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बिहार सरकार ने गया का नाम बदलकर 'गयाजी' क्यों कर दिया? जानें इसकी अद्भुत परंपरा - PINDDAAN IN GAYAJI

गया का नाम अब गयाजी हो गया है. यहां पितरों के मोक्ष के लिए पिंडदानी आते हैं. जानें इसकी अनोखी परंपरा..

PINDDAAN IN GAYAJI
गयाजी में पिंडदान की अनोखी परंपरा (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : May 19, 2025 at 5:29 PM IST

6 Min Read

गया: बिहार के गया का नाम अब गयाजी हुआ है. गयाजी नाम बदला है, तो यह पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है. आज हम बताते हैं, कि गयाजी की महिमा कैसे खास है. यहां की महता और परंपरा अद्भुत है. यहां पितरों का भी रिजर्वेशन कराकर ट्रेन, बस से लाया जाता है. तीर्थ यात्रियों की मान्यता होती है कि, उनके पितर गयाजी की यात्रा कर रहे हैं.

ट्रेन बस में पितरों का रिजर्वेशन: गयाजी मोक्ष भूमि है. यहां पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. पितरों के मोक्ष की प्राप्ति के लिए विधि विधान से पिंडदान किया जाता है. गयाजी में पिंडदान की अनोखी परंपराओं में से एक परंपरा यह भी है, कि यहां आत्माओं का रिजर्वेशन कराकर लाया जाता है.

गयाजी की अद्भुत महता (ETV Bharat)

रखा जाता है पितृ दंड का खास ख्याल: पिंडदानी नारियल में पितर का आह्वान करके उसे पितृ दंड (लाठी) में बांधकर घर से निकलते हैं. यदि ट्रेन से आते हैं, तो रिजर्व किए गए बोगी में आह्वित पितर को सुला कर लाते हैं. पितृ दंड ट्रेन या बस या अन्य किसी वाहन के माध्यम से लाया जाता है.

सुलाकर.. भोग लगाकर लाया जाता है गयाजी: ट्रेन में रिजर्वेशन भले ही किसी और व्यक्ति के नाम पर होता है, लेकिन उसमें पितृ दंड को ही पूरा स्थान दिया जाता है. उस बोगी में पितृ दंड ही रहता है. वहीं, बस से यात्रा करते हैं, तो मृत आत्मा के लिए अलग सीट की टिकट कटाई जाती है और उसमें पितृ दंड को पूरी आस्था के साथ सुलाकर नैवेद्य भोग लगाकर लाया जाता है.

ईटीवी भारत GFX.
ईटीवी भारत GFX. (ETV Bharat)

'पितर मनाने लगते हैं उत्सव': इस संबंध में मंत्रालय रामाचार्य वैदिक धर्मशाला गयाजी के पंडित राजा आचार्य बताते हैं, कि गयाजी के लिए पुत्र आ रहा है, ऐसा पितर देखते हैं, तो उत्सव मनाने लगते हैं. पुत्र के पहुंचने के पहले ही पितर गयाजी तीर्थ आ जाते हैं.

"वायु पुराण में इसका जिक्र है. कहा जाता है, कि पैर के अंगूठे से फाल्गुनी में पितर को जल दिया जाता है, तो उनका उद्धार हो जाता है. पूरे विश्व में पितरों के लिए गया तीर्थ ही एकमात्र मोक्ष दायिनी है. गया तीर्थ में रहने वालों को छोड़कर अन्य राज्य, देश या विदेश के लोग गया को गयाजी पूर्व से ही बोलते हैं."- पंडित राजा आचार्य, मंत्रालय रामाचार्य वैदिक धर्मशाला, गयाजी

PINDDAAN IN GAYAJI
पितृ दंड का बच्चों की तरह रखा जाता है ख्याल (ETV Bharat)

गया का नाम हुआ गयाजी: गयाजी अनेक वर्षों से जो तीर्थ यात्री आते हैं, चाहे वे राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश या अन्य कोई राज्य से हों, सभी को लगता है, कि वह गयाजी को जा रहे हैं. यह पितृ तीर्थ है. इसी को लेकर वे पहले से ही गया को गयाजी आदरपूर्वक कहते रहे हैं. अब आधिकारिक रूप से गयाजी नाम दे दिया गया है.

पितृ ऋण से उऋण: जैसे पहले अयोध्या को फैजाबाद कहा जाता था, अब अयोध्या तीर्थ कहा जाता है. काशी को काशी विश्वनाथ क्षेत्र कहा जाता है, तो जहां नकारात्मक भाव हटे, वह तीर्थ कहलाता है. यहां तीर्थ यात्री पितरों का पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध कर पितृ ऋण से उऋण हो जाते हैं. वहीं, पितर विष्णु लोक को प्राप्त होते हैं. पितर अपने वंशज को सुख समृद्धि का हजार-हजार आशीर्वाद देते हैं.

नारियल में किया जाता है पितर का आह्वान: पंडित राजा आचार्य बताते हैं, कि पुत्र पितर के मोक्ष की कामना को लेकर गया तीर्थ आते हैं, तो उन्हें लगता है, कि क्षेत्र में तीर्थ के लिए जाने से पहले घर में पितर का आह्वान कर ले, जिससे पितृ लोक साथ हो जाएंगे. इसको लेकर ब्राह्मण के माध्यम से नारियल में पितर का आह्वान करके वह साथ लेकर निकालते हैं.

PINDDAAN IN GAYAJI
गयाजी में पिंडदान की अनोखी परंपरा (ETV Bharat)

क्यों होता है पितृ दंड का इस्तेमाल: नारियल को जमीन पर बार-बार न रखा जाए, इसके लिए पितृ दंड (लाठी) का उपयोग करते हैं, जिसमें सरसों अक्षत आदि भी शामिल होता है. इस तरह से पितृ दंड में पितर का आह्वित नारियल, सरसों, अक्षत को अच्छे तरीके से रखकर पुत्र गयाजी को निकलते हैं.

श्राद्ध के बाद फल्गु में प्रवाहित करते हैं नारियल: पंडित राजा आचार्य बताते हैं, कि चाहे ट्रेन या हवाई जहाज से यात्रा पुत्र कर रहा हो, तो वह अपने पितर के लिए बर्थ जगह रिजर्वेशन कराकर लाते हैं. इसके बाद गयाजी पहुंचने पर उनके नाम पर त्रैपाक्षिक श्राद्ध, 8 दिन का श्राद्ध, तीन दिन का श्राद्ध या 1 दिन का श्राद्ध करते हैं. नारियल को गयाजी के फल्गु नदी में प्रवाहित करते हैं, जिससे पितर को उत्तम गति की प्राप्ति होती है.

पितरों की मोक्ष की करते हैं कामना: वहीं, अक्षयवट में सुफल लेते हैं और पितृ दंड को छोड़ते हैं. वहीं, हर तीर्थयात्री, पिंडदानी पितृदंड लेकर आए, यह आवश्यक नहीं है. लेकिन अधिकांश तीर्थ यात्री पितृ दंड साथ लेकर पितरों को मोक्ष की कामना को लेकर गयाजी तीर्थ को निकलते हैं.

PINDDAAN IN GAYAJI
विष्णुपद मंदिर (ETV Bharat)

काशी विश्वनाथ से भी प्राचीन तीर्थ है गयाजी: पंडित राजा आचार्य बताते हैं, कि काशी विश्वनाथ, अयोध्या क्षेत्र से भी प्राचीन तीर्थ गया जी है. यहां पर राजा प्रहलाद ने पिंडदान किया. ऋषि मुनि, देवी देवता यहां आए. प्राचीन काल से गया तीर्थ क्षेत्र बोला जाता है. गया जी अत्यंत परम पावन स्थली है. यहां विभिन्न पिंडदान स्थल है, जिसमें विष्णुपद, फाल्गुनी, प्रेतशिला, सीता कुंड, राम कुंड आदि है. इस तीर्थ का विशेष वर्णन सभी पुराणों में है.

भगवान विष्णु के साक्षात चरण चिह्न विराजमान: गयाजी तीर्थ में गदाधर रूप में भगवान विष्णु के साक्षात चरण चिह्न विराजमान है. गयासुर राक्षस को शांत करने के लिए भगवान विष्णु स्वयं प्रकट हुए थे और अपना दाहिना चरण उस पर रखा था और गयासुर को शांत किया था.

PINDDAAN IN GAYAJI
भगवान विष्णु के साक्षात चरण चिह्न विराजमान (ETV Bharat)

तेरह पोर से बना होता है पितृ दंड: कच्चा बांस के 13 पोर से बने पितर स्वरूप पितृ दंड को लेकर तीर्थ यात्रियों की आस्था गयाजी से जुड़ी होती है. पितृ दंड लाते वक्त रिजर्वेशन कराया जाता है. यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है, जो आधुनिक युग में भी जीवंत है. पितृ दंड की सेवा करते हुए पुत्र लाता है. कहा जाता है कि पितृ दंड का बच्चों की तरह ख्याल रखा जाता है.

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ट्रेन बस में पितरों का रिजर्वेशन: गयाजी मोक्ष भूमि है. यहां पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. पितरों के मोक्ष की प्राप्ति के लिए विधि विधान से पिंडदान किया जाता है. गयाजी में पिंडदान की अनोखी परंपराओं में से एक परंपरा यह भी है, कि यहां आत्माओं का रिजर्वेशन कराकर लाया जाता है.

गयाजी की अद्भुत महता (ETV Bharat)

रखा जाता है पितृ दंड का खास ख्याल: पिंडदानी नारियल में पितर का आह्वान करके उसे पितृ दंड (लाठी) में बांधकर घर से निकलते हैं. यदि ट्रेन से आते हैं, तो रिजर्व किए गए बोगी में आह्वित पितर को सुला कर लाते हैं. पितृ दंड ट्रेन या बस या अन्य किसी वाहन के माध्यम से लाया जाता है.

सुलाकर.. भोग लगाकर लाया जाता है गयाजी: ट्रेन में रिजर्वेशन भले ही किसी और व्यक्ति के नाम पर होता है, लेकिन उसमें पितृ दंड को ही पूरा स्थान दिया जाता है. उस बोगी में पितृ दंड ही रहता है. वहीं, बस से यात्रा करते हैं, तो मृत आत्मा के लिए अलग सीट की टिकट कटाई जाती है और उसमें पितृ दंड को पूरी आस्था के साथ सुलाकर नैवेद्य भोग लगाकर लाया जाता है.

ईटीवी भारत GFX.
ईटीवी भारत GFX. (ETV Bharat)

'पितर मनाने लगते हैं उत्सव': इस संबंध में मंत्रालय रामाचार्य वैदिक धर्मशाला गयाजी के पंडित राजा आचार्य बताते हैं, कि गयाजी के लिए पुत्र आ रहा है, ऐसा पितर देखते हैं, तो उत्सव मनाने लगते हैं. पुत्र के पहुंचने के पहले ही पितर गयाजी तीर्थ आ जाते हैं.

"वायु पुराण में इसका जिक्र है. कहा जाता है, कि पैर के अंगूठे से फाल्गुनी में पितर को जल दिया जाता है, तो उनका उद्धार हो जाता है. पूरे विश्व में पितरों के लिए गया तीर्थ ही एकमात्र मोक्ष दायिनी है. गया तीर्थ में रहने वालों को छोड़कर अन्य राज्य, देश या विदेश के लोग गया को गयाजी पूर्व से ही बोलते हैं."- पंडित राजा आचार्य, मंत्रालय रामाचार्य वैदिक धर्मशाला, गयाजी

PINDDAAN IN GAYAJI
पितृ दंड का बच्चों की तरह रखा जाता है ख्याल (ETV Bharat)

गया का नाम हुआ गयाजी: गयाजी अनेक वर्षों से जो तीर्थ यात्री आते हैं, चाहे वे राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश या अन्य कोई राज्य से हों, सभी को लगता है, कि वह गयाजी को जा रहे हैं. यह पितृ तीर्थ है. इसी को लेकर वे पहले से ही गया को गयाजी आदरपूर्वक कहते रहे हैं. अब आधिकारिक रूप से गयाजी नाम दे दिया गया है.

पितृ ऋण से उऋण: जैसे पहले अयोध्या को फैजाबाद कहा जाता था, अब अयोध्या तीर्थ कहा जाता है. काशी को काशी विश्वनाथ क्षेत्र कहा जाता है, तो जहां नकारात्मक भाव हटे, वह तीर्थ कहलाता है. यहां तीर्थ यात्री पितरों का पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध कर पितृ ऋण से उऋण हो जाते हैं. वहीं, पितर विष्णु लोक को प्राप्त होते हैं. पितर अपने वंशज को सुख समृद्धि का हजार-हजार आशीर्वाद देते हैं.

नारियल में किया जाता है पितर का आह्वान: पंडित राजा आचार्य बताते हैं, कि पुत्र पितर के मोक्ष की कामना को लेकर गया तीर्थ आते हैं, तो उन्हें लगता है, कि क्षेत्र में तीर्थ के लिए जाने से पहले घर में पितर का आह्वान कर ले, जिससे पितृ लोक साथ हो जाएंगे. इसको लेकर ब्राह्मण के माध्यम से नारियल में पितर का आह्वान करके वह साथ लेकर निकालते हैं.

PINDDAAN IN GAYAJI
गयाजी में पिंडदान की अनोखी परंपरा (ETV Bharat)

क्यों होता है पितृ दंड का इस्तेमाल: नारियल को जमीन पर बार-बार न रखा जाए, इसके लिए पितृ दंड (लाठी) का उपयोग करते हैं, जिसमें सरसों अक्षत आदि भी शामिल होता है. इस तरह से पितृ दंड में पितर का आह्वित नारियल, सरसों, अक्षत को अच्छे तरीके से रखकर पुत्र गयाजी को निकलते हैं.

श्राद्ध के बाद फल्गु में प्रवाहित करते हैं नारियल: पंडित राजा आचार्य बताते हैं, कि चाहे ट्रेन या हवाई जहाज से यात्रा पुत्र कर रहा हो, तो वह अपने पितर के लिए बर्थ जगह रिजर्वेशन कराकर लाते हैं. इसके बाद गयाजी पहुंचने पर उनके नाम पर त्रैपाक्षिक श्राद्ध, 8 दिन का श्राद्ध, तीन दिन का श्राद्ध या 1 दिन का श्राद्ध करते हैं. नारियल को गयाजी के फल्गु नदी में प्रवाहित करते हैं, जिससे पितर को उत्तम गति की प्राप्ति होती है.

पितरों की मोक्ष की करते हैं कामना: वहीं, अक्षयवट में सुफल लेते हैं और पितृ दंड को छोड़ते हैं. वहीं, हर तीर्थयात्री, पिंडदानी पितृदंड लेकर आए, यह आवश्यक नहीं है. लेकिन अधिकांश तीर्थ यात्री पितृ दंड साथ लेकर पितरों को मोक्ष की कामना को लेकर गयाजी तीर्थ को निकलते हैं.

PINDDAAN IN GAYAJI
विष्णुपद मंदिर (ETV Bharat)

काशी विश्वनाथ से भी प्राचीन तीर्थ है गयाजी: पंडित राजा आचार्य बताते हैं, कि काशी विश्वनाथ, अयोध्या क्षेत्र से भी प्राचीन तीर्थ गया जी है. यहां पर राजा प्रहलाद ने पिंडदान किया. ऋषि मुनि, देवी देवता यहां आए. प्राचीन काल से गया तीर्थ क्षेत्र बोला जाता है. गया जी अत्यंत परम पावन स्थली है. यहां विभिन्न पिंडदान स्थल है, जिसमें विष्णुपद, फाल्गुनी, प्रेतशिला, सीता कुंड, राम कुंड आदि है. इस तीर्थ का विशेष वर्णन सभी पुराणों में है.

भगवान विष्णु के साक्षात चरण चिह्न विराजमान: गयाजी तीर्थ में गदाधर रूप में भगवान विष्णु के साक्षात चरण चिह्न विराजमान है. गयासुर राक्षस को शांत करने के लिए भगवान विष्णु स्वयं प्रकट हुए थे और अपना दाहिना चरण उस पर रखा था और गयासुर को शांत किया था.

PINDDAAN IN GAYAJI
भगवान विष्णु के साक्षात चरण चिह्न विराजमान (ETV Bharat)

तेरह पोर से बना होता है पितृ दंड: कच्चा बांस के 13 पोर से बने पितर स्वरूप पितृ दंड को लेकर तीर्थ यात्रियों की आस्था गयाजी से जुड़ी होती है. पितृ दंड लाते वक्त रिजर्वेशन कराया जाता है. यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है, जो आधुनिक युग में भी जीवंत है. पितृ दंड की सेवा करते हुए पुत्र लाता है. कहा जाता है कि पितृ दंड का बच्चों की तरह ख्याल रखा जाता है.

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