ETV Bharat / bharat

जमानत मिली पर रिहाई नहीं हुई, सुप्रीम कोर्ट बोला, यह न्याय का उपहास, जेल अधीक्षक को किया गया तलब - TRAVESTY OF JUSTICE

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 25 जून को तय की है. अदालत ने जेल के अधीक्षक तलब किया है.

SUPREME COURT
सुप्रीम कोर्ट (ANI)
author img

By Sumit Saxena

Published : June 24, 2025 at 11:42 PM IST

3 Min Read

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में जबरन धर्मांतरण रोकने के लिए बनाए गए कानून के तहत गिरफ्तार एक आरोपी को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बावजूद रिहा नहीं किया गया. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नाराजगी जताई है.

अदालत ने इसे ‘न्याय का उपहास’ करार देते हुए जेल प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े किए. जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने मामले को बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए उत्तर प्रदेश के जेल महानिदेशक को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए और गाजियाबाद जिला जेल के अधीक्षक को व्यक्तिगत रूप से 25 जून को अदालत में पेश होने का आदेश दिया है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसने 29 अप्रैल को व्यक्ति को जमानत दे दी थी और गाजियाबाद की एक ट्रायल कोर्ट ने 27 मई को जेल अधीक्षक को रिहाई आदेश जारी किया था कि आरोपी को निजी मुचलका भरने पर हिरासत से रिहा किया जाए, जब तक कि उसे किसी अन्य मामले में हिरासत में रखने की जरूरत न हो.

अपने 29 अप्रैल के आदेश का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता को गाजियाबाद के एक पुलिस थाने में दर्ज 3 जनवरी, 2024 की एफआईआर में ट्रायल कोर्ट द्वारा तय शर्तों के आधार पर ट्रायल के लंबित रहने के दौरान जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए.

बेंच ने कहा, "यह न्याय का उपहास है कि इस आधार पर कि उप-धारा का उल्लेख नहीं किया गया था, याचिकाकर्ता... को आज तक सलाखों के पीछे रखा गया है. इसके लिए गंभीर जांच की जरूरत है."

पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ने अब 29 अप्रैल के आदेश में संशोधन की मांग की है ताकि 2021 अधिनियम की धारा 5 के खंड (1) को विशेष रूप से शामिल किया जा सके.

हालांकि, पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील को स्पष्ट कर दिया कि अगर उसे लगता है कि वकील का बयान सही नहीं है या याचिकाकर्ता को किसी अन्य मामले के कारण हिरासत में लिया गया है, तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी. पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 25 जून को तय की है.

आरोपी व्यक्ति पर तत्कालीन आईपी की धारा 366 (अपहरण, अपहरण या महिला को शादी के लिए मजबूर करना आदि) और 2021 अधिनियम की धारा 3 और 5 (गलत बयानी, बल, धोखाधड़ी, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन द्वारा एक धर्म से दूसरे धर्म में धर्मांतरण का निषेध) के तहत मामला दर्ज किया गया था.

ये भी पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट में लगे ग्लास ग्लेजिंग हटाए जाएंगे, बार संगठनों की मांग पर पूर्ण न्यायालय ने लिया फैसला

नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में जबरन धर्मांतरण रोकने के लिए बनाए गए कानून के तहत गिरफ्तार एक आरोपी को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिलने के बावजूद रिहा नहीं किया गया. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नाराजगी जताई है.

अदालत ने इसे ‘न्याय का उपहास’ करार देते हुए जेल प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े किए. जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने मामले को बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए उत्तर प्रदेश के जेल महानिदेशक को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए और गाजियाबाद जिला जेल के अधीक्षक को व्यक्तिगत रूप से 25 जून को अदालत में पेश होने का आदेश दिया है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसने 29 अप्रैल को व्यक्ति को जमानत दे दी थी और गाजियाबाद की एक ट्रायल कोर्ट ने 27 मई को जेल अधीक्षक को रिहाई आदेश जारी किया था कि आरोपी को निजी मुचलका भरने पर हिरासत से रिहा किया जाए, जब तक कि उसे किसी अन्य मामले में हिरासत में रखने की जरूरत न हो.

अपने 29 अप्रैल के आदेश का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता को गाजियाबाद के एक पुलिस थाने में दर्ज 3 जनवरी, 2024 की एफआईआर में ट्रायल कोर्ट द्वारा तय शर्तों के आधार पर ट्रायल के लंबित रहने के दौरान जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए.

बेंच ने कहा, "यह न्याय का उपहास है कि इस आधार पर कि उप-धारा का उल्लेख नहीं किया गया था, याचिकाकर्ता... को आज तक सलाखों के पीछे रखा गया है. इसके लिए गंभीर जांच की जरूरत है."

पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ने अब 29 अप्रैल के आदेश में संशोधन की मांग की है ताकि 2021 अधिनियम की धारा 5 के खंड (1) को विशेष रूप से शामिल किया जा सके.

हालांकि, पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील को स्पष्ट कर दिया कि अगर उसे लगता है कि वकील का बयान सही नहीं है या याचिकाकर्ता को किसी अन्य मामले के कारण हिरासत में लिया गया है, तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी. पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 25 जून को तय की है.

आरोपी व्यक्ति पर तत्कालीन आईपी की धारा 366 (अपहरण, अपहरण या महिला को शादी के लिए मजबूर करना आदि) और 2021 अधिनियम की धारा 3 और 5 (गलत बयानी, बल, धोखाधड़ी, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन द्वारा एक धर्म से दूसरे धर्म में धर्मांतरण का निषेध) के तहत मामला दर्ज किया गया था.

ये भी पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट में लगे ग्लास ग्लेजिंग हटाए जाएंगे, बार संगठनों की मांग पर पूर्ण न्यायालय ने लिया फैसला

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.