाई जाती हैं, ताकि सड़कें समय पर खोली जा सकें. लेकिन इसकी सटीक जानकारी नहीं रहती है कि किस जगह पर लैंडस्लाइड होगा. ऐसे में जब किसी नई जगह पर भूस्खलन होता है, तो सड़कों पर ज्यादा काम नहीं कर पाते हैं. किसी लैंडस्लाइड जोन में जहां भूस्खलन आता रहता है, वहां पहले ही मशीनें तैयार रहती हैं. नेशनल हाइवे में करीब 100 स्थान ऐसे हैं, जहां पर पिछले साल से लैंडस्लाइड ट्रीटमेंट का काम चल रहा है. इस लैंडस्लाइड ट्रीटमेंट में दो से तीन साल का वक्त लगता है.
-पंकज कुमार पांडे, सचिव, पीडब्ल्यूडी-
आपदा प्रबंधन सचिव का क्या कहना है: उत्तराखंड में कहीं भी होने वाले भूस्खलन या प्राकृतिक आपदा के बाद रेस्क्यू और पुनर्निर्माण के लिए जिम्मेदार विभाग आपदा प्रबंधन की लैंडस्लाइड से राहत में बड़ी भूमिका रहती है. इस पूरे मामले पर आपदा प्रबंधन सचिव विनोद कुमार सुमन ने कहा कि-
चारधाम यात्रा रूट पर सर्वे करते हुए ऋषिकेश से बदरीनाथ तक 54 स्थानों को चिन्हित किया गया था. इसकी सूची कार्यदाई संस्थानों, विभागों को भेज दी गयी थी. साथ ही पीडब्ल्यूडी से ये अनुरोध किया गया था कि भूस्खलन संभावित क्षेत्रों ठीक किया जाए. ऐसे में भूस्खलन संभावित क्षेत्रों में विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है. आपदा प्रबंधन विभाग अपनी ओर से तमाम जरूरी सावधानियां बरत रहा है. जो चिन्हित 54 भूस्खलन संभावित क्षेत्र हैं, उनके ट्रीटमेंट का काम जारी है.
-विनोद कुमार सुमन, सचिव, आपदा प्रबंधन-
डीपीआर तैयार हो रही है: आपदा प्रबंधन सचिव विनोद कुमार सुमन ने कहा कि कुछ भूस्खलन जोन का ट्रीटमेंट कर लिया गया है. वहीं अगले कुछ महीने के भीतर कुछ और भूस्खलन संभावित क्षेत्रों का ट्रीटमेंट कर दिया जाएगा. इसके अलावा जिन भूस्खलन संभावित क्षेत्र के ट्रीटमेंट में 2- 3 साल से अधिक का समय लग रहा है, उनके लिए अधिक बजट की भी जरूरत होगी. ऐसे में बजट स्वीकृति के लिए आपदा विभाग की ओर से डीपीआर तैयार की जा रही है. ऐसे में आपदा विभाग का प्रयास है कि इस चार धाम यात्रा के दौरान सड़कों को सुचारू रखा जाए. साथी जो लॉन्ग टर्म प्रोजेक्ट्स हैं, उनके लिए योजना बनाकर बजट की व्यवस्था की जाएगी.

ऋषिकेश-बदरीनाथ यात्रा रूट पर भूस्खलन संभावित क्षेत्र: उत्तराखंड में चारधाम यात्रा के लिए सबसे लंबा राष्ट्रीय राजमार्ग ऋषिकेश से बदरीनाथ तक है. इस नेशनल हाईवे की लंबाई करीब 285 किलोमीटर है. इस राष्ट्रीय राजमार्ग पर कुल 54 लैंडस्लाइड जोन हैं. इसमें से ऋषिकेश से श्रीनगर के बीच 17 लैंडस्लाइड जोन चिन्हित किए गए हैं. रुद्रप्रयाग से जोशीमठ के बीच 32 लैंडस्लाइड जोन चिन्हित किए गए हैं. जोशीमठ से बदरीनाथ के बीच 5 लैंडस्लाइड जोन चिन्हित किए गए हैं.
प्रदेश में चिन्हित भूस्खलन संभावित क्षेत्र: उत्तराखंड में कुल 336 लैंडस्लाइड चिन्हित जोन हैं. इनमें गढ़वाल मंडल के जिलों में 163 लैंडस्लाइड जोन चिन्हित हैं. कुमाऊं मंडल के जिलों में 173 लैंडस्लाइड जोन चिन्हित हैं. अगर हम मंडलवार चिन्हित लैंडस्लाइड जोन की बात करें तो उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के नैनीताल जिले में सर्वाधिक 120 लैंडस्लाइड जोन चिन्हित हैं.

कुमाऊं मंडल में 173 लैंडस्लाइड जोन चिन्हित: नैनीताल जिले में 120 भूस्खलन जोन चिन्हित हैं. इसमें 90 क्रॉनिक जोन भी शामिल हैं. बागेश्वर जिले में सुमगढ़, कुंवारी, मल्लादेश, सेरी, बड़ेत समेत 18 क्षेत्र भूस्खलन के लिहाज से काफी संवेदनशील हैं. चंपावत जिले में टनकपुर-पिथौरागढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग पर 15 संवेदनशील भूस्खलन जोन हैं. पिथौरागढ़ जिले के पिथौरागढ़-तवाघाट रूट पर करीब 17 भूस्खलन क्षेत्र चिन्हित हैं. अल्मोड़ा जिले में तीन चिन्हित भूस्खलन जोन हैं. इनमें रानीखेत-रामनगर मोटर मार्ग पर टोटाम, अल्मोड़ा-धौलछीना मोटर मार्ग पर कसाड़ बैंड और अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ राष्ट्रीय राजमार्ग पर मकड़ाऊ शामिल हैं.

गढ़वाल मंडल में 163 लैंडस्लाइड जोन चिन्हित: इसी तरह गढ़वाल मंडल के पौड़ी जिले में भूस्खलन के लिहाज से 119 जोन चिन्हित किए गए हैं. टिहरी जिले के ऋषिकेश से कीर्ति नगर के बीच नेशनल हाईवे पर 15 भूस्खलन जोन चिन्हित हैं. उत्तरकाशी जिले में 16 सक्रिय भूस्खलन जोन अतिसंवेदनशील चिन्हित किये गए हैं. चमोली जिले में लामबगड़ के पास खचड़ा नाला, गोविंदघाट के पास कटैया पुल, हनुमान चट्टी के पास रडांग बैंड, भनेर पाणी, चाड़ा तोक, क्षेत्रपाल, पागल नाला, सोलंग, गुलाब कोटी, छिनका, चमोली चाड़ा, बाजपुर और कर्णप्रयाग भूस्खलन क्षेत्र हैं.

इसके साथ ही गौरीकुंड से केदारनाथ मार्ग पर 4 से 5 संभावित भूस्खलन जोन हैं. यहां पहले भी कई बार भूस्खलन की घटनाएं हो चुकी हैं. ऊखीमठ क्षेत्र में दो भूस्खलन संभावित क्षेत्र हैं. सोनप्रयाग से गौरीकुंड के बीच करीब तीन भूस्खलन संभावित क्षेत्र हैं. देहरादून-मसूरी मार्ग पर गलोगी के पास बीते कुछ सालों से एक नया भूस्खलन जोन विकसित हुआ है.

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