शिमला: हिमाचल प्रदेश को को 'फल राज्य' के नाम से जाना जाता है. यहां की पहाड़ियों में हर साल लाखों टन सेब की पैदावार किसानों की मेहनत से होती है. इसमें सबसे बड़ा किरदार प्रकृति की मेहरबानी का है, लेकिन बीते कुछ वर्षों से मौसम ही हिमाचल के बागवानों का सबसे बड़ा दुश्मन बन गया है. मौसम की बेरुखी के कारण हिमाचल के फल राज्य वाली पहचान संकट में घिरती जा रही है. कभी मौसम की मार, कभी सस्ते आयातित सेब का दबाव और कभी सरकारी नीतियों की उदासीनता इन सबने मिलकर बागवानी पर निर्भर लाखों किसानों की आजीविका को गहरे संकट में डाल दिया है.
इस बार भी हिमाचल के बागवानों के चेहरे पर चिंता की लकीरें साफ़ दिख रही हैं. सर्दियों में बर्फबारी की कमी, फिर अप्रत्याशित बारिश और ओलावृष्टि ने न केवल सेब की गुणवत्ता और उत्पादन को प्रभावित किया है, बल्कि अन्य फलों के पूरे मौसम को असमय समाप्ति की कगार पर ला खड़ा किया है. ऐसे हालात में, प्रदेश का फल उद्योग जो न केवल हिमाचल की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, बल्कि हज़ारों परिवारों की रोज़ी-रोटी का जरिया भी इस पर संकट खड़ा हो गया है.
चिलिंग आवर्स पर पड़ा असर
सर्दियों में बारिश और बर्फबारी की कमी से जरूरी 1200 चिलिंग आवर्स पूरा न होने के कारण सेब की गुणवत्ता पहले ही प्रभावित हो चुकी थी, वहीं अप्रैल की बारिश और तापमान में उतार-चढ़ाव ने मध्यम और ऊंचाई वाले इलाकों में सेब की फ्लावरिंग को नुकसान पहुंचाया है. इसके बाद आए ओलावृष्टि और तूफान ने सेब सहित अन्य फसलों को भारी नुकसान पहुंचाकर बागवानों की कमर तोड़ दी है.
दो महीनों में 60 करोड़ का नुकसान
मौसम की बेरुखी ने पिछले दो महीनों में हिमाचल के किसानों को करीब 60 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाया है. इस नुकसान का लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा सेब की फसल का है. किन्नौर में 30 करोड़, शिमला में 14 करोड़, कुल्लू और मंडी में तीन-तीन करोड़ और कांगड़ा में डेढ़ करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. अन्य जिलों में भी मौसम की मार से फसलों को नुकसान पहुंचा है.

चिलिंग आवर्स में कमी और बेमौसमी बारिश
करसोग के बागवान पद्म देव ने बताया कि 'कई बार चिलिंग आवर में कमी आने और कई बार फ्लावरिंग के समय बेमौसमी बारिश और सेटिंग के समय ओलावृष्टि से नुकसान हो रहा है. हेलनेट भी ओलावृष्टि में सेब को नहीं बचा पा रहे हैं. सेब उत्पादन में बागवानों की भारी लागत आती है. इसमें खाद, स्प्रे शेड्यूल, तुड़ान, मंडी तक माल ढुलाई का खर्चा, कांट छंटाई, सालभर देखरेख में बहुत अधिक खर्च होता है. बागवानों को ऐसे में लागत निकालना ही मुश्किल हो जाएगा. सेब को मौसम से बचाना चैलेंज होता जा रहा है.'
तीन साल में 245 करोड़ से अधिक का नुकसान
बागवानी विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2023 में खराब मौसम की वजह से सेब के बागवानों के साथ अन्य फलों की खेती करने वाले बागवानों को 155 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था, जबकि 2024 में यह नुकसान 30.55 करोड़ रुपये रहा. इस साल 20 मई तक ही 60 करोड़ का नुकसान हो चुका है, जिसमें 21-22 मई को आए तूफान के बाद नुकसान के आंकड़े और बढ़ने की संभावना है.

दो जिलों में 3900 मीट्रिक टन सेब बर्बाद
मौसम की मार से सबसे अधिक नुकसान शिमला और किन्नौर जिलों में हुआ है, जहां अब तक 3900 मीट्रिक टन सेब खराब हो चुका है. शिमला में 2400 इसमें बागवानों को 14 करोड़ का नुकसान और किन्नौर में 1500 मीट्रिक टन सेब नष्ट होने से 30 करोड़ का नुकसान हुआ, क्योंकि किन्नौर का सेब अच्छी क्वालिटी का होने के कारण महंगा बिकता है. यहां के सेब न केवल राष्ट्रीय बाजार में ऊंचे दामों पर बिकते हैं, बल्कि कुछ हिस्सों का निर्यात भी होता है. प्रमुख सेब उत्पादक जिलों में मौसम की बेरुखी ने ऐसा नुकसान कर दिया है जिसकी भरपाई आसान नहीं है.

इस बार भी उत्पादन कम रहने के आसार
हिमाचल प्रदेश संयुक्त किसान मंच के संयोजक हरीश चौहान का कहना है कि 'प्रदेश के मध्यम ऊंचाई वाले इलाकों में सेब की फ्लावरिंग के समय बारिश होने से तापमान में उतार चढ़ाव रहा, जिसका असर सेटिंग पर पड़ा है. वहीं, ओलावृष्टि और तूफान से भी सेब को भारी नुकसान हुआ है. ऐसे में इस साल भी सेब उत्पादन पिछले साल के आसपास ही रहने के आसार हैं.'
हिमाचल में बागवानी का विस्तार, उत्पादन में कमी
हिमाचल प्रदेश में बागवानी का कुल क्षेत्रफल 2,36,950 हेक्टेयर है, जिसमें सेब का हिस्सा लगभग 85 प्रतिशत है. पिछले कुछ दशकों में सेब उत्पादन का क्षेत्रफल तो लगातार बढ़ा है, लेकिन उत्पादन में अपेक्षित बढ़ोतरी नहीं हुई है, जिसका प्रमुख कारण बदलते मौसम को माना जा रहा है.
सेब उत्पादन के हालिया आंकड़े
प्रदेश में सेब उत्पादन 2020-21 में 2.40 करोड़ पेटियों से बढ़कर 2022-23 में 3.36 करोड़ पेटियों तक पहुंच गया था, लेकिन 2023-24 में यह घटकर 2.11 करोड़ और 2024-25 में 2 करोड़ 51 लाख 47 हजार 400 पेटियों तक सिमट गया. बागवान संजीव चौहान के अनुसार, 'इस बार प्रदेश में सेब उत्पादन कम रहने के आसार हैं क्योंकि सर्दियों में जरूरी 1200 चिलिंग आवर्स पूरा नहीं हुआ, जिससे सेब की सेटिंग प्रभावित हुई. अब ओलावृष्टि और तूफान ने नुकसान को और बढ़ा दिया है. शिमला में सेब उत्पादन इस बार 1.5 करोड़ पेटियों तक सीमित रह सकता है'

विदेशों से आयात सेब की भी पड़ रही मार
तुर्की जैसे देशों से आ रहे सस्ते सेब ने स्थानीय बाजारों में प्रतिस्पर्धा को असंतुलित कर दिया है. तुर्की से हर साल हजारों मीट्रिक टन सेब भारत पहुंचता है और बीते तीन सालों में ये आंकड़ा एक लाख टन के पार पहुंचा है. DGCIS के आंकड़ों के मुताबिक पिछले 5 साल में अकेले तुर्की से ही करीब 5 लाख मीट्रिक टन सेब भारत पहुंचा है इनमें से 3.50 लाख मीट्रिक टन से ज्यादा सेब पिछले 3 सालों में आयात हुआ. तुर्की का ये सेब औसतन 64 से 70 रुपये के बीच भारत में लैंड होता है. हालांकि ऑप्रेशन सिंदूर के बाद से भारत में तुर्की के सेब का विरोध हो रहा है. फल व्यापारी तुर्की के सेब और अन्य सामान का विरोध कर रहे हैं. हालांकि भारत सरकार ने तुर्की के आयात पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है.
विदेशी सेब तोड़ रहा बागवानों की रीढ़
तुर्की के अलावा अन्य देशों से बड़ी मात्रा में भारत आ रहे सस्ते सेब, जो न केवल बाजार पर कब्जा कर रहे हैं, बल्कि स्थानीय बागवानों की रीढ़ तोड़ रहे हैं. भारत में विदेशी सेब का बढ़ता आयात एक आर्थिक चुनौती से कहीं ज्यादा, स्थानीय बागवानों के भविष्य का प्रश्न बन चुका है. हिमाचल से जुडे़ बागवान और नेता लंबे वक्त से विदेश से आने वाले सेब पर आयात शुल्क बढ़ाने के पक्षधर रहे हैं. उनका मानना है कि विदेशी सेब पर 100 फीसदी आयात शुल्क लगाना चाहिए, ताकि हिमाचल के बागवानों को फायदा हो.
पीएम के सामने उठाएंगे मामला
सीएम सुक्खू पहले ही कह चुके हैं कि 'दिल्ली में पीएम से तुर्की से आने वाले सेब पर इंपोर्ट ड्यूटी बढ़ाने की मांग करेंगे. हमारी आर्थिकी में बहुत बड़ा योगदान हैं. इनकी सुरक्षा करना हमारा दायित्व और फर्ज दोनों हैं. हम इस दिशा को लेकर आगे बढ़ेंगे.'
इन देशों से आयात होता है सेब
बता दें कि भारत हर साल ईरान से लेकर इटली और अफगानिस्तान से लेकर अमेरिका तक से सेब आयात करता है. DGCIS के आंकड़ों के मुताबिक भारत में सबसे ज्यादा करीब 23 फीसदी सेब तुर्की से आयात होता है. इसके बाद ईरान (21%), अफगानिस्तान (10%), इटली (8%), पोलैंड (7%) और अन्य देशों से (31%) का नंबर आता है. वैसे भारत चिली, न्यूजीलैंड, साउथ अफ्रीका, पोलैंड, ब्राजील, बेल्जियम, सर्बिया, फ्रांस, पुर्तगाल, स्पेन, नीदरलैंड, अर्जेंटीना, भूटान, क्रोएशिया, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, स्लोवेनिया, ग्रीस और थाईलैंड आदि देशों से सेब आयात करता है.
समाधान खोजने की जरूरत
हिमाचल प्रदेश के फल उद्योग की कमजोरियों को उजागर कर दिया है. बदलते मौसम और वैश्विक बाजार के दबाव के बीच अब यह आवश्यक हो गया है कि सरकार, वैज्ञानिक समुदाय और किसान मिलकर एक ऐसा मॉडल तैयार करें जो प्राकृतिक जोखिमों के बावजूद कृषि और बागवानी को टिकाऊ बना सके. वरना हर साल सेब के साथ बागवानों की उम्मीदें भी टूटती रहेंगी.
Conclusion: