बगहा : बिहार के इकलौते वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में बाघों के बीच बढ़ता जा रहा टेरिटोरियल फाइट चिंता का विषय है. मई माह में आपसी संघर्ष में दो बाघों ने अपनी जान गंवा दी है. पिछले 5 सालों में अब तक टेरिटोरियल फाइट की वजह से तकरीबन एक दर्जन बाघों की मौत हो चुकी है.
एक सप्ताह में दो बाघों की मौत: बिहार में बाघों की अच्छी जनसंख्या के लिए प्रसिद्ध वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में एक माह के भीतर दो बाघों की मौत हो गई है. इसी माह 22 मई को एक बाघिन का शव गर्दी दोन इलाके के कक्ष संख्या N 3 में मिला था. वहीं 29 मई यानी गुरुवार को एक मृत बाघ मांगुराहा वन क्षेत्र अंतर्गत भीखनठोरी जंगल के कक्ष संख्या 56 में मिला है. दोनों बाघों की मौत का कारण आपसी संघर्ष बताया जा रहा है.

VTR में कब-कब मिले बाघों के शव?
- 06 जनवरी 2021: वाल्मीकिनगर के कौलेश्वर हाथी शेड के समीप नेपाली बाघिन से भिड़ंत में आठ माह के बाघ की मौत हो गई.
- 30 जनवरी 2021: गोबर्धना वनक्षेत्र के सिरिसिया जंगल में बाघ की मौत हुई. आपसी संघर्ष में बाघ का पेट फट गया था.
- 20 फरवरी 2021: टेरिटरी फाइट के कारण वन क्षेत्र के कक्ष संख्या टी-3 में बाघिन की मौत हो गई.
- 13 अक्टूबर 2021: बाघों की भिड़ंत में एक बाघ की मौत हो गई.
- 12 दिसंबर 2021: दो बार बच्चों को जन्म दे चुकी 9 वर्षीय बाघिन की मौत मांगुराहा वन क्षेत्र में हो गई.
- 01 मार्च 2022: गोनौली वनक्षेत्र के चंपापुर गोनौली चौक के समीप करंट लगने से बाघ की मौत हो गई.
- 08 अक्टूबर 2022: आदमखोर बाघ को गोली मारी गई.
- 09 फरवरी 2023: वाल्मीकिनगर वन क्षेत्र के रमपुरवा सरेह में ट्रैप में फंसकर रॉयल बंगाल टाइगर और तेंदुआ की मौत हो गई.
- 25 मार्च 2024 : वीटीआर के वन प्रमण्डल-1 अंतर्गत मंगुराहां वन प्रक्षेत्र में ठोरी परिसर के बलबल-1 उप परिसर में एक नर बाघ को मृत पाया गया.
- 22 अगस्त 2024: मांगुराहा वन क्षेत्र में आपसी संघर्ष में 5 वर्षीय बाघ की मौत हो गई.
- 22 मई 2025: वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के वन प्रमंडल-2 के हरनाटाड़ की कक्ष संख्या एन-3 में बाघिन का शव मिला. बाघ से भिड़ंत में बाघिन की मौत की आशंका है.
- 29 मई 2025: VTR में गुरुवार को एक बाघ की मौत हो गई. ठोरी जंगल के कंपार्टमेंट संख्या 56 में नर बाघ का शव बरामद हुआ. कहा जा रहा है कि आपसी संघर्ष में बाघ की जान गई.
बाघों के बीच टेरिटोरियल फाइट क्यों ? : दरअसल, पिछले 5 वर्षों में अब तक तकरीबन एक दर्जन बाघों की मौत टेरिटोरियल फाइट की वजह से हुई है. इस बात की पुष्टि वन विभाग ने भी की है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर बाघों के बीच टेरिटोरियल फाइट क्यों होती है?
कितने एरिया में बाघों की टेरिटरी ? : वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया (WTI) के ज्वाइंट डायरेक्टर समीर कुमार सिन्हा बताते हैं कि बाघ एक टेरिटोरियल वन्य जीव है. प्रत्येक नर और मादा बाघ की अपनी एक टेरिटरी होती है, जिसमें वह दूसरे बाघ को आने से रोकता है. भारत में अब तक यह देखने को मिला है कि नर बाघ अमूमन अपना टेरिटरी 100 से 150 स्क्वायर वर्ग किलोमीटर में बनाता है जबकि मादा बाघ 20 से 40 स्क्वायर वर्ग किलोमीटर के दायरे में अपना इलाका चिह्नित करती है.

''ऐसे में कभी-कभी इस तरह की परिस्थितियां सामने आती हैं कि यदि कोई बाघ दूसरे बाघ के इलाके में प्रवेश करता है तो उनके बीच संघर्ष होता है. दोनों के संघर्ष में किसी एक की जीत होती है और दूसरे की हार होती है. लिहाजा इस संघर्ष में हारा हुआ बाघ या तो अपना दूसरा टेरिटरी तलाशता है और नहीं तो उसको अपनी जान गंवानी पड़ती है.''- समीर कुमार सिन्हा, ज्वाइंट डायरेक्टर, WTI

दूसरे के इलाकों में घुसने पर संघर्ष : जनसंख्या बढ़ने के उपरांत यदि बाघों के लिए उनके भोजन अथवा शिकार की संख्या ज्यादा हो तो टेरिटरी का इलाका छोटा होता है. अन्यथा शिकार कम हों तो उसकी तलाश में बाघ एक टेरिटरी से दूसरे बाघ के टेरिटरी में भ्रमण करते हैं. ऐसे में आपसी टकराव लाजिमी है.
- टेरिटोरियल फाइट्स के कारणों को समीर कुमार सिन्हा ने विस्तार से समझाया. कहते हैं, VTR में वर्ष 2010 से बाघों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है. वर्ष 2010 में 8 बाघ से बढ़कर अब 54 से अधिक हो गए हैं. बाघों की बढ़ती संख्या की वजह से इनको अपना टेरिटरी बनाने में आपसी संघर्ष होता है.
- बाघों की संख्या जितनी ज्यादा बढ़ेगी उनके लिए भोजन और अधिवास का प्रबंधन उतना हीं ज्यादा जरूरी होगा. यदि बाघों को शिकार की कमी होती है तो वे जंगल में ज्यादा से ज्यादा दूर तक भ्रमण करेंगे और इस बीच दूसरे बाघों के टेरिटरी में घुस जाएंगे जो आपसी टकराव का कारण बनता है.
- वर्तमान समय में जंगल के इलाकों में मानव गतिविधियों का बढ़ना भी बाघों के बीच आपसी संघर्ष का कारण बन रहा है. किसी ना किसी तरह से जंगल को क्षति पहुंचाना एक मुख्य कारण है. जंगल किनारे बसे इंसान, बाघों या अन्य वन्य जीवों को बफर इलाके में आने देने से रोकते हैं. नतीजतन भटके हुए बाघ या तेंदुआ किसी दूसरे बाघ या तेंदुआ के टेरिटरी में चले जाते हैं और उनके बीच फाइट हो जाती है.
बाघ कैसे बनाते हैं अपना टेरिटरी ? : बाघों की खासियत है कि ये अपने टेरिटरी में दूसरे बाघों का डिस्टर्बेंस सहन नहीं कर पाते हैं. ऐसे में बाघ पेड़ों पर खुरच कर अथवा अपना मूत्र विसर्जन कर अपना इलाका चिन्हित कर लेते हैं. यदि दूसरा बाघ इन इलाकों के आसपास मंडराता है तो मूत्र विसर्जन के गंध से उसे दूसरे बाघ के टेरिटरी होने का अंदेशा हो जाता है.

5 वर्षों में दर्जनों बाघों की मौत : वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के वन संरक्षक सह निदेशक डॉ नेशामणि के बताते हैं कि विगत 5 वर्षों में करीब दर्जनों बाघों की मौत हुई है. इसमें से अधिकांश बाघों की मौत आपसी संघर्ष यानी टेरिटोरियल फाइट की वजह से हुई है. यहीं वजह है कि वन विभाग प्रबंधन बाघों के बेहतर अधिवास और संवर्धन को लेकर लगातार सतत अभियान चला रहा है.
''ग्रासलैंड का दायरा प्रत्येक वर्ष बढ़ाया जा रहा है ताकि शाकाहारी जीवों की संख्या ज्यादा से ज्यादा बढ़ सके और बाघों को अपने भोजन या शिकार की तलाश में ज्यादा दूर तक भटकना ना पड़े. इस ग्रासलैंड मैनेजमेंट के प्रभाव से एक बाघ दूसरे बाघ की टेरिटरी में नहीं जा पाएगा और संघर्ष पर अंकुश लगेगा.''- डॉ नेशामणि, वन संरक्षक सह निदेशक, वाल्मीकि टाइगर रिजर्व

लगातार किया जा रहा प्रयास : कुल मिलाकर कहें तो, जहां एक तरफ बाघों के संरक्षण, संवर्धन और बेहतर अधिवास की वजह से बाघों की संख्या साल दर साल बढ़ी है. वहीं टेरिटोरियल फाइट्स के कारण दर्जनों बाघों की मौत भी हुई है. यदि ये सभी दर्जनों बाघ अभी जीवित रहते तो वाल्मीकि टाइगर रिजर्व बाघों से और भी गुलजार होता, जो बिहार के लिए एक गौरव की बात होती. बावजूद इन घटनाओं के वाल्मीकि टाइगर रिजर्व प्रबंधन लगातार ग्रासलैंड मैनेजमेंट समेत अन्य कारगर उपायों का प्रयास करने में जुटा है कि आपसी संघर्ष में बाघों की जान न जाए.

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