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पाकिस्तान में आर्मी की ताकत 'बेशुमार' और दौलत की भरमार, जानें उनका सैन्य व्यापार साम्राज्य - PAKISTAN MILITARY BUSINESS EMPIRE

वैसे तो हर देश की एक सेना होती है. हालांकि, पाकिस्तान के संदर्भ में ऐसा नहीं है. वहां सेना के पास एक देश है. यह कथन पाकिस्तान पर पाकिस्तानी सेना के प्रभुत्व को दर्शाता है.

पीएम शहबाज शरीफ, एयर चीफ मार्शल जहीर अहमद बाबर (दाएं), नौसेना प्रमुख एडमिरल नवीद अशरफ, आर्मी चीफ सैयद असीम मुनीर, ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी के अध्यक्ष जनरल साहिर शमशाद मिर्जा
पीएम शहबाज शरीफ, एयर चीफ मार्शल जहीर अहमद बाबर (दाएं), नौसेना प्रमुख एडमिरल नवीद अशरफ, आर्मी चीफ सैयद असीम मुनीर, ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी के अध्यक्ष जनरल साहिर शमशाद मिर्जा (AFP)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : May 19, 2025 at 7:49 PM IST

8 Min Read

हैदराबाद: पाकिस्तान में सरकार और सेना के बीच संबंध हमेशा से कभी अच्छे नहीं रहे हैं. वहां की सेना ने न केवल सुरक्षा बल के रूप में, बल्कि राजनीतिक और आर्थिक शक्ति के केंद्र के रूप में भी अपनी भूमिका को मजबूत किया है. सेना हमेशा सरकार, सत्ता और राजनीति पर हावी रही है.

मिल-बस आखिर है क्या?
डॉ. आयशा सिद्दीका, प्रसिद्ध पाकिस्तानी लेखिका और राजनीतिक वैज्ञानिक, ने मिलबस (सैन्य व्यवसाय) शब्द गढ़ा. इस शब्द का उपयोग सेना के व्यावसायिक संचालन और गतिविधियों को दर्शाने के लिए किया जाता है. वह ‘मिलबस’ को ‘सैन्य पूंजी’ के रूप में परिभाषित करती हैं, जिसका उपयोग सैन्य बिरादरी के व्यक्तिगत लाभ के लिए किया जाता है.

पाक सेना कैसे पाकिस्तान में 'सर्वशक्तिमान' बन गई
सेना की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान के 78 साल के इतिहास में पांच दशकों से ज़्यादा समय तक प्रत्यक्ष सैन्य शासन रहा और बाकी समय अप्रत्यक्ष सैन्य शासन रहा.

पाकिस्तानी सेना यह भी सुनिश्चित करती है कि कोई भी उसके वर्चस्व को चुनौती न दे पाए. सेना राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेश नीति और जरूरत पड़ने पर नागरिक सरकारों को नियंत्रित करती है. कोई भी प्रधानमंत्री पाक सेना के आशीर्वाद के बिना नहीं टिक सकता. वैसे जो लोग कोशिश करते हैं उन्हें इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ता है.

उदाहरण के तौर पर साल 1999 में नवाज शरीफ या 2022 में इमरान खान ने पाकिस्तानी सेना के खिलाफ खड़े हो गए थे. जिसके बाद उन्हें तुरंत जेल का दरवाज़ा दिखा दिया गया. वहीं दूसरी तरफ सैन्य भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले पत्रकारों और कार्यकर्ताओं की अवस्था भी कुछ ज्यादा अच्छी नहीं है. उन्हें अपहरण, धमकियों या इससे भी बदतर स्थिति का सामना करना पड़ता है.

ISI (इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस) एक प्रवर्तन शाखा के रूप में काम करती है, जो यह सुनिश्चित करती है कि असहमति पर लगाम लगाई जाए. जब ​​सेना के व्यापारिक लेन-देन पर सवाल उठाए जाते हैं, तो अख़बारों पर सेंसरशिप लगाई जाती है, टीवी एंकरों को बर्खास्त कर दिया जाता है और असंतुष्ट रहस्यमय तरीके से गायब हो जाते हैं.

मिल-बस की नींव
पाकिस्तान की सेना को इसके लिए शीत युद्ध का शुक्रिया अदा करना चाहिए. उस समय, अमेरिका भारत के यूएसएसआर के साथ संबंधों को लेकर चिंतित था और उपमहाद्वीप में पाकिस्तान को एक सहयोगी के रूप में चाहता था. अमेरिका पाकिस्तान में नागरिक राजनीतिक सरकारों के बारे में संदिग्ध था और सेना का समर्थन करना पसंद करता था.

सैन्य शासकों में से पहले, अयूब खान ने 1960 के दशक में 'मिलबस' की नींव रखी. लेकिन वास्तविक विस्तार पाकिस्तान के सबसे शक्तिशाली सैन्य तानाशाह जनरल जिया उल-हक के शासनकाल में हुआ.

मुजाहिदीन विद्रोह से लड़ने के लिए सोवियत रेड आर्मी द्वारा अफगानिस्तान पर आक्रमण करने से ठीक पहले जिया सत्ता में आए थे. अमेरिका सीधे अफगान युद्ध में कूद नहीं कर सकता था, इसलिए उसने पाकिस्तान के माध्यम से जाने का विकल्प चुना.

1980 के दशक के दौरान, अफगान विद्रोहियों के लिए अमेरिकी धन और हथियार पाकिस्तान में बाढ़ की तरह बहते रहे. इसका केवल एक हिस्सा मुजाहिदीन लड़ाकों के पास गया. बाकी को जिया के सहयोगियों की निजी तिजोरियों में डाल दिया गया और 'मिलबस' का विस्तार किया गया. यह वह समय था जब सेना ने पाकिस्तान की अधिकांश अर्थव्यवस्था पर कब्जा कर लिया था.

पाकिस्तानी सेना के कमर्शियल इंटरेस्ट
पाकिस्तानी सेना एक तरह से कमर्शियल इंटरप्राइज है. सात दशकों में, पाकिस्तान के सैन्य एलीट ने कल्याण और राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ में एक आर्थिक बाजीगरी तैयार की है. पाकिस्तान की सेना के रियल एस्टेट, वित्तीय सेवाओं, बीमा, कृषि, उर्वरक, खाद्य, आईटी, सीमेंट, खान, जल संसाधन, बिजली संयंत्र, तेल और गैस, विमानन, मीडिया और विज्ञापन में व्यावसायिक हित हैं . इसे कम शब्दों में समझे तो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के हर एक क्षेत्र में वहां की सेना का एक तरह से दखल माना जाता है. फौजी फाउंडेशन, आर्मी वेलफेयर ट्रस्ट और डिफेंस हाउसिंग अथॉरिटी जैसी संस्थाओं ने विशाल व्यापारिक साम्राज्य बनाए हैं.

देश में रोटी की आपूर्ति सेना के स्वामित्व वाली बेकरी द्वारा की जाती है, जिसका संचालन नागरिक करते हैं. सेना द्वारा नियंत्रित बैंक जमा लेते हैं और लोन वितरित करते हैं. सभी भारी विनिर्माण का एक तिहाई और निजी परिसंपत्तियों का 7 प्रतिशत सेना के हाथों में माना जाता है.

पाकिस्तानी सैन्य व्यापार साम्राज्य का कुल मूल्य
आयशा सिद्दीकी की रिपोर्ट के मुताबिक, 2007 में पाकिस्तानी सेना के व्यापारिक उपक्रमों का कुल मूल्य 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। हालांकि, अब यह 40 से लेकर 100 बिलियन डॉलर (8,47,28,17,08,000 रुपये) के बीच हो सकता है, इस मामले पर अलग-अलग विशेषज्ञों ने अपने अनुमान व्यक्त किए हैं.

अरबों कमाने वाले पाकिस्तानी सैन्य फाउंडेशनों पर एक नजर पाकिस्तान में एक मेगा व्यापार समूह, जिसमें लगभग 3 मिलियन कर्मचारी हैं. जिसका वार्षिक राजस्व 26.5 बिलियन डॉलर से अधिक है जो वह सेना से जुड़ा हुआ है.

यह समूह असकरी फाउंडेशन, फौजी फाउंडेशन (पाकिस्तान सेना), शाहीन फाउंडेशन (पाकिस्तान वायु सेना), बहरिया फाउंडेशन (पाकिस्तान नौसेना), आर्मी वेलफेयर ट्रस्ट, डिफेंस हाउसिंग अथॉरिटी और अन्य परोपकारी संगठनों के नाम से चलता है.

धर्मार्थ संगठनों के रूप में वर्गीकृत, वे टैक्स से बच सकते हैं. सबसे बड़े तीन फौजी, शाहीन और बहरिया फाउंडेशन, जो क्रम अनुसार सेना, वायु सेना और नौसेना के नियंत्रण में हैं

ये सीमेंट से लेकर अनाज उत्पादन तक हर चीज में शामिल 100 से अधिक अलग-अलग वाणिज्यिक संस्थाओं को नियंत्रित करते हैं. उदाहरण के लिए, फौजी फाउंडेशन को कभी-कभी एक सैन्य-संचालित फॉर्च्यून 500 कंपनी के रूप में बताया जाता है.

रियल एस्टेट के मालिक है पाकिस्तानी सेना
सेना पाकिस्तान की लगभग 12 फीसदी भूमि को नियंत्रित करती है, जिसमें प्रमुख शहरी अचल संपत्ति भी शामिल है, जो मुख्य रूप से वरिष्ठ अधिकारियों को आवंटित है. यह आर्थिक प्रभुत्व एक समानांतर अर्थव्यवस्था के रूप में संचालित होता है, जो कि आम पाकिस्तानियों के सामने आने वाली राजकोषीय वास्तविकताओं से काफी हद तक अछूता है.

वे पाकिस्तान में सबसे बड़े रियल एस्टेट डेवलपर्स हैं जिनके देश भर में 50 से अधिक विभिन्न आवास परियोजनाएं हैं जो छोटी नहीं हैं. उनमें से प्रत्येक आवास परियोजनाएं कई हजार एकड़ में फैला हुआ है. डीएचए (रक्षा आवास प्राधिकरण) इस्लामाबाद 16000 एकड़ में फैला हुआ है जबकि डीएचए (रक्षा आवास प्राधिकरण) कराची 12000 एकड़ से अधिक में फैला हुआ है. ये जमीनें पाकिस्तान सरकार की तरफ से मुफ्त में आवंटित की जाती हैं, जिन्हें बाद में आम जनता को भारी प्रीमियम पर बेचा जाता है.

पाकिस्तानी सेना में तीन सितारा जनरल पाकिस्तानी रुपये में अरबपति बनकर रिटायर होते हैं, क्योंकि पाकिस्तानी सरकार उन्हें वाणिज्यिक और आवासीय दोनों तरह के रियायती प्लॉट और कृषि भूमि का बड़ा अनुदान देती है. अन्य रैंक के अधिकारियों को भी राज्य से लाभ मिलता है. पूर्व सेना प्रमुख राहील शरीफ को उनकी सेवानिवृत्ति के बाद लाहौर के बाहरी इलाके में 100 एकड़ से अधिक की शानदार कृषि भूमि आवंटित की गई थी.

पाकिस्तान के कई भ्रष्ट जनरल पर एक नजर
2021 के पेंडोरा पेपर्स ने टॉप सैन्य अधिकारियों के ऑफशोर सौदों को उजागर किया, जिसमें लेफ्टिनेंट जनरल असीम सलीम बाजवा के संयुक्त राज्य अमेरिका में बहु-मिलियन डॉलर के निवेश और लेफ्टिनेंट जनरल शफात उल्लाह शाह की लंदन की अचल संपत्ति शामिल हैं.

जनरल असीम सलीम बाजवा
जनरल असीम सलीम बाजवा जिन्हें जनरल पापा जॉन के नाम से जाना जाता है, और उनके भाई ने एक व्यापारिक साम्राज्य स्थापित किया, जिसमें पापा जॉन की पिज्जा फ्रैंचाइजी के तहत चार देशों में 133 रेस्तरां शामिल थे.

फैक्ट फोकस की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि, बाजवा अपने परिवार के साथ मिलकर अपनी संपत्ति को 12.7 बिलियन पाकिस्तानी रुपये (47 मिलियन डॉलर) तक बढ़ाने में कामयाब रहे.

अशफाक परवेज कयानी
पूर्व सेना प्रमुख अशफाक परवेज कयानी के भाइयों द्वारा रियल एस्टेट भ्रष्टाचार की भी जांच शुरू की गई थी, जो कई सालों तक देश में सबसे शक्तिशाली शख्स के तौर पर शुमार थे.

जनरल असीम मुनीर के पास इतनी दौलत
जहां तक खुद जनरल असीम मुनीर की बात है, उनकी कुल संपत्ति लगभग 8 लाख अमेरिकी डॉलर है, जो कई रिपोर्ट के अनुसार लगभग 6.7 करोड़ रुपये के बराबर है.

ये भी पढ़ें: ऑपरेशन सिंदूर: भारतीय सेना की आर्टिलरी रेजिमेंट ने पाकिस्तान की कई सैन्य चौकियों को किया तबाह

हैदराबाद: पाकिस्तान में सरकार और सेना के बीच संबंध हमेशा से कभी अच्छे नहीं रहे हैं. वहां की सेना ने न केवल सुरक्षा बल के रूप में, बल्कि राजनीतिक और आर्थिक शक्ति के केंद्र के रूप में भी अपनी भूमिका को मजबूत किया है. सेना हमेशा सरकार, सत्ता और राजनीति पर हावी रही है.

मिल-बस आखिर है क्या?
डॉ. आयशा सिद्दीका, प्रसिद्ध पाकिस्तानी लेखिका और राजनीतिक वैज्ञानिक, ने मिलबस (सैन्य व्यवसाय) शब्द गढ़ा. इस शब्द का उपयोग सेना के व्यावसायिक संचालन और गतिविधियों को दर्शाने के लिए किया जाता है. वह ‘मिलबस’ को ‘सैन्य पूंजी’ के रूप में परिभाषित करती हैं, जिसका उपयोग सैन्य बिरादरी के व्यक्तिगत लाभ के लिए किया जाता है.

पाक सेना कैसे पाकिस्तान में 'सर्वशक्तिमान' बन गई
सेना की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान के 78 साल के इतिहास में पांच दशकों से ज़्यादा समय तक प्रत्यक्ष सैन्य शासन रहा और बाकी समय अप्रत्यक्ष सैन्य शासन रहा.

पाकिस्तानी सेना यह भी सुनिश्चित करती है कि कोई भी उसके वर्चस्व को चुनौती न दे पाए. सेना राष्ट्रीय सुरक्षा, विदेश नीति और जरूरत पड़ने पर नागरिक सरकारों को नियंत्रित करती है. कोई भी प्रधानमंत्री पाक सेना के आशीर्वाद के बिना नहीं टिक सकता. वैसे जो लोग कोशिश करते हैं उन्हें इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ता है.

उदाहरण के तौर पर साल 1999 में नवाज शरीफ या 2022 में इमरान खान ने पाकिस्तानी सेना के खिलाफ खड़े हो गए थे. जिसके बाद उन्हें तुरंत जेल का दरवाज़ा दिखा दिया गया. वहीं दूसरी तरफ सैन्य भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले पत्रकारों और कार्यकर्ताओं की अवस्था भी कुछ ज्यादा अच्छी नहीं है. उन्हें अपहरण, धमकियों या इससे भी बदतर स्थिति का सामना करना पड़ता है.

ISI (इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस) एक प्रवर्तन शाखा के रूप में काम करती है, जो यह सुनिश्चित करती है कि असहमति पर लगाम लगाई जाए. जब ​​सेना के व्यापारिक लेन-देन पर सवाल उठाए जाते हैं, तो अख़बारों पर सेंसरशिप लगाई जाती है, टीवी एंकरों को बर्खास्त कर दिया जाता है और असंतुष्ट रहस्यमय तरीके से गायब हो जाते हैं.

मिल-बस की नींव
पाकिस्तान की सेना को इसके लिए शीत युद्ध का शुक्रिया अदा करना चाहिए. उस समय, अमेरिका भारत के यूएसएसआर के साथ संबंधों को लेकर चिंतित था और उपमहाद्वीप में पाकिस्तान को एक सहयोगी के रूप में चाहता था. अमेरिका पाकिस्तान में नागरिक राजनीतिक सरकारों के बारे में संदिग्ध था और सेना का समर्थन करना पसंद करता था.

सैन्य शासकों में से पहले, अयूब खान ने 1960 के दशक में 'मिलबस' की नींव रखी. लेकिन वास्तविक विस्तार पाकिस्तान के सबसे शक्तिशाली सैन्य तानाशाह जनरल जिया उल-हक के शासनकाल में हुआ.

मुजाहिदीन विद्रोह से लड़ने के लिए सोवियत रेड आर्मी द्वारा अफगानिस्तान पर आक्रमण करने से ठीक पहले जिया सत्ता में आए थे. अमेरिका सीधे अफगान युद्ध में कूद नहीं कर सकता था, इसलिए उसने पाकिस्तान के माध्यम से जाने का विकल्प चुना.

1980 के दशक के दौरान, अफगान विद्रोहियों के लिए अमेरिकी धन और हथियार पाकिस्तान में बाढ़ की तरह बहते रहे. इसका केवल एक हिस्सा मुजाहिदीन लड़ाकों के पास गया. बाकी को जिया के सहयोगियों की निजी तिजोरियों में डाल दिया गया और 'मिलबस' का विस्तार किया गया. यह वह समय था जब सेना ने पाकिस्तान की अधिकांश अर्थव्यवस्था पर कब्जा कर लिया था.

पाकिस्तानी सेना के कमर्शियल इंटरेस्ट
पाकिस्तानी सेना एक तरह से कमर्शियल इंटरप्राइज है. सात दशकों में, पाकिस्तान के सैन्य एलीट ने कल्याण और राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ में एक आर्थिक बाजीगरी तैयार की है. पाकिस्तान की सेना के रियल एस्टेट, वित्तीय सेवाओं, बीमा, कृषि, उर्वरक, खाद्य, आईटी, सीमेंट, खान, जल संसाधन, बिजली संयंत्र, तेल और गैस, विमानन, मीडिया और विज्ञापन में व्यावसायिक हित हैं . इसे कम शब्दों में समझे तो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के हर एक क्षेत्र में वहां की सेना का एक तरह से दखल माना जाता है. फौजी फाउंडेशन, आर्मी वेलफेयर ट्रस्ट और डिफेंस हाउसिंग अथॉरिटी जैसी संस्थाओं ने विशाल व्यापारिक साम्राज्य बनाए हैं.

देश में रोटी की आपूर्ति सेना के स्वामित्व वाली बेकरी द्वारा की जाती है, जिसका संचालन नागरिक करते हैं. सेना द्वारा नियंत्रित बैंक जमा लेते हैं और लोन वितरित करते हैं. सभी भारी विनिर्माण का एक तिहाई और निजी परिसंपत्तियों का 7 प्रतिशत सेना के हाथों में माना जाता है.

पाकिस्तानी सैन्य व्यापार साम्राज्य का कुल मूल्य
आयशा सिद्दीकी की रिपोर्ट के मुताबिक, 2007 में पाकिस्तानी सेना के व्यापारिक उपक्रमों का कुल मूल्य 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर था। हालांकि, अब यह 40 से लेकर 100 बिलियन डॉलर (8,47,28,17,08,000 रुपये) के बीच हो सकता है, इस मामले पर अलग-अलग विशेषज्ञों ने अपने अनुमान व्यक्त किए हैं.

अरबों कमाने वाले पाकिस्तानी सैन्य फाउंडेशनों पर एक नजर पाकिस्तान में एक मेगा व्यापार समूह, जिसमें लगभग 3 मिलियन कर्मचारी हैं. जिसका वार्षिक राजस्व 26.5 बिलियन डॉलर से अधिक है जो वह सेना से जुड़ा हुआ है.

यह समूह असकरी फाउंडेशन, फौजी फाउंडेशन (पाकिस्तान सेना), शाहीन फाउंडेशन (पाकिस्तान वायु सेना), बहरिया फाउंडेशन (पाकिस्तान नौसेना), आर्मी वेलफेयर ट्रस्ट, डिफेंस हाउसिंग अथॉरिटी और अन्य परोपकारी संगठनों के नाम से चलता है.

धर्मार्थ संगठनों के रूप में वर्गीकृत, वे टैक्स से बच सकते हैं. सबसे बड़े तीन फौजी, शाहीन और बहरिया फाउंडेशन, जो क्रम अनुसार सेना, वायु सेना और नौसेना के नियंत्रण में हैं

ये सीमेंट से लेकर अनाज उत्पादन तक हर चीज में शामिल 100 से अधिक अलग-अलग वाणिज्यिक संस्थाओं को नियंत्रित करते हैं. उदाहरण के लिए, फौजी फाउंडेशन को कभी-कभी एक सैन्य-संचालित फॉर्च्यून 500 कंपनी के रूप में बताया जाता है.

रियल एस्टेट के मालिक है पाकिस्तानी सेना
सेना पाकिस्तान की लगभग 12 फीसदी भूमि को नियंत्रित करती है, जिसमें प्रमुख शहरी अचल संपत्ति भी शामिल है, जो मुख्य रूप से वरिष्ठ अधिकारियों को आवंटित है. यह आर्थिक प्रभुत्व एक समानांतर अर्थव्यवस्था के रूप में संचालित होता है, जो कि आम पाकिस्तानियों के सामने आने वाली राजकोषीय वास्तविकताओं से काफी हद तक अछूता है.

वे पाकिस्तान में सबसे बड़े रियल एस्टेट डेवलपर्स हैं जिनके देश भर में 50 से अधिक विभिन्न आवास परियोजनाएं हैं जो छोटी नहीं हैं. उनमें से प्रत्येक आवास परियोजनाएं कई हजार एकड़ में फैला हुआ है. डीएचए (रक्षा आवास प्राधिकरण) इस्लामाबाद 16000 एकड़ में फैला हुआ है जबकि डीएचए (रक्षा आवास प्राधिकरण) कराची 12000 एकड़ से अधिक में फैला हुआ है. ये जमीनें पाकिस्तान सरकार की तरफ से मुफ्त में आवंटित की जाती हैं, जिन्हें बाद में आम जनता को भारी प्रीमियम पर बेचा जाता है.

पाकिस्तानी सेना में तीन सितारा जनरल पाकिस्तानी रुपये में अरबपति बनकर रिटायर होते हैं, क्योंकि पाकिस्तानी सरकार उन्हें वाणिज्यिक और आवासीय दोनों तरह के रियायती प्लॉट और कृषि भूमि का बड़ा अनुदान देती है. अन्य रैंक के अधिकारियों को भी राज्य से लाभ मिलता है. पूर्व सेना प्रमुख राहील शरीफ को उनकी सेवानिवृत्ति के बाद लाहौर के बाहरी इलाके में 100 एकड़ से अधिक की शानदार कृषि भूमि आवंटित की गई थी.

पाकिस्तान के कई भ्रष्ट जनरल पर एक नजर
2021 के पेंडोरा पेपर्स ने टॉप सैन्य अधिकारियों के ऑफशोर सौदों को उजागर किया, जिसमें लेफ्टिनेंट जनरल असीम सलीम बाजवा के संयुक्त राज्य अमेरिका में बहु-मिलियन डॉलर के निवेश और लेफ्टिनेंट जनरल शफात उल्लाह शाह की लंदन की अचल संपत्ति शामिल हैं.

जनरल असीम सलीम बाजवा
जनरल असीम सलीम बाजवा जिन्हें जनरल पापा जॉन के नाम से जाना जाता है, और उनके भाई ने एक व्यापारिक साम्राज्य स्थापित किया, जिसमें पापा जॉन की पिज्जा फ्रैंचाइजी के तहत चार देशों में 133 रेस्तरां शामिल थे.

फैक्ट फोकस की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि, बाजवा अपने परिवार के साथ मिलकर अपनी संपत्ति को 12.7 बिलियन पाकिस्तानी रुपये (47 मिलियन डॉलर) तक बढ़ाने में कामयाब रहे.

अशफाक परवेज कयानी
पूर्व सेना प्रमुख अशफाक परवेज कयानी के भाइयों द्वारा रियल एस्टेट भ्रष्टाचार की भी जांच शुरू की गई थी, जो कई सालों तक देश में सबसे शक्तिशाली शख्स के तौर पर शुमार थे.

जनरल असीम मुनीर के पास इतनी दौलत
जहां तक खुद जनरल असीम मुनीर की बात है, उनकी कुल संपत्ति लगभग 8 लाख अमेरिकी डॉलर है, जो कई रिपोर्ट के अनुसार लगभग 6.7 करोड़ रुपये के बराबर है.

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